अनिल देशमुख ही नहीं, NCP के ये मंत्री भी बड़े-बड़े आरोपों के घेरे में आ चुके हैं
करोड़ों के घोटाले से लेकर रेप के आरोप तक लगे हैं एनसीपी के मंत्रियों पर.
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एनसीपी कोटे से सरकार में मंत्री अनिल देशमुख पर 100 करोड़ की उगाही करवाने का आरोप लगा है. इससे पहले भी NCP के नेताओं पर गंभीर आरोप लगते रहे हैं.
आरोपों का घेरा: अनिल देशमुख की राजनीतिक कुशलता और इमेज को तगड़ा झटका तब लगा, जब पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कार कारोबारी मनसुख हिरेन की मौत को पुलिस अधिकारी सचिन वाझे से जोड़ा. वाझे इसी मामले में अब एनआईए की हिरासत में हैं. शुरुआत में तो वाझे का बचाव खुद अनिल देशमुख ने किया, लेकिन जब मामला हाथ से निकलने लगा तो उन्होंने मुंबई के पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह का ट्रांसफर कर दिया. यहां तक तो ठीक था. लेकिन इसके बाद परमबीर सिंह ने अनिल देशमुख पर उगाही करवाने का बड़ा आरोप लगा दिया. परमबीर सिंह ने 20 मार्च को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के नाम चिट्ठी लिखी. आरोप लगाया कि उनके गृह मंत्री पिछले कई महीने से मुंबई पुलिस के तमाम वरिष्ठ अधिकारियों को बुलाकर हर महीने 100 करोड़ रुपये इकट्ठा करने के लिए कह रहे हैं.

अनिल देशमुख (दाएं) ने कहा है कि परमबीर सिंह (बाएं) के लगाए सभी आरोप ग़लत हैं. वे इन आरोपों को साबित करें. मैं उन पर मानहानि का दावा करने जा रहा हूं. (फाइल फोटो- PTI)
हालांकि ये पहली बार नहीं है जब किसी सीनियर ऑफिसर ने देशमुख पर निशाना साधा है. अप्रैल 2020 में महाराष्ट्र इलेक्ट्रिसिटी रेग्युलेट्री कमिशन के चेयरमैन आनंद कुलकर्णी ने भी देशमुख के ख़िलाफ़ सोशल मीडिया पोस्ट लिखी थी. दावा किया था कि उन्होंने देशमुख के पिछले कामों पर होमवर्क किया है. सही समय आने पर वो इन जुटाई गई जानकारियों को सार्वजनिक करेंगे. हालांकि अभी तक उनकी तरफ से कोई खुलासा नहीं हुआ.
अनिल देशमुख महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र से हैं. वो नागपुर ज़िले के कटोल के पास वाडविहिरा गांव के हैं. उन्होंने साल 1995 में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर विधायकी का चुनाव लड़ा और जीता. तब उन्होंने शिवसेना-बीजेपी सरकार का समर्थन किया. बदले में मंत्री पद लिया. बाद में अपना रास्ता बदलकर वो राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी यानी एनसीपी के साथ हो लिए. शरद पवार से करीबी होने के कारण कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना की मिलीजुली सरकार में उन्हें गृहमंत्री जैसा बड़ा पद दिया गया. छगन भुजबल छगन भुजबल की कहानी बॉलिवुड की किसी टिपिकल स्क्रिप्ट सी है. निचले तबके से उठकर जन राजनीति में आना और एक वक्त सीएम की कुर्सी का दावेदार तक बन जाना. उसके बाद जेल के उस सेल में ही बंद किया जाना, जो गृह मंत्री रहने के दौरान उन्होंने खुद बनवाई थी. भ्रष्टाचार और मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में उन्हें 14 मार्च, 2016 को गिरफ्तार किया गया. 2 साल से भी ज्यादा समय जेल में रहे. मई, 2018 में जमानत पर छूटे. इससे पहले जमानत याचिका पांच बार खारिज हुई. खराब सेहत और बढ़ती उम्र के आधार पर जमानत मिल सकी. छगन भुजबल अभी महाराष्ट्र की उद्धव सरकार में फूड, सिविल सप्लाई मिनिस्टर हैं.
आरोपों का घेरा: 19 फरवरी, 2009 को तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण की देखरेख में इंफ्रास्ट्रक्चर पर एक कैबिनेट उप-समिति ने टेंडर प्रक्रिया के लिए एक फर्म की नियुक्ति की थी. लेकिन राज्य के एंटी करप्शन ब्यूरो (ACB) ने तत्कालीन लोक निर्माण विभाग मंत्री छगन भुजबल और उनके परिजनों पर ही आरोप लगा दिए. आरोप ये कि अपने एनजीओ (छगन भुजबल चैरिटेबल ट्रस्ट) के लिए जमीन सौदे के बदले 2.5 करोड़ रुपये रिश्वत ली गई. ये रिश्वत इंडियाबुल्स से दान के रूप में ली गई.
मामले ने जबरदस्त तूल पकड़ा. भुजबल और इंडियाबुल्स की डील प्रवर्तन निदेशालय (ED) के भी निशाने पर आ गई. जैसे ही महाराष्ट्र में बीजेपी सत्ता में आई, ACB ने भुजबल, उनके भतीजे समीर और पीडब्ल्यूडी से जुड़े कुछ अन्य कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की. ये साल था 2015. आरोप था कि भुजबल और उनके सहयोगियों ने मिलकर करीब 280 करोड़ रुपए का घोटाला किया. भुजबल और उनके भतीजे समीर भुजबल को जेल जाना पड़ा.

एनसीपी नेता ने भ्रष्टाचार के मामलों में 2 साल से ज्यादा जेल काटी, और अब फिर से मंत्री हैं.
इसके अलावा छगन भुजबल पर बिना टेंडर के ही कंपनी को दिल्ली में महाराष्ट्र सदन बनाने का ठेका देने का आरोप लगा. इस मामले में छगन भुजबल और उनके भतीजे समेत 14 लोगों पर चार्जशीट दर्ज की गई.
भुजबल पर आरोपों की फेहरिस्त यहीं खत्म नहीं होती. उन पर 44 करोड़ की राशि से जुड़ा एक और मामला है. इसमें भुजबल परिवार की एक रियलिटी कंपनी ने हाउसिंग स्कीम निकाली थी. उसमें 2,300 लोगों ने घर बुक किए थे. लेकिन वक्त पर डिलीवरी नहीं दी गई. इसे लेकर जून 2015 में उनके खिलाफ मामला दर्ज किया गया. अजित पवार एनसीपी में अजित पवार को शरद पवार के बाद सबसे कद्दावर नेता माना जाता था. महाराष्ट्र की बारामती सीट पर पिछले 52 सालों में विधायक की कुर्सी पर सिर्फ दो ही लोग बैठे हैं. दोनों ही पवार परिवार से हैं. शरद पवार और अजित पवार. अब तक दोनों इस सीट से छह-छह बार विधायक बन चुके हैं. दोनों ने मिलाकर आठ बार कांग्रेस और चार बार एनसीपी के झंडे पर जीत हासिल की. अजित पवार की अहमियत इससे भी समझी जा सकती है कि जब 2019 में बीजेपी और एनसीपी के बीच सरकार बनाने का थ्रिलर चला तो नजरें इन्हीं पर टिकी थीं. उन्होंने डिप्टी सीएम की कुर्सी संभाली, भ्रष्टाचार के कुछ केसेज पर क्लीन चिट ली और वापसी कर ली. हालांकि बाद में महाराष्ट्र की एसीबी ने इस पर सफाई दी.
आरोपों का घेरा: ये 2011-12 का मामला है. सिंचाई विभाग में चीफ इंजीनियर रहे विजय पंढारे की लिखी एक चिट्ठी से घोटाले का खुलासा हुआ. इसमें आरोप लगाया गया था कि बांध बनाने में कई तरह का फर्जीवाड़ा हो रहा है. अनुमानित लागत बढ़ाई जा रही है. इसकी CBI जांच होनी चाहिए. उस समय कांग्रेस-NCP की गठबंधन सरकार थी. सिंचाई विभाग NCP के पास था. अजित पवार लंबे समय तक इसके मंत्री रहे. बाद में CAG की एक रिपोर्ट आई. इसमें महाराष्ट्र के जल संसाधन मंत्रालय में हुईं गड़बड़ियां गिनाई गईं. CAG रिपोर्ट के मुताबिक, जल संसाधन मंत्रालय लंबे समय के लिए योजना नहीं बना रहा है, न ही प्राथमिकता के आधार पर प्रोजेक्ट्स को चुन रहा है. पर्यावरण से जुड़ी मंज़ूरी भी सही समय पर नहीं मिल रही हैं. प्रोजेक्ट्स लटक रहे हैं. इससे लागत बढ़ रही है. फिर इकॉनमिक सर्वे की एक रिपोर्ट में बताया गया कि 2001-02 से 2011-12 के बीच सिंचाई के लिए 70 हज़ार करोड़ रुपये ख़र्च किए गए. मगर राज्य की सिंचाई क्षमता में बस 0.1 फीसद का इज़ाफा हुआ. तब कहा गया था कि ये सिंचाई घोटाला लगभग 35 हज़ार करोड़ रुपये का हो सकता है.

ये 23 नवंबर 2019 की तस्वीर है. महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के आगे शपथ लेने के बाद फडणवीस और अजित पवार ने हाथ मिलाया. लेकिन 26 नवंबर को ही दोनों को इस्तीफ़ा देना पड़ा. (फोटो: PTI)
अजित पवार पर आरोप लगे कि पहले प्रोजेक्ट्स को कम लागत का बताकर मंज़ूरी दे दी जाती है. फिर उसमें बदलाव करके लागत बढ़ा दी जाती है. जून 2009 से अगस्त 2009 के बीच के सिर्फ तीन महीनों में विदर्भ इलाके के अंदर चल रहीं 38 सिंचाई परियोजनाओं का बजट बढ़ा दिया गया. 6,672 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 26,772 करोड़ रुपये. इसी पर बवाल हो गया. क़रीब 70 हज़ार करोड़ के अनुमानित घोटाले का एक हिस्सा ये भी बताया गया. धनंजय मुंडे महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस की पिछली सरकार के 5 वर्षों के दौरान सदन में एक नेता ऐसा था, जिसने सत्ताधारी पार्टी बीजेपी की नाक में दम कर रखा था. इस नेता को बीजेपी सरकार पर हमलों की अगुवाई करने के लिए जाना जाता था. वह कभी रिश्वत और अनियमितताओं के आरोप लगाता तो कभी मंत्रियों के इस्तीफे की मांग करता. इस नेता का नाम है धनंजय मुंडे. वह फडणवीस सरकार के वक्त राज्य विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष थे. फिलहाल उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं.
आरोपों का घेरा: 45 साल के धनंजय मुंडे पर इस साल जनवरी में रेप जैसा गंभीर आरोप लगा. एक प्लेबैक सिंगर ने मुम्बई पुलिस कमिश्नर को इस बारे में लिखा था. आरोप लगाया था कि धनंजय मुंडे ने उसकी बहन से शादी की, लेकिन 2006 में कई बार उसका बलात्कार किया था. मुंडे ने उससे प्यार का इज़हार किया. कहा था कि वो उसे बॉलीवुड में प्लेबैक सिंगर के तौर पर लॉन्च करा सकते हैं. शिकायतकर्ता का आरोप था कि वो मुंडे से पहली बार अपनी बहन के घर इंदौर में 1997 में मिली थी. तब वह सिर्फ 16-17 साल की थी. मुंडे और उसकी बहन ने 1998 में शादी की. कमिश्नर को लिखे पत्र में आरोप लगाए कि मुंडे ने 2006 में उसके साथ यौन संबंध बनाने शुरू कर दिए थे. मुंडे ने दावा किया कि ये सब आरोप झूठे हैं. सिर्फ उन्हें ‘बदनाम और ब्लैकमेल’ करने के लिए लगाए गए थे.

महाराष्ट्र सरकार में सोशल जस्टिस मिनिस्टर धनंजय मुंडे पर रेप के आरोप लगे हैं (फोटो- फेसबुक)
मुंडे ने एक फेसबुक पोस्ट में सफाई देते हुए कहा कि 2003 में वह शिकायतकर्ता की बहन के साथ आपसी सहमति से रिश्ते में थे. उनके एक बेटा और एक बेटी हुए. विधायक ने दावा किया कि उनका परिवार, पत्नी और दोस्त, इस रिश्ते के बारे में जानते थे. उन्होंने इन बच्चों को स्वीकार कर लिया और मुंडे परिवार का नाम दिया है.
इस मामले पर एनसीपी के सर्वेसर्वा शरद पवार का कहना था कि मुझे पता चला कि उस महिला के खिलाफ इसी तरह की शिकायत अलग-अलग राजनीतिक दलों के नेताओं ने भी की है. पहले मुम्बई पुलिस इस मामले की जांच कर ले. जांच पूरी होने के बाद ही हम इस पर ग़ौर करेंगे कि क्या कार्रवाई करनी है. बहरहाल मुम्बई पुलिस ने मुंडे के खिलाफ शिकायत स्वीकार कर ली है, लेकिन प्राथमिकी दर्ज नहीं की है.