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इस कानून की वजह से पतंजलि की किरकिरी हुई!

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कंपनी को ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, 1954 का हवाला दिया. और पतंजलि को बीमारियों के इलाज के लिए बनाए गए उत्पादों के विज्ञापन पर भी रोक लगा दी .

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drugs and magic remedies act
ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज एक्ट (फोटो- सोशल मीडिया)
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28 फ़रवरी 2024
Updated: 28 फ़रवरी 2024 22:01 IST
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हमारी ये क्रीम लगाइए, हफ्ते भर में गोरे हो जाएंगे. इस गोली को खाइए, 3 हफ्ते में मोटापा दूर हो जाएगा. और हमारे बचपन से ही अखबारों में आने वाला वो इश्तिहार जिसमें एक आदमी की 2 तस्वीरें होती हैं. एक में उसके सिर पर बाल नहीं होते और दूसरे में सिर पूरी तरह बालों से भरा होता है. और हमें लगता है कि ये वाली दवाई वापस से बाल उगा देती है. ऐसे कितने ही इश्तेहार हम इंटरनेट, टीवी या अखबार में आए दिन देखते हैं. इसमें ऐसे दावे होते हैं जो असंभव से लगते हैं. पर क्या आपने कभी ये सोचा है कि इन विज्ञापनों की क्रेडिबिलिटी माने विश्वसनीयता कितनी है ? और अगर आप इस पर पैसे खर्च चुके हैं और फिर भी कोई फायदा नहीं हुआ फिर आप क्या करेंगे? क्या कोई ऐसा कानून है जो ऐसे फर्जी विज्ञापनों पर लगाम लगाता है? तो भारतीय संविधान में इसके लिए एक एक्ट है. नाम है  ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज एक्ट. 
तो समझते हैं- 
-क्या है ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज एक्ट ?
-इस एक्ट के तहत कैसे फर्जी विज्ञापनों पर केस हो सकता है?
-और सुप्रीम कोर्ट ने भ्रामक विज्ञापन देने के मामले में क्या टिप्पणी की है?

हम इस मुद्दे पर क्यों बात कर रहे हैं, दरअसल पंतजलि आयुर्वेद से जुड़े एक मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा, 
 

“सरकार अपनी आंखें बंद करके बैठी है. ऐसे विज्ञापनों से पूरे देश को गुमराह किया जा रहा है. दो साल से आप इंतजार कर रहे हैं कि ड्रग्स एक्ट कब इसे प्रतिबंधित करेगी. ये बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है. सरकार को तत्काल कुछ कार्रवाई करनी होगी.”

27 फरवरी,2024 को देश की सर्वोच्च अदालत ने  ‘गुमराह करने वाले’ विज्ञापनों को लेकर पतंजलि आयुर्वेद को फटकार लगाई है.  कोर्ट ने पतंजलि के स्वास्थ्य संबंधित विज्ञापनों पर पूरी तरह रोक लगा दी है. माने कंपनी आगे कभी इस तरह के विज्ञापन प्रकाशित नहीं कर पाएगी. सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि और उसके एमडी आचार्य बालकृष्ण को अवमानना ​​नोटिस जारी किया है. साथ ही कोर्ट ने केंद्र सरकार से भी पूछा कि कंपनी के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की गई? कोर्ट ने ये आदेश इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) की याचिका पर दिया है. जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस ए अमानुल्लाह की बेंच ने रामदेव की कंपनी पर पहले के आदेशों का पालन न करने की आलोचना भी की. बेंच ने कहा,
कोर्ट ने कंपनी को भी निर्देश दिया है कि वो भ्रामक जानकारी देने वाली अपनी दवाओं के सभी इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट विज्ञापनों को तत्काल प्रभाव से बंद कर दे. फटकार के बाद पतंजलि की तरफ से पेश हुए सीनियर एडवोकेट विपिन सांघी ने आश्वासन दिया कि कंपनी भविष्य में ऐसा कोई विज्ञापन प्रकाशित नहीं करेगी. साथ ही ये भी सुनिश्चित करेगी कि प्रेस में कैजुअल बयान न दिए जाएं. सुप्रीम कोर्ट ने जवाब दाखिल करने के लिए पतंजलि को तीन हफ्ते का समय दिया गया है. 

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कंपनी को ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, 1954 का हवाला दिया. और पतंजलि को बीमारियों के इलाज के लिए बनाए गए उत्पादों के विज्ञापन पर भी रोक लगा दी .

अब यहां जिस ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज एक्ट, 1954 एक्ट का जिक्र आया, उसके बारे में जानते हैं. 
ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज़ (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, 1954 भारत की संसद से पास एक कानून है जो भारत में दवाओं के विज्ञापनों को नियंत्रित करता है.  यह जादुई गुणों का दावा करने वाली दवाओं और उपचारों के विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगाता है. अगर कोई संस्थान नियम नहीं मानता तो ये एक संज्ञेय अपराध माने cognizable offence है. यानी इस केस से जुड़े मामलों में पुलिस स्टेशन का प्रभारी मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना भी जांच कर सकता है. साथ ही बिना वारंट के गिरफ़्तारी भी हो सकती है. ये एक्ट किसी भी तरह की मैजिक रेमेडी यानी जादुई इलाज जैसे किसी ताबीज या मंत्र को मैजिक रेमेडी मानता है. ये ऐसी चीजें हैं जिनके बारे में दावा किया जाता है कि इसमें इंसानों या जानवरों की बीमारी को ठीक करने की चमत्कारी शक्ति है. इसमें चीजों के अलावा ऐसे उपकरण भी शामिल जिनके बारे में दावा किया जाता है कि उनमें इंसानों या जानवरों के किसी अंग को प्रभावित करने की शक्ति होती है.

एक्ट के सेक्शन 3 के मुताबिक ये कानून कुछ चीजों के लिए दवाओं और इलाज के प्रचार पर प्रतिबंध लगाता है. इस कानून के तहत 
-महिलाओं में अबॉर्शन को बढ़ावा देना या गर्भधारण को रोकना 
-सेक्सुअल क्षमता को सुधारना या बनाए रखना
-महिलाओं में पीरियड से संबंधित समस्याओं का समाधान 
-और इस एक्ट में मेंशन की हुई बीमारियों से में से किसी का भी इलाज, निदान या उसकी रोकथाम करने को अपराध माना गया है. कुल 50 से अधिक बीमारियों को एक्ट में मेंशन किया गया है.

पर इस कानून में कुछ अपवाद भी हैं, जिन्हें इस कानून में छूट दी गई है.  उनके बारे में भी जान लेते हैं. 
-कोई ऐसी बीमारी,डिसऑर्डर या मेडिकल कंडीशन जिसके लिए कोई निश्चित इलाज न हो. ऐसी बीमारियों को इस कानून के तहत छूट है. जैसे कि पेट में दर्द या सरदर्द एक आम समस्या है. इसके लिए बाज़ार में मौजूद दवाइयां अगर कुछ अतिश्योक्ति भरा प्रचार भी देती हैं तो इन्हें इस दायरे से बाहर रखा जाता है.
-ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट 1940 के तहत गठित किये गए टेक्निकल एडवाइज़री बोर्ड से सलाह के बाद इस कानून से छूट मिल सकती है.  
-और केंद्र सरकार अगर जरूरी समझे तो कुछ लोगों को कानून से छूट दे सकती है. इसमें ऐसे व्यक्ति आते हैं जिन्हें केंद्र सरकार के अनुसार आयुर्वेदिक या यूनानी दवाओं के बारे में प्रैक्टिकल अनुभव है.

अब आते हैं एक्ट के सेक्शन 4 पर. सेक्शन 4 कहता है -
 

"कोई भी व्यक्ति ऐसे किसी भी विज्ञापन के प्रकाशन में शामिल नहीं लेगा जिसमें किसी दवा के बारे में गलत या भ्रामक जानकारी दी जा रही है".  

इसके बाद आता है इस एक्ट का सेक्शन 5. सेक्शन 5 इसी एक्ट के सेक्शन 3 में मौजूद प्रावधानों का क्या असर होगा इसके बारे में बताता है. सेक्शन 5 कहता है-
 

"कोई शख़्स, जो इलाज के चमत्कारी तरीक़ों का दावा करता है. वो ऐसे किसी भी तरह का विज्ञापन नहीं चला सकता. जिसमें सीधे तौर पर या परोक्ष रूप से किसी चमत्कारी  इलाज की वकालत की गई हो."

तो हमने एक्ट को समझा, उसके अपवाद भी जाने. पर अब जब एक्ट में अपराध के बारे में बताया गया है, तो इसकी सज़ा भी होगी. वो भी जान लेते हैं. और ये सजा कहां लिखी हुई है? इसी एक्ट के सेक्शन 7 में. 
- अगर पहली बार आरोप साबित होते हैं तो 6 महीने की जेल या जुर्माना, या दोनों लगाया जा सकता है. 
-अगर इसके बाद भी फिर से दोषी पाए जाते हैं तो एक साल तक की जेल, जुर्माना या दोनों एक साथ हो सकते हैं.

इसी कानून से जुड़े एक और केस के बारे में जानते हैं. 
25 जुलाई 2023 को टाइम्स ऑफ इंडिया में एक रिपोर्ट छपी. इसमें चेन्नई की एक अदालत ने हिमाचल प्रदेश के एक दवा मैनुफैक्चरर, डिस्ट्रीब्यूटर्स और एक रिटेलर को दोषी करार दिया. उन पर आरोप था कि उन्होंने आपत्तिजनक प्रचार वाले  रैपर लगाकर कॉंट्रासेप्टिव पिल्स बेची है. कॉंट्रासेप्टिव पिल्स माने, गर्भ निरोधक गोलियां. इस बारे में सबसे पहले तमिलनाडु के स्टेट ड्रग कंट्रोल डिपार्टमेंट में शिकायत की गई. शिकायत में था कि Kodambakkam का एक फार्मेसी स्टोर एक टैबलेट का गलत प्रचार कर रहा है. स्टोर ये दावा कर रहा है कि बर्थ कंट्रोल में फेल होने पर तीन दिनों के भीतर उनकी टैबलेट लेने पर अनचाही प्रेग्नेंसी को रोका जा सकता है. इस शिकायत के आधार पर  Kodambakkam के ड्रग इन्स्पेक्टर ने फार्मेसी की छानबीन की. छानबीन में ड्रग इन्स्पेक्टर को एक कार्टून में रखी वो टैबलेट और कुछ लीफलेट्स मिले. इन लीफलेट्स पर छपे इश्तिहार पर लिखा था

"Postpone-72 needs to be taken as soon as possible but not later than 72 hours after unprotected sex. The earlier you take it the more effective it will be. Please refer to the enclosed leaflet for more information."

यानी

"पोस्टपोन-72 टैबलेट को असुरक्षित संबंध बनाने के 72 घंटे के भीतर ले ही लेना चाहिए. आप इसे जितनी जल्दी लेंगे यह उतना अधिक कारगर होगा. अधिक जानकारी के लिए लीफलेट देखें."

ड्रग इंस्पेक्टर ने इस पर फार्मेसी मालिक को एक कारण बताओ नोटिस जारी किया. इसमें इंस्पेक्टर ने पूछा कि Levonorgestrel tablet बनाने से लेकर बेचने वालों तक पर  एक्शन क्यों न लिया जाए? पर फार्मेसी वाले से कोई संतोषजनक जवाब न मिलने पर ड्रग इन्स्पेक्टर ने Drugs and Magic Remedies (Objectionable Advertisements) Act के तहत Kodambakkam store,  हिमाचल प्रदेश के Acme Formulations और  पंजाब के Leeford Healthcare Limited पर आरोप लगाए.

तमिलनाडु के ड्रग कंट्रोल डायरेक्टर की मंजूरी मिलने के बाद इंस्पेक्टर ने 2018 में Saidapet Metropolitan Magistrate Court में केस किया. आरोपी की ओर से कहा गया कि दवा को लाइसेंस मिला हुआ है और उसका प्रचार भी केंद्र सरकार से अप्रूव होने के बाद ही दिखाया गया है.  इस पर इंस्पेक्टर ने जवाब दिया कि कंपनी को बस 0.15 मिलीग्राम की टैबलेट्स के लिए मंजूरी मिली थी. न कि 1.5 मिलीग्राम की टैबलेट्स के लिए  जैसा कि स्टोर से जब्त कार्टून पर छपा था. डॉक्टरों के अनुसार इस टैबलेट के ओवरडोज़ से मिचली आना, वजाईनल ब्लीडिंग जैसी समस्याएं हो सकती हैं. लिहाजा कोर्ट ने आरोपियों को Drugs and Magic Remedies (Objectionable Advertisement) Act, 1954 के सेक्शन 7 (a) के तहत दस हजार रुपए का जुर्माना और एक महीने जेल की सजा सुनाई.

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