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लड़की देखने गए और वहां वो पहले से ही एक लड़के को रिजेक्ट कर रही थी

दिव्य प्रकाश दुबे की नई बुक 'मुसाफिर कैफे'

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लल्लनटॉप
9 अगस्त 2016 (Updated: 9 अगस्त 2016, 03:30 PM IST) कॉमेंट्स
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दी लल्लनटॉप के दुलरुआ राइटर दिव्य प्रकाश दुबे की नई किताब आ रही है. नाम है मुसाफिर कैफे. इसे छापा है हिंद युग्म ने. वेस्टलैंड के साथ मिलकर. उसकी प्रीबुकिंग चालू हो गई है.हमने कहा, डीपीडी, किताब तो जब आएगी, तब आएगी और पढ़ी जाएगी. मगर हमारे रीडर्स को एडवांस में भी कुछ भुगतान किया जाए. वो बोले, हओ. नतीजा ये रहा. मुसाफिर कैफे के अंश. खास आपके लिए. सबसे पहले. क्योंकि आप हिंदी वेब के सबसे लल्लनटॉप रीडर्स हैं. इसे पढ़िए. आखिरी में लिंक है. उसे छुएंगे तो बम न फटेगा. लिंक खुलेगा. जिसमें किताब का ऑर्डर कर सकते हैं. पसंद आए तो.musafir cafe divya bookकिताबें खरीदा करिए. पढ़ा करिए. यारों-दोस्तों रिश्तेदारों को दिया करिए. किताबें पढ़ने वाले बाकी खुराफातों से कुछ बचे रहते हैं. बाकी तो सब मर जाएंगे. फिर जी जाएंगे. और धरती यूं ही घूमती रहेगी. लीजिए. पढ़िए. और हां. अंश के आखिर में एक वीडियो भी लगा है. हिंदी की एक संभावनाओं से भरी पत्रकार सर्वप्रिया सांगवान मॉडल बनी हैं. किताब के बारे में बता रही हैं. उन्हें भी शाबाशी दें. - सौरभ
मुसाफ़िर Cafe को पढ़ने से पहले बस एक बात जान लेना जरूरी है कि इस कहानी के कुछ किरदारों के नाम धर्मवीर भारती जी की किताब ‘गुनाहों के देवता’ के नाम पर जान-बूझकर रखे गए हैं. इस कोशिश को कहीं से भी ये न समझा जाए कि मैंने धर्मवीर भारती की किताब से आगे की कोई कहानी कहने की कोशिश की है. धर्मवीर भारती के सुधा-चंदर को मुसाफ़िर Cafe के सुधा-चंदर से जोड़कर न पढ़ा जाए. भारती जी जिंदा होते तो मैं उनसे जरूर मिलकर उनके गले लगता, उनके पैर छूता. उनके किरदारों के नाम उधार ले लेना मेरे लिए ऐसा ही है जैसे मैंने उनके पैर छू लिए. मुझे धर्मवीर भारती जी को रेस्पेक्ट देने का यही तरीका ठीक लगा.
कहानी लिखने की सबसे बड़ी कीमत लेखक यही चुकाता है कि कहानी लिखते-लिखते एक दिन वो खुद कहानी हो जाता है.
पता नहीं इससे पहले किसी ने कहा है या नहीं लेकिन सबकुछ साफ-साफ लिखना लेखक का काम थोड़े न है! थोड़ा बहुत तो पढ़ने वाले को भी किताब पढ़ते हुए साथ में लिखना चाहिए. ऐसा नहीं होता तो हम किताब में अंडरलाइन नहीं करते. किताब की अंडरलाइन अक्सर वो फुल स्टॉप होता है जो लिखने वाले ने पढ़ने वाले के लिए छोड़ दिया होता है. अंडरलाइन करते ही किताब पूरी हो जाती है. मुसाफ़िर Cafe की कहानी मेरे लिए वैसे ही है जैसे मैंने कोई सपना टुकड़ों-टुकड़ों में कई रातों तक देखा हो. एक दिन सारे अधूरे सपनों के टुकड़ों ने जुड़कर कोई शक्ल बना ली हो. उन टुकड़ों को मैंने वैसे ही पूरा किया है जैसे आसमान देखते हुए हम तारों से बनी हुई शक्लें पूरी करते हैं. हम शक्लों में खाली जगह अपने हिसाब से भरते हैं इसलिए दुनिया में किन्हीं भी दो लोगों को कभी एक-सा आसमान नहीं दिखता. हम सबको अपना-अपना आसमान दिखता है. बस, ये आखिरी बात बोलकर आपके और कहानी के बीच में नहीं आऊंगा. कहानियां कोई भी झूठ नहीं होतीं. या तो वो हो चुकी होती हैं या वो हो रही होती हैं या फिर वो होने वाली होती हैं.

क से कहानी

“हम पहले कभी मिले हैं?” सुधा ने बच्चों जैसी शरारती मुस्कुराहट के साथ कहा, “शायद!” “शायद! कहां?” मैंने पूछा. सुधा बोली, “हो सकता है कि किसी किताब में मिले हों.” “लोग कॉलेज में, ट्रेन में, फ्लाइट में, बस में, लिफ्ट में, होटल में, कैफे में तमाम जगहों पर कहीं भी मिल सकते हैं लेकिन किताब में कोई कैसे मिल सकता है?” मैंने पूछा. इस बार मेरी बात काटते हुए सुधा बोली, “दो मिनट के लिए मान लीजिए. हम किसी ऐसी किताब के किरदार हों जो अभी लिखी ही नहीं गई हो तो?” ये सुनकर मैंने चाय के कप से एक लंबी चुस्की ली और कहा, “मजाक अच्छा कर लेती हैं आप!”

ब से बेटा शादी कर ले

चंदर के मोबाइल पर पापा के नंबर से एक SMS आया, जिसमें एक मोबाइल नंबर लिखा हुआ था. अभी वो नंबर पढ़ ही रहा था कि इतने में उसके पापा के फोन से मम्मी का फोन आया. कॉल में अपना और चंदर का हालचाल लेने और देने के अलावा बस इतना बताया गया कि संडे 12 बजे कॉफी हाउस में एक लड़की से मिलने जाना है. ये भी बताया गया कि लड़की वहां अकेले आएगी. हालांकि, लड़की के अकेले आने वाली बात इतनी बार झूठ निकल चुकी है कि चंदर ने ये मानना ही छोड़ दिया है कि कोई लड़की शादी के लिए मिलने अकेले आ सकती है. लड़की के साथ उसकी कोई ऐसी क्लोज फ्रेंड आई हुई होती है जिसका जन्म केवल और केवल आपकी शादी के लिए आपका वायवा लेने के लिए होता है. खैर, चंदर मन मारकर कॉफी हाउस टाइम से पंद्रह मिनट पहले ही पहुंच गया. वहां देखा तो एक टेबल पर एक लड़का और लड़की साथ बैठे हुए थे. उसने घड़ी देखी और सोचा कि 15 मिनट देख ले फिर 12 बजे फोन कर लेगा. अब जब चंदर अपना मोबाइल बाहर निकालकर बार-बार उसको अनलॉक और लॉक कर रहा था उसी दौरान उस कैफे में बैठी लड़की की आवाज तेज होने लगी. चंदर को जो कुछ सुनाई पड़ा वो कुछ ऐसा था,
“अच्छा, तो शादी के बाद अगर तुम्हें 2 साल के लिए अमेरिका जाना पड़ेगा, तो मैं यहां अपना कैरियर छोड़ के तुम्हारे साथ चलूं! तुम सॉफ्टवेयर इंजीनियर्स को क्या लगता है कि अमेरिका जाना कैरियर है! नहीं, तुम लोग समझते क्या हो? तुम लोगों को शादी के बाद जब लड़की से केवल बच्चे पलवाने हैं तो वर्किंग वुमेन चाहिए ही क्यूं, नहीं बताओ? ...ब्ला ब्ला ब्ला.”
चंदर को उस लड़की की बात सुनकर मजा आने लगा. वो कम-से-कम 20 मिनट नॉन स्टॉप बोली होगी. इस बीच में बंदा बस ‘हम्म’ बोलकर उठकर जा चुका था. इसी बीच चंदर की घड़ी पर नजर गई 12.15 बज चुके थे. चंदर ने सोचा फोन मिलाकर बता दे कि वो पहुंच चुका है. चंदर ने फोन मिलाया और उधर की आवाज सुने बिना ही बोल दिया, “हैलो, बस इतना बताना था कि मैं कैफे पहुंच गया हूं. आप आराम से आ जाइए.” “मैं भी कैफे में हूं.” “अच्छा, मैं तो कैफे में 20 मिनट से हूं!” “मैं भी.”

ए से एक दिन की बात

चंदर को समझ में आ चुका था कि ये वही लड़की है जिससे वो शादी के लिए मिलने आया है. चंदर पलटकर उसकी टेबल तक गया. इससे पहले वो कुछ समझाती या बोलती चंदर ने कहा, “पता नहीं आपको सुनकर कैसा लगेगा लेकिन मैं भी सॉफ्टवेयर इंजीनियर हूं.” “हा हा हा. सॉरी, आपको वेट करना पड़ा, I’m सुधा.” “अरे कोई बात नहीं. बहुत अच्छा बोलीं आप. I’m चंदर.” “आप बातें सुन रहे थे?” “सुन नहीं रहा था, सुनाई पड़ रही थीं.” “मैं बहुत जोर से बोल रही थी क्या?” “हां, और क्या!” “पता नहीं कहां-कहां से आ जाते हैं, खैर!” “आप बुरा न मानो तो एक बात पूछूं?” “हां पूछिए.” “मेरे बाद भी कोई मिलने आ रहा है तो आप बता दीजिए. मैं उस हिसाब से टाइम एडजस्ट कर लूंगा.” “अरे नहीं नहीं, एक दिन में दो लड़के काफी हैं.” “क्या करती हैं आप?” “मैं लॉयर हूं, फैमिली कोर्ट में प्रैक्टिस करती हूं. आप कह सकते हो डिवोर्स एक्सपेर्ट हूं.” “Wow! मैं आज पहली बार किसी लड़की लॉयर से मिल रहा हूं. सही में डिवोर्स करवाती हो क्या?” “सही बताऊं तो डिवोर्स कोर्ट में आने से पहले ही हो चुका होता है. हम तो बस सरकारी स्टैम्प लगाने में और हिसाब-किताब करने में मदद करते हैं.” “क्यूं करते हैं लोग डिवोर्स?” “कोई एक वजह थोड़े है!” “फिर भी सबसे ज्यादा किस वजह से होता है?” “क्यूंकि लोगों को पता नहीं होता कि उन्हें लाइफ से चाहिए क्या.” “तुम्हें पता है, तुम्हें लाइफ से चाहिए क्या?” “थोड़ा-बहुत शायद और तुम्हें?” “मुझे नहीं पता क्या चाहिए.” “छोड़ो, कहां डिवोर्स की बातें करने लगे हम!” “तो रोज कोर्ट में इतने डिवोर्स देखकर भी शादी करना चाहती हो?” “सच बताऊं तो मैं शादी करना ही नहीं चाहती. घर वाले परेशान न करें इसलिए मिलने आ जाती हूं और कोई-न-कोई बहाना बना के लड़के रिजेक्ट कर देती हूं.” “सॉफ्टवेयर इंजीनियर को तो बिना मिले ही रिजेक्ट कर दिया करो. मिलने का कोई टंटा ही नहीं.” “हां, अगली बार से यही करुंगी.” “अच्छा, तुम्हें रिजेक्ट करना ही है तो एक हेल्प कर दो. तुम अपने घरवालों को पहले ही बोल दो कि मैं पसंद नहीं आया. फालतू ही मेरे घरवाले पीछे पड़े रहेंगे.” “ठीक है डन. शादी नहीं करनी तुम्हें?” “नहीं.” “क्यूं, प्यार-व्यार वाला चक्कर है?” “हां, शायद.. नहीं.. शायद... पता नहीं यार... और तुम्हारा?” “था चक्कर, अब नहीं है. मैं शादी-वादी में बिलिव नहीं करती.” “फिर अपने घरवालों को समझा दो न, कितने सॉफ्टवेयर वाले लड़कों की बैंड बजाओगी!” “हां, सही कह रहे हो. घरवालों को यही समझाऊंगी.” “तुम तो आज समझा दोगी, मुझे पता नहीं कितने संडे खराब करने पड़ेंगे. कोई फुलप्रूफ तरीका बता दो.” “मुझे पता होता कोई तरीका तो आज उस इडियट से मिलने थोड़े आती!” “जाने के बाद मुझे भी इडियट बोलोगी तुम!” “हां शायद, कोई दिक्कत है?” “नहीं, कोई दिक्कत नहीं है. चलो मैं चलता हूं. Good. Keep in touch, nice meeting with you.” “No point saying keep in touch, we hardly know each other.” “मेरे बारे में जानने लायक बस इतना है कि मुझे अपना काम बिल्कुल भी पसंद नहीं है. 2-3 साल अमेरिका में रहकर नौकरी कर चुका लेकिन कभी वहां मन नहीं लगा. अब अक्सर दो-तीन साल के लिए अमेरिका जाने के मौके आते हैं तो हर बार मना कर देता हूं, पता नहीं क्यों. क्रिकेट मैच के अलावा टीवी बिल्कुल भी नहीं देखता. हर वीकेंड अकेले मूवी देखता हूं, थिएटर देखना पसंद है. किताबें खरीदता ज्यादा हूं पढ़ता कम. सुबह का अखबार बिना चाय के नहीं पढ़ पाता, आगे लाइफ में क्या करना है ज्यादा आइडिया नहीं है. अब मैंने इतना मुंह खोल ही दिया है तो तुम भी अपने बारे में कुछ बता ही दो.” “PG में रहती हूं. वहां रहने वाली मोस्टली लड़कियों से मेरी नहीं पटती. अपना काम बहुत पसंद है मुझे. इंडिया की टॉप लॉयर बनना चाहती हूं. मूवी केवल हॉल में देखना पसंद है टीवी पे नहीं. वीकेंड पे शौकिया थिएटर करती हूं. बचपन से ही थोड़ा-सा एक्टिंग-वेक्टिंग का कीड़ा है और हां, सबसे important, वर्जिन नहीं हूं, और तुम?” “मैं क्या?” “वर्जिन हो तुम?” “अरे छोड़ो, ये बताओ एक बज गए, कहीं लंच-वंच कर लें या तुम्हें कहीं निकलना है?” “मुझे साउथ इंडियन पसंद है, वो खाएं?” “मुझे साउथ इंडियन उतना पसंद नहीं है लेकिन चलो कौन-सा तुम्हारे साथ उम्रभर खाना है!” “अरे नहीं पसंद तो कुछ और खा लेते हैं.” “अरे नहीं, चलेगा यार. एक ही दिन की तो बात है!” ये चंदर और सुधा की पहली मुलाकात थी. पहली हर चीज की बात हमेशा कुछ अलग होती है क्यूंकि पहला न हो तो दूसरा नहीं होता, दूसरा न हो तो तीसरा, इसीलिए पहला कदम ही जिंदगी भर रास्ते में मिलने वाली मंजिलें तय कर दिया करता है. पहली बार के बाद हम बस अपने आप को दोहराते हैं और हर बार दोहरने में बस वो पहली बार ढूंढ़ते हैं. मुसाफिर कैफे का प्रोमो भी देख लीजिए. https://www.youtube.com/watch?v=U_OzTn25hlk मुसाफिर कैफे खरीदना चाह रहे हैं तो प्री-बुकिंग के लिए यहां चटका लगाएं.

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