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लुच्चों ने मां सरस्वती बनी एक्ट्रेस की न्यूड फोटो लगा दी

लेकिन वो एक्ट्रेस भी उन सबकी अम्मा थी, हार्वर्ड से पढ़ी, भारत रत्न प्राप्त अर्थशास्त्री की बेटी.

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फिल्म रंग रसिया के दृश्य में नंदना सेन.
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19 अगस्त 2016 (Updated: 19 अगस्त 2016, 03:44 PM IST) कॉमेंट्स
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'अमर्त्य सेन साहब, आप पहले अपना घर और अपनी बेटी को संभाल लीजिए. वही बहुत होगा आपके लिए. देश और मोदी पर निर्णय लेने के लिए भारत के नागरिक बहुत हैं. हमें किसी भी विदेशी नागरिकता प्राप्त सठियाए बुढ्ढे की सलाह नहीं चाहिए. बेटी तो संभाली नहीं जाती बात करते हैं.. शर्म करो!'

ये बात दो साल पहले की है. विश्व के बेहद सम्मानित अर्थशास्त्री और भारत रत्न अमर्त्य सेन ने लोकसभा चुनावों से पहले कहा कि उन्हें नरेंद्र मोदी पीएम के रूप में नहीं चाहिए. जवाब में सोशल मीडिया के लुच्चों से और तो कुछ होते नहीं बना, उन्होंने सेन की अभिनेत्री बेटी की नग्न तस्वीर सोशल मीडिया पर लगा दी. वैसे ये morphed थी, असल फोटो न थी. लेकिन इस टुच्चे एक्ट से उन भ्रमित लोगों ने क्या पा लिया? कुछ नहीं. वे नहीं जानते थे कि वो औरत उन जैसे करोड़ों पर भारी है. ज्ञान में, टैलेंट में, विश्व दृष्टिकोण में, जागरूकता में.
अदाकारा, ऑथर, और फिल्ममेकर नंदना सेन के 48वें जन्मदिन पर हम जानते हैं कि ऐसा क्यों है?
अमर्त्य सेन और ऑथर मां नबनीता देब सेन की बेटी नंदना शुरू से लिट्रेचर से जुड़ी थीं. महान फिल्मकार और लेखक सत्यजीत रे के मार्गदर्शन में बचपन में 'संदेश' मैगज़ीन में उनका लिखा प्रकाशित हुआ. हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से लिट्रेचर की पढ़ाई कर आईं नंदना ने जब 30 की उम्र में, 1997 में अपनी पहली फिल्म 'गुड़िया' में अभिनय किया तो करीबियों की यही प्रतिक्रिया थी कि इस उच्च शिक्षा के बाद फिल्मों में क्या कर रही हैं? उन्हें या तो इकोनॉमिस्ट होना था, या सिर्फ ऑथर. मगर नंदना का मन कलाकार है. वे मशहूर ली स्ट्रॉसबर्ग इंस्टिट्यूट से एक्टिंग में प्रशिक्षण भी ले चुकी है. उन्हें पता है कि विरासत में मिले साहित्य से उनका विशेष नाता है. वो किसी एक शौक पर उंगली रख कर ये नहीं बता पाई कि कौन सा उनका शौक था. सारे शौक रंगों की पटिया में बिखेर दिए और स्वादानुसार इस्तेमाल करने लगीं. हाल ही में 'मांझी: द माउंटेनमैन' का निर्देशन करने वाले केतन मेहता ने 2008 में 'रंग रसिया' बनाई. इसमें दिग्गज पेंटर राजा रवि वर्मा की भूमिका रणदीप हुड्‌डा ने की और नंदना बनी थीं उनकी म्यूज़ और प्रेमिका. तब से तैयार ये फिल्म लंबे समय तक भारत में रिलीज नहीं हो पाई क्योंकि इसमें न्यूड सीन थे और सेंसर को बर्दाश्त न थे. राजा रवि वर्मा ने जो मां सरस्वती की वीणा लिए फोटो बनाई या जो मां लक्ष्मी का चित्र बनाया, आज हम उसी स्वरूप में इन देवी-देवताओं को देखते और कल्पना करते हैं. फिल्म में नंदना ने न्यूड सीन दिए थे. मां सरस्वती, लक्ष्मी और अन्य प्रेरणाएं बनने की प्रक्रिया में. वे कला में सेंसरशिप के पक्ष में नहीं हैं, और नंदना जब भी यूं खुद को एक्सप्रेस करतीं, विवाद हो जाता. 2005 में 'टैंगो चार्ली' में भी उन्होंने बोल्ड सीन किया. नग्नता और नेचुरल ऑर्डर को उन्होंने अपना साथी बना लिया था.आर्ट और सिनेमा में 'न्यूडिटी' को वे सौंदर्यशास्त्र का हिस्सा मानती हैं और सपोर्ट करती हैं. नंदना का मानना है कि फीमेल बॉडी को रहस्य बनाकर रखना एक दकियानूसी क़दम है. जब दुनिया नंदना को फिल्म में न्यूड सीन देने के लिए जज कर रही थी, उनके माता-पिता ने माना कि नंदना द्वारा निभाए सुगंधा के किरदार का नग्न होना यथार्थ लाने के लिए बेहद जरूरी है.
नंदना ने शर्म को भी आड़े-हाथों लिया है. ये काम उन्होंने सिनेमा और लेखन, दोनों के ज़रिये किया है. लिट्रेचर में 'शेम' के आसपास बहुत काम हुआ है. टॉलस्टॉय का 'एना कैरेनिना' और हॉथोर्न का 'द स्कारलेट लैटर' शर्म के इंसानी इमोशन को तार-तार कर देते हैं. नंदना ने भी 'शेमलेसली फीमेल' नाम की एक किताब लिखी है. इसमें भारत में लड़कियों पर थोपी गई शर्म और नज़ाकत पर प्रहार किया गया है. नंदना मैगज़ीनों की दुनिया की भी फेवरेट रही हैं. फेमिना, मेंस वर्ल्ड, मैक्सिम वगैरह के कवर पर आ चुकी हैं.
करने वालों ने अमर्त्य और नंदना का कैरेक्टर असैसिनेशन करने की कोशिश की. लेकिन ये भूल गए कि जिस परिवार में निजी स्वतंत्रता, कलात्मक स्वतंत्रता, शिक्षा, विचारों और प्रगतिशीलता जैसे मूल्य हों, वहां आपकी अज्ञानता की दुकान कैसे चलेगी. जिस कल्चर की पूरे कपड़े पहनने वाले दुहाई देते हैं उन्हें ये जानना चाहिए. नंदना बताती हैं कि अपने मां-बाप से उनकी पहली बहस किस बात पर हुई थी. आगे पढ़ने के लिए वो ऑक्सफ़ोर्ड या कैंब्रिज नहीं जाना चाहती थी. इसकी वजह थी कि ब्रिटेन ने उनके देश को 200 साल तक अपना गुलाम बनाए रखा था और ये संस्थान वहां के थे. और इसलिए नंदना ने अपनी पढ़ाई अमेरिका में हार्वर्ड से की.

आर्ट के लिए खड़ी होने वाली और बुलंद फ़ैसले करने वाली नंदना को सलाम.


ये स्टोरी प्रणय ने लिखी है.

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