जिस विधान परिषद को आंध्र प्रदेश ने ख़त्म कर दिया, वो आखिर है क्या?
आसान भाषा में समझें, जगनमोहन रेड्डी के इस फैसले को.
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बात अप्रैल-2019 की है. आंध्र प्रदेश में YSR कांग्रेस पार्टी के जगनमोहन रेड्डी विधानसभा चुनाव से पहले रैलियां कर रहे थे. एक रैली में वो कहते हैं-
“मैं चाहता हूं कि राज्य के हर परिवार के लिए कुछ न कुछ कर जाऊं. हर घर में जगनमोहन की एक मुस्कुराती हुई तस्वीर लगी हो और लोग कह सकें कि ‘जगनन्ना’ (लोग इस नाम से बुलाते हैं) ने हमारे लिए कुछ किया.”जगनमोहन रेड्डी की राजनीति कुर्सी पाने तक सीमित नहीं है. वो आंध्र की राजनीति में एक आइकन बनना चाहते हैं, ये साफ़ है. मई-2019 में जगन आंध्र प्रदेश के 17वें मुख्यमंत्री बने. अब आठ महीने में ही बड़ा कदम उठा लिया. आंध्र प्रदेश देश का पहला राज्य बनने जा रहा है, जिसके पास विधान परिषद गठन का अधिकार होते हुए भी परिषद नहीं होगी.
आगे बढ़ने के पहले समझ लें, विधान परिषद क्या है
भारत का सरकार चलाने का तरीका ‘बाईकैमरल’ है, यानी दो सदन पर टिका हुआ. केंद्र में लोकसभा और राज्यसभा हैं. राज्य में विधानसभा और विधान परिषद. विधानसभा के लिए सदस्य हम वोट देकर चुनते हैं. इससे सीधे तौर पर जुड़े रहते हैं. इसी वजह से इसके काम-काज के बारे में मोटा-मोटा हम जानते ही हैं.
अब बात विधान परिषद की. विधान परिषद की जरूरत क्यों पड़ी? क्योंकि विधानसभा के कई फैसले जल्दबाजी में लिए हुए हो सकते हैं. ऐसे में एक सदन ऐसा भी हो, जो विधानसभा के फैसले को थोड़ा क्रिटिकली देख-परख सके.
अब आंध्र प्रदेश में क्या हुआ
विधान परिषद को खत्म करने का प्रस्ताव सोमवार यानी 27 जनवरी को प्रदेश की विधानसभा से पास हो गया. 176 में से 133 वोट इसके पक्ष में पड़े. वोटिंग के बाद सदन अनिश्चितकाल तक के लिए स्थगित कर दिया गया.
फैसले का विरोध भी हुआ. चंद्रबाबू नायडू की पार्टी टीडीपी के विधायकों ने विधानसभा का बहिष्कार किया.
अभी प्रोसेस पूरा नहीं हुआ हैAndhra Pradesh assembly passes state Govt's resolution to dissolve the Legislative Council. The assembly will send the resolution to the Central government for further process. House has been adjourned sine die. pic.twitter.com/dMJ9OPfeme
— ANI (@ANI) January 27, 2020
विधानसभा ने प्रस्ताव पारित कर दिया है. अब इसे राज्यपाल के पास भेजा जाएगा. राज्यपाल ने भी अप्रूवल दे दिया तो देश की संसद के सामने रखा जाएगा. वहां से भी पारित हो गया, तो कहीं जाकर आंध्र प्रदेश से विधान परिषद हटेगी.
इस पूरे काम में तीन से छह महीने लग सकते हैं. तब तक परिषद पहले की तरह ही काम करती रहेगी.
अब सवाल
विधान परिषद के रहने, ना रहने से क्या बन-बिगड़ जाएगा? इसे हटाकर जगन ने ऐसा कौन सा बड़ा काम कर दिया है? ज्यादातर मामला तो विधानसभा से जुड़ा होता है, वो तो चालू ही है.
सब पर बात करते हैं, एक-एक करके.
विधान परिषद के सदस्य कैसे चुने जाते हैं?
विधान परिषद के सदस्यों की संख्या अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होती है. फिर भी एक कॉमन पैरामीटर है- विधान परिषद में विधानसभा के एक तिहाई से ज्यादा सदस्य ना हों और कम से कम 40 तो हों ही.
एक तिहाई सदस्यों को विधायक मिलकर चुनते हैं. एक तिहाई सदस्यों को नगर निगम, जिला बोर्ड वगैरह के सदस्य चुनते हैं. 1/12 सदस्यों को टीचर्स और 1/12 सदस्यों को रजिस्टर्ड ग्रेजुएट्स चुनते हैं. बाकी सदस्यों को राज्यपाल नॉमिनेट करते हैं. कार्यकाल 6 साल का होता है.
विधान परिषद, राज्यसभा से किस तरह अलग है?
दूर–दूर से देखने पर लगता है कि विधान परिषद का काम राज्यसभा जैसा ही है. बात काफी हद तक ठीक है, लेकिन कुछ बड़े अंतर हैं. राज्यसभा के पास नॉन-फाइनेंशियल कानून बनाने का अधिकार होता है, लेकिन विधान परिषद के पास नहीं.
अगर विधान परिषद की ओर से कोई सुझाव/सुधार किया गया है तो विधानसभा उसे अमल में लाए बिना भी आगे बढ़ सकती है.
राज्यसभा के सदस्य राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति को चुने जाने की प्रोसेस में शामिल होते हैं, पर विधान परिषद के सदस्य ऐसी किसी प्रोसेस में शामिल नहीं होते हैं.
विधान परिषद को हटाने के पीछे क्या लॉजिक है?
विधान परिषद को हटाने के पीछे आंध्र सरकार के तीन बड़े तर्क हैं.
पहला- जो नेता चुनाव में हार जाते हैं, वे फिर विधान परिषद के सहारे सिस्टम में वापस आने की कोशिश में लग जाते हैं. कई बार सफल भी हो जाते हैं.
दूसरा- तमाम बिल पास करने, लागू कराने में विधान परिषद के कारण काफी देरी हो जाती है.
तीसरा- विधान परिषद के कारण राज्य पर काफी फाइनेंशियल बोझ पड़ रहा है.
जगनमोहन ने पिछले हफ्ते गृहमंत्री अमित शाह से भी मुलाकात की थी. (फोटो- ANI)
बाकी राज्यों में विधान परिषद की क्या पोजीशन है?
आंध्र प्रदेश में विधान परिषद के 58 सदस्य थे. अब इसके हटने के बाद देश में विधान परिषद वाले पांच राज्य बचे हैं. बिहार (58), कर्नाटक (75), महाराष्ट्र (78), तेलंगाना (40) और उत्तर प्रदेश (100).
यानी आंध्र प्रदेश पहला ऐसा राज्य बन गया है, जो विधान परिषद रख सकता है, फिर भी नहीं रखेगा.
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 हटने के पहले तक वहां भी विधान परिषद थी.
आंध्र प्रदेश पहले भी विधान परिषद खत्म कर चुका है
1985 में एनटी रामा राव की सरकार ने भी आंध्र प्रदेश में विधान परिषद खत्म कर दी थी. उनका भी वही तर्क था, जो आज जगनमोहन का है. 22 साल बाद 2007 में जगनमोहन के पिता YSR रेड्डी राज्य में परिषद को वापस लेकर आए. अब इसके भी 13 साल बाद YSR के बेटे ने ही फिर विधान परिषद खत्म कर दी.
राजनीति में कहा जाता है कि एक-एक वोट के लिए लड़कर आए सदस्यों को नॉमिनेट होकर आए सदस्यों के प्रति जवाबदेही भाती नहीं है. जगनमोहन सरकार का फैसला भी कुछ-कुछ इसी कहावत को कॉमप्लिमेंट करता दिख रहा है.
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