ज़ाकिर नाइक की ये थ्योरी पढ़कर दिमाग फटके हाथ में आ जायेगा
ज़ाकिर नाइक. धर्म पर लेक्चर पिलाने वाली मशहूर हस्ती. उनकी थ्योरियां अब भी टहल रही हैं.
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फोटो - thelallantop
क्यूं सऊदी अरब और कई मुस्लिम राष्ट्रों में मंदिर या चर्च या किसी और धर्म के पूजास्थल बनाने पर बैन लगा हुआ है. ऐसा क्यूं है कि उस देश में रहने वाले गैर-मुस्लिम लोग एक जगह पर जाकर पूजा नहीं कर सकते. वहां सिर्फ मस्जिद ही क्यूं हैं? जबकि गैरमुस्लिम देशों में खूब मस्जिदें बनी हुई हैं. यूरोपीय देशों में मस्जिदों के बनने पर कैसा भी बैन नहीं है.इसके जवाब में ज़ाकिर नाइक ने जो कहा, वही अगर वो 'इंडिया हैज़ गॉट टैलेंट' में कह देते तो उन्हें सीधे फाइनल में भेज दिया जाता. उन्होंने कहा कि ऐसा इसलिए है क्यूंकि कुछ मुस्लिम देशों में दूसरे धर्मों को फैलाना मना है. साथ ही वहां पर दूसरे धर्मों के पूजास्थलों को भी बनाना मना है. ये तो थे महज़ फैक्ट्स. लेकिन असली दम इसके पीछे दिए उनके लॉजिक में था. उन्होंने एक मैथ्स टीचर का उदाहरण दिया. कहा कि अगर किसी स्कूल में तीन मैथ्स टीचर्स का इंटरव्यू लिया जाये. जिसमें से एक बोले कि 2+2=3, दूसरा कहे कि 2+2=4 और तीसरा बोले कि 2+2=6. तो आप किसको रक्खेंगे? ज़ाकिर नाइक ने कहा कि जब आपको मालूम है 2+2=4, तो 3 और 5 कहने वालों को आप मैथ्स टीचर नहीं रक्खेंगे. ठीक उसी तरह से जब सऊदी अरब को मालूम है कि भगवान की नज़रों में इस्लाम ही एकमात्र सच्चा धर्म है. ऐसे में किसी और धर्म को जगह नहीं दी जाएगी. ठीक वैसे ही जैसे 2+2=3 और 2+2=6 कहने वाले मैथ्स टीचर को पढ़ाने नहीं दिया जाता है. थोड़ी देर अगर वीडियो से हटें तो पायेंगे कि हर धर्म के अनुसार उनका अपना धर्म सच्चा है. अगर ज़ाकिर नाइक इत्तेफ़ाक से क्रिश्चियन पैदा हुए होते तो आज 2+2=4 का यही लॉजिक वो अपने क्रिश्चियन धर्म के लिए दे रहे होते. वो शायद ये भूल गए कि आज मुस्लिम धर्म के प्रचार-प्रसार की वो बातें कर रहे हैं, उसी मुस्लिम धर्म में उनका पैदा होना एक इत्तेफ़ाक मात्र है. जबकि 2+2=4 एकमात्र सत्य है. वो सत्य जो हर धर्म में समान रहता है. बदलता नहीं है. चाहे हिन्दू हो या मुस्लिम, 2+2=4 हमेशा ही रहता है. ज़ाकिर नाइक ने जो गलती की वो ये कि अपने धर्म के बचाव के लिए गणित का सहारा ले लिया. गणित शायद इस दुनिया की सबसे लॉजिकल फील्ड है. इसमें लॉजिक के सिवा और कुछ भी नहीं चलता है. जबकि धर्म इस दुनिया की सबसे बिना-लॉजिक की चीज.
मैंने आज तक कभी भी किसी को मारने से पहले किसी को 17 का पहाड़ा सुनाने की बात नहीं सुनी. जबकि मारने से पहले आयतें सुनाने की बातें ज़रूर मालूम चली हैं.
ज़ाकिर नाइक की बातों में एक अजीब बेखबरी दिखती है. वो भले ही दूसरे धर्म के ग्रंथों को पढ़ने का झंडा बुलंद करते हों लेकिन उनसे ज्ञान उन्होंने बहुत ही फ़िल्टर करके, अपनी सहूलियत के हिसाब से ही लिया है. नाइक की हरकतें स्कूल के उस टीचर की तरह हैं जो पढ़ाता तो पूरी क्लास को है लेकिन इग्ज़ाम में उन लड़कों को सबसे ज़्यादा नम्बर देता है जो शाम को उससे ट्यूशन पढ़ने आते हैं. https://www.youtube.com/watch?v=tmNbIBss2O0&feature=youtu.be