कोचिंग संस्थान के इस नए एड को देख कर सिर फट कर बहत्तर हो जाता है
मैं सोच में पड़ गया कि एक कोचिंग संस्थान आत्मा पर ज्ञान क्यों ठेल रहा है.
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फोटो - thelallantop
जब कॉलेज में था, तब से एक गंदी आदत लगी हुई है. टॉयलेट में अखबार लेकर घुसने की. माने मुझे टॉयलेट पढ़ने के लिए कुछ ना कुछ चाहिए. चूंकि खबरबाजी में धंधे में हूं तो सुबह के वक़्त अखबार पसंद भी है और मजबूरी भी. आज सुबह अखबार लेकर टॉयलेट में घुसा. पहला पन्ना पर भगवान कृष्ण की आदमकद तस्वीर लगी हुई थी.एक बार तो पन्ना पलट कर आगे बढ़ गया. फिर वापिस लौट आया. देखा तो यह फिटजी का विज्ञापन था. कौतूहल के चलते विज्ञापन का मजमून पढ़ने लगा. इसकी शुरूआत ही भागवत के श्लोक से होती है.
"नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः"(माने आत्मा ना शस्त्रों से छेदी जा सकती है, ना ही आग में झोंकी जा सकती है. ना तो पानी इसे गीला कर सकता है और ना ही हवा इसे सुखा सकती है.)
मैं सोच में पड़ गया कि एक कोचिंग संस्थान आत्मा पर ज्ञान क्यों ठेल रहा है? अगली ही लाइन में लिंक मिल गया. संस्थान का कहना है कि एक रूह की तरह वो भी इस समाज में मौजूद नकारात्मकता से प्रभावित नहीं होता है. वो अपने नकली रिजल्ट नहीं जारी करता है. इस कलियुग में संस्थान शिक्षा की पवित्रता के लिए प्रतिबद्ध है.
नीचे की तरफ बढ़ने पर होशियार से दिखने वाले लड़कों के फोटो टंगे हुए थे. अपनी टीनएज में मुझे इस किस्म के लड़कों से बड़ी दिक्कत हुआ करती थी. मैंने एक-एक का चेहरा गौर से देखा. तर्जनी और अनामिका उठाए हुए जीत का आभास देती तस्वीरें. मैंने एक-एक की शक्ल को गौर से देखा. ये वो लड़के थे जिन्हें इस देश के सबसे अच्छे तकनीकी संस्थानों में पढ़ना था. पता नहीं ये कैसे हुआ पर मुझे गैलिलियो की कहानी याद आ गई.

इटली के पीसा शहर में रहने वाले गैलिलियो को 1609 में खबर मिली कि हॉलैंड में एक ऐसी दूरबीन बनी है जिससे आकाश के तारों को एकदम करीब से देखने जैसा अनुभव मिल सकता है. गैलिलियो ने इस दूरबीन के ब्यौरा जुटाया और अपनी दूरबीन बना डाली. हॉलैंड वाली दूरबीन से कई गुना शक्तिशाली.
अब ये दूरबीन थी और गैलिलियो. रात को घंटों बैठ कर वो तारों को देखते रहते. जैसे चकोर चांद को देखता है. सालोँ यह क्रम चलता रहा. अंत में उसने पाया कि कोपरनिकस की किताब डी रिवोलूशन्स की धारणा सही है. पृथ्वी सूरज के चक्कर लगाती है, सूरज पृथ्वी का नहीं.
1632 में उन्होंने किताब लिखी, "Dialogue Concerning the Two Chief World Systems." 1633 में चर्च ने गैलिलियो को आदेश दिया कि वो अपनी इस धारणा के लिए सार्वजानिक तौर पर माफ़ी मांगे. गैलिलियो नास्तिक नहीं थे. वो चर्च में विश्वास रखते. उन्होंने माफ़ी मांग ली. कहते हैं कि जब गैलिलियो ने माफ़ी मांगी तो कहा कि सूरज धरती के चारो ओर घूमता है. लेकिन उन्होंने बुदबुदाते हुए एक वाक्य और कहा, "हालांकि ऐसा नहीं है."
उनके इस माफीनामे के बावजूद उन्हें जेल में डाल दिया गया. 70 साला के इस वैज्ञानिक की तबियत जब ज्यादा खराब होने लगी तो इसे जेल को हाउस अरेस्ट में तब्दील कर दिया गया. अंत में 8 जनवरी 1642 को 77 साल की उम्र में गैलिलियो की मौत हो गई. कमाल की बात है कि इसी दिन न्यूटन पैदा हुए.

प्रतीक फोटो
मैं सोचता हूं कि अगर गैलिलियो ने अपने प्रयोगों के बारे में बताने की जहमत ना उठाई होती तो क्या होता. इस विज्ञापन को देखकर अजीब सी कोफ़्त हुई. ये लड़के जिनसे हमें उम्मीद है कि यह विज्ञान और तकनीक की पढ़ाई करके नए-नए आविष्कार करेंगे, इनमें शिक्षा के कैसे संस्कार पड़े हैं. आप धार्मिक हो या नास्तिक हो यह आपका निजी मसला है लेकिन विज्ञान की पढ़ाई में कम से कम धर्म की ठेलठाल नहीं की जानी चाहिए. आपको भागवत से उर्जा मिलती है बहुत अच्छी बात है. हो सकता है कि आपके छात्र की आस्था किसी दूसरे धर्म में हो, या फिर वो नास्तिक हो. आप अपने विश्वास को क्यों उन पर थोंप रहे हैं. यह शर्मनाक है.
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