The Lallantop
Advertisement

वाजपेयी के वो पांच बड़े फैसले, जिनके लिए देश हमेशा उन्हें याद रखेगा

और जिन फैसलों में गरीब-अमीर दोनों ही शामिल थे.

Advertisement
Img The Lallantop
तीन बार भारत के प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी का 93 साल की उम्र में 2018 में निधन हो गया था.
font-size
Small
Medium
Large
25 दिसंबर 2020 (Updated: 25 दिसंबर 2020, 05:30 IST)
Updated: 25 दिसंबर 2020 05:30 IST
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share
16 अगस्त 2018. शाम के पांच बजकर पांच मिनट हो रहे थे. दिल्ली के सबसे बड़े अस्पताल एम्स के बाहर देश-दुनिया की मीडिया के साथ ही नेताओं का भी जमावड़ा लगा हुआ था. सबको उम्मीद थी कि भारत के पूर्व प्रधानमंत्री रहे वाजपेयी को लेकर कुछ अच्छी खबर आएगी. खबर आई भी, लेकिन बुरी खबर आई. भारत के तीन बार के प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी का 93 साल की उम्र में निधन हो गया. पूर्व प्रधानमंत्री को सभी ने अपनी-अपनी तरह से याद किया, लेकिन वाजपेयी ने बतौर प्रधानमंत्री ऐसे काम किए थे, जिसके लिए देश और देश के लोग ताउम्र उन्हें याद करेंगे. 1. सर्व शिक्षा अभियानsarva-shiksha-abhiyan_160818-101718 नेता बनने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी से एक बार पूछा गया था कि आप सबसे ज्यादा क्या मिस करते हैं. वो बोले, कविताएं नहीं लिख पाता हूं. पढ़ना-लिखना मिस करता हूं. इसी पढ़ने-लिखने की ही जिद थी कि उनके कार्यकाल में हर घर में पढ़ाई-लिखाई पहुंचाने की रूपरेखा बन पाई. 2001 में बतौर प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सर्व शिक्षा अभियान नाम की एक योजना लॉन्च की. इस योजना का मुख्य उद्देश्य था 6 से 14 साल के बच्चों को मुफ्त में शिक्षा देना. इसके लिए वाजपेयी सरकार को भारतीय संविधान में 86वां संशोधन करना पड़ा. इस संशोधन के बाद देश के हर बच्चे को पढ़ने का संवैधानिक अधिकार मिल गया. इसी वजह से इस योजना की टैग लाइन रखी गई थी कि सब पढ़ें-सब बढ़ें. इस योजना का नतीजा हुआ कि 4 साल के अंदर ही स्कूल से बाहर रहने वाले बच्चों की संख्या में 60 फीसदी की गिरावट देखने को मिली थी. हालांकि इस योजना के बीज 1993-94 में ही नरसिम्हा राव सरकार में बो दिए गए थे. इस दौरान डिस्ट्रिक्ट प्राइमरी एजुकेशन प्रोग्राम चला था, जिसमें 18 राज्यों के 272 जिलों को कवर किया जाना था. लेकिन वाजपेयी सरकार ने इसे पूरे देश में लागू किया और बच्चे-बच्चे की जुबान पर नारा आ गया स्कूल चले हम. 2. बड़े शहरों से लेकर छोटे गांव भी जुड़ गए सड़क सेswarnim वाजपेयी सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक उपलब्धि थी सड़क. देश के महानगरों से लेकर छोटे गांव तक सड़कों से जोड़े गए. सबसे पहली योजना थी नॉर्थ-साउथ और ईस्ट-वेस्ट कॉरीडोर. इस योजना की शुरुआत 1998 में हुई थी. इसके तहत उत्तर में श्रीनगर से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी और पूर्व में असम के सिलचर से लेकर पश्चिम में गुजरात के पोरबंदर को जोड़ा जाना था. इस योजना के तहत कुल 7142 किलोमीटर लंबी सड़क बननी थी. 31 मार्च 2018 तक 6875 किलोमीटर लंबी सड़क बन गई थी. दूसरी सबसे बड़ी योजना स्वर्णिम चतुर्भुज योजना थी, जिसके तहत देश के चार प्रमुख महानगरों यानी कि उत्तर में दिल्ली, दक्षिण में चेन्नई, पूर्व में कोलकाता और पश्चिम में मुंबई को जोड़ा गया. इस योजना की शुरुआत 2001 में हुई थी. इस पूरी परियोजना की लंबाई 5846 किलोमीटर है, जो देश के 13 राज्यों से होकर गुजरता है. अगर आंकड़ों में बात करें तो इसे चार चरणों में बांटा गया है. पहला चरण दिल्ली से कोलकाता का है, जो 1454 किमी लंबा है. इसके तहत दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य जुड़ते हैं. दूसरा चरण कोलकाता से चेन्नई का है, जिसकी लंबाई 1684 किमी है. इसके तहत पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, ओडिशा और तमिलनाडु राज्य जुड़ते हैं. तीसरे चरण की लंबाई 1290 कि.मी. है, जिसके जरिए महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु जुड़ते हैं. वहीं चौथा चरण 1418 किमी का है, जो महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और नई दिल्ली को जोड़ता है. इसके अलावा गांवों को सड़कों से जोड़ने के लिए वाजपेयी ने प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना शुरू की थी. 25 दिसंबर 2000 को शुरू हुई इस योजना के तहत 2003 तक उन गांवों को सड़कों से जोड़ना था, जिनकी आबादी 1000 या उससे ज्यादा थी. वहीं 2007 तक 500 या उससे अधिक की आबादी वाले गांवों को सड़कों से जोड़ने का लक्ष्य था. पहाड़ी, आदिवासी और मरुस्थल वाले इलाके में 500 या उससे अधिक की आबादी वाले गांवों में 2003 तक सड़क पहुंचनी थी. वहीं 2007 तक 250 या उससे अधिक की आबादी वाले गांवों में सड़क पहुंचने की योजना थी. 3. अंत्योदय अन्न योजनाAntyodaya-Anna-Yojana-Scheme देश के गरीबों के लिए वाजपेयी सरकार की ओर से चलाई गई ये सबसे बड़ी योजना थी. 25 दिसंबर 2000 को वाजपेयी के जन्मदिन पर इस योजना की शुरुआत की थी. इस योजना के तहत गरीबों में भी ज्यादा गरीब लोगों को रियायती दर पर गेहूं और चावल उपलब्ध करवाना था. इसके तहत 1 करोड़ परिवारों को 2 रुपये प्रति किलो की दर से 35 किलो गेहूं और तीन रुपये प्रति किलो की दर पर चावल उपलब्ध करवाना था. इसके बाद 2003 में इस योजना को बढ़ाया गया और 50 लाख परिवार जोड़ दिए गए. 2004 में योजना एक बार फिर से बढ़ाई गई और फिर से 50 लाख परिवारों को जोड़ा गया. कुल मिलाकर इस योजना के तहत 2 करोड़ परिवारों को सस्ती कीमत पर राशन मुहैया करवाना था. इन 2 करोड़ परिवारों की पहचान करने के लिए वाजपेयी सरकार ने पूरे देश में व्यापक स्तर पर सर्वे करवाए थे और उनके लिए राशन कार्ड बनवाए थे. 4. मोबाइल क्रांतिmobile1 हमारे-आपके हाथ में जो मोबाइल फोन है, उसके पीछे सबसे बड़ा फैसला पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी का है. 1999 में जब वाजपेयी तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री बने, तो उन्होंने नई टेलिकॉम पॉलिसी लॉन्च की. इस पॉलिसी का मकसद था पारदर्शिता और कॉम्पिटीशन को बढ़ावा देना. उस वक्त देश की दो बड़ी कंपनियां बीएसएनएल और एमटीएनएल ही थीं, जो ग्रामीण इलाकों में टेलिफोन का विस्तार नहीं कर पा रही थीं. इसे देखते हुए देश में प्राइवेट प्लेयर्स को मौका देने की नीति बनाई गई. प्राइवेट प्लेयर्स आए और फिर देश के गांव-गांव में मोबाइल सेवाएं पहुंच गईं. पीसीओ का कल्चर खत्म हो गया और हर हाथ में मोबाइल आ गया. वाजपेयी की ही देन थी कि मोबाइल कंपनियों को प्रति सेकेंड के हिसाब से भी कॉल दरें तय करनी पड़ीं. 5. डिसइन्वेस्टमेंटDisinvestment जब वाजपेयी प्रधानमंत्री बने, तो सरकार सुई बनाने से लेकर होटल चलाने तक का काम खुद के जिम्मे रखती थी. इनमें से कई कंपनियां फायदे में थीं, तो कई कंपनियां घाटे में. जो कंपनियां घाटे में थीं, उन्हें बचाने के लिए सरकार वक्त-वक्त पर राहत पैकेज देती रहती थीं. जब वाजपेयी पीएम बने, तो उन्होंने तय किया कि जो कंपनियां सुरक्षा के लिहाज से बेहद ज़रूरी न हों, उन्हें सरकार निजी हाथों में सौंप दे. इसके लिए वाजपेयी सरकार ने एक नया मंत्रालय बनाया, जिसे नाम दिया गया Department of Investment and Public Asset Management. मंत्रालय बनने के बाद वाजपेयी सरकार ने भारत एल्युमिनियम कंपनी, हिंदुस्तान जिंक, इंडियन पेट्रोकेमिकल्स कॉरपोरेशन लिमिटेड और विदेश संचार निगम लिमिटेड जैसी घाटे वाली कंपनियों की सरकारी हिस्सेदारी को निजी हाथों में बेच दिया. इस योजना से फाइटर जेट बनाने वाली कंपनी जैसे हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड को दूर रखा गया. घाटे में चल रही कंपनियों को बेचकर वाजपेयी सरकार ने 28,282 करोड़ रुपये जुटाए थे.
ये भी पढ़ें:उस दिन इतने गुस्से में क्यों थे अटल बिहारी वाजपेयी कि ‘अतिथि देवो भव’ की रवायत तक भूल गए!अटल ने 90s के बच्चों को दिया था नॉस्टैल्जिया ‘स्कूल चलें हम’जब केमिकल बम लिए हाईजैकर से 48 लोगों को बचाने प्लेन में घुस गए थे वाजपेयीजिसने सोमनाथ का मंदिर तोड़ा, उसके गांव जाने की इतनी तमन्ना क्यों थी अटल बिहारी वाजपेयी को?अटल बिहारी वाजपेयी की कविता- ‘मौत से ठन गई’वीडियो में देखिए वो कहानी, जब अटल ने आडवाणी को प्रधानमंत्री नहीं बनने दिया

thumbnail

Advertisement