बर्थडे स्पेशल: राजपाल यादव को सिर्फ कॉमेडियन मत कहो
आज उस आदमी का जन्मदिन होता है, जो हाथ में बस सेब लेकर बढ़ेगा और आपकी आत्मा डर से कांप उठेगी.
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राजपाल यादव अंडर ट्रायल के आख़िरी सीन्स में

Source- Rajpal Yadav facebook page
सिर्फ कॉमेडियन कह कर एक धुआंधार एक्टर को जनरलाइज कर लिया हमने. लेकिन निजी जिंदगी में बहुत सीरियस रहते हैं राजपाल. बड़ी पते की बातें करने वाले. उनकी कॉमेडी फिल्में बहुत देखीं. एक से बढ़ कर एक. लेडीज टेलर, चुप चुपके, हंगामा, लेकिन सबसे बेहतर कॉमेडी लगी अमिताभ अक्षय वाली पिच्चर वक्त में. बहुत सन्नाटे वाला आदमी. उसका एक सीन देख लो फिर आगे पैडल मारते हैं.
https://youtu.be/EYZjMyl9QoA?t=149
लेकिन मन की बात बताएं गुरू तो राजपाल हंसी मजाक की चीज नहीं है. मजाक से आगे बढ़ कर उनकी ये फिल्में देखना कसम से मुरीद हो जाओगे. हमारी आंख में एक फिल्म का सीन ऐसा अटका पड़ा है कि बड़ी रगड़ घिस के बाद भी नहीं निकला.
एक बच्चा है छोटा सा. ठीकठाक स्कूल में पढ़ता है. वहां बच्चों को बता रखा है कि मेरे पापा बहुत अच्छी सी व्हाइट कॉलर जॉब करते हैं. उसको अपने पापा पर गर्व है. लेकिन घर में रोज झगड़ा होता है. एक दिन वो अपने दोस्तों के साथ शहर के मॉल में जाता है मस्ती करने. वहां गेट पर मुर्गे का गेटप धारण किए एक छोटे कद का आदमी बच्चों को एंटरटेन कर रहा है. अचानक उसके सिर से मुर्गे का मास्क निकल जाता है. बच्चा अपने पापा को देखता है. जो मुर्गा बने हुए थे. पापा की आंखों में आंसू. बच्चा खुद को दोस्तों के सामने बेइज्जत महसूस करके घर आ जाता है. पापा के ऊपर क्या बीती ये वही जानता होगा.फिल्म ये भी कॉमेडी थी. इस सीन में कुछ खास बात नहीं है. रोजी रोटी के लिए काम करना और मनोरंजन करना. इससे बेहतर क्या हो सकता है? लेकिन दुखद था बालमन का सपना टूटना. और अपने बच्चे को रोता देख कर कलेजा छेद देने वाले पापा के आंसू. भैया सेंटीमेंटल आदमी समझ सकता है.

Source- Rajpal Yadav facebook page
फिर एक बहुत ही प्यारी फिल्म याद आती है. "मैं मेरी पत्नी और वो". केके मेनन, रितुपर्णा सेनगुप्ता और राजपाल यादव. लखनऊ यूनिवर्सिटी के छोटे बाबू बने थे. अपनी पत्नी से बड़ा प्यार करते. लेकिन एक नया पड़ोसी आया. केके मेनन जब वो पड़ोसी बने थे तो उन पर कभी हंसी आती थी कभी गुस्सा. एक भले आदमी को कैसे परेशान कर रखा है. बेचारे बाबू साब उनसे अपनी बीवी बचाते बचाते परेशान हैं. एक सीधे सादे आदमी की क्या तकलीफें हो सकती हैं. उस फिल्म में देखो.
https://www.youtube.com/watch?v=0VBzMrBj6FQ
शूल फिल्म तो देखे ही होगे. जिसमें कुली का रोल किया. मनोज बाजपेई को हड़का दिया था. किराया ओवर मांग रहे थे. चोरी और साथ में सीनाजोरी. चढ़ते ही चले जा रहे थे. मजेदार सीन था वो. शकल तो डरावनी नहीं लगती लेकिन डरना मना है में डराने की कोशिश की थी. डराया क्या था, बुरा डराया था. वो आदमी हाथ में बस सेब लेकर बढ़ेगा और आपकी आत्मा डर से कांप उठेगी. इसलिए नहीं कि वो डरावना दिखता है, बस इसलिए कि वो इतना आम है, जितना आम आदमी आपके हर तरफ है. आप ये सोचकर दहल जाते हैं कि कल को कोई ऐसे निकल गया तो जीवन में क्या सुरक्षित बचेगा?

लेकिन ये मेरा इंडिया पिच्चर याद रखने वाली है. कई बार देखे हैं हम. राजपाल यादव पता नहीं कौन खोज्झड़ गांव से मुंबई पहुंचते हैं. पहुंचते ही वाट लग जाती है. काम करते हैं हाथ गाड़ी चलाने का. लेकिन इस रोल को देख कर हंसी शायद ही आए. भोला भाला आदमी दिल से कंगाल नहीं हुआ है. वो मुसीबत में पड़े आदमी को कड़ी मेहनत से अस्पताल पहुंचाता है. एक्सीडेंट हो जाए तो समझदार उसको कहते हैं जो गाड़ी भगा कर निकल ले. बेवकूफ आदमी उसकी मदद करता है और फंस जाता है.
अब हम उस फिल्म के बारे में बताते हैं जिसको बहुत बार नहीं देखा. सीडी नहीं घिस के रख दी उसकी. लेकिन फिर भी एक एक सीन याद है. दरअसल बार बार देखने की हिम्मत नहीं पड़ती. जरूरत भी नहीं रह जाती. एक ही बार में दिलो दिमाग में टंक जाती है. अंडर ट्रायल की बात कर रहे हैं.

इसमें सागर हुसैन का रोल किया है राजपाल ने. सागर जेल में बंद है. केस है अपनी तीन बेटियों से बार बार रेप का. और एक बेटी के मर्डर का. जेल से लेकर बाहरी दुनिया तक सब उसको जूते मारने को उतावले हैं. पाएं तो जान ले लें. उसकी बात सुनने वाला कोई नहीं. इतना मारा पीटा जा चुका है कि अब उसे कुछ कहना ही नहीं. अब बस मौत की सजा का इंतजार है. फिर जेल में एक साथी मिलता है नादिर. मुकेश तिवारी हैं नादिर के रोल में. वो उसकी बात सुनता है. केस लड़ने के लिए वकील लाता है. कादर खान वो वकील बने हैं जो उनका केस लड़ते हैं.
फिर लास्ट में जाकर ये साफ होता है कि सागर की बीवी सबीना खुद प्रॉस्टीट्यूट थी और दलाल की मदद से उसकी बेटियों को उसी धंधे में उतार दिया. बड़ी बेटी अपने बाप से जब कहती है "गाड़ी बंगला ढेर सारा पैसा, ये सब छोड़ कर आप पेशाब की जगह को इज्जत कहते हैं." इज्जत के बारे में उसकी बेटी की दार्शनिक महात्म्य वाली बात आधी सही है. पेशाब की जगह का इज्जत से कोई ताल्लुक नहीं. उसका अपने बाप से अपनापा खत्म नहीं होता. यही उसकी मौत की वजह बनती है.
https://www.youtube.com/watch?v=FKz1-7wAyCU
बाकी बहुत सी बातें हैं. अभी सिर्फ अपनी पसंद की फिल्में बताई हैं. बाकी के लिए चिपके रहो. किसी और दिन मौका आएगा. अभी तो राजपाल यादव को हैप्पी बड्डे.
ये आर्टिकल मूलत: 16 मार्च 2016 को लिखा गया था.
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