अपने छोटे कपड़ों और फतवे पर सानिया मिर्जा ने लिखा है ये
सानिया मिर्ज़ा की ऑटोबायोग्राफी का टुकड़ा. हिंदी में पहली बार.
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फोटो - thelallantop
देश की सबसे चहेती स्पोर्ट्स पर्सन में से एक. सानिया मिर्जा. लॉन टेनिस की सुपर स्टार. मगर उनका सफर सिर्फ कोर्ट की चुनौतियों का ब्योरा भर नहीं है. कंट्रोवर्सी और भी रही हैं. कभी उनके खिलाफ फतवा. कभी पाकिस्तानी क्रिकेटर शोएब मलिक से उनकी शादी को लेकर बयानबाजी. कभी उनके सैटल न होने को लेकर सवाल, तो कभी भोजपुरी में उनकी नथुनिया और लिप्स पर गाने. इन सबके बारे में खुद सानिया मिर्जा क्या सोचती हैं. अब तक ज्यादा नहीं पता था. अब पता है. क्योंकि उन्होंने अपनी ऑटोबायोग्राफी लिख डाली है. इसका नाम है एस अगेंस्ट ऑड्स. एस लॉन टेनिस की वो मारक सर्व होती है, जो मिड लाइन पर टप्पा खाकर सन्न से निकल जाती है. सामने वाला रिटर्न तो क्या करेगा, रैकेट भी नहीं अड़ा पाता. यानी कि शर्तिया प्वाइंट. इस किताब को लिखने में सानिया की मदद की है दो लोगों ने. यानी कि दो को-ऑथर हैं. पहले तो उनके पिता, गाइड और कोच, जिनका नाम है इमरान मिर्जा. और दूसरी हैं स्पोर्ट्स रिपोर्टर शिवानी गुप्ता. शिवानी इंडिया टुडे टीवी चैनल के लिए एंकरिंग और रिपोर्टिंग करती हैं. इस किताब को छापा है हार्पर कॉलिंस नाम के पब्लिकेशन ने. हार्ड बाउंड एडिशन की कीमत है 499 रुपये. अब आप पढ़िए. सानिया मिर्जा की किताब का वो हिस्सा, जिसमें वह छोटे कपड़ों और उस पर जारी कथित फतवे के दौर को याद कर रही हैं. ये अनुवाद लल्लनटॉप ने खास आपके लिए किया है. क्योंकि किताब अभी हिंदी में आई नहीं है.8 सितम्बर 2005 का दिन हमेशा मेरी मेमोरी में गुदा रहेगा. क्योंकि उस दिन की घटनाओं ने मेरी पूरी जिंदगी को पलट कर रख दिया. इसी दिन टेनिस कोर्ट पर पहने मेरे कपड़ों की वजह से मेरे खिलाफ़ एक फ़तवा जारी होने की अफ़वाह उड़ी. मेरे बारे में दुनिया की सोच एक रात में बदल गई. मीडिया में काम करती एक दोस्त ने रिएक्शन मांगते हुए एक एक्साइटेड सा फ़ोन कॉल किया. अफ़वाह थी कि किसी नेशनल अखबार के जर्नलिस्ट ने किसी मुस्लिम संस्था के मौलवी के साथ इंटरव्यू किया था. और वो 'फतवा' उसी इंटरव्यू में मौलवी साहब ने जारी किया था. असल में तो उन्होंने ये कहा था कि इस्लाम औरतों को खुले में स्कर्ट्स, शॉर्ट्स और स्लीवलेस टॉप्स पहनने की आज़ादी नहीं देता. एक्सपर्ट्स और ऐनालिसिस करने वाले एक्साइटेड हो गए थे और वो अपने-अपने निष्कर्षों पर लपक पड़े. उन्होंने तो इतना तक कह दिया कि मौलवी साहब ने मुझे वो कपड़े पहनने पर फिज़िकल नुकसान पहुंचाने की धमकी दी थी.


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मौलवी से वो सवाल पूछने के महज़ 15 दिन बाद सनफीस्ट ओपन डब्ल्यूटीए टूर्नामेंट होना था. इरादा शायद यही था कि सारा ध्यान अपनी तरफ खींच लिया जाये. दरअसल टूर्नामेंट भी कोलकाता ही में होना था. न्यूज़ चैनल्स और जर्नलिस्ट्स ने तुरंत इस स्टोरी पर झपट्टा मार दिया और मुझ पर मंडरा रहे 'खतरे' पर टाइम और स्पेस गंवाना ज़्यादा ज़रूरी समझा. फतवे को ले के बहस अब लिमिट क्रॉस कर रही थी. 15 सितंबर 2005 को जब मैं अपनी मां के साथ कोलकाता के दमदम एयरपोर्ट पहुंची तो मैं बिलकुल हक्की-बक्की रह गई. चारों तरफ भारी सिक्योरिटी थी. टूर्नामेंट 2 दिन में शुरू होना था और मेरी पर्सनल सिक्योरिटी के लिए चौबीसों घंटे कई आर्म्ड सुरक्षाकर्मी लगाये गए थे. था तो वो इंडोर स्टेडियम, पर लगने लगा लड़ाई का मैदान, जहां बीसियों पुलिसवाले पूरे वक़्त मुझे सिक्योरिटी दे रहे थे. मुझे अचानक इंसेक्योरिटी का एहसास हुआ. मैंने तुरंत अपने पिता को फ़ोन लगाया. वो अमेरिका के लंबे टूर के बाद घर पर एक हफ्ते की छुट्टी पर थे. कुछ ही घंटों में वो अनम को लेकर पहुंच गए. अपनी फैमिली के साथ होटल रूम में दुबक के मुझे तुरंत सेफ़ और कम्फर्टेबल महसूस हुआ. ये सब होने के बाद मैं मेंटली मैच खेलने के लिए तैयार नहीं थी. और फिर जब मेरा टूर्नामेंट ज़्यादा अच्छा नहीं गया, तो आश्चर्य नहीं हुआ. दूसरे राउंड में लव पर पहला सेट जीतने के बाद मैं मैच हार गई.***
किताब में सानिया ने मीडिया के साथ हुए ऐसे कई फड्डों का बखान किया है, जिन्होंने उन्हें कंट्रोवर्शिअल फिगर बनाया. ज़रूरी ये जानना है कि एक प्लेयर के तौर पर इस बीच वो किस संघर्ष से गुजरीं. वो ये भी बताती हैं कि कैसे उन्होंने अपने गेम के ज़रिये बोलना ज़्यादा अच्छा समझा.
ये स्टोरी हमारे साथ इंटर्नशिप कर रहे प्रणय पाठक ने की है.