मुसलमानों के 'दुश्मन' RJD-कांग्रेस के साथ गठबंधन क्यों चाहती है ओवैसी की पार्टी AIMIM?
AIMIM और असदुद्दीन ओवैसी खुद को मुसलमानों के हितैषी के तौर पर प्रोजेक्ट करते हैं. और कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी पार्टियों पर मुसलमानों को ठगने का आरोप लगाते हैं. लेकिन बिहार चुनाव से पहले प्रदेश यूनिट ने आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव को चिट्ठी लिखकर महागठबंधन का हिस्सा बनने की इच्छा जाहिर की है.

बिहार में चुनावी सरगर्मी तेज हो गई है. सियासत नए करवट लेने लगी है. राजद (RJD) और कांग्रेस (Congress) पर मुस्लिमों की 'उपेक्षा' का आरोप लगाने वाली असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी अब महागठबंधन का हिस्सा बनना चाहती है. इसके लिए AIMIM के बिहार प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान ने राजद सुप्रीमो लालू यादव को एक पत्र भी लिखा है.
लालू प्रसाद यादव को लिखे पत्र में अख्तरुल ईमान ने लिखा,
साल 2015 से AIMIM बिहार की राजनीति में एक्टिव है. पहले दिन से पार्टी का प्रयास रहा है कि सेकुलर वोटों का बंटवारा न हो. क्योंकि इसके चलते ही सांप्रदायिक पार्टियों को सत्ता में आने का मौका मिलता है. इसी उद्देश्य से हमने पिछले विधानसभा और लोकसभा चुनाव के समय महागठबंधन का हिस्सा होने की इच्छा जताई थी. लेकिन हमारा प्रयास सफल नहीं हो सका. अब 2025 का चुनाव सामने है. हमारी इच्छा है कि AIMIM के महागठबंधन में शामिल किया जाए.
AIMIM प्रदेश अध्यक्ष और विधायक ने बताया कि उन्होंने इस मसले को लेकर राजद, कांग्रेस और लेफ्ट के कई नेताओं से फोन पर बातचीत भी की है. उन्होंने कहा कि अब गेंद राजद और कांग्रेस के पाले में है. AIMIM को गठबंधन में शामिल करने का निर्णय उनको ही लेना है.

AIMIM की इस चिट्ठी पर राजद सुप्रीमो लालू यादव या फिर नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है. लेकिन AIMIM के इस कदम से सवाल उठता है कि मुसलमानों के मसले पर ‘पानी पी पीकर’ राजद और कांग्रेस को कोसने वाले ओवैसी अब महागठबंधन का हिस्सा क्यों बनना चाहते हैं?
वक्फ बिल पर महागठबंधन को मिल रहे समर्थन से घबराहट?AIMIM और असदुद्दीन ओवैसी खुद को मुसलमानों के हितैषी के तौर पर प्रोजेक्ट करते हैं. और कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी पार्टियों पर मुसलमानों को ठगने का आरोप लगाते हैं. साल 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में उनका ये दांव सफल भी रहा था. लेकिन इस बार परिस्थितियां थोड़ी बदली हुई है.
वक्फ संशोधन विधेयक को लेकर महागठबंधन ने खुल कर स्टैंड लिया है. बिहार इस बिल के मुखालफत का केंद्र बन चुका है. 29 जून को मुस्लिम संगठनों ने वक्फ संशोधन बिल के खिलाफ गांधी मैदान में रैली बुलाई थी. राजद, कांग्रेस और वाम दलों ने इसका पुरजोर समर्थन किया.
तेजस्वी यादव, कन्हैया कुमार और दीपांकर भट्टाचार्य जैसे नेताओं को मंच पर जगह भी मिली. ओवैसी ने भी वक्फ बिल के खिलाफ काफी सख्त स्टैंड लिया था. लेकिन बिहार में महागठबंधन इस मामले में बढ़त बनाता दिख रहा है. और महागठबंधन को मिल रहा समर्थन AIMIM के लिए परेशानी बढ़ाने वाली बात है.
बीजेपी की ‘बी टीम’ के टैग से छुटकारा की चाहतअसदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM पर अक्सर बीजेपी की बी टीम होने का आरोप लगता है. ऐसे में महागठबंधन में शामिल होने का ऑफर देने का उनका ये दांव टैक्टिकल भी हो सकता है. राजद और कांग्रेस के लिए ओवेसी को अपने साथ लाना आसान नहीं होगा. इससे उनको दो फ्रंट पर नुकसान होने की आशंका है.
पहली बात तो राजद और कांग्रेस खुद को बिहार में मुस्लिम वोटर्स की पहली पसंद के रूप में प्रोजेक्ट करते हैं. ऐसे में ओवैसी की इंट्री से मुस्लिम वोटों की उनकी रहनुमाई के दावे को नुकसान पहुंचेगा. और उनको अपने कोटे से ही AIMIM के लिए सीटें एडजस्ट करनी पड़ेगी.
दूसरी बात अगर AIMIM को महागठबंधन में शामिल किया जाता है तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी को अपने पसंदीदा टर्फ पर खेलने का मौका मिल जाएगा. यानी ओवैसी के बहाने 'सांप्रदायिक कार्ड' खेलने का मौका मिल जाएगा. बीजेपी इस मौके को हर हाल में भुनाएगी. और सीमांचल में जहां मुस्लिम वोटर्स कई सीटों पर निर्णायक हैं, हिंदू -मुस्लिम ध्रुवीकरण की पुरजोर कोशिश करेंगे.
AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी को भी इस बात का इल्म है कि राजद और कांग्रेस के लिए उनको महागठबंधन में शामिल करने का फैसला आसान नहीं होगा. लेकिन उन्होंने जानबूझकर सेकुलर वोटों के बिखराव रोकने का दांव खेला है, ताकि उन पर बीजेपी की बी टीम होने के आरोप चस्पा नहीं किया जा सके.
अपने वोटर्स को मैसेज देना चाहते हैं ओवैसीअख्तरुल ईमान ने तकरीबन एक महीने पहले भी एक बयान देकर महागठबंधन में शामिल होने की इच्छा जताई थी. लेकिन उस पर राजद या कांग्रेस की तरफ से कोई जवाब नहीं आया. दरअसल ओवैसी और अख्तरुल ईमान दोनों को ‘जन्नत’ की हकीकत मालूम है. यानी महागठबंधन में उनकी इंट्री नामुमकिन सी है. लेकिन इस कवायद के जरिए ओवैसी अपने वोटर्स को मैसेज देना चाहते हैं कि उन्होंने तो भरसक कोशिश की थी. लेकिन राजद और कांग्रेस ने कोई रिस्पॉन्स नहीं दिया.
लालू यादव और कांग्रेस की मुश्किल!लालू यादव शुरुआत से ही अपने MY (मुस्लिम यादव) समीकरण से किसी भी तरह के छेड़छाड़ के खिलाफ रहे हैं. उन्होंने हमेशा कोशिश की है कि इन समुदायों से कोई दूसरा नेतृत्व नहीं उभरे. पप्पू यादव का उदाहरण भी लिया जा सकता है. जो तमाम कोशिशों के बावजूद भी महागठबंधन का हिस्सा नहीं बन पाए. ऐसे में अगर ओवैसी महागठबंधन में शामिल होते हैं तो उनकी पार्टी से बिहार में किसी मुस्लिम चेहरे के उभरने की संभावना रहेगी. जोकि आगे चलकर लालू यादव के समीकरण को डेंट कर सकता है. अब राजनीति के माहिर खिलाड़ी लालू यादव भला ऐसा कैसे होने देंगे.
दूसरी तरफ कांग्रेस की भी एक दुविधा है. अगर वो बिहार में ओवैसी का साथ लेती है. फिर उन पर बीजेपी की बी टीम होने का आरोप नहीं लगा पाएगी. पार्टी को ओवैसी के गृह राज्य तेलंगाना और फिर उत्तर प्रदेश में भी इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है. क्योंकि ओवैसी तेलंगाना में चुनाव लड़ते रहे हैं. और उत्तर प्रदेश में अपनी सियासी जमीन तलाश रहे हैं.
50 सीटों की तैयारी से महागठबंधन का सफरहाल ही में असदुद्दीन ओवैसी बिहार के दौरे पर आए थे. इस दौरान उन्होंने 50 सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कही थी. लेकिन अब अगर उनकी पार्टी महागठबंधन का हिस्सा बनती है तो उन्हें इससे काफी कम सीटों पर समझौता करना पड़ेगा. क्योंकि महागठबंधन में पहले से ही काफी दावेदार हैं. इनमें राजद, कांग्रेस, लेफ्ट की तीन पार्टियां और मुकेश सहनी की वीआईपी पार्टी शामिल हैं. साथ ही पशुपति पारस भी इंट्री के लिए दरवाजा खटखटा रहे हैं.
सीमांचल में AIMIM का मजबूत प्रभावबिहार के सीमांचल क्षेत्र की 24 विधानसभा सीटों पर मुस्लिम आबादी बहुसंख्यक है. इसमें अररिया, किशनगंज, कटिहार और पूर्णिया जिले शामिल हैं. साल 2020 में AIMIM ने इस क्षेत्र की 20 सीटों पर चुनाव लड़ा. और 5 सीट पर जीत दर्ज की. साथ ही कई और सीटों पर राजद और कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया. और वो सीटें एनडीए के खाते में चली गईं. और महागठबंधन बेहद मामूली अंतर से बहुमत के आंकड़े से दूर रह गया. तेजस्वी यादव करीब पहुंच कर भी मुख्यमंत्री बनने से चूक गए.
हालांकि चुनाव के बाद राजद ने AIMIM को झटका देते हुए उनके 5 में से चार विधायकों को अपनी पार्टी में शामिल करा लिया. AIMIM के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान अपनी पार्टी के इकलौते विधायक रह गए.
महागठबंधन के लिए ओवैसी पर कोई भी फैसला करना आसान नहीं होगा. क्योंकि उनकी इंट्री एक दोधारी तलवार की तरह है. एक तरफ तो मुस्लिम वोटों का बंटवारा रुकने का लालच है, वहीं दूसरी तरफ हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण का भी खतरा है.
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