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नारदा केस में ममता के मंत्री अरेस्ट हो गए, लेकिन सुवेंदु और मुकुल रॉय कैसे बच गए?

17 मई को गिरफ्तार किए गए नेताओं पर सुवेंदु और मुकुल के समान ही आरोप हैं.

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बीजेपी नेता सुवेंदु अधिकारी और मुकुल रॉय. फ़ाइल फ़ोटो.
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प्रशांत मुखर्जी
18 मई 2021 (Updated: 18 मई 2021, 10:51 IST)
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सीबीआई ने 17 मई  को नारदा स्टिंग (Narada Sting) ऑपरेशन मामले में पश्चिम बंगाल की नई नवेली तृणमूल कांग्रेस सरकार के दो मंत्रियों सहित तीन नेता और एक पूर्व नेता को गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तार किए गए नेताओं में मंत्री फिरहद हकीम, सुब्रत मुखर्जी, विधायक मदन मित्रा और कोलकाता के पूर्व मेयर सोवन चटर्जी का नाम शामिल है. सीबीआई ने जानकारी दी कि राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने इस महीने इस कार्रवाई को मंजूरी दी थी. गिरफ़्तारी के फ़ौरन बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कोलकाता में सीबीआई मुख्यालय के बाहर धरने पर बैठ गईं. ख़ैर! उससे कुछ हासिल नहीं हुआ. लेकिन आपको ये जानकर हैरानी जरूर होगी कि केवल यही चार नेता नहीं थे, जिनका नाम इस स्टिंग ऑपरेशन में आया था. इसमें और कई नामी गिरामी लोग थे, और इनमे सबसे चर्चित नाम वर्तमान में बंगाल के नेता प्रतिपक्ष सुवेंदु अधिकारी का है. इनके ख़िलाफ़ कार्रवाई नहीं हुई क्योंकि लोकसभा अध्यक्ष ने मंज़ूरी नहीं दी है. वहीं बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और विधायक मुकुल रॉय भी इस स्टिंग में शामिल थे. इनके ख़िलाफ़ तो कार्रवाई के लिए सीबीआई ने अब तक आवेदन ही नहीं दिया है. और आपको यह भी बता दें की सीबीआई की एफ़आईआर में सबसे प्रमुख आरोपी मुकुल रॉय हैं. रॉय 2017 में तृणमूल छोड़ बीजेपी में शामिल हुए थे. सीबीआई ने अप्रैल 2017 में ही यह मामला दर्ज किया था. कुल मिलाकर, एजेंसी ने कथित आपराधिक साजिश और भ्रष्टाचार के लिए मंत्रियों सहित टीएमसी के 12 नेताओं पर मामला दर्ज किया था. अंग्रेज़ी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक़ सीबीआई ने चार गिरफ्तार नेताओं के खिलाफ जनवरी में राज्यपाल को मुकदमा चलाने के लिए अनुरोध किया था. यानी चुनाव से ठीक दो महीने पहले ये अनुरोध किया गया था और चुनाव परिणामों के ठीक 5 दिनों के भीतर इसकी मंजूरी भी मिल गई.

क्या था नारदा स्टिंग ऑपरेशन?

नंदीग्राम में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को हराकर बीजेपी में अपने क़द को और बढ़ाने वाले सुवेंदु अधिकारी 11 अन्य लोगों के साथ इस मामले में आरोपी हैं.  कल हुई गिरफ़्तारी के बाद सीबीआई की कार्रवाई पर कल से ही टीएमसी की ओर से कई सवाल उठाए जा रहे थे. इसी विषय पर आज हमारी बातचीत में सीबीआई ने अपनी दलील में कहा कि सुवेंदु अधिकारी के खिलाफ सीबीआई ने मुक़दमा चलाने के लिए स्वीकृति का अनुरोध 6 अप्रैल, 2019 को तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन को भेजा था. जिसमें अधिकारी के अलावा टीएमसी सांसद सौगत रॉय, काकोली घोष दास्तीदार और प्रसून बनर्जी के नाम शामिल थे. आप सोच रहे होंगे कि सुवेंदु अधिकारी पर मुकदमा चलाने के लिए लोकसभा अध्यक्ष की अनुमति लेने की क्या जरूरत है? तो आपको बता दें ये स्टिंग ऑपरेशन 2014 में हुआ था. उस वक्त सुवेंदु अधिकारी लोकसभा सांसद थे. लेकिन इसे ऑन एय़र साल 2016 में पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से ठीक पहले किया गया था. साल 2016 में सुवेंदु अधिकारी नंदीग्राम से विधानसभा का चुनाव लड़े थे. ये चुनाव जीतने के बाद उन्होंने लोकसभा से इस्तीफा दे दिया था. इसलिए सुवेंदु पर केस चलाने के लिए लोकसभा अध्यक्ष की अनुमति अनिवार्य थी. फिर सितंबर 2019 में दोबारा सीबीआई ने इसी मामले ने एक अन्य आरोपी आईपीएस अधिकारी एसएमएच मिर्जा के खिलाफ कार्रवाई के लिए गृह मंत्रालय से अनुमति मांगी थी. मिर्जा के खिलाफ सीबीआई को कार्रवाई की अनुमति अभी कुछ दिन पहले मिली है. इस स्टिंग में टीएमसी नेताओं को कथित तौर पर एक काल्पनिक कंपनी का पक्ष लेने के लिए नकद रुपए लेते हुए कैमरे पर देखा गया था. उस वक़्त मुकुल रॉय तृणमूल से राज्यसभा सदस्य थे. द इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) के दिशा-निर्देशों में ऐसा कहा गया है कि अनुरोध करने के चार महीने के भीतर मंजूरी दी जानी चाहिए या खारिज कर दी जानी चाहिए.
सीवीसी के नवंबर 2020 तक के रिकॉर्ड के मुताबिक, पिछले साल दिसंबर में बीजेपी में शामिल हुए अधिकारी और टीएमसी के तीन सांसदों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए सीबीआई का अनुरोध ही ऐसा एकमात्र अनुरोध है जो लोकसभा स्पीकर के कार्यालय में लंबित है. सुमित्रा महाजन के बाद जून 2019 में ओम बिरला ने लोकसभा अध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभाला था.
बता दें कि सोमवार 17 मई 2021 को गिरफ्तार किए गए नेताओं पर सुवेंदु और मुकुल के समान ही आरोप हैं. सीबीआई की एफ़आईआर के मुताबिक़ फ़िरहद हकीम ने कथित तौर पर "स्टिंग ऑपरेटर से 5 लाख रुपये की राशि लेने की बात कही थी और ये राशि उनके कर्मचारी ने उनके लिए स्वीकार की थी." ऐसे ही आरोप तृणमूल विधायक मदन मित्र और सुब्रत मुखर्जी के ख़िलाफ़ भी हैं.
लेकिन सोवन चटर्जी एक ऐसे नेता हैं जो 2019 में बीजेपी में शामिल हुए थे. पर विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी का टिकट नहीं दिए जाने के बाद उन्होंने मार्च में पार्टी छोड़ दी. एफ़आईआर के मुताबिक़, उन्हें कथित तौर पर "स्टिंग ऑपरेटर से 4 लाख रुपये नकद लेते हुए दिखाया गया था और अगले दिन उन्हें और 1 लाख रुपये का भुगतान करने का वादा किया था. स्टिंग में ये भी दिखाया गया था कि उन्होंने स्टिंग ऑपरेटर को आश्वासन दिया था कि वह चुनाव के बाद कम से कम एक बार ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बंदोपाध्याय के साथ उनके लिए एक मीटिंग की व्यवस्था करेंगे.”
कलकत्ता उच्च न्यायालय ने सीबीआई को नारदा न्यूज डॉट कॉम पोर्टल पर प्रसारित टेपों की प्रारंभिक जांच करने का आदेश दिया था. इस आदेश को पश्चिम बंगाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में 2017 में चुनौती दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार को राहत देने से इनकार कर दिया था और जरूरत पड़ने पर सीबीआई को प्राथमिकी दर्ज करने के लिए एक महीने का समय भी दिया था.

दो नेताओं को जेल में गुज़ारनी पड़ी रात

वहीं सोमवार 17 मई को गिरफ़्तारी के ठीक बाद सीबीआई की स्पेशल कोर्ट ने चारों नेताओं को बेल दे दी. हालांकि इसके फ़ौरन बाद सीबीआई ने इस फ़ैसले को कलकत्ता उच्च न्यायालय में चैलेंज किया. उच्च न्यायालय ने बेल पर स्टे लगा दिया. जिसके बाद चार में से दो नेताओं को जेल ले जाया गया, जिसमें की फ़िरहद हाकिम और सुब्रत मुखर्जी शामिल थे. उन्हें कोलकाता के प्रेसिडेन्सी करेक्शन होम के स्पेशल सेल में रखा गया. बाक़ी दो नेता, विधायक मदन मित्रा और कोलकाता के पूर्व मेयर सोवन चैटर्जी को सेहत बिगड़ने की शिकायत की वजह से अस्पताल ले ज़ाया गया.

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