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क्लासमेट की बहन को माल कहकर लोग सॉरी क्यों बोलते हैं?

एक कहानी रोज़ में पढ़िए मधुराज कुमार की कहानी 'एक लड़की और एक सोच की कहानी'

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9 जून 2016 (Updated: 9 जून 2016, 02:33 PM IST) कॉमेंट्स
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"रे साला, देखो तो क्या लग रही है रे." उसका फोन चलाते हुए उसका रूममेट तेज आवाज में मुस्कुरा रहा था. उसने फोन की स्क्रीन को देखा. ऊपर फेसबुक के आइकन और नीचे कुछ कमेंट्स के बीच थी एक फोटो. एक लड़की की तस्वीर. उस लड़की की तस्वीर जो सात साल तक उसके साथ ही स्कूल में पढ़ी थी. उसने थोड़ा सा मुस्कुरा कर नेक्स्ट का बटन दबा दिया. उसकी मुस्कान में कुछ मिला हुआ था. क्या था पता नहीं. उसने नेक्स्ट बटन दबा-दबा कर उसकी प्रोफाइल पर लगी सारी तस्वीरें देख लीं. उसे शायद खुद पता नहीं था कि वह तस्वीरें सिर्फ देखने के लिए नहीं देख रहा था. वह उन्हें देख कर कुछ करना चाहता था. कुछ ऐसा जिसे वह स्कूल के आखिरी साल के दिनों से करना चाहता था. उसे पता तो नहीं था पर वह शायद उससे बात करना चाहता था. बात करने के किसी काल्पनिक अहसास को महसूस करने के लिए. उसने मैसेज का बटन दबा दिया. मैसेज में वह एक फोटो अपलोड कर रहा था जिसे उसने अभी-अभी देखा था. साथ ही कुछ टाइप करके भी भेज दिया. प्रैक्टिकल फाइल की लास्ट ड्राइंग खतम करके वह लड़की अपनी पेंसिल की टूटी हुई नोक की धार को तेज कर रही थी. इतना कि पेंसिल की नोक तलवार की धार बन जाए. पर इतनी तेज पेंसिल तो सिर्फ कहानियों की किताबों में होती है. बगल में रखे फोन में फेसबुक खुला था और मैसेज के आइकन पर उग आया था एक नए मैसेज का निशान. उसने मैसेज खोल लिया. एक तस्वीर थी और नीचे लिखा था - "लेफ्ट वाली कौन है. माल लग रही है." तस्वीर उसकी और उसकी बहन की थी. भेजने वाले को शायद यह पता था. उसकी नजरें 'माल' शब्द पर जाकर अटक गईं. यह शब्द बस एक शब्द नहीं था, एक हथियार था, नुकीला, विष बुझा जो अपमान के मकसद से आया था. यह अपमान उन दो व्यक्तियों के बीच का नहीं था. वह अपमान समय के बीच था. दो युगों के बीच था. वह अपमान एक 'लड़की' का था जो एक सोच से होकर आया था. यह उस समय की कहानी है जब हम और आप रोज़ किसी सोच का सामना करते हैं और आहत होते हैं. लड़की को चुभता यह शब्द उसे अपने लिए थोड़ी परेशानी, अपनी बहन के लिए ज्यादा तकलीफ और ऐसी बातों के रिएक्शन पर अक्सर आ जाने वाला गुस्सा दे गया. एक लड़की को लड़कों से ज्यादा उम्मीद तो वैसे भी नहीं होती पर उसे अपने सात साल पुराने क्लासमेट से ऐसी उम्मीद नहीं थी. "तुम अपनी बहन को भी माल बुलाना." वह इस मैसेज को अपने गुस्से से चीर कर धारदार कर देना चाहती थी. यह उत्तर देखकर वह लड़का थोड़ा सा चौंक गया. आखिर लड़की ने उसकी बहन की बात कर दी थी. उसे गुस्सा आया पर साथ ही यह भी महसूस हुआ कि उसने लड़की का अपमान करने की कोशिश में खुद का मज़ाक उड़ा लिया है. उसे लगा कि उसने अगर इस बात पर उसे नीचा दिखाने वाला कोई जवाब दिया तो उस लड़की से ज्यादा उसकी अपनी बहन का अपमान होगा. "सॉरी मुझे पता नहीं था कि वह तुम्हारी बहन है." उसने खुद को बचाते हुए एक और सुई फ़ेंक दी. लड़की ने अपने मन में उस लड़के को अपने क्लासमेट से हटा कर एक 'लड़का' बना लिया था. पर अब भी उसे यह बात परेशान कर रही थी कि अगर वह लड़की उसकी बहन नहीं होती तो यह 'सॉरी' होता ही नहीं. वह थोड़ी भोली थी. उसे यह पता ही नहीं था कि यह तो 'सॉरी' था ही नहीं.
"बात करनी है तो तमीज से करो.""मुझे तमीज तुमसे सीखने की ज़रूरत नहीं है.""मैं तुम्हें सिखा भी नहीं रही. तुमसे बात करना बेकार है.""सॉरी मैंने कहा ना मुझे पता नहीं था कि वह तुम्हारी बहन है.""किसी और के बारे में भी मुझसे ऐसी बातें मत करना.""कौन तुमसे बात करने के लिए मरा जा रहा है.""नो मोर टेक्स्ट. पढ़ाई कर रही हूं.""घमंडी!" 
लड़की को उस लड़के की राय से कोई परेशानी नहीं थी. पर उसे जाने क्यों ऐसा लगा कि यह शब्द सिर्फ उसने नहीं बल्कि उसकी क्लास के सारे लड़कों ने एक साथ कही हो. न चाहते हुए भी उसे थोड़ा बुरा लग गया. उसने अपना ध्यान जल्दी से इन बातों से हटाया और लड़के को अन्फ्रेंड कर दिया. जब उधर से लड़के के 'कॉम्पलिमेंट' का रिप्लाई नहीं आया तो वह थोड़ा परेशान होने लगा. खामोशी तकलीफ देती है. उसे एक अपराधबोध (गिल्ट) होने लगा. उसे लगा कि उसने जो अभी-अभी किया है ऐसा तो वह कभी चाहता ही नहीं था. पर वह कुछ तो जरूर चाहता था पर यह सब जो कुछ भी हुआ, उसमें कुछ ऐसा हो गया जिसपर उसका नियंत्रण नहीं था. मतलब यहां दो लोगों के संवाद में कोई तीसरी चीज ताकतवर थी. अपराधबोध जब उसे परेशान करने लगा, उसके भीतर की कोई आवाज जब उसके अस्तित्व के अहंकार को धिक्कारने लगी तब वह बेचैन होकर अपने विचारों और इस घटना के बारे में बेतहाशा सोचने लगा. और अचानक से उसे कुछ पता चल गया. उसे पता चल गया कि वह तीसरी चीज क्या थी. इस घटना की जिम्मेदार वह तीसरी चीज एक सोच थी जो अब सड़ गई थी और गंध मार रही थी. यह सोच उसके मन में बचपन से दीमक की तरह उसके अस्तित्व को कुतर रही थी पर जिसे वह आज महसूस कर पाया था. उसने देखा कि इस दीमक ने उसका आधा अस्तित्व ही कुतर लिया था. वह जख्मी हो गया था. कमजोर हो गया था. और यह सारी बातें उस सोच और इस कमजोरी की निशानी थी. पर इन सबमें एक अच्छी बात भी हुई थी.  उसे पता चल गया था. अपने भीतर फूलते उस परजीवी का जिसे वह अब एक पल भी नहीं रहने देना चाहता था. इस घटना ने उसे साफ कर दिया था.  उसने एक वादा किया खुद से कि वह इस बीमार सोच को पूरी तरह त्याग कर अपने अस्तित्व को पुनः बुनेगा और फिर भेजेगा उस लड़की को एक मैसेज. ऐसा मैसेज जिससे कैसी भी सड़ांध नहीं आएगी. और वह लड़की महसूस कर पाएगी कि वह अपनी बहन से प्यार करता है और कभी भी उसे 'माल' नहीं बोल सकता.
कल आपने पढ़ी थी कहानी,  उस दिन के बाद से उसने भी ग़ालिब को पढना शुरू कर दिया था. आप भी कहानियां लिखते हैं? हमें भेज दीजिए. पता है lallantopmail@gmail.com एक कहानी रोज़ की पिछली सारी कहानियां एक जगह पर पढने के लिए क्लिक कीजिए नीचे 'एक कहानी रोज़' के टैग पर. 

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