ये रबड़ के पहियों वाली कौन-सी मेट्रो है, जो अब दिल्ली में चलने जा रही है
DMRC ने इसके लिए करोड़ों का टेंडर भी कैंसल कर दिया है
Advertisement

सरकार ने मेट्रो लाइट के टेंडर कैंसल कर मेट्रो नियो को अपनाने का फैसला कर लिया है.
मेट्रो नियो है खास क्या है
आसान भाषा में समझें तो यह टायरों पर चलने वाली मेट्रो है. इसे ट्राम, मेट्रो और बस का मिलाजुला रूप भी कहा जा सकता है. मतलब यह दिखती तो मेट्रो जैसी है, लेकिन चलती बस की तरह है. इसे ट्राम की तरह ओवरहेड वायर से बिजली मिलती है.
# असल में मेट्रो नियो को छोटे शहरों की मेट्रो सेवा कहा जा रहा है. हालांकि दिल्ली पहला बड़ा शहर होगा, जहां ये मेट्रो दौड़ सकती है. फिलहाल DMRC ने 19 किलोमीटर के कीर्ति नगर से द्वारका (बमनौली) के रूट पर इसे चलाने का मन बनाया है. जल्दी ही इसके लिए टेंडर निकाले जाएंगे.
# इस सेवा के लिए एक डेडिकेटेड कॉरिडोर होगा. यह लगभग वैसा ही होगा, जैसा बीआरटी यानी बस रैपिड ट्रांजिट होता था. मतलब सड़क पर मेट्रो और बाकी ट्रैफिक साथ-साथ चलेंगे. जाम न लगे और बीआरटी की तरह बाकी वाहन इसकी लेन में न घुस आएं, इसके लिए ट्रैक के आसपास फेंसिंग की जाएगी.
# मेट्रो नियो को चलाने के लिए कॉरिडोर में अलग से स्लैब बना होगा. कई जगह यह एलिवेटेड भी होगी, लेकिन इस मेट्रो में साधारण मेट्रो ट्रेन की तरह लोहे के नहीं बल्कि बसों की तरह रबड़ वाले पहिए होंगे.
# इसके स्टेशन मेट्रो स्टेशनों से बिल्कुल अलग दिखेंगे. ये बस स्टॉप की तरह के स्टेशन होंगे. न इनमें ऑटोमेटिक फेयर काटने वाली मशीनें होंगी, न बैगेज स्कैनिंग, न मेटल डिटेक्टर होंगे. यहां बस बदलने के लिए बेसिक सुविधाएं ही होंगी, मिसाल के तौर पर लाइटिंग और सीसीटीवी कैमरे आदि.

डीएमआरसी ने अपने पुराने टेंडर को रद्द कर मेट्रो नियो को अपनाने की घोषणा की है.
# मेट्रो नियो को उन इलाकों में चलाया जाएगा, जहां न तो मेट्रो जैसा भारी भरकम स्ट्रक्चर बनाने की जगह है और न ही जहां यात्रियों की संख्या ज्यादा है.
# इसमें बाकी मेट्रो की तरह 6 या 8 नहीं बल्कि सिर्फ 3 कोच होंगे. हर कोच 12 मीटर लंबा औऱ 2.5 मीटर चौड़ा होगा. इसकी सड़क से ऊंचाई 300-355 मिमी होगी.
# कोच स्टेनलेस स्टील और एल्युमिनियम से बने होंगे. परंपरागत मेट्रो के मुकाबले मेट्रो नियो काफी हल्की-फुल्की होगी.
# मेट्रो के मुकाबले इसका मेंटिनेंस भी कम होगा. नाम मेट्रो का है, लेकिन मेंटिनेंस बसों जितना होगा.
# आम बसों से इतर ये बिजली से चलेगी. ओवरहेड यानी कॉरिडोर में ऊपर की तरफ लगे तारों से पावर लेकर चलेगी. इस हिसाब से यह पर्यावरण के लिहाज से ज्यादा मुफीद मानी जा रही है.
# हर मेट्रो नियो में बैटरी भी लगी होंगी, जो लगातार चार्ज होती रहेंगी. अगर लाइट चली जाएगी तो ये 20 किलोमीटर तक बैटरी के दम पर जा सकेंगी.
DMRC को मेट्रो नियो क्यों भा गई?
# इसका सबसे बड़ा कारण है कम खर्च में चोखा काम. जिस कॉरिडोर के लिए सरकार ने 2,673 रुपए का टेंडर उठाया था, उस कॉरिडोर के लिए मेट्रो नियो से 2000 करोड़ ही खर्च होंगे. सीधे-सीधे 673 करोड़ रुपए की बचत. इसकी लागत परंपरागत मेट्रो सिस्टम के मुकाबले लगभग एक-चौथाई ही पड़ रही है. इतना ही नहीं, इसके रखरखाव का खर्च भी मेट्रो के मुकाबले काफी कम आएगा.

परंपरागत मेट्रो को बनाने से लेकर चलाने तक के खर्चीले विकल्प के मुकाबले मेट्रो नियो काफी सस्ती पड़ रही है.
# मेट्रो नियो में कम पैसे में ज्यादा सुविधाएं उपलब्ध कराई जा सकेंगी. इसमें आवाज भी कम होगी. बिजली की खपत भी मेट्रो ट्रेन के मुकाबले मामूली होगी. DMRC को इससे काफी बचत होने की उम्मीद है.
# फिलहाल दिल्ली मेट्रो भारी लोन के तले दबी है. लाखों लोगों को प्रतिदिन ढोने के बावजूद मेट्रो मुनाफा नहीं कमा पा रही है. सरकार ऐसे विकल्प पर विचार आजमाना चाहती है, जो सुविधाजनक होने के साथ ही सरकार पर खर्चों का बोझ कुछ कम करे.
कब तक बन कर तैयार होगी?
मेट्रो नियो के प्रोजेक्ट के अभी तक टेंडर जारी नहीं हुए हैं, ऐसे में जानकारों का अनुमान है कि इसे बनने में 3-4 साल का वक्त तो लग ही सकता है.