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इन तीन औरतों ने इस छोटे से फायदे के लिए 42 बच्चों को मार डाला

एक बच्ची को उल्टा लटकाकर उसका सिर पानी में डाल दिया, उसे तड़पते देखती रहीं.

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सीमा शिंदे और रेणुका गवित. दोनों बहनें फ़िलहाल यरवदा जेल में हैं.
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4 सितंबर 2019 (Updated: 4 सितंबर 2019, 05:52 PM IST) कॉमेंट्स
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पुणे में एक जेल है 'यरवदा जेल'. वही जेल जहां कसाब को फांसी दी गई थी, जहां संजय दत्त बंद थे. इसी जेल में दो औरतें हैं. 23 साल से. दोनों सगी बहनें हैं. बड़ी का नाम रेणुका है. छोटी का नाम है सीमा. दोनों फांसी का इंतजार कर रही हैं. इन दोनों ने 42 बच्चों की हत्या की है. इन हत्याओं की एक और दोषी थी. इन दोनों की मां अंजना गावित. वो अब दुनिया में नहीं है. उसकी मौत जेल में ही एक बीमारी के चलते कुछ वक्त पहले हो चुकी है. भारतीय दंड संहिता में फांसी की सजा को 'रेयरेस्ट ऑफ़ दी रेयर' अपराधों के लिए रखा गया है. हिंदी में जघन्यतम इसका सबसे करीबी तर्जमा है.
हम इनकी कहानी क्यों बता रहे हैं?
क्योंकि इनकी फिल्म आई है. ज़ी-5 पर. नाम है पोषम-पा. फिल्म में माही गिल अंजना बनी हैं. वहीं सयानी गुप्ता और रागिनी खन्ना ने रेणुका और सीमा के किरदार निभाए हैं. करीब 1 घंटे 16 मिनट की इस फिल्म  को 'सुमन मुखोपाध्याय' ने डायरेक्ट किया है.
फिल्म पोशम पा का एक पोस्टर.
फिल्म पोशम पा का एक पोस्टर.

तो कैसे शुरू हुई ये कहानी
अंजना गावित मूलतः नाशिक की रहने वाली थी. वहीं एक ट्रक ड्राईवर से प्यार कर बैठी. उसी के साथ भागकर पुणे आ गई. कुछ दिन साथ में  रहने के बाद, इसके एक बेटी हुई. बेटी का नाम था 'रेणुका'. बच्ची के जन्म के कुछ दिन बाद ही ट्रक वाले ने अंजना को छोड़ दिया. रेणुका सड़क पर आ गई. उसे जैसे-तेसे बच्ची और अपना पेट भरना था.
सीमा शिंदे और रेणुका गवित. दोनों अलग-अलग पिताओं की बेटी थीं.
सीमा शिंदे और रेणुका गावित. दोनों अलग-अलग पिताओं की बेटी थीं.

एक साल बाद वो एक रिटायर्ड सैनिक मोहन गावित से मिली. दोनों ने शादी कर ली. उसकी दूसरी बेटी सीमा पैदा हुई. कुछ दिन बाद मोहन ने अंजना को छोड़ दिया. वो दोबारा से सड़क पर थी. इस बार दो बच्चियों के साथ. बेटियों का पेट भरने के लिए उसने छुटमुट चोरियां शुरू कर दीं. किसी की जेब काट ली. किसी का बैग लेकर भाग गई. दोनों बेटियां जब बड़ी हुईं तो वो भी उसकी मदद करने लगीं. भीख मांगना और जेब काटना, यही दो काम अंजना को आते थे. यही दो काम उसने अपनी बेटियों को सिखा दिए. उनके लिए यही रोजगार था. यही रोटी-साग था. पुणे शहर में उसका कोई नहीं था. कोई भी नहीं. सिवाय तीन पेटों के, जिन्हें भरना उसके लिए ज़रूरी था.
पहली हत्या, जिसने सुना उसकी रूह कांप गई
एक दिन अंजना सड़क पर निकली थी. उसे 18 महीने का एक बच्चा दिखा. ये बच्चा भीख मांगने वाली एक औरत का था. इसका संतोष नाम था. वो उस बच्चे को उठा ले आई. सोचा कि बच्चे को कहीं बेचकर उसे कुछ पैसे मिल जाएंगे. बच्चा गोद में था. वो सड़क पर भटक रही थी. जेब काटने की फिराक में. एक मंदिर के पास एक आदमी का पर्स मारने की कोशिश करने लगी, लेकिन पकड़ में आ गई. औरतों ने अंजना को पीटना शुरू कर दिया. पुलिस बुलाने की नौबत आ गई. भीड़ का ध्यान चोरी से हटाने के लिए उसने बच्चे को जमीन पर पटक दिया. बच्चे के सिर से खून बहने लगा. अब लोगों का ध्यान अंजना की चोरी पर नहीं, बल्कि बच्चे के बहते खून पर था. अंजना चिल्ला-चिल्लाकर कहने लगी कि एक बच्चे की मां चोरी नहीं  कर सकती. बच्चे को तड़पता देखकर लोगों को तरस आ गया. उन्हें लगा कि शायद उसने चोरी नहीं की है. अगर की भी होगी तो बच्चे को खाना खिलाने के लिए की होगी. किसी को पता नहीं पता था कि बच्चा उसका नहीं है, अपहरण किया हुआ है. भीड़ तितर-बितर हो गई.
सीमा शिंदे, अंजना गावित और रेणुका गावित.
सीमा शिंदे, अंजना गावित और रेणुका गावित.

बच्चे का मुंह देखकर किसी ने पुलिस में शिकायत नहीं की. अंजना भीड़ की पिटाई से भी बच गई. पुलिस से भी बच गई. वो बच्चे को लेकर चुपचाप वहां से निकल ली. सीमा पास ही थी, वो अपनी मां के साथ हो ली. बच्चे के सिर से खून बह रहा था. वो लगातार रो रहा था. न खाना, न दूध, न मां-बाप. मां-बेटी उसके रोने से परेशान हो गईं. अंजना को ये डर भी था कि अगर बच्चा उसके साथ रहा तो पुलिस उसे कभी न कभी पकड़ लेगी. इस खतरे को देखते हुए दोनों ने बच्चे को ठिकाने लगाने का प्लान बनाया. सुनसान रास्ते दोनों को बिजली का खंभा मिला. अंजना ने बच्चे के दोनों पैर पकड़कर, उसका सिर खंभे पर दे मारा. उसे तब तक मारती रही जब तक वो मर नहीं गया. लाश को उसने पास में ही कबाड़ के पास डंप कर दिया.
अब मां-बेटियों ने इसे ही धंधा बना लिया
इस घटना से अंजना को लगा कि बच्चा साथ होगा तो सहानुभूति मिलेगी. भीख भी ज्यादा मिलेगी. और अगर चोरी करते समय पकड़े भी गए तो बच्चे को देखकर लोग छोड़ देंगे. इसके बाद इन मां-बेटियों का बच्चे चुराने का सिलसिला शुरू हुआ. और ये तब तक जारी रहा जब तक इस गिरोह का पर्दाफाश नहीं हुआ. यानी साल 1996 तक.
फोटो क्रेडिट -Rebelcircus.com/unknownmisandry.blogspot.com
फोटो क्रेडिट -Rebelcircus.com/unknownmisandry.blogspot.com

मारने के तरीके होते थे बेहद खतरनाक
बच्चा मारना अब इनका पेशा बन चुका था. ये ज़्यादातर चार साल से छोटे बच्चों को ही उठाती थीं. क्योंकि बड़े बच्चों को हैंडल करना इनके लिए मुश्किल होता. बड़े बच्चों के किसी से शिकायत करने का डर भी इन्हें था. ज्यादातर बच्चे झुग्गी वाले ही हुआ करते थे. एक तो ऐसे बच्चों को चुराना आसाना होता, दूसरे इनपर कोई खबर या पुलिसिया कार्रवाई भी कम ही होती थी. अब तीनों यही करती थीं. बच्चा उठातीं और फिर चोरी करने निकल पड़तीं. अगर पकड़ जातीं तो बच्चे को जमीन पर पटक देतीं ताकि लोगों का ध्यान चोरी से भटक जाए. इस तरह शील्ड की तरह बच्चों का इस्तेमाल करतीं. बाद में बच्चा काम का नहीं रहता तो उसे मार देतीं. ज्यादातर को पटक-पटक मार देतीं, एक बच्ची को उसकी गर्दन पर पैर रखकर मार दिया, एक बच्ची के दोनों पैरों को पकड़कर उसे उल्टा लटका लिया. और उसका सिर पानी में डुबाए रखा. जब तक बच्ची तड़प-तड़प कर मर नहीं गई.
सोर्स- unknownmisandry.blogspot.com
सोर्स- unknownmisandry.blogspot.com

लाश लेकर पहुंच गईं सिनेमा देखने
बच्चों का मारना इनके लिए किसी खिलौने को तोड़ने जितना ही आसान हो गया. ये इनके लिए कितना सहज था, वह इस घटना से ही समझा जा सकता है. एक बार इन तीनों ने भावना नाम की बच्ची को किडनैप किया. दस-बारह महीने की बच्ची. बच्ची लगातार रो रही थी. तीनों ने इस बच्ची की हत्या कर दी. लाश को काले रंग की पॉलिथीन में डाल दिया और निकल पड़ीं ठिकाने लगाने. रास्ते में एक सिनेमाहॉल दिखा. मन हुआ कि फिल्म देख ली जाए. अंदर गईं, लाश हाथ में ही थी. फिल्म देखने के बाद पॉलिथीन को सिनेमाघर के बाथरूम में छोड़कर ये तीनों वहां से चुपचाप निकल आईं. बाद में सफाई वाला आया है तब इस लाश के बारे में पता चला.
प्रतीकात्मक चित्र (फोटो क्रेडिट-चित्रमाला).
प्रतीकात्मक चित्र (फोटो क्रेडिट-चित्रमाला).

इस तरह तीनों ने 1990 से लेकर 1996 के बीच यानी छह साल में 42 बच्चों की हत्या कर दी. चूंकि इन बच्चों में से ज्यादातर गरीबों के बच्चे थे. इसलिए पुलिस ने इस मामले  पर अधिक सक्रियता नहीं दिखाई. इसलिए ये तीनों, हत्या और अपहरण को लेकर बहुत अधिक सहज हो गईं.
ऐसे हुआ खुलासा!
अंजना के दूसरे पति मोहन गावित ने दोबारा से शादी कर ली थी. उसकी पत्नी का नाम प्रतिमा था. उन दोनों की एक बच्ची भी थी उसका नाम क्रांति था. 1996 में अंजना अपनी दोनों बेटियों के साथ उधर ही पहुंच गई रहने के लिए. कुछ दिन वह मोहन के यहां ही रही. कुछ दिन बाद अंजना ने क्रांति को मारने का प्लान बनाया. उसने अपनी दोनों बेटियों के साथ मिलकर क्रांति को किडनैप कर लिया. और उसकी हत्या कर गन्ने के एक खेत में डंप कर दिया. क्रांति की मां प्रतिमा ने पुलिस में एफआईआर दर्ज करवाई. कुछ दिन बाद दोनों बहनें पकड़ में आ गईं. डर के मारे ने ये कबूल कर लिया कि प्रतिमा की 9 साल की बेटी क्रान्ति की हत्या उन्होंने ही की है, लेकिन मां के कहने पर. दोनों बहनों की मदद से पुलिस अंजना तक पहुंच गई. अंजना को गिरफ्तार करने के बाद और कुछ और तथ्य सामने लगे. इलाके में हुई बच्चा चोरी की घटनाओं के तार जुड़ने लगे. शुरू में पुलिस के हाथ बहुत कुछ नहीं लगा.
फोटो सोर्स-unknownmisandry.blogspot.com
फोटो सोर्स - unknownmisandry.blogspot.com

एक नहीं, दो नहीं, 42 बच्चों को मारा है 
इस बीच अंजना की बड़ी बेटी रेणुका की शादी भी हुई. किरण शिंदे से. उसके बच्चे भी हुए. मामला सामने आने के बाद पुलिस ने किरण को गिरफ्तार किया. उससे सख्ती से पूछताछ की. चूंकि उसका इंवॉल्वमेंट इन हत्याओं में ज्यादा नहीं था. इसलिए उस पर कोई बहुत बड़ा केस बनता भी नहीं था. पुलिस ने उसे तैयार किया कि अगर वह सरकारी गवाह बन जाएगा, तो उसे इस मामले में से बरी कर दिया जाएगा. फिर जो मामले सामने आए उनके बारे में पुलिस ने सोचा भी नहीं था.
रेणुका के पति ने बताया कि एक बार वह घर पर यह गिन रही थीं कि उन्होंने कितने बच्चों की हत्या की है. तीनों ने मिलकर कुल 42 बच्चों की हत्या की थी. इसके बाद ये घटना महाराष्ट्र के अख़बारों की सुर्खियां बन गई. भारत में इससे पहले इतने बड़े स्तर पर कभी हत्याएं नहीं हुईं थीं. सीरियल किलिंग का ये मामला. भारत ही नहीं, दुनिया के सबसे खतरनाक और दर्दनाक मामलों में से एक था. प्रदेश सरकार ने मामले पर सीआईडी की टीम बिठा दी जांच करने के लिए. चूंकि हत्या और किडनैपिंग के मामले साल 1990 से 1996 के बीच के थे. इसलिए अधिक मामलों में तो सबूत ही नहीं मिल पाए. लेकिन 13 किडनैपिंग और 6 हत्याओं के मामलों में इन तीनों का इंवॉल्वमेंट साबित हो गया. हिरासत के दो साल बाद यानी 1998 में अंजना की एक बीमारी से मौत हो गई. बचीं रेणुका और सीमा.
पुणे की यरवदा जेल.
पुणे की यरवदा जेल.

फ़िलहाल क्या स्टेटस है मामले पर  साल 2001 में एक सेशन कोर्ट ने दोनों बहनों को मौत की सजा सुनाई. इस फैसले के खिलाफ़ अपील पहुंची हाईकोर्ट में. साल 2004 को हाईकोर्ट ने भी 'मौत की सजा' को बरकरार रखा. मामला फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा.  सुप्रीम कोर्ट ने भी कह दिया कि ऐसी औरतों के लिए 'मौत की सजा' से कम कुछ भी नहीं है. जब सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खत्म हो गया तो एक आखिरी दरवाजा अब भी बचा हुआ था. वो दरवाजा था राष्ट्रपति से क्षमा याचना का. साल 2014 में प्रेसिडेंट थे 'प्रणब मुखर्जी'. मुखर्जी ने भी दोनों बहनों पर कोई रहम नहीं किया. और अदालत के फैसले से ही सहमति जताई.
इन तीनों पर बनी फिल्म 'पोशम पा' का एक पोस्टर.
इन तीनों पर बनी फिल्म 'पोशम पा' का एक पोस्टर.

इस तरह दोनों बहनों के लिए फांसी की सजा पर आखिरी मुहर लग चुकी है. लेकिन फांसी कब, किस घड़ी, किस तारीख, महीने में होगी ये फ़िलहाल तय नहीं है. अगर इन दोनों बहनों को फांसी लगती है. तो 65 साल में फांसी के तख्त पर लटकने वाली ये पहली औरतें होंगी.
 

ये स्टोरी हमारे यहां इंटर्नशिप कर रहे श्याम ने की है.




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