Aruna Asaf Ali was the first Lady Mayor Of Delhi

अरुणा, जिनके आंदोलनों से परेशान होकर अंग्रेजों ने संपत्ति जब्त कर ली थी

अरुणा आसफ अली: 1942 की रानी झांसी, भारत रत्न से सम्मानित दिल्ली की पहली महिला मेयर.
News pic
अरुणा आसफ अली
pic
Invalid Date Invalid Date
Small
Medium
Large
Small
Medium
Large
अरुणा आसफ अली मार्ग. नाम तो सुना होगा. कभी सोचा है किसके नाम पर पड़ा है इस सड़क का नाम. कौन हैं अरुणा आसफ अली. क्यों उनके नाम पर है देश की राजधानी की एक सड़क. सब कुछ जानिए यहां- नौ अगस्त 1942. आज़ादी की लड़ाई नींव को मज़बूत करने का दिन. एक महिला मुंबई के गोवालिया टैंक मैदान में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का झंडा फहराती है. देश भर के युवाओं में जोश भरती है. और शुरू होता है 'भारत छोड़ो आंदोलन'. वो आंदोलन जिसने आखिरकार देश को आज़ादी का तोहफ़ा दिया. ये थीं अरुणा आसफ अली.16 जुलाई 1909 को कालका (हरियाणा) के हिन्दू बंगाली परिवार में एक बेटी का जन्म हुआ. मृत्यु 29 जुलाई, 1996. रखा गया अरुणा गांगुली. पापा उपेन्द्रनाथ गांगुली का नैनीताल में एक होटल था. मां अम्बालिका देवी. अरुणा ने तालीम नैनीताल और लाहौर में पाई. ग्रेजुएशन के बाद अरुणा कोलकाता के गोखले मेमोरियल स्कूल टीचर बन गईं. इलाहाबाद में उनकी मुलाकात आसफ अली से हुई. आसफ अली कांग्रेसी नेता थे. उम्र में उनसे 23 साल बड़े. 1928 में अरुणा ने अपने मां-बाप की मर्जी के बिना उनसे शादी कर ली. और हो गईं अरुणा आसफ अली. दूसरे धर्म में शादी ऊपर से उम्र का भी लम्बा फ़ासला. लोगों ने कई बातें कीं  लेकिन इन्हें कोई फ़र्क नहीं पड़ा. आसफ अली वकालत करते थे. ये वही आसफ अली हैं जिन्होंने आज़ादी की लड़ाई लड़ने वाले भगत सिंह का हमेशा सपोर्ट किया. असेंबली में बम फोड़ने के बाद गिरफ्तार हुए भगत सिंह का केस भी आसफ अली ने ही लड़ा था. aruna-asaf-ali-3

कैसी रही अरुणा की ज़िंदगी

1930 में नमक सत्याग्रह के दौरान अरुणा ने सार्वजनिक सभाओं को सम्बोधित किया, जुलूस निकाला. ब्रिटिश सरकार ने उन पर आवारा होने का आरोप लगाया और एक साल की कैद दी. गांधी-इर्विन समझौते के बाद सभी राजनैतिक बंदियों को रिहा किया गया, पर अरुणा को नहीं. उनके लिए जन आंदोलन हुआ और ब्रिटिश सरकार को झुकना पड़ा. 1932 में फिर से गिरफ्तार कर तिहाड़ जेल में रखा गया. जेल में कैदियों के साथ हो रहे बुरे बर्ताव के विरोध में अरुणा ने भूख हड़ताल की. इससे कैदियों को काफी राहत मिली. रिहा होने के बाद उन्हें 10 साल के लिए राष्ट्रीय आंदोलन से अलग कर दिया गया. 1942 में अरुणा नायिका के तौर पर नज़र आईं. उन्होंने मुंबई के कांग्रेस अधिवेशन में हिस्सा लिया. यहां 8 अगस्त को ‘अंग्रेज़ों भारत छोड़ो’ प्रस्ताव पारित हुआ. एक दिन बाद जब कांग्रेस के नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया तब अरुणा ने मुंबई के गोवालिया टैंक मैदान में झंडा फहराकर आंदोलन की अध्यक्षता की. गिरफ़्तारी से बचने के लिए अंडरग्राउंड हो गईं. उनकी संपत्ति को ज़ब्त करके बेच दिया गया. सरकार ने उन्हें पकड़ने के लिए 5000 रुपए की घोषणा की. इस बीच वह बीमार पड़ गईं और यह सुनकर गांधी जी ने उन्हें समर्पण करने की सलाह दी. 26 जनवरी 1946 में जब उन्हें गिरफ्तार करने का वारंट रद्द किया गया तब अरुणा आसफ अली ने सरेंडर कर दिया. आजादी के समय अरुणा आसफ अली सोशलिस्ट पार्टी की सदस्या थीं. सोशलिस्ट पार्टी तब तक कांग्रेस की रूपरेखा का हिस्सा रहा था. 1948 में अरुणा और समाजवादियों ने मिलकर एक सोशलिस्ट पार्टी बनाई. 1955 में यह समूह भारत की कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़ गया और वह इसकी केंद्रीय समिति की सदस्य और ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस की उपाध्यक्ष बन गईं. 1958 में उन्होंने भारत की कम्युनिस्ट पार्टी को छोड़ दिया और दिल्ली की प्रथम मेयर चुनी गईं. मेयर बनकर इन्होंने दिल्ली में सेहत, विकास और सफाई पर ख़ास ध्यान दिया. 1960 में उन्होंने एक मीडिया पब्लिशिंग हाउस की स्थापना की. 1975 में उन्हें लेनिन शांति पुरस्कार और 1991 में अंतरराष्ट्रीय ज्ञान के लिए जवाहर लाल नेहरू पुरस्कार दिया गया. 29 जुलाई 1996 ने दुनिया से मुंह फेर लिया. 1998 में उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ दिया गया. साथ ही भारतीय डाक सेवा ने एक डाक टिकट से भी उन्हें नवाज़ा.

ख़ास बातें

एक बार अरुणा दिल्ली में यात्रियों से ठसाठस भरी बस में सवार थीं. कोई सीट खाली नहीं थी. उसी बस में एक मॉर्डन औरत थी. एक आदमी ने युवा महिला की नजरों में चढ़ने के लिए अपनी सीट उसे दे दी लेकिन उस महिला ने अपनी सीट अरुणा को दे दी. क्योंकि वो बुजुर्ग थीं. इस पर वह व्यक्ति बुरा मान गया और युवा महिला से कहा यह सीट मैंने आपके लिए खाली की थी बहन। इसके जवाब में अरुणा आसफ अली बोलीं कि मां को कभी न भूलो क्योंकि मां का हक़ बहन से पहले होता है।

book

  अरुणा ने किताब भी लिखी, Words Of Freedom: Ideas Of a Nation. डॉ राम मनोहर लोहिया के साथ मिलकर अरुणा ने ‘इंकलाब’ नाम की मासिक पत्रिका का संचालन भी किया. मार्च 1944 में उन्होंने ‘इंकलाब’ में लिखा,
‘आजादी की लड़ाई के लिए हिंसा-अहिंसा की बहस में नहीं पड़ना चाहिए. क्रांति का यह समय बहस में खोने का नहीं है. मैं चाहती हूं, इस समय देश का हर नागरिक अपने ढंग से क्रांति का सिपाही बने’.
दैनिक ‘ट्रिब्यून’ ने अरुणा आसफ अली की साहसी भूमिगत मोर्चाबंदी के लिए उन्हें ‘1942 की रानी झांसी’ की संज्ञा दी थी. साथ ही उन्हें 'ग्रैंड ओल्ड लेडी' भी कहा जाता है. उनके योगदान को याद करते हुए देश में उनके नाम पर कई संस्थान भी हैं. अस्पताल और कॉलेजों को भी उनके नाम से सजाया गया है. दिल्ली में अरुणा आसफ अली मार्ग है जो वसंत कुंज, किशनगढ़, जवाहर लाल नेहरू युनिवर्सिटी, आईआईटी दिल्ली को जोड़ता है.
वीडियो देखें : शबाना आजमी ने एंटी बीजेपी कहे जाने पर कांग्रेस के खिलाफ बोलना याद दिलाया


और भी

कॉमेंट्स
thumbnail