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देश उस दलित के बारे में कुछ नहीं जानता, जिन्हें गांधी पहला राष्ट्रपति बनाना चाहते थे

रामनाथ कोविंद को भाजपा ने राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया है.

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विशाल
20 जून 2017 (Updated: 20 जून 2017, 01:25 PM IST) कॉमेंट्स
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भाजपा ने दलित नेता रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाकर एक साथ कई निशाने साधे हैं. कोविंद के उम्मीदवार बनने से-

- मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस को अपने प्रेसिडेंट कैंडिडेट के तौर पर ऐसा चेहरा खोजना होगा, जो स्वीकार्य होने के साथ-साथ दलित फैक्टर भी काउंटर कर सके.

- प्रेसिडेंट कैंडिडेट मसले पर कांग्रेस को दूसरे विपक्षी दलों को साधना होगा कि वो उसकी छतरी के नीचे आ जाएं, जबकि ऐसा होता नहीं दिख रहा.

- महादलित कैटेगरी बनाकर बिहार की राजनीति बदलने वाले नीतीश कुमार भी अपनी जातिगत राजनीति के चलते कोविंद का विरोध नही कर पाएंगे.

- यूपी में दलितों की अगुवा बनने वाली मायावती के पास भी विरोध का कोई आधार नहीं होगा, क्योंकि कोविंद खुद यूपी से हैं. सपा के सामने भी यही मुश्किल है.

- रोहित वेमुला की खुदकुशी और ऊना में दलितों पर हमले जैसी घटनाओं की वजह से बीजेपी का जो विरोध हो रहा है, उसमें कमी आ सकती है.



मोदी से बहुत पहले गांधी चाहते थे दलित राष्ट्रपति

ऊपर लिखे सारे नतीजों के पीछे इकलौता कारण कोविंद का दलित होना है. अगर वो चुनाव जीतते हैं, तो वो देश के दूसरे दलित राष्ट्रपति होंगे. उनसे पहले केआर नारायणन 1997 से 2002 तक राष्ट्रपति रह चुके हैं. हालांकि नारायणन केरल से आते थे, इसलिए उत्तर के दलितों का उनके साथ सीधा जुड़ाव नहीं हो पाया. कोविंद के जरिए नरेंद्र मोदी यही अंतर पाटना चाहते हैं, लेकिन दलित प्रतीक की ये राजनीति नई नहीं है. मोदी से पहले खुद महात्मा गांधी ने एक दलित को राष्ट्रपति बनाए जाने की बात कही थी.

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दलित राष्ट्रपति के पीछे क्या थी गांधी की मंशा?

महात्मा गांधी के पोते राजमोहन गांधी अपनी किताब 'Why Gandhi Still Matters: An Appraisal of the Mahatma's Legacy' में बताते हैं कि गांधी इस बात को लेकर दृढ़ थे कि राजेंद्र प्रसाद के बजाय किसी दलित को राष्ट्रपति बनाया जाए. गांधी की मंशा दलितों में ये विश्वास बनाना हो सकती है कि देश के नेता उन्हें मुख्यधारा में लाने के प्रति गंभीर है और गांधी ने ये विमर्श देश के आधिकारिक तौर पर आजाद होने से पहले ही खड़ा कर दिया था.


महात्मा गांधी पर लिखी किताब का कवर
महात्मा गांधी पर लिखी किताब का कवर

तो गांधी के पास कोई विकल्प भी था या सिर्फ बातें थीं?

गांधीजी के पास एक नाम था- 'चक्रेय'. आंध्र प्रदेश का रहने वाला एक शख्स, जो उस समय की भाषा के मुताबिक हरिजन थे. 28 मई 1947 को मुंबई में ब्रेन ट्यूमर के ऑपरेशन के बाद चक्रेय की मौत हो गई थी. गांधीजी उस समय दिल्ली में थे. 31 मई 1947 को उस समय की भंगी कॉलोनी में अपनी प्रार्थना सभा में गांधीजी ने कहा था कि वो चक्रेय की मौत पर रोना चाहते हैं, लेकिन नहीं रो सकते.

उसी सभा में महात्मा गांधी ने कहा था कि चक्रेय के जिंदा रहते उन्होंने उनका नाम राष्ट्रपति पद के लिए आगे बढ़ाया था. उन्हें चक्रेय जैसे दलितों पर बहुत भरोसा था. चक्रेय की मौत गांधी के लिए निजी नुकसान जैसी थी. हालांकि चक्रेय के बारे में गांधी ने जो कहा, उस पर न तो उस समय किसी नेता ने कोई रिएक्शन दिया और न ही उनकी हत्या के बाद.

अपनी एक प्रार्थना सभा में गांधी
अपनी एक प्रार्थना सभा में गांधी

ऐसा हो क्यों नहीं पाया?

आजादी के पांच महीने के भीतर ही जनवरी 1948 में गांधीजी की हत्या हो गई. 1950 में देश के पहले राष्ट्रपति के तौर पर डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने शपथ ली, जिनके पास सरदार पटेल का समर्थन था. दूसरे छोर पर सी. राजगोपालाचारी थे, जिन्हें नेहरू सपोर्ट कर रहे थे. लेकिन ये दोनों दावेदार 'सवर्ण' थे. देश के पहले नागरिक की गद्दी पर एक दलित को बिठाने की गांधी की मंशा को नेहरू और पटेल, दोनों ने तिलांजलि दे दी थी.


राजेंद्र प्रसाद, पंडित नेहरू और सी. राजगोपालाचारी
राजेंद्र प्रसाद, पंडित नेहरू और सी. राजगोपालाचारी

थे कौन चक्रेय

ये वो नाम है, जिसके बारे में आपको ढूंढने से भी कुछ नहीं मिलेगा. जितना मिलेगा, वो ये कि चक्रेय 1935 में सेवाग्राम में गांधीजी से जुड़े थे और फिर एक एक्सपर्ट खादी वर्कर बन गए. 1935 के बाद वो लगातार गांधीजी के साथ रहे और उनके परिवार जैसे हो गए थे. इससे ज्यादा उनके बारे में कुछ नहीं मिलता.




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