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एक हिंदी जर्नलिस्ट पर हुए सेक्सुअल असॉल्ट की कहानी, उसी की ज़ुबानी

हमारे अंदर का मर्द कभी ये मानने को तैयार ही नहीं होता कि वो भी इतना बेचारा हो सकता है.

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आशीष मिश्रा
25 अगस्त 2016 (Updated: 25 अगस्त 2016, 10:43 AM IST) कॉमेंट्स
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बात दिल्ली की है. दिल्ली और मीडिया में आए हुए डेढ़ महीने हुए थे. मैं ऑफिस से घर लौट रहा था. थोड़े ही दूर एक सुनसान रोड में पहुंचा तो वहां दो लड़के खड़े थे. अचानक उन्होंने रास्ता घेरते हुए मुझे रोका और ओरल सेक्स का ऑफर दे दिया. उनकी अगली बात और साफ़ थी गां* मरवाएगा? आप भले कितनी चौड़ में रहें, दो लंबे-चौड़े लड़के सुनसान सड़क पर अंधियारे में रास्ता रोककर जबरिया सेक्स करने के लिए कह रहे हों तो डर लगना लाज़मी है. वो कुछ न भी करते तो चाकू मार सकते थे. गोली मार सकते थे. मारपीट या लूटपाट कर सकते थे. मेरे अंदर के 'लड़के' को ये मानने में वक्त लग गया कि ये भी मॉलेस्टेशन ही था. उनसे मैं छूटा और भागा. शुक्र है उस रोज उन दोनों ने अपनी बाइक मेरे पीछे नहीं दौड़ाई.
अगर आप मर्द हैं, अपनी तय की हुई तमाम परिभाषाओं पर खरे उतरते हुए मर्द हैं. और उन मर्दों में हैं जिन्हें लगता है कि औरतों से यौन दुर्व्यवहार छोटे कपड़ों, 'चाल-चलन', गलत समय पर गलत जगह पर जाने से होता है तो ये पढ़ें. तब भी कि जब आप औरत हैं, और आपको लगता है कि औरतों के साथ जो कुछ बुरा होता है औरत होने के कारण होता है. हो सकता है आपको लगता हो कि ठरकपन लोगों को किसी को मॉलेस्ट, 'ईव टीजिंग' या रेप करने के लिए उकसाते हो. या आपका ये मानना हो कि रेप सिर्फ सेक्स पाने के लिए होता है.
मॉलेस्ट होने के लिए लड़की होना जरूरी नहीं होता. मैंने ऐसा तब भी महसूस किया है, जब एक बार कॉलेज जाते हुए एक अंकल ने अपना हाथ मेरी शर्ट के अंदर डाल कमर सहलाना शुरू कर दिया था. मेरे लिए ये शॉकिंग था. मुझे पता था लड़कियों के साथ लोग कैसी हरकतें करते हैं. लेकिन ये मेरे साथ हो रहा था. मैं तो लड़का था, मैं उस पर चीख सकता था, उससे झगड़ सकता था, मेरा कॉलेज रास्ते में था. मैं चाहता तो एक फोन पर दस लड़के बुलाकर रास्ते में ही उसे पिटवा सकता था. और मुझे पता है, इंजीनियरिंग कॉलेज के लड़कों को बस रुकवाकर एक आदमी को पीटने में कितना मजा आता, ये काम वो हर रोज कर सकते थे. पर मैंने कुछ नहीं किया, सिवाय वहां से गालियां देते हुए उठ जाने के. उसने किया ही क्या था? मैं किसे बताता और सबूत क्या था? हाथ था गलती से टकरा गया. ऐसे ही हाथ गलती से जाने कितनी जगहों पर टकराते होंगे. और उनका कोई सबूत नहीं होता. सबूत न होने के कारण ही ये हाथ टकराने से आगे भी कुछ कर जाते हैं. ऐसा ही मुझे उस रोज भी लगा था जब ट्रेन में 50-55 साल के आदमी ने ऊंघने का नाटक करते हुए मेरी पैंट में हाथ डालना शुरू कर दिया. एक-दो नहीं कई-कई बार. तीनों बार मुझे एक बात समझ आई. जब कोई किसी को मॉलेस्ट कर रहा होता है. तो हर बार उसका मकसद सिर्फ प्लेजर पाना नहीं होता. और ये बात तो बिल्कुल ही मायने नहीं रखती कि आप किस उम्र के हो, क्या पहना है या किस जगह पर हो. लड़का हो, औरत हो. सामने वाला बस आप पर हावी होना चाहता है. इसमें जितनी क्वांटिटी में सेक्स होता है, उतना ही 'जोर' होता है. उसने किसी पर 'काबू' कर लिया, सामने वाला कुछ कर नहीं पाया. उसने किसी को जीत लिया. ये थॉट ही उसे बहुत खुश करता है.
जितना मुझे समझ आता है. पब्लिक प्लेस में किसी से छेड़छाड़ कर इनकी हिंसावृत्ति को और ज्यादा सुकून मिलता है. ये उनके लिए थ्रिलिंग होता है. उन्हें सबसे अच्छा लगता है बच निकलना. इन्हें लगता है कि इन्होंने सिर्फ उस इंसान को नहीं, आसपास के माहौल को भी काबू में कर लिया है. कैसे वो सब कर गए और अगल-बगल वालों को पता भी नहीं चला.
लड़कों का मॉलेस्टेशन कोई अजूबा नहीं है. मेरे कई दोस्त मुझे बताते हैं कि बचपन में उनके साथ उन्हीं के जान-पहचान वालों ने कैसी हरकतें कीं. लड़कियों के मॉलेस्टेशन की बातें आती हैं. बहस होती है. पर लड़के ये नहीं बताते. एक वजह ये भी कि उनका ईगो आड़े आता है. हमारे अंदर का मर्द कभी ये मानने को तैयार ही नहीं होता कि वो भी इतना बेचारा हो सकता है.

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