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पैगंबर मोहम्मद पर टिप्पणी विवाद: विरोध के नाम पर जुमे की नमाज़ के बाद हुई हिंसा कितनी सही?

पैगंबर मुहम्मद के अपमान के विरोध में कई जगहों से हिंसा की ख़बरें आई हैं

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Violence has been reported from many places in protest against the Insult of Prophet Muhammad (File photo- PTI)
पैगंबर मुहम्मद के अपमान के विरोध कई जगहों से हिंसा की ख़बरें आई हैं (फाइल फोटो- पीटीआई)
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10 जून 2022 (Updated: 20 जून 2022, 08:46 PM IST) कॉमेंट्स
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नुपूर शर्मा और नवीन जिंदल ने जो किया, उसने अब तक भारत का पीछा नहीं छोड़ा है. पैगंबर मुहम्मद के अपमान के विरोध में 3 जून को कानपुर में प्रदर्शन बुलाया गया था, जिसके दौरान बलवा और पथराव हुआ. मांग थी नुपूर शर्मा की गिरफ्तारी की. अब तक गिरफ्तारी नहीं हुई और आज इसी मांग के साथ देश के अलग-अलग हिस्सों में जुमे की नमाज़ के बाद प्रदर्शन हुए. आज दोपहर टेलिविज़न पर सबसे पहले दिल्ली की जामा मस्जिद की सीढ़ियों पर प्रदर्शन की तस्वीरें आईं. प्रदर्शनकारियों के हाथ में पोस्टर थे. और आसमान नारों से गूंज रहा था.

दिल्ली पुलिस में सेंट्रल डिस्ट्रिक्ट की डीसीपी श्वेता चौहान के हवाले से समाचार एजेंसी ANI ने बताया कि तकरीबन डेढ़ हज़ार लोग जुमे की नमाज़ के लिए जामा मस्जिद पर इकट्ठा हुए थे. नमाज़ के बाद तकरीबन 300 लोग सड़क पर आ गए और नुपूर शर्मा और नवीन जिंदल की भड़काउ टिप्पणी पर विरोध जताने लगे. पुलिस ने 10-15 मिनट में स्थिति पर काबू पा लिया. चूंकि सड़क पर प्रदर्शन के लिए अग्रिम अनुमति नहीं ली गई थी, इसीलिए दिल्ली पुलिस वैधानिक कार्रवाई करेगी.

3 जून को कानपुर में जुमे की नमाज़ के बाद जो कुछ हुआ था, उसके बाद दिल्ली के इस वाकये ने कुछ राहत दी. कि ऐतराज़ दर्ज हुआ, कानून ने भी अपना काम करने की बात की और बात खत्म. लेकिन जैसे जैसे 10 जून का दिन आगे बढ़ा, ये खुशफहमी दूर हो गई. पूरे देश से ऐसे प्रदर्शनों की खबर आई, जिनमें ऐतराज़ जताने की तमाम भारतीय परंपराओं को धता बताया गया. भीड़ ने कानून को अपने हाथ में लिया. क्या प्रयागराज, क्या सहारनपुर, क्या हावड़ा और क्या रांची. हर जगह एक ही तस्वीर. इस्लाम में शुक्रवार का महत्व प्रार्थना के दिन के रूप में है. लेकिन इसी दिन वो सारे काम किए गए जो अल्लाह मियां को कभी पसंद नहीं आएंगे. 

सड़कें जाम की गईं, बाज़ार बंद करवाए गए, पत्थरबाज़ी हुई, आगज़नी हुई. प्रयागराज में पुलिस प्रशासन के आला अधिकारियों तक को चोट लगी और रांची में तो नौबत गोली चलाने तक की आ गई. जब आप ये बुलेटिन देख रहे हैं तब देश के अलग अलग शहरों में सड़कें पत्थरों से पटी हुई हैं, पुलिस के वायरलेस सेट लगातार घनघना रहे हैं, एंबुलेंस का सायरन बज रहा है. आम लोगों में खौफ है, कि बच्चे के लिए दूध लेने सड़क पर निकलेंगे तो भीड़ के पत्थर का शिकार हो जाएंगे कि पुलिस की लाठी का. 

दिल्ली की बात हमने कर ही ली है, आइए अब देश के दूसरे शहरों का हाल लेंगे. लेकिन उससे पहले ये जानना ज़रूरी है कि 9 जून को जम्मू कश्मीर के डोडा ज़िले में क्या हुआ था. यहां का वीडियो आप तक सोशल मीडिया के ज़रिए पहुंच ही गया होगा. एक मस्जिद पर चढ़कर दिन दहाड़े एक बेहद भड़काऊ भाषण दिया गया. एक ही सांस में अमन पसंदी और इस्लाम के नाम पर सिर कलम करने तक की बातें हो गईं और वहां इकट्ठा भीड़ ने तालियों से स्वागत किया, नारे लगाए. ये कहीं किसी कमरे में छुपकर बनाया गया वीडियो नहीं था. दिन के उजाले में की गई तकरीर थी.

लाज़मी था कि इस वाकये के बाद इलाके में तनाव पसर गया. पुलिस को कर्फ्यू लगाना पड़ा. अनहोनी की आशंका थी, इसीलिए सेना से फ्लैग मार्च करने का आग्रह किया गया, ताकि कोई भी कानून तोड़ने से पहले 20 बार सोचे. इस मामले में भदरवाह पुलिस थाने में मामला दर्ज कर लिया गया है और धार्मिक भावनाएं भड़काने और आपराधिक मंशा से धमकाने की धाराएं लगा दी गई हैं.

अब ये कहा जा सकता है कि भदरवाह में जो हुआ, वो आने वाले दिन की आहट थी. दिल्ली में प्रदर्शन नारेबाज़ी तक महदूद रहा. फिर भी जामा मस्जिद के शाही इमाम ने बिना देर किए प्रदर्शन से किनारा कर लिया. उन्होंने कहा कि मस्जिद प्रबंधन की ओर से किसी प्रदर्शन का कॉल नहीं दिया गया था. साथ ही ये भी कह दिया गया कि लगता है ये लोग AIMIM के लोग हैं.

अब चलते हैं उत्तर प्रदेश. जहां सबसे ज़्यादा शहरों से प्रदर्शनों की खबरें आईं. सबसे ज़्यादा बवाल हुआ प्रयागराज में. यहां के अटाला इलाके में बात सिर्फ नारे या दो चार पत्थरबाज़ी तक सीमित नहीं रही. जमकर पुलिस और प्रदर्शनकारियों में संघर्ष हुआ. पत्थर तो चले ही. सड़क पर खड़ी गाड़ियों को आग लगा दी गई. पीएसी के एक ट्रक तक को नहीं बख्शा गया. बलवाइयों ने इतनी उग्रता दिखाई, कि एक वक्त पुलिस को पीछे हटना पड़ा. कई वीडियोज़ में ये देखा जा सकता है कि पुलिस के जवान जहां इकट्ठा होते, उसी तरफ पत्थर चलने लगते. 

लाठी लिए पुलिस जवान को दूर से पत्थर मारकर कौनसा विरोध दर्ज होता है? पुलिस के इन सिपाहियों ने ऐसा क्या किया था, कि ये इन्हें दौड़ाकर पत्थर मारे जा रहे हैं? 
प्रयागराज में हुई हिंसा में एडीजी प्रयागराज ज़ोन प्रेम प्रकाश घायल हो गए. ज़िला मैजिस्ट्रेट संजय खत्री के अंगरक्षक को भी चोटें आई हैं. चूंकि रुक-रुक कर पत्थरबाज़ी होती रही, नियंत्रण स्थापित करने के लिए पुलिस की अतिरिक्त टुकड़ियों को प्रभावित इलाकों की तरफ भेजा गया. पुलिस और प्रशासन के आला अधिकारियों को भी तुरंत लखनऊ स्थित पुलिस मुख्यालय पहुंचने के आदेश दिए गए. 

प्रयागराज के अलावा मुरादाबाद, सहारनपुर और देवबंद में भी पुलिस को बल प्रयोग करना पड़ा, लेकिन यहां स्थिति समय रहते काबू कर ली गई. भीड़ कुछ देर नारेबाज़ी के बाद छंट गई. राजधानी लखनऊ में भी प्रदर्शन हुए. लेकिन कोई बड़ी अप्रिय घटना यहां नहीं हुई.

इस पूरे घटनाक्रम पर योगी सरकार की तरफ से डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि अगर बलवे के पीछे साज़िश हुई है, उसका पर्दाफाश किया जाएगा और कठोर कार्रवाई होगी. अब तक 100 से ज़्यादा लोग गिरफ्तार किए जा चुके हैं.

उत्तर प्रदेश से चलते हैं झारखंड. यहां राजधानी रांची में वो उत्पात हुआ है कि आप सोच नहीं सकते. नमाज़ के बाद एक भीड़, मार्च की शक्ल में रांची के मेन रोड इलाके से निकली. दोपहर ढाई से तीन के बीच का वक्त था, जब मार्च में शामिल लोग हिंसक हो गए. देखते देखते भीड़ पुलिस के काबू से बाहर हो गई. कम से कम एक दरोगा और कई पुलिस जवान घायल हो गए, जिनका इलाज चल रहा है. देखिए पुलिस के जवान किस तरह मदद की गुहार लगा रहे थे –

हालत बेकाबू होते देख पुलिस ने मेन रोड के दोनों तरफ सुजाता चौक से लेकर फिरयलाल चौक तक धारा 144 लगा दी है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुख्य बाज़ार की कम से कम 5 हज़ार दुकानों को बंद करवा दिया गया है.

रांची डीएम से लेकर सूबे के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन तक ने लोगों से संयम बरतने की अपील की है.

प्रयागराज और रांची दो बड़े उदाहरण हैं. लेकिन बवाल पश्चिम बंगाल के हावड़ा में भी भरपूर हुआ. यहां प्रदर्शनकारियों ने हावड़ा से कोलकाता को जोड़ने वाले मुख्य मार्ग को जाम कर दिया. इस दौरान नारे बाज़ी हुई और टायर जलाए गए. मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी ने आज ही पैगंबर पर भाजपा के पूर्व नेताओं की टिप्पणी की निंदा की और कहा कि ये हेट स्पीच का मामला है.

यहां तक आते आते हम भारत के एक ऐसे नक्शे पर पहुंचते हैं, कि जहां हाथ रखो, वहीं से प्रदर्शन और बवाल की खबरें मिलने लगती हैं. ये तो गनीमत रही कि हैदराबाद में जहां पुलिस ने मिनिटों में भीड़ को तितर बितर कर दिया, वहीं पटना और कटिहार जैसी जगहों पर बात नारेबाज़ी और पुतला जलाने जैसी चीज़ों से आगे नहीं बढ़ी. महाराष्ट्र के सोलापुर में भी भारी भीड़ एकत्रित हुई, लेकिन कोई अनहोनी नहीं हुई.

बलवा करना, आगज़नी करना, पुलिस को चुन चुनकर पत्थर मारना बताता है कि प्रदर्शनों में जो लोग शामिल हुए वो आहत नहीं थे. वो तो उत्पात मचाने के मकसद से घर से चले थे. ये आहत लोगों का बर्ताव नहीं है. उन्मादी लोगों का बर्ताव है. और 2022 के भारत में सड़क पर उन्माद की कोई जगह नहीं है. हम उन सभी राज्य सरकारों से बलवाइयों पर सख्त कार्रवाई की अपील करते हैं, जहां हालात बेकाबू हुए. और साथ में मांगते हैं ये जवाब भी, कि जब 3 जून को कानपुर की मिसाल हमारे सामने थी, तो आपके सूबों के तमाम जेम्स बॉन्ड कहां आराम फरमा रहे थे. 

उन्हें क्यों इस बात की भनक नहीं थी कि शुक्रवार को कुछ हो सकता है? अगर भनक थी, तो उनकी तैयारी क्या थी. हर बात में कॉन्सपिरेसी और लार्जर कॉन्सपिरेसी की बात करने वाली सरकारें, धार्मिक उन्माद के मामलों में कॉन्सपिरेसी सफल हो जाने के बाद ही क्यों जागती हैं? ये कॉन्सपिरेसी का पता पहले क्यों नहीं लगा पातीं? ये कुछ सवाल हैं, जिनके जवाब ज़रूरी हैं.

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