मेडिकल जांच में पलट गया अल्वर रेप केस
अल्वर रेप केस में पुलिस अब तक क्या पता लगा पाई?
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अलवर मामले में तीन आरोपियों की गिरफ्तारी हुई. (प्रतीकात्मक तस्वीरें)
मौक़े पर पुलिस तुरंत पहुँच गई थी. बच्ची को हमने ICU में भर्ती कराया है. डॉक्टर्स ने बताया कि बच्ची मानसिक रूप से कमजोर है. उसके प्राइवेट पार्ट से बहुत ख़ून आ रहा था. संभवतः यह सेक्शुअल असॉल्ट का मामला है.यानि यहां से बात साफ है कि मामला रेप से जुड़ा हुआ है और पुलिस उस दिशा में जांच कर रही है. पुलिस एक काम अच्छा किया कि उसे फौरन इलाज के लिए अस्पाल ले गई. जिसकी वजह से उसकी जान बच गई. लेकिन सवाल अब ये कि पिछले तीन दिन की जांच के बावजूद भी पुलिस अब तक आरोपियों की तलाश क्यों नहीं कर पाई ? और एक सवाल अलवर पुलिस के शुरुआती रवैये पर भी. मानसिक रूप से कमजोर बच्ची दोपहर के करीब 1 बजे ही घर से गायब हो गई, जांच हुई तो शाम के करीब 7.30 बजे उसे इलाके में लगे एक सीसीटीवी कैमरे में पैदल चलते देखा गया. माना जा रहा है कि इसके बाद ही बच्ची के साथ कुछ गलत हुआ. लेकिन इससे पहले बच्ची के परिजन शाम के करीब 4 बजे पुलिस के पास मिसिंग रिपोर्ट लिखवाने अलवर की अकबरपुर चौकी में गए. तब पुलिसवालों ने तुरंत एक्शन लेने के बजाय, टालमटोल करते हुए मालाखेड़ा थाने में जाकर मिसिंग रिपोर्ट लिखवाने भेज दिया. तो सवाल यहीं से कि अकबरपुर चौकी की पुलिस ने तुरंत रिपोर्ट दर्ज क्यों नहीं की ? स्थानीय पुलिस ने आलाधिकारियों को सूचित क्यों नहीं किया ? और सबसे बड़ा सवाल फौरन गश्त पर जाकर बच्ची को क्यों नहीं ढूंढा ? प्रथम दृष्टया ही मामला पुलिस के ढुलमुल रवैये का ही लगता है क्योंकि बच्ची अपने घर से करीब 25-26 किलोमीटर दूर तिजारा पुलिया पर मिली. शहर में कोविड प्रोटोकॉल की वजह से नाकेबंदी और गश्ती भी बढ़ी हुई है लेकिन किसी ने भी इसे नोटिस नहीं किया, जबकि इस दौरान बच्ची मालाखेड़ा थान,सदर थाना, अरावली विहार, NEB कोतवाली और शिवाजी पार्क थाने के इलाकों से गुजरी. और इसके बावजूद हुई घटना ने 5-5 थानाक्षेत्र की पुलिस की मुस्तैदी प्रश्नवाचक चिन्ह लगा दिया शिवाजी पार्क थाने की पुलिस तब जाकर सक्रिय हुई, जब उसका शरीर तिजारा पुलिस पर खून से लथपथ मिला. जांच के लिए अब तक पुलिस 25 किलोमीटर के दायरे में 300 सीसीटीवी फुटेज तलाश चुकी है, लेकिन आरोपियों का अब तक कोई सुराग नहीं मिल पाया. कड़ियां जोड़ने में पुलिस नाकाम है और तब यहां से शुरू होती है राजनीति. पिछले तीन दिनों से स्थानीय बीजेपी के नेता गहलोत सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे, लेकिन आज दिल्ली से भी मोर्चा थाम लिया गया. बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की और सीधे प्रियंका गांधी को निशाने पर ले लिया और सीधे प्रियंका गांधी से सवाल इसलिए क्योंकि जब अलवर केस सामने आया तब, प्रियंका गांधी की मौजूदगी राजस्थान में ही है. रणथंभौर में वो अपना जन्मदिन मनाने पहुंची थीं. विरोधियों की तरफ से पूछा जाने लगा कि यूपी में लड़की हूं लड़ सकती हैं का नारा देने वाली प्रियंका राजस्थान के मामले पर चुप क्यों हैं ? जबकि वहां तो उन्हीं की पार्टी की सरकार का है. एक नैरेटिव ये भी सेट किया जाने लगा कि प्रियंका यूपी के उन्नाव और हाथरस तो जाती हैं, मगर अपने ही राज्य में कुछ भी नहीं बोल रही हैं. और बीजेपी ने इसी बात को मुद्दा बनाकर उन्हें घेरना शुरू कर दिया. और राज्यसभा सांसद किरोणीलाल मीणा के नेतृत्व में जहां प्रियंका गांधी ठहरी हैं, वहां विरोध प्रदर्शन हुआ... इतना नहीं कुछ बीजेपी की कुछ कार्यकर्ता पुलिस का घेरा तोड़कर आगे बढ़ गईं तो आगे महिला पुलिस ने उन्हें रोक लिया . यानि पुलिस ने अपना काम किया और प्रदर्शनकारियों ने अपना, मगर बुलेटिन रिकॉर्ड किए जाने तक प्रियंका गांधी का कोई बयान या ट्वीट नहीं आया और ना ही सीएम गहलोत का कोई ट्वीट. ये बात हर पार्टी और नेता की तरफ से रहती है. विपक्ष रहे तो हल्ला बोल, कानून व्यवस्था के नाम पर सवाल और सत्ता मिली तो जवाब आता है कि सबकुछ सरकार नहीं कर सकती. हम मानते हैं कि सरकार सबकुछ नहीं कर सकती, समाज भी अपनी जिम्मेदारी है. मगर सरकार क्या पुलिस को इतना भी निर्देश नहीं दे सकती कि महिलाओं से जुड़े मामलों में तत्काल कार्रवाई की जाए, जो कि यहां नहीं की गई. या कह लीजिए लगातार नहीं की जा रही है क्योंकि NCRBके आंकड़े कहते हैं कि रेप के मामले में राजस्थान नंबर 1 पर है, सबसे ज्यादा रेप की घटनाएं राजस्थान में हुई हैं. साल 2019 में रेप के 5997 मामले दर्ज हुए, यानी प्रतिदिन 16 केस. ठीक इसी तरह साल 2020 में 5310 रेप के मामले सामने आए यानी 15 केस प्रतिदिन जबकि 2018 में वसुंधरा सरकार के वक्त 4335 रेप केस दर्ज हुए यानी 12 केस प्रतिदिन. साफ है कि पिछली सरकार की तुलना में रेप केस राजस्थान में बढ़ गए हैं और इस मामले में नंबर वन होना किसी भी सूबे के लिए दागदार हैं. मगर इस पर भी पुलिस और सरकार कहती है कि हम हर मामला दर्ज करते हैं इसलिए ये आंकड़े हैं और इस भी तुर्रा ये कि पुलिस कहती है 43%आंकड़े झूठे होते हैं. ऐसा 2300 से ज्यादा मामलों में फाइनल रिपोर्ट लगाने के बाद पुलिस कहती है. फिर भी पुलिस के ये बयान भी पीड़ित पक्ष के मनोबल को तोड़ने वाले होते हैं. और अपराधियों के हौसलों को बुलंद करते हैं. इस मामले में फिलहाल पुलिस ने IPC की धारा 376 और पॉक्सो एक्ट की 3,4,5,6 धाराओ में मामला दर्ज किया. जबकि पुलिस ने प्राइवेट पार्ट्स में वार कर नुकसान पहुँचाने पर 376 A में मामला दर्ज करना चाहिए था. इसके अलावा पुलिस ने जानलेवा कोशिश की धाराएं भी दर्ज नहीं की हैं.इससे पुलिस की कार्यशैली पर बड़ा सवाल उठ रहा है. मगर इस मामले में सरकार के नुमाइंदे कह रहे हैं कि वो कड़ी कार्रवाई करेंगे कार्रवाई होगी, मगर कब ये सवाल अब भी बना हुआ है. बच्ची मासूम है, परिवार गरीब है. माता-पिता दोनों मजदूरी करते हैं और उनकी मजबूरी बड़ी ही संवेदना के साथ समझना होगा. सरकार से सवाल तो है मगर रही बात पॉलिटिकल नैरेटिव की तो एक सवाल विपक्ष के तौर पर बीजेपी से भी है. जिस राज्य में जो विपक्ष में रहता है कि उसके नेता सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करते हैं. प्रियंका गांधी के उत्तर प्रदेश की घटनाओं में जाने पर बीजेपी उसके तार राजस्थान से जोड़ती है और विरोधी के नाते ये उसका अधिकार है ? मगर खुद बीजेपी राजस्थान में विपक्ष में होकर अपनी मजबूत स्थिति क्यों नहीं दर्ज कराती ? बजाय प्रियंका गांधी से पूछने के लिए वो अपने बड़े नेताओं को जमीन पर उतार सरकार को क्यों नहीं झकझोरती है ? इस मामले में भी ऐसा ही हुआ है. स्थानीय नेता तो विरोध कर रहे हैं. मगर क्या सिर्फ ट्वीट करने से जिम्मेदारी पूरी हो जाती है ? पूर्व सीएम वसुंधरा राजे क्यों नहीं विरोध करने उतरीं ? वो क्यों खुद प्रदर्शनों को लीड करती हैं, क्या सीधे चुनाव के वक्त ही बाहर आएंगी राज्य में बीजेपी के अध्यक्ष सतीश पुनिया क्यों नहीं अलवर गए ? पूर्व महिला विकास मंत्री अनीता भंदेल क्यों पीड़ित से नहीं मिलीं ? या इनके अलावा दिल्ली के शीर्ष नेतृत्व से राजस्थान में जाकर विरोध क्यों नहीं करता ? प्रियंका गांधी और राहुल गांधी उत्तर प्रदेश जाते हैं तो सरकार पर दबाव बनता है, क्या ऐसा नहीं होना चाहिए कि दिल्ली से बीजेपी के बड़े नेता राजस्थान पहुंचकर विपक्ष की भूमिका निभाएं, गहलोत सरकार पर कार्रवाई का दबाव बनाए ? इस पर भी बतौर विपक्ष बीजेपी को सोचना चाहिए. बड़े नेताओं को जाकर परिवार से संवेदनाएं जतानी चाहिए, क्योंकि बड़ी मुश्किल से 7 डॉक्टरों की टीम ने प्लास्टिक सर्जरी कर उसकी जान बचाई है. डॉक्टर कहते हैं कि 25 दिन में बच्ची के जख्म भरने शुरू हो जाएंगे. मगर बच्ची का चेहरा, उसकी पीड़ा, उसकी वेदना डॉक्टर भी नहीं भूल पा रहे. होश आती है तो रोने लगती है, अपने माता-पिता को खोजने लगती है. शरीर के जख्म तो कुछ दिन में भर जाएंगे, मगर आत्मा पर जो चोट हुई है वो शायद ही कभी भर पाएगी. वो भले ना बोल पाए, लल्लनटॉप की टीम उसकी आवाज लगातार उठाती रहेगी, जबकि पुलिस कोई ठोस कार्रवाई नहीं कर देती. जब तक कोई कठोर संदेश नहीं दे देती.