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'LKG में सूर्यप्रकाश ने मेरा सिर फोड़ दिया था'

LKG क्लास की कैंपस कथा, 'बुरे किस्से 12 के बाद वाले पहाड़ों की तरह याद नहीं रहते'

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फोटो क्रेडिट: Reuters
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29 जून 2016 (Updated: 29 जून 2016, 11:40 AM IST) कॉमेंट्स
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स्कूल की ढेरों कहानियां होती हैं न. कुछ हमेशा याद रह जाती हैं. और कुछ कभी याद ही नहीं होती. हमें तो सारे खुराफाती किस्से अच्छे से याद रहते हैं. और बुरी यादों की तरह 12 के बाद के सारे टेबल हमें कभी याद ही नहीं हुए. वैसे दसवीं-बारहवीं के किस्से याद कर के आप खुद को बड़े तुर्रमखां समझते होंगे. लेकिन हमारा पहला याद रखने लायक क़िस्सा तो एडमिशन लेते LKG में ही हो गया था. हुआ यूं कि क्लास का सबसे बड़ा खुराफाती लड़का था, सूर्यप्रकाश. लेकिन हम भी कम नहीं थे. खोज-खोज कर खुराफाती लड़कों के बगल में बैठते थे. उन्ही के बीच मेरा मन लगता था. तो उस दिन हम सूर्यप्रकाश के बगल में बैठे थे. बोर्ड पर मैथ्स की कॉपी जैसे खाने बना कर वन, टू, थ्री...सिखाया जा रहा था. हम लोग अपनी कॉपी में उसे छाप रहे थे.
LKG में हम लोग इतने छोटे होते थे कि रंग-बिरंगी, छोटी-छोटी कुर्सियां और टेबल भी बड़े पड़ जाते थे. तो हम कुर्सी पर बैठ कर टेबल तक नहीं पहुंच पाते थे. इसलिए खड़े होकर लिख रहे थे.
सूर्यप्रकाश को न जाने क्या सूझा, उसने हमारे पीछे हमारी कुर्सी हटा दी. शायद उसे लगा हम खड़े ही रहेंगे. लेकिन थोड़ी ही देर बाद हम बैठ गए. कहां? कुर्सी तो थी ही नहीं. हां, तो हम सfर के बल धड़ाम से ज़मीन पर गिरे. और हमारा सर फूट गया. Campus Kisse बच्चे ही तो थे हम, तो रोना आ गया. सूर्यप्रकाश के हाथ-पांव फूल गए. हालत ख़राब हो गई उसकी. हम किसी तरह उठ के खड़े हुए. सूर्यप्रकाश ने तुरंत कुर्सी दी. हम तेज़ आवाज़ में रोने का मन बना ही रहे थे, तब तक उसने हाथ जोड़ दिया. बोला प्लीज मत रोओ. हम सोच में पड़ गए. सोचा नहीं ही रोते हैं. तब तक उसने जेब से एक रुमाल निकाल कर मेरी ओर बढ़ा दिया. सही बता रहे हैं उससे गंदा कपड़ा आज तक नहीं देखा हमने. मानना मुश्किल था कि ये रुमाल कभी किसी जनम में सफ़ेद रहा होगा. उस रुमाल से हमें अपने आंसू पोछने होंगे. इस ख्याल से ही लगा कि हमें उल्टी आ जाएगी. उसने रुमाल देते हुए फिर से बोला प्लीज मत रोओ. एक तो उसका मासूम 'गिल्टी' चेहरा, फिर वो काला पड़ चुका रुमाल. दोनों का ख्याल कर हमने रोना बंद कर दिया. घंटी बजी. दूसरी मैडम आ गईं. उनको कुछ और नहीं सूझा तो वो बच्चों को बुला-बुला कर गाना गवाने लगीं. इधर जब हमारा हाथ चोट पर गया और खून दिखा, तब जाकर हमें दर्द महसूस हुआ. अब तो रोना रोक पाना बहुत मुश्किल था. तभी मैडम ने हमें बुला कर गाना गाने को बोला. आखिर हम उनके फेवरेट बच्चे थे. हम चले गए क्लास के ऊंचे वाले स्टेज पर.
उन दिनों हम ऋतिक रोशन के बड़े ज़बरदस्त फैन थे. अरे 4-5 साल की उम्र में ही उनसे शादी करने के लिए घर छोड़कर जाने वाले थे. उसी समय उनकी फिल्म आई थी 'कहो ना प्यार है'. हम बस उसी फिल्म के गाने ही गाते थे. तो वहां जा के हमने रुंधे गले से अपनी फटी बांस जैसी आवाज़ में गाना शुरू किया- "प्यार की कश्ती में है...(थोड़ा सा सुबकना शुरू किया) लहरों की मस्ती में है...(थोड़ा तेज़ सुबकना) पवन के शोर शोर..." इसके आगे हम नहीं गा पाए. और जोर-जोर से रोना शुरू कर दिया. सब लोग हैरान-परेशान.
पूछा गया तो हमने सीधी उंगली बढ़ा दी सूर्यप्रकाश की ओर. फिर हमें ऊपर प्रिंसिपल के रूम में ले जाकर, मरहम-पट्टी कराई गई. और सूर्यप्रकाश के साथ क्या ही होता. आखिर वो भी बच्चा ही था. डांट-डपट के बाद उसे क्लास में दीवार की ओर मुंह करके बैठने की सजा दे दी गई. घर पहुंचने तक हम सब कुछ भूल चुके थे. आधे घंटे की चपड़-चपड़ करने के बाद हमें याद आया कि हमारा तो सर फूटा था. शाम को हमें इंजेक्शन लगा और पट्टी बांधी गई. अगले दिन तक सूर्यप्रकाश मेरे बेस्ट फ्रेंड्स में शामिल हो चुका था. लेकिन पांचवी क्लास में बेचारा फेल हो गया. फिर उससे कभी मिलना नहीं हो पाया. वो मेरे जीवन का पहला और इकलौता 'एक्सीडेंट' था. 4-5 साल की उम्र में बच्चों को बड़े लोगों की भीड़ में हीन भावना का शिकार होना पड़ता है. उनकी मनमानी, बेतुकी कहानियों को कोई भाव नहीं देता, कोई नहीं सुनता. उस उम्र में सिर्फ सूर्यप्रकाश की बदौलत हमें बड़े लोगों की गॉसिप सभाओं में थोड़ी इज्ज़त बख्शी जाती थी. हर बार हम पूरे भाव-अभिनय के साथ पूरी कहानी बताते थे कि आखिर कैसे सूर्यप्रकाश ने हमारा सिर फोड़ा था. उस 4-5 मिनट लोग हमें ध्यान से सुनते थे. बड़ा अच्छा लगता था. थैंक्यू सूर्यप्रकाश.

(ये कैंपस कथा पारुल ने लिखी है.)


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