डाक यूरोप: एक हज़ार साल पुरानी यंग 'स्लेव' लड़की से मुलाक़ात
किस्सा रोमन बाथ, स्लेव और इंसानों की खाल के जूतों का.

यूरोप. दूर. ठंडा. पराया. अतीत को खुरचें तो हम पर कब्जा करने वाला. और पीछे लौटें तो हमें मसालों की कीमत चुका अमीर करने वाला. मगर सांस्कृतिक रूप से हमेशा दूर दूर रहा.
लेकिन ये सब का सब पास्ट है, जो टेंस रहा. प्रेजेंट मजेदार है. आपको पूरे यूरोप में देसी मिल जाएंगे. हमें भी मिल गए. हमारे देसी. नाम विवेक आसरी. जर्मनी में रहते हैं. और उन्होंने वादा किया है कि यूरोप के किस्से-कहानियां, सियासत और समाज के खूब नजारे दिखाएंगे. हमें. आपको.
इस बार वो तस्वीरें लेकर आए हैं. और एक लड़की की उदासी भी. डाक यूरोप सीरीज में. आज पढ़िए उसकी चौथी किस्त.
बाद में मुझे लगा कि मुझे इस लड़की की फोटो नहीं खींचनी चाहिए थी
आजकल मैं अपने आपको तुर्रम खां फोटोग्राफर समझने लगा हूं. इसलिए जब वह सुंदर सी लड़की बैठी दिखी तो तुर्रम खां को एक शानदार फोटो नजर आई. अगेंस्ट द लाइट, हरा पानी और बैकग्राउंड में रोमन काल की इमारत. आहा... गजब दृश्य बनेगा. ऐसा सोचकर मैंने उससे तस्वीरें लेने की इजाजत ली. उसने कहा, जल्दी करो इससे पहले कि मैडम देख ले. मैंने जल्दी से उसकी तीन-चार तस्वीरें लीं. और तस्वीरें लेने के दौरान मैंने उसकी आंखों में एक अजीब सी उदासी देखी. जब मैंने उसे कहा कि पानी की ओर देखो, तो ऐसा लगा जैसे वह पानी की गहराई में जाकर उसके तल तक देख लेना चाहती है.
खुश इंसान पानी पर लहरों को देखता है, उनके साथ अठखेलियां करता है. और उदास इंसान गहराई में झांकता है, किसी तलाश में. किसी आस में.


क्या यह इंसान की खाल हो सकती है?इस भयानक ख्याल ने मुझे डरा दिया. मैंने उससे ना पूछना ही मुनासिब समझा. लेकिन वह चुप नहीं हुई थी. बोले जा रही थी. जैसे उसे बात करना अच्छा लग रहा हो. इससे मुझे लगा कि क्या इस दासी के अपने समाज में कोई बात करने वाला नहीं होगा. मतलब मैडम के अलावा उसका अपना कोई समाज होगा भी या नहीं? नहीं, क्योंकि दास आपस में ज्यादा मिल नहीं पाते. और यही वजह है कि वे कभी एकजुट भी नहीं हो पाते. मैंने उससे पूछा कि तुम लोग दास प्रथा का विरोध क्यों नहीं करते. इंसानों को बेचना, खरीदना क्या अच्छी बात है? उसने मुझे ऐसे देखा, मानो मैं किसी दूसरी दुनिया से आया हूं, मानो इंसानों को खरीदना-बेचना तो ऐसा कोई बुरा काम नहीं है. लेकिन जल्दी ही उसे मेरा भाव समझ आ गया. उसने बताया कि रोमन काल में क्रांति क्यों नहीं हुई. उसने समझाया कि दास एक दूसरे से ज्यादा मिलजुल नहीं पाते. इसलिए उनके संगठित होने का सवाल ही नहीं था. और फिर ये लोग पढ़े-लिखे भी नहीं थे. दासता को अपना भाग्य मानकर इन्होंने उसी के साथ जीना सीख लिया था. मैडम के दिलाए मढ़े हुए चमड़े के जूते उनकी सबसे बड़ी खुशी थे और खुश लोग तो क्रांति नहीं कर सकते. और फिर उसने मुझसे एक बात कही. एक ऐसी बात जिसने मुझे एक पल में 21वीं सदी के आजाद इंसानों से दास बना दिया. उसने कहा कि देखना भविष्य में भी दासता रहेगी. 1000 साल पुरानी उस लड़की ने कहा कि भविष्य में भी गुलामी रहेगी, बस उसके रूप बदल जाएंगे. आज धन्ना सेठ होते हैं जो हमें खरीदते हैं. तब कॉरपोरेट जैसा कुछ आ जाएगा जो इंसानों को गुलाम बनाकर उनसे काम कराया करेगा. जैसे आज हमें अपनी गुलामी का एहसास नहीं है, वैसे ही लोगों को तब भी अपनी गुलामी का एहसास नहीं होगा.

एक हजार साल पुरानी लड़की से यह मुलाकात यहीं खत्म हो गई क्योंकि अब मैं पानी पर पड़ती रोशनी को नहीं देख पा रहा था, पानी के नीचे के अंधेरे में झांक रहा था.
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भाई बर्तन उठाकर अपनी रसोई अलग कर ले तो ऐसा लगता है