केरल में घुसने के लिए वामपंथी पार्टियों की ये रणनीति अपना रही बीजेपी
केरल में संघ की यूपी के बाद सबसे ज्यादा शाखाएं लगती हैं, फिर भी बीजेपी को उतनी सफलता नहीं मिल रही है.

यह आर्टिकल मूलत: डेलीओ
वेबसाइट के लिए आनंद कोचुकुडी ने लिखा है, जिसका हिंदी तर्जुमा हम आपको वेबसाइट की इजाजत से पढ़वा रहे हैं.
अमित शाह. बीजेपी अध्यक्ष. 95 दिन की विस्तार यात्रा पर हैं. इसी सिलसिले में केरल पहुंचे. तीन दिन रुके. ये रुकना खास है, क्योंकि केरल में पार्टी लोकसभा में अभी तक खाता नहीं खोल पाई, जबकि यहां से 20 सांसद जाते हैं निचले सदन में. उत्तर भारत की सियासी गणित में कहें तो हरियाणा, हिमाचल और उत्तराखंड से ज्यादा. जाहिर है कि 2014 की मोदी-लहर यहां प्रभावी नहीं रही. ज्यादातर सीटों पर पार्टी की जमानत भी जब्त हो गई. एक अपवाद रही थिरुअनंथपुरम की सीट, जहां पार्टी दूसरे नंबर पर रही.

केरल में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह
अब अगले लोकसभा चुनाव की तैयारी शुरू हो चुकी है. बीजेपी को पता है कि नॉर्थ में वह अपने चरम को पा चुकी है. उसकी नजर नई टैरिटरी पर है, इसलिए ईस्ट और साउथ पर फोकस है. इसमें केरल भी है. मगर केरल में बीजेपी के सामने चुनौतियां क्या हैं.
1. यहां का वोटर पूरा का पूरा साक्षर है. उसे ध्रुवीकरण की राजनीति उतनी नहीं जंचती और संख्या के लिहाज से भी हिंदू वोटर सिर्फ 55 फीसदी ही हैं.
2. कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी गठबंधन बारी-बारी से सत्ता में आ रहे हैं. दोनों का ही काडर मजबूत है और बीजेपी भी इसे संघ के मजबूत काडर के जरिए ही पराजित करने को तत्पर है.
3. बीजेपी के लिए केरल कितना अहम है. इसे इस नंबर से समझें कि पार्टी के यहां से तीन सांसद हैं. तीनों राज्यसभा में हैं. एक्टर सुरेश गोपी नॉमिनेट किए गए हैं राष्ट्रपति द्वारा कलाकार कोटे से मोदी सरकार की सिफारिश पर. एंग्लो इंडियन कोटे से प्रो. रिचर्ड हे हैं. और तीसरे सांसद हैं केरल में एनडीए के उपाध्यक्ष राजीव चंद्रशेखर.

प्रधानमंत्री मोदी के साथ एक्टर सुरेश गोपी
4. मोदी कैबिनेट में भी लोकसभा चुनाव से पहले केरल को प्रतिनिधित्व देने की तैयारी चल रही है. पूर्व प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष वी. मुरलीधरन का इसके लिए नाम चल रहा है. कयास लगाए जा रहे हैं कि उन्हें राज्यमंत्री का पद मिल सकता है. वाजपेयी सरकार में भी केरल को इसी तरह से प्रतिनिधित्व मिला था. अभी पार्टी के इकलौते विधायक और राज्य में पार्टी के भीष्म पितामह कहे जाने वाले ओ. राजागोपाल उस वक्त सांसद थे और मंत्री भी बनाए गए थे.
5. बीजेपी यहां अकेले ताल नहीं ठोंक रही. उसके छाते का नाम एनडीए है. इसके तहत उसे कई केरल बेस्ड पार्टियों को साथ लाने का भरोसा है. फिलहाल केएम मणि की केरल कांग्रेस पर डोरे डाले जा रहे हैं. एक और साझेदार भारत धर्म जन सेना (बीडीजेएस) है. ये विधानसभा चुनाव में 140 की 36 सीटों पर लड़ी थी. बीडीजेएस को चार फीसदी वोट मिले थे. अभी ये एनडीए में अपनी स्थिति को लेकर नाखुश है. पार्टी को लग रहा था कि मोदी सरकार उसके कुछ नेताओं को चेयरमैन और बोर्ड मेंबर जैसे पद देकर उपकृत करेगी.
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केएम मणि
6. पार्टी अपनी छवि के उलट अल्पसंख्यकों को भी लुभाने में अग्रेसिव अप्रोच अपना रही है. केरल में इसाई बड़ी संख्या में हैं. अमित शाह ने अपने दौरे में सीरियन, लैटिन और ऑर्थोडॉक्स चर्च के लोगों से कलूर में मुलाकात की. इसमें चर्च के संगठन के कई टॉप लोग मौजूद थे.
7. शाह को उम्मीद थी कि सितंबर 2016 में केरल में पार्टी की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक से काडर में नई जान आएगी. मगर रिव्यू मीटिंग में उन्होंने प्रदेश के नेताओं की जमकर क्लास लगाई. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष कुम्मनम राजशेखरन भी निशाने पर रहे. दरअसल, राजशेखरन को बीजेपी में अभी भी संघ से आया आदमी माना जाता है और पुराने ग्रुप उनके साथ सामंजस्य नहीं बैठा पा रहे हैं.
8. बीजेपी की तरफ देश के बाकी हिस्सों की तर्ज पर कांग्रेसी नहीं खिंच रहे हैं. यहां कांग्रेस मजबूत है. अभी एक बरस पहले तक सत्ता में थी. फिर वापसी की संभावना देख रही है. ऐसे में किसी को भी केंद्र की तरफ झुकने की ज्यादा तुक समझ नहीं आ रहा, बल्कि इस चक्कर में बीजेपी की फजीहत ही हो रही है. 90 साल के कांग्रेसी नेता एमएम जैकब ने एक किस्सा सुनाया. जैकब कांग्रेस राज में गवर्नर भी रह चुके हैं. उन्होंने कांग्रेस की मीटिंग में बताया कि कैसे बीजेपी वाले उन्हें पार्टी में आने के लिए तरह तरह से लुभा रहे हैं.

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के गले लगते एमएम जैकब
9. पार्टी गैर-राजनीतिक लोगों को भी अपने पाले में खींचने की कोशिशों में लगी है. वामपंथी पार्टियों ने भी अतीत में ये रणनीति अपनाई, जो सफल रही. खासतौर पर ऐसी सीटों पर, जहां कांग्रेस बहुत मजबूत थी. सोशल सर्कल में मशहूर कैंडिडेट को बाहर से सपोर्ट कर मुकाबले को रोचक बनाया गया.
10. पार्टी का देशव्यापी काऊ एजेंडा भी यहां पलटवार कर रहा है. केरल की जुझारू आदिवासी नेता सीके जानू ने मोदी की अध्यक्षता में हुई एनडीए मीट में इस मुद्दे पर बीजेपी की तीखी आलोचना की. अमित शाह की केरल मीट में भी वह इस पर खुलकर बोलीं.
11. नायर समुदाय केरल की एक प्रभावी कम्युनिटी है. बीजेपी को उम्मीद थी कि श्री नारायणा धर्म परिपालना योगम (एसएनडीपी) के जरिए जैसे एझवा समुदाय को रिझाया, वैसे ही नायर सर्विस सोसाइटी के जरिए इस समुदाय को अपने पक्ष में किया जा सकता है. दलित भी पार्टी की तरफ प्रभावी संख्या में नहीं आ रहे हैं. ऐसे में पार्टी को सबसे ज्यादा उम्मीद संघ के स्वयंसेवकों पर है. संघ की राज्य में 5 हजार से ज्यादा शाखाएं लगती हैं. संख्या के लिहाज ये यूपी के बाद दूसरे नंबर पर आता है. फिर भी चुनाव में प्रभावी सफलता नहीं मिल रही.
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