किस्सा बुलाकी साव-14, मौत हुई पर श्राद्धकर्म नहीं हुआ
बुलाकी साव लॉज में नौकरी करता था. उसी में हम रहते थे. बुलाकी ने लॉज मालिक की मौत का राज मुझे बताया.
Advertisement

symbolic image

अविनाश दास
अविनाश दास पत्रकार रहे. फिर अपना पोर्टल बनाया, मोहल्ला लाइव
नाम से. मन फिल्मों में अटका था, इसलिए सारी हिम्मत जुटाकर मुंबई चले गए. अब फिल्म बना रहे हैं, ‘आरा वाली अनारकली’ नाम से. पोस्ट प्रोडक्शन चल रहा है. कविताएं लिखते हैं तो तखल्लुस ‘दास दरभंगवी’ का होता है. इन दिनों वह किस्से सुना रहे हैं एक फकीरनुमा कवि बुलाकी साव के, जो दी लल्लनटॉप आपके लिए लेकर आ रहा है. बुलाकी के किस्सों की तेरह किस्तें आप पढ़ चुके हैं. जिन्हें आप यहां क्लिक कर पा सकते हैं.
हाजिर है चौदहवीं किस्त, पढ़िए.
मोनू भैया का कैमरा, फोटो खींचते ही बाहर फेंक देता था बाबूजी हम सबको गांव से लहेरियासराय लेकर आ गये थे. बलभद्दरपुर के जिस लॉज में उन्होंने किराये का कमरा लिया था, उस लॉज की मकान मालकिन अपने दो बेटों के साथ लॉज से सटे अपने दोमंजिला मकान में रहती थीं. उनके बेटों के नाम थे मोनू और मिट्ठू. पति अमेरिका में रहते थे. हर साल होली में दरभंगा आते थे. मुझे उनका आना एक बार ही याद है. वह इंदिरा गांधी के मारे जाने वाले साल की होली थी. उन्होंने लॉज के सारे बच्चों की सामूहिक तस्वीर ली थी. चमत्कार यह हुआ था कि कैमरा क्लिक होते ही तस्वीर कैमरे से बाहर आ गयी थी. बाद में मोनू भैया ने बताया था कि इस बार पापा ये कैमरा उन्हें देकर जाएंगे. मैंने मोनू भैया से इसरार किया था कि जब ये कैमरा आपके पास आ जाए, तो एक बार मुझे भी हाथ में लेने दीजिएगा.
इस लॉज का पता बाबूजी को बुलाकी साव ने दिया था. वह उनके यहां नौकरी कर रहा था. बुलाकी साव का काम था गुदड़ी बाज़ार से उनके घर का राशन लाना, बिजली आये तो खंभे पर चढ़ कर तार में कनेक्शन का टांका फंसाना और मोनू भैया और मिट्ठू भैया को स्कूल लेकर जाना और स्कूल से लेकर आना. इसके अलावा भी ढेर सारे छोटे-मोटे काम थे, जो बुलाकी साव करता रहता था. लेकिन किराया हमारी मकान मालकिन खुद ही वसूलती थीं. महीने की आख़िरी तारीख़ को हम उन्हें अपने दरवाज़े खड़े देखते. उन्होंने हमारे साथ कभी कोई बेअदबी नहीं की. वह बहुत सुंदर थीं. हम उन्हें चाची कहते थे. उनके पास ढेर सारी रंगीन साड़ियां थीं. मैंने कभी उनको एक साड़ी में दो बार नहीं देखा था.
उस रात जब मेरी बहन ने लालटेन की लौ को फूंक मारी थी. और हमारा पूरा परिवार ज़मीन पर बिछी चटाई के ऊपर सोने की कोशिश कर रहा था, अचानक किसी के रोने की आवाज़ ज़ोर-ज़ोर से आने लगी. लॉज के हर कमरे से लोग निकल कर बाहर आ गये. रोने की वह आवाज़ मकान मालकिन के घर से आ रही थी. हमारे लॉज के सामने रहने वाली छाया दीदी ने बताया कि खुद चाची रो रही हैं. मैंने ग़ौर किया कि और लोगों के रोने की आवाज़ें भी आ रही हैं. मेरी मां मकान मालकिन केे घर के सीढ़ियां चढ़ रही थीं. मैं भी मां के पीछे-पीछे सीढ़ियां चढ़ कर उनके घर चला गया. वहां सब रो रहे थे और हमारी मकान मालकिन छाती पीट पीट कर रो रही थीं. मेरी मां उनके पास जाकर उन्हें संभालने लगी. मां ने मिट्ठू भैया की ओर देखा. मिट्ठू भैया ने रोते हुए मां को बताया कि पापा नहीं रहे. फिर तो मां की हिचकी भी बंध गयी. मैंने देखा बुलाकी साव एक कोने में सर झुकाये हुए उकड़ू बैठा है.
उस रात के बाद सब कुछ सामान्य था. कोई श्राद्धकर्म नहीं हुआ, न मातम का सिलसिला आगे बढ़ा. बस एक बात हुई कि मैंने अपनी मकान मालकिन को रंगीन साड़ियों में फिर कभी नहीं देखा. उजली-सफ़ेद साड़ी ही उनके जीवन का बाक़ी अध्याय बन गयी. एक दिन मोनू भैया से मैंने पूछा कि वह कैमरा तो पापा की निशानी के तौर पर आपके पास होगी. मोनू भैया ने बताया कि कैमरा पापा ने नहीं दिया. वे अपने साथ उसे लेकर चले गये थे. मैं बेहद उदास हो गया कि अब कभी भी वह कैमरा मैं दोबारा नहीं देख पाऊंगा. ख़ैर, मेेरे दुख अलग थे, पर मेरे पास ढेर सारे सवाल थे, जिनका जवाब बुलाकी साव ही दे सकता था. लेकिन उन्हीं दिनों बुलाकी साव की उस घर से छुट्टी कर दी गयी थी.
एक दिन वह फिर मुझे मिला. अपने गांव से मोनू भैया और मिट्ठू भैया के लिए मीठे जामुन लेकर आया था. जब वह लौट रहा था, तो मैंने उसे पुकारा. वह मेरे पास आया. मैंने पूछा कि अगर बता सको तो पूरी बात बता कर जाओ. मोनू भैया के पापा ने मोनू भैया को वह जादुुई कैमरा क्यों नहीं दिया? श्राद्ध का भोज क्यों नहीं हुआ? मोनू भैया और मिट्ठू भैया दूसरेे दिन से ही क्रिकेट क्यों खेलने लग गये? बुलाकी साव नेे बताया कि इतने सारे सवालों के जवाब तो वह नहीं दे पाएगा, पर एक शर्त पर वह एक राज़ की बात बता सकता है. मैंने कहा- विद्या कसम, मैं किसी को नहीं बताऊंगा. बुलाकी साव ने बताया कि टेलीग्राम यह आया था कि तुमलोग मुझे भूल जाओ. मैं इंडिया कभी नहीं आऊंगा. मैं यहां खुश हूं.
यानी जो मर चुका था, वह दरअसल मरा नहीं था. एक झूठ को सच की तरह ओढ़ लिया गया था. हम दोनों बहुत देर तक चुप रहे. फिर बुलाकी ने एक लंंबी सांस छोड़ी और मुझे एक गीत सुनाया. उस गीत में उदासी की एक कविता छिपी हुई थी. मुझे आज तक वह गीत याद है.
अंबर में धागा लटका हैधागों में सपने लटके हैंसपनों में घुन पीले पीले कितने घने घने लटके हैं
इस दुनिया से उस दुनिया तक सड़क बनी हैहां लेकिन थोड़ी दूरी पर नागफनी हैसन सन सन सन हवा और क्या कनकन्नी हैजिसने देख लिया यह रस्ता वही धनी है
अच्छे अच्छे लोग यहां परदेखो प्रेत बने लटके हैंसपनों में घुन पीले पीले कितने घने घने लटके हैं
मन का सूरज देख रहा है आंखें फाड़ेबाल सुनहरे खुली धूप में कौन संवारेदुख का भिक्षुक खड़ा हुआ है द्वारे द्वारेटूट रहे हैं धीरे धीरेे सुख के तारे
बहुत पुराने बरगद में भीठूंठे हुए तने लटके हैंसपनों में घुन पीले पीले कितने घने घने लटके हैं
आपके पास भी अगर रोचक किस्से, किरदार या घटना है. तो हमें लिख भेजिए lallantopmail@gmail.com पर. हमारी एडिटोरियल टीम को पसंद आया, तो उसे 'दी लल्लनटॉप' पर जगह दी जाएगी.
बुलाकी साव की पिछली सभी कड़ियां पढ़ना चाहते हैं तो नीचे जहां 'किस्सा बुलाकी साव' का बटन बना हुआ है वहां क्लिक करें-