ताइपे की चुनौती भेदकर बॉम्बायला ने जगाई भारत की उम्मीद
निशाना ऐसा कि ताइपे की लिनशी-चिया को हराकर टॉप 16 में पहुंच गईं हैं, पर हैं कौन बॉम्बायला देवी?
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फोटो - thelallantop
लैशराम बॉम्बायला देवी मणिपुर के इम्फाल में 22 फरवरी 1985 को पैदा हुई थीं. प्यार से लोग उनको 'बॉम' बुलाते हैं. बॉम्बायला अपने पापा मम्मी के साथ इम्फाल में ही रहती हैं. उनका पूरा परिवार खेलों से ही जुड़ा रहा है. पापा मंगलम सिंह मणिपुर टीम के हैंडबॉल के कोच थे. मम्मी एम जामिनी देवी एक तीरंदाज थीं. उन्होंने भी इंडिया की तरफ से कई इंटरनेशनल खेलों में भाग लिया था. बॉम्बायला भी अपनी मम्मी जैसा बनना चाहती थीं. बॉम्बायला को गाने सुनने का बहुत शौक है. उनको ट्रेवल करना भी बहुत अच्छा लगता है. लेकिन सबसे ज्यादा अच्छा लगता है उनको एक आंख बंद करके तीर को निशाने पर लगाना.घर वालों ने हमेशा बॉम्बायला को खेलने के लिए सपोर्ट किया. इसलिए 1996 में बॉम्बायला ने तीरंदाजी शुरू कर दी थी. स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया ज्वाइन किया था. 1997 में नेशनल लेवल पर डेब्यू किया था. इंटरनेशनल खेल में डेब्यू 2007 में किया. 2010 के कॉमनवेल्थ खेलों में उनको ग्रुप तीरंदाजी में गोल्ड मेडल मिला था. तीरंदाजी के वर्ल्डकप में बॉम्बायला 4 गोल्ड मेडल, 5 सिल्वर मेडल और 4 ब्रोंज मेडल मिले हैं. 2012 में बॉम्बायला को अर्जुन अवार्ड भी मिला. ओलंपिक में बॉम्बायला का रिकॉर्ड उतना अच्छा नहीं रहा है. 2008 के बीजिंग ओलंपिक्स में विमेन्स के एकल और ग्रुप खेल में इंडिया की तरफ से भाग लिया था. ग्रुप इवेंट के क्वार्टरफाइनल में चीन की टीम से हार गए थे. 2012 के लंदन ओलंपिक्स में दूसरे ही राउंड में वो बाहर हो गई थीं. इस बार उनसे बहुत उम्मीद लगाई जा रही है. तीरंदाजी की इस बार की महिला टीम में बॉम्बायला के साथ दीपिका कुमारी और लक्ष्मीरानी मांझी हैं.
आज की जीत के लिए को खूब सारी बधाई. और आने वाले मैचों के लिए ढेर सारा ऑल द बेस्ट.