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कौन है बंगाल का मतुआ समुदाय? जो CAA लागू होने पर खुशी मना रहे हैं!

West Bengal में एक समुदाय CAA लागू होने को लेकर खुशियां मना रहा है. वो समुदाय है Matua Community. ये समुदाय CAA लागू होने पर खुश क्यों हो रहा है?

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बंगाल के मतुआ समुदाय के लोग CAA लागू होने का जश्न मना रहे हैं (फोटो: PTI)
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रविराज भारद्वाज
12 मार्च 2024 (Updated: 12 मार्च 2024, 05:50 PM IST) कॉमेंट्स
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देशभर में नागरिकता संशोधन अधिनियम यानी CAA  लागू हो गया है. मोदी सरकार की तरफ से 11 मार्च को CAA के नियमों को नोटिफाइड कर दिया गया. जिसके मुताबिक गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को भारत की नागरिकता (Indian Citizenship) दी जाएगी. इस कानून के तहत सरकार बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए प्रताड़ित गैर-मुस्लिम प्रवासियों (हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई) को भारतीय नागरिकता देगी. ये फायदा केवल उन्हीं प्रवासियों/शरणार्थियों को मिलेगा जो 31 दिसंबर, 2014 तक भारत आ चुके हैं. 

केंद्र सरकार के इस कदम का कांग्रेस समेत कई विपक्षी पार्टियां विरोध कर रही हैं. वहीं मोदी सरकार वादा पूरा किए जाने पर अपनी पीठ थपथपा रही है. CAA के खिलाफ असम में कई संगठनों ने प्रदर्शन का एलान कर दिया है. वहीं, पश्चिम बंगाल में एक समुदाय CAA लागू होने को लेकर खुशियां मना रही है. और वो है मतुआ समुदाय (Matua Community). अब ये समुदाय है क्या और ये CAA लागू होने पर खुश क्यों हो रही है? विस्तार से जानते हैं.

इसको लेकर इंडिया टुडे के रिपोर्टर सूर्यागनी रॉय बताते हैं,

“मतुआ समाज के लोग CAA लागू होने की खुशी मना रहे हैं. उनका ऐसा मानना है कि CAA लागू होने के बाद उनके पास भारत के नागरिक होने का ठोस सबूत है. CAA लागू होने से पहले भी उनमें से कुछ के पास वोटर ID और आधार कार्ड मौजूद थे. लेकिन वो CAA को सबसे ठोस सबूत के तौर पर देख रहे हैं.”

मतुआ समुदाय का इतिहास

मतुआ समुदाय की शुरुआत 1860 में अविभाजित बंगाल में हुई थी. मतुआ महासंघ की मूल भावना है चतुर्वर्ण (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र) की व्यवस्था को खत्म करना. यह संप्रदाय हिंदू धर्म को मान्यता देता है लेकिन ऊंच-नीच के भेदभाव के बिना. इसकी शुरुआत समाज सुधारक हरिचंद ठाकुर ने की थी. उनका जन्म एक गरीब और दलित नामशूद्र परिवार में हुआ था. संप्रदाय से जुड़े लोग हरिचंद ठाकुर को भगवान विष्णु और कृष्ण का अवतार मानते हैं. सम्मान में उन्हें श्री श्री हरिचंद ठाकुर कहते हैं.

आजादी के बाद मतुआ संप्रदाय की शुरुआत करने वाला ठाकुर परिवार भारत आ गया. वो पश्चिम बंगाल में आकर बस गए. चूंकि बंगाल दो हिस्सों में बंट गया था, ऐसे में मतुआ महासभा को मानने वाले कई लोग पाकिस्तान के कब्जे वाले तत्कालीन पूर्वी बंगाल से भारत के पश्चिम बंगाल आ गए. हरिचंद ठाकुर की दूसरी पीढ़ी मतुआ समुदाय के केंद्र में थी. पूरा जिम्मा उनके पड़पोते प्रमथ रंजन ठाकुर पर था. बांग्लादेश के बॉर्डर पर ठाकुरगंज नाम की एक शरणार्थी बस्ती बसाई गई. इसमें सीमापार से आने वालों खासतौर पर नामशूद्र शरणार्थियों को रखने का इंतजाम किया गया. प्रमथ रंजन ठाकुर ने 1962 में पश्चिम बंगाल के नादिया जिले की अनुसूचित जनजाति के लिए रिजर्व सीट हांसखली से विधानसभा का चुनाव लड़ा. जीतकर विधानसभा पहुंचे. 

ये भी पढ़ें: मोदी सरकार ने CAA लागू किया, गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को मिलेगी नागरिकता

बंगाल की राजनीति में अहम रोल

यहां से मतुआ समुदाय की ताकत बंगाल में लगातार बढ़ती रही. और उनकी बढ़ती ताकत के आगे धीरे-धीरे सभी नतमस्तक होते रहे. सत्तर के दशक के आखिरी वर्षों में पश्चिम बंगाल में कांग्रेस की ताकत कम हुई, और लेफ्ट मजबूत हुआ. बंगाल की राजनीति के जानकार बताते हैं कि लेफ्ट की ताकत बढ़ाने में मतुआ समुदाय का बड़ा हाथ रहा. 1977 के चुनाव से पहले प्रमथ रंजन ठाकुर ने लेफ्ट को समर्थन दिया. बांग्लादेश से लगे इलाकों और मतुआ महासभा के भक्तों ने लेफ्ट पार्टी के लिए जमकर वोट किया. 1977 में लेफ्ट की सरकार बनी, जो साल 2011 तक शासन में रही. इस दौरान मतुआ समुदाय का समर्थन उन्हें मिलता रहा.

CAA लागू होने के बाद मतुआ समुदाय में जश्न का माहौल (फाइल फोटो: PTI)
ठाकुर परिवार पहुंचा संसद

हालांकि साल 2010 में मतुआ माता और प्रमथ रंजन ठाकुर की पत्नी बीनापाणि देवी की नजदीकी ममता बनर्जी से बढ़ने लगी. मतुआ माता ने 15 मार्च 2010 को ममता बनर्जी को मतुआ संप्रदाय का संरक्षक घोषित कर दिया. इसे औपचारिक तौर पर ममता बनर्जी का राजनीतिक समर्थन माना गया. इस दौरान पश्चिम बंगाल में लेफ्ट के खिलाफ माहौल बन रहा था. इस दौरान तृणमूल कांग्रेस को मतुआ संप्रदाय का पुरजोर समर्थन मिला. 2011 में ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल की चीफ मिनिस्टर बनीं.

साल 2014 में मतुआ कम्युनिटी की राजनीतिक ताकत में और इजाफा हुआ. मतुआ माता के बड़े बेटे कपिल कृष्ण ठाकुर को तृणमूल कांग्रेस ने बनगांव लोकसभा सीट से टिकट दिया. वो चुनाव जीते और संसद पहुंचे. साल 2015 में कपिल कृष्ण ठाकुर का निधन हो गया. उनकी पत्नी ममता बाला ठाकुर ने इस सीट से 2015 उपचुनावों में तृणमूल कांग्रेस के ही टिकट पर चुनाव जीता. 5 मार्च 2019 को मतुआ माता का निधन हो गया. और यहां से परिवार में राजनीतिक बंटवारा खुलकर सामने आने लगा. 2019 के लोकसभा चुनावों में छोटे बेटे मंजुल कृष्ण ठाकुर ने बीजेपी का दामन थाम लिया. 2019 में मंजुल कृष्ण ठाकुर के बेटे शांतनु ठाकुर को बीजेपी ने बनगांव से टिकट दिया. वह सांसद बन गए.

बंगाल की राजनीति में अहम रोल

पश्चिम बंगाल की 11 लोकसभा सीटों पर  मतुआ समुदाय की अच्छी खासी संख्या है. .बनगांव के इलाके में मतुआ समुदाय के वोटर 65 से 67 फीसदी है. जबकि बाकी 10 लोकसभा सीटें जहां मतुआ समुदाय का प्रभाव ज्यादा है, वो हैं- कृष्णानगर, रानाघाट, मालदा उत्तरी, मालदा दक्षिणी, बर्धमान पूर्वी, बर्धमान पश्चिमी, सिलीगुड़ी, कूच बिहार, रायगंज और जॉयनगर. इन सभी सीटों पर मतुआ समुदाय के वोटरों की संख्या औसतन 35 से 40 फीसदी मानी जाती है. ऐसे में इस समुदाय का वोट काफी महत्वपूर्ण हो जाता है.

अब जबकि केंद्र की NDA सरकार CAA को लागू कर चुकी है. इसके तहत भारत में आकर बसे नामशूद्र समाज की समस्या काफी हद तक खत्म कर हो गई है. यह एक तरह से मतुआ संप्रदाय की मांग पूरी होने जैसा है. जानकार बताते हैं कि इसका फायदा आगामी लोकसभा चुनाव में BJP को मिल सकता है.

वीडियो: CAA नियमों के नोटिफिकेशन पर क्या बोले मुस्लिम धर्मगुरु?

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