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राजभवन, CM हाउस पर चढ़कर खड़ी थी भीड़, तभी ताबड़तोड़ गोलियां चल पड़ीं, फिर क्या हुआ?

2001 के इंफाल गोलीकांड की पूरी कहानी.

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2001 के इंफाल गोलीकांड में CRPF पर आरोप लगा कि गोली चलाने की ज़रूरत नहीं थी, फिर भी चलाई गई. सच्चाई क्या है, इसकी दो थ्योरीज़ हैं. पहली थ्योरी निकलती है जस्टिस उपेंद्र की रिपोर्ट से. दूसरी CBI की क्लोज़र रिपोर्ट से. (CRPF सांकेतिक फोटो- PTI)
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अभिषेक त्रिपाठी
5 दिसंबर 2020 (Updated: 5 दिसंबर 2020, 08:56 AM IST) कॉमेंट्स
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मणिपुर की राजधानी इंफाल. इसके ज़िक्र के साथ ही चस्पा है 18 जून, 2001 की तारीख़ भी. इंफाल गोलीकांड. 14 लोगों की मौत, कई घायल. फायरिंग का आरोप किस पर- केंद्रीय रिज़र्व पुलिस फोर्स यानी CRPF पर. 19 साल बीत चुके हैं. और अब जांच कर रही CBI ने कहा है कि इंफाल गोलीकांड में सीआरपीएफ के ख़िलाफ पर्याप्त सबूत नहीं हैं. इसलिए उसे ज़िम्मेदार नहीं माना जा सकता. CBI ने केस में अपनी क्लोज़र रिपोर्ट में ये बात कही है. रिपोर्ट चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट ऑफ इंफाल के सामने रखी जा चुकी है. इसी इंफाल गोलीकांड को समझते हैं. लेकिन मणिपुर की इस घटना को समझने के लिए हमें नगालैंड से शुरुआत करनी पड़ेगी. चलिए, समझते हैं. नगालैंड इंसरजेंसी और NSCN (IM) का गठन हिंदुस्तान की सबसे पुरानी और खूंखार ‘इंसरजेंसी’ या ‘उग्रवाद’ समस्या कहां की है? शायद आपका जवाब हो- कश्मीर. लेकिन ये जवाब ग़लत है. सही जवाब है- कश्मीर से दो हज़ार किलोमीटर दूर नगालैंड. नगा उग्रवाद भारत ही नहीं, दुनिया की सबसे पुरानी इंसरजेंसी है, जो भारत के आज़ाद होने के भी पहले से चली आ रही है. ‘आज़ाद नगालैंड’ की मांग के साथ. इसी मांग को हासिल करने के लिए 1980 में बना- नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (NSCN). नाम में ‘सोशलिस्ट’ रखने वाला ये गुट सोशलिज़्म से ज़्यादा हिंसक तरीके से ‘आज़ादी’ हथियाने में विश्वास रखता था. NSCN के आने के बाद नगालैंड में इंसरजेंसी को नई धार मिली. बड़े पैमाने पर हिंसा शुरू हुई. लेकिन इस धार ने आठ साल में NSCN को ही काट दिया. दो धड़े बंटे –
NSCN (K). यानी NSCM (खापलांग). अलगाववादी नेता खापलांग के नेतृत्व में. NSCN (IM). यानी NSCM (इसाक मुइवा). नाम से लग सकता है कि इस ग्रुप के मुखिया कोई इसाक मुइवा हैं. लेकिन असल में ये दो लोग थे. एक इसाक और दूसरे मुइवा. इसाक चेयरमैन थे और मुइवा जनरल सेक्रेटरी.
NSCN (IM) का प्रभुत्व बढ़ा. इसने ‘ग्रेटर नगालिम’ की मांग को ज़ोर-शोर से उठाया. ग्रेटर नगालिम माने वो पूरी ज़मीन, जिसपर नगा आदिवासी बसते हों. इसमें आज के नगालैंड सहित अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, असम और म्यांमार के इलाके आते हैं. इस मांग के लिए NSCN (IM) ने नगा इंसरजेंसी इतनी शिद्दत से लड़ी कि पूरे पूर्वोत्तर में वो उग्रवाद का दूसरा नाम बन गया. 1997 का सीज़फायर समझौता भारत सरकार जब भी नगा गुटों से बात करती, उसकी कोशिश रहती कि NSCN (IM) ज़रूर उसमें शामिल हो. इसमें बड़ी कामयाबी मिली 1997 में. NSCN (IM) ने भारत सरकार के साथ पहला सीज़फायर समझौता किया. ये नगा इंसरजेंसी के इतिहास के अहम पड़ावों में से एक था. 1997 के बाद से NSCN (IM) ने लगातार सरकार से बातचीत की है. बातचीत के लगभग हर राउंड के बाद सीज़फायर की मियाद बढ़ी. जुलाई 2007 में NSCN (IM) ने भारत सरकार के साथ सीज़फायर को बेमियादी तौर पर बढ़ा दिया. ..और इंफाल का गोलीकांड 1997 में जब भारत सरकार और NSCN (IM) के बीच समझौता हुआ तो एक बात तय हो चुकी थी- नगालैंड में संघर्ष विराम. इसाक और मुइवा ने ये मांग भी उठा दी थी कि संघर्ष विराम का दायरा मणिपुर तक बढ़ाया जाए. बस इसी बात पर मणिपुर बिदक गया. उन्हें लगा कि ये उनकी हदों में अतिक्रमण की कोशिश है. 1997 में जब समझौता हुआ, तभी इंफाल में करीब पांच लाख लोगों ने रैली निकालकर ये संदेश दिया कि वो समझौता मणिपुर में लागू होने के खिलाफ हैं. 2000 में फिर एक बड़ा जुलूस निकला. और आखिरकार 2001 के जून में जब मणिपुर में संघर्ष विराम की घोषणा की गई तो हिंसा भड़क गई. लाखों लोग सड़क पर उतर आए. राजधानी इंफाल में भीषण हिंसा हुई. लोग विधानसभा भवन तक पहुंच गए. कथित तौर पर विधानसभा अध्यक्ष डॉ धनंजय सिंह पर भी हमला हुआ. राजभवन और सीएम हाउस के बाहर-भीतर प्रदर्शन हिंसक होने लगा. भीड़ को काबू करने के लिए CRPF ने गोली चला दी. कथित तौर पर 14 लोग मारे गए, 100 से ज्यादा घायल हुए. गोलीकांड के बाद इंफाल में अनिश्चितकाल के लिए कर्फ्यू लगा दिया गया. CRPF पर आरोप और ये फैसला CRPF पर आरोप लगा कि गोली चलाने की ज़रूरत नहीं थी, फिर भी चलाई गई. सच्चाई क्या है, इसकी दो थ्योरीज़ हैं. पहली थ्योरी निकलती है जस्टिस उपेंद्र की अगुवाई में बैठे कमीशन की जांच रिपोर्ट से. दूसरी CBI की क्लोज़र रिपोर्ट से. जस्टिस उपेंद्र की रिपोर्ट – सीएम के बंगले के बाहर लगी CRPF ने स्थिति को ख़राब तरीके से हैंडल किया. भीड़ बंगले से पीछे हट गई, फिर भी उन्होंने फायरिंग जारी रखी. भीड़ के पीछे हटने के बाद भी फायरिंग करना CRPF की बहुत बड़ी ग़लती थी. राजभवन और सीएम बंगले के बाहर की गई इन फायरिंग के लिए कोई आदेश भी नहीं था. इस लिहाज से CRPF के जिन जवानों ने गोली चलाई, उन पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए. CBI की क्लोज़र रिपोर्ट – CRPF को सरकारी संपत्ति की रक्षा और सेल्फ डिफेंस में गोली चलानी पड़ी. जब उन्होंने गोली चलाई, तब इसके अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था. ऐसे कोई सबूत नहीं हैं, जो साबित कर सके कि CRPF ने ग़लत भावना से गोली चलाई. 18 जून 2001 की उस घटना में जिन लोगों की मौत हुई थी, उनके परिवार वालों ने मणिपुर हाई कोर्ट में एक और याचिका लगाई है. कहा है कि CBI की क्लोज़र रिपोर्ट को खारिज किया जाए और नई जांच बैठाई जाए. फिलहाल हाईकोर्ट ने इस पर कोई निर्णय नहीं लिया है.

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