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जहाज़ से आवाज़ को मात देने के पीछे का विज्ञान कैसे करता है काम?

पहली बार साउंड बैरियर क्रॉस करने वाले चक येगर नहीं रहे.

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अपने जहाज़ में बैठे चक येगर. इस जहाज़ को अपनी बीवी का नाम दिया था इन्होंने. (विकिमीडिया)
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आयुष
9 दिसंबर 2020 (Updated: 9 दिसंबर 2020, 05:13 PM IST) कॉमेंट्स
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1903 में राइट ब्रदर्स ने पहली सफल उड़ान भरी. इसके बाद हवाई यात्रा का सिलसिला शुरू हुआ. यात्रा से लेकर युद्ध में हवाई जहाज़ देखे जाने लगे. फाइटर जेट्स के पायलट स्पीड की सीमाओं को लांघने के लिए बेताब थे. लेकिन स्पीड बढ़ाने से भयंकर टर्बुलेंस पैदा होता था. विमान की स्थिरता खतरे में आ जाती थी. स्पीड बढ़ाने की ऐसी ही कोशिशों में कई विमान दुर्घटना का शिकार हुए.
साल बीतने के साथ विमानों के डिज़ाइन में बदलाव आए. नई डिज़ाइन में ज़्यादा स्पीड पर एयरक्राफ्ट को स्थिर रखा जा सकता था. 1945 बेल एयरक्राफ्ट कंपनी ने एक्स-1 नाम का मॉडल तैयार किया. ये रॉकेट इंजन से चलने वाला हवाई जहाज़ था. उस वक्त का सबसे आधुनिक एयरक्राफ्ट.
बेल एक्स-1. पहला सुपरसॉनिक जहाज़. (विकिमीडिया)
बेल एक्स-1. पहला सुपरसॉनिक जहाज़. (विकिमीडिया)


1947 की बात है. चक येगर यूएस एयरफोर्स में कैप्टन थे. 14 अक्टूबर 1947 को चक येगर ने बेल ऐक्स-1 से उड़ान भरी. वो लगभग 13000 मीटर की ऊंचाई पर ये विमान उड़ा रहे थे. कांटा 1127 किलोमीटर प्रतिघंटे के निशान को छू गया. ये रिकॉर्ड स्पीड थी. चक येगर आसमान में साउंड की स्पीड लांघ चुके थे.
एयरफोर्स ने कई महीनों तक इस जानकारी को गोपनीय रखा. जून 1948 में इसकी आधिकारिक घोषणा की गई. चक येगर को ‘फास्टेस्ट मैन अलाइव’ कहा जाने लगा. ये फास्टेस्ट मैन अब अलाइव नहीं है. 7 दिसंबर 2020 को चक येगर की मौत हो गई. उनकी उम्र 97 साल थी.
जब कोई साउंड की स्पीड से ज़्यादा गति पर जाता है तो इसे साउंड बैरियर पार करना कहते हैं. चक येगर वो पहले इंसान थे, जिन्होंने साउंड बैरियर क्रॉस किया. चक येगर अमरीकी वायुसेना में टेस्ट पायलट थे. ध्वनि की गति को मात देने वाले पायलट.
चक की बीवी का नाम ग्लेनिस था. यही नाम लिखा है जहाज़ पर. (विकिमीडिया)
चक की बीवी का नाम ग्लेनिस था. यही नाम लिखा है जहाज़ पर. (विकिमीडिया)


चक येगर के बहाने हम साउंड और साउंड की स्पीड की बात कर लेते हैं. ये भी जानेंगे कि जब कोई जहाज़ साउंड की स्पीड से ज़्यादा तेज़ चलता है तो धमाकेदार आवाज़ क्यों आती है?

तू किसी 'वेव' सी गुज़रती है

सबसे पहले साउंड के बारे में समझ लेते हैं. साउंड क्या होता है?
साउंड एक वेव यानी तरंग होती है. आपने कभी झील के शांत पानी में पत्थर मारा है? आपने देखा होगा कि पानी में जहां पत्थर गिरता है, वहां से तरंग निकलती हैं. एक के बाद एक गोल छल्ले चारों तरफ जाने लगते हैं. साउंड भी ऐसे ही वेव बनकर एक जगह से दूसरी जगह जाता है. जब ये वेव हमारे कान के परदे पर पड़ती है, तो हमें आवाज़ सुनाई देती है.
साउंड वेव को ट्रेवल करने के लिए एक मीडियम (माध्यम) चाहिए होता है. साउंड का मीडियम ठोस, तरल या गैस कुछ भी हो सकता है. अंतरिक्ष में आप कितना भी चिल्ला-चौंट कर लें, किसी के कान में जूं नहीं रेंगेती. अंतरिक्ष में वैक्यूम होता है. वहां ऐसा कुछ नहीं होता, जिसके ज़रिए साउंड वेव ट्रेवल कर सकें.
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ठोस रेल की पटरी पर कान लगाएंगे तो दूर से आने वाली रेल की आवाज़ आ जाएगी. पानी के अंदर भी आवाज़ आती है. और हवा के ज़रिए तो हम बकैती सुनते ही रहते हैं. हवा में कई सारी गैस भरी हुई हैं. यही गैस साउंड के लिए मीडियम का काम करती हैं.
जब कोई हल्ला मचाता है, तो वहां हवा में बाइब्रेशन पैदा होता है. हर कण अपने पड़ोसी कणों को बाइब्रेट कराता है. वहां का प्रेशर कम-ज़्यादा होता है. इस तरह ये तरंग हर दिशा में आगे बढ़ती है. कितनी स्पीड से? इट डिपेंड्स. अलग-अलग मीडियम में साउंड की स्पीड बदल जाती है.

कितना तेज़ भागती है आवाज़?

मीडियम के कण जितने पास-पास होंगे, साउंड वेव उतनी तेज़ी से आगे बढ़ेगी. ठोस चीज़ों में कण बहुत पास होते हैं. इसलिए सॉलिड मीडियम में साउंड की स्पीड सबसे ज़्यादा होती है. पानी जैसी तरल मीडियम में स्पीड उससे कम होती है. और हवा जैसे गैस वाले मीडियम में साउंड की स्पीड सबसे कम हो जाती है.
जब बाजा बजता है तो हवा में ऐसे ही तरंगें बनती हैं लेकिन हमें दिखाई नहीं देतीं. (विकिमीडिया)
जब बाजा बजता है तो हवा में ऐसे ही तरंगें बनती हैं लेकिन हमें दिखाई नहीं देतीं. (विकिमीडिया)


हम लोग ज़्यादातर हवा में ही साउंड सुनते हैं. हवा में साउंड की स्पीड कितनी है? ये भी फिक्स नहीं है. हवा में साउंड की स्पीड तापमान पर डिपेंड करती है. गर्मी में साउंड की स्पीड ज़्यादा होती है और ठंडी में कम. यानी तापमान बढ़ने के साथ साउंड की स्पीड भी बढ़ती है.
20 डिग्री सेल्सियस तापमान पर साउंड की स्पीड 1235 किलोमीटर प्रति घंटे की होती है.
अब आपके दिमाग में एक घंटी बजनी चाहिए. चक येगर की स्पीड तो 1127 किलोमीटर प्रति घंटा थी. फिर ये साउंड से ज़्यादा स्पीड कैसे हो गई? एक फैक्ट और जान लीजिए. ऊंचाई बढ़ने के साथ हवा का तापमान कम होने लगता है. इसका मतलब ऊंचाई बढ़ने के साथ साउंड की स्पीड कम हो जाती है.
जब चक येगर ने साउंड बैरियर पार किया, तब वो 13000 मीटर की ऊंचाई पर जहाज़ उड़ा रहे थे. इतनी ऊंचाई पर तापमान बहुत कम होता है. इसलिए वहां साउंड की स्पीड 1127 किलोमीटर प्रतिघंटे से कम थी.
जब कोई चीज़ साउंड की स्पीड से ज़्यादा तेज़ चलती है, तो उसे सुपरसॉनिक स्पीड कहते हैं. ये सुपरसॉनिक जहाज़ एक धमाका पैदा करते हैं. इसे सॉनिक बूम कहते हैं. सॉनिक बूम क्यों होता है?
कई बार सुपरसॉनिक जेट के इर्द गिर्द ऐसे बादल का गुब्बारा बन जाता है. (विकिमीडिया)
कई बार सुपरसॉनिक जेट के इर्द गिर्द ऐसे बादल का गुब्बारा बन जाता है. (विकिमीडिया)


जहां से आवाज़ निकलती है उसे टेक्निकल भाषा में सोर्स कहते हैं. जब सोर्स एक जगह स्थिर रहता है तो चारों तरफ एक जैसी आवाज़ सुनाई देती है. लेकिन जब सोर्स भागने लगता है तो आवाज़ बदलती है. आपने ये ज़रूर फील किया होगा. रेलवे प्लेटफॉर्म पर.

जब आवाज़ करने वाला भागे

फर्ज़ कीजिए आप एक प्लेटफॉर्म पर खड़े हैं. ट्रेन हॉर्न बजाते हुए तेज़ स्पीड से चली आ रही है. जब ट्रेन आपकी तरफ आती है तो हॉर्न की आवाज़ अलग सुनाई देती है. जब ट्रेन आपसे दूर जाती है तो हॉर्न की आवाज़ कुछ और सुनाई देती है. इसे डॉपलर इफैक्ट कहते हैं. ऐसा इसलिए होता क्योंकि सोर्स की स्पीड से साउंड वेव पैटर्न प्रभावित होता है.
अब सुपरसॉनिक हवाई जहाज़ की बात करते हैं. जब कोई जहाज़ साउंड की स्पीड से तेज़ जाता है तो वो अपनी साउंड वेव को भी पीछे छोड़ देता है. ऐसा करने से वो साउंड वेव एक कॉन्सनट्रेट हो जाती हैं. अपनी भाषा में कहें तो बहुत सारी साउंड वेव एक जगह ठुस के रह जाती हैं. जब ये ठुसी-ठुसाई (कॉन्सनट्रेटेड) साउंड वेव हम तक पहुंचती हैं, तो हमें एक धमाका सुनाई देता है. इसी धमाके को सॉनिक बूम कहते हैं.
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जब ये जहाज़ बहुत आगे निकल जाते हैं, तब इनकी आवाज़ हमें सुनाई देती है. सॉनिक बूम सुनने के बाद आप गर्दन ऊपर करेंगे, आपको खाली आसमान दिखेगा. ये जहाज़ बहुत आगे निकल चुका होगा.
सॉनिक बूम में सिर्फ आवाज़ ही ज़्यादा नहीं होती, ऊर्जा भी बहुत ज़्यादा होती है. ये सॉनिक बूम खिड़कियों के शीशे तोड़ सकता है. लोगों को स्वास्थ संबंधी दिक्कत पैदा कर सकता है. इसलिए पायलटों को ये निर्देश दिए जाते हैं कि रिहायशी इलाकों में वो साउंड से कम स्पीड पर ही जहाज़ उड़ाएं. माक-1 से कम स्पीड पर.
ऑन योर माक
हम अक्सर फाइटर जेट के साथ ‘माक’ शब्द का ज़िक्र भी सुनते हैं. फलाना जेट माक-1 है, ढिकाना एयरक्राफ्ट माक-2 है. ये माक नंबर साउंड की तुलना में जहाज़ की स्पीड बताता है.
माक-1 का मतलब है कि जहाज़ साउंड की स्पीड के बराबर चलता है. माक-2 का मतलब है कि जहाज़ साउंड की स्पीड से दोगुनी गति पर चलता है. किसी चीज़ की स्पीड को साउंड की स्पीड से भाग देने पर माक नंबर मिलता है. ये मशहूर फिज़िसिस्ट अर्न्स्ट माक को सम्मान देने के लिए रखा गया है. अर्न्स्ट माक ने शॉकवेव से जुड़ी महत्वपूर्ण स्टडी की थी.
अर्न्स्ट माक ऑस्ट्रिया के रहने वाले थे. (विकिमीडिया)
अर्न्स्ट माक ऑस्ट्रिया के रहने वाले थे. (विकिमीडिया)


इंडिया के पास कई माक पार वाले फाइटर एयरक्राफ्ट हैं. सुखोई SU-30 MKI की अधिकतम स्पीड माक 2.35 है. मिराज-2000 की मैक्सिमम स्पीड माक 2.3 है. मिग-29 भी माक 2.3 वाला जहाज़ है. नया वाले रफाल की टॉप स्पीड माक 1.8 है. अगर इन जहाज़ों का सॉनिक बूम आपको सुनाई दे तो चक येगर को भी याद कीजिएगा. वो माक को पार करने वाला पहले पायलट थे.

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