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नक्सल आंदोलन इन्होंने शुरू किया, आज उनके नाम पर आतंकवादी घूमते हैं

जानिए देश के पहले नक्सल नेताओं को.

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ऋषभ
25 अप्रैल 2017 (Updated: 25 अप्रैल 2017, 06:17 AM IST) कॉमेंट्स
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छत्तीसगढ़ के सुकमा में माओवादी हमला हुआ है. 26 जवान मारे गए हैं. कहने को तो ये नक्सली हमला है जो नक्सल आंदोलन के नाम पर लड़ा जा रहा है. पर ये सच नहीं है. ये उग्रवाद है. जो नक्सल आंदोलन था, वो बहुत पहले ही खत्म हो गया. ये आंदोलन शुरू करने वाले लोगों ने ही कहा था.



नक्सलबाड़ी आन्दोलन को शुरू हुए 50 साल हो गए. लेकिन सरकार और नक्सलवादियों के बीच जंग अभी भी जारी है. पर ये कौन सी आइडियोलॉजी है जिससे सरकार 50 सालों में भी पार नहीं पा सकी? किसने ये शुरू किया था? नक्सलबाड़ी क्या है? कौन था पहला नक्सल?

सिलिगुड़ी में सबको महानंदा पारा रोड के बारे में पता है. एक बार आप इस रोड के बारे में पूछेंगे. फिर लोग पूछेंगे कि चारू मजूमदार के घर जाना है? तुरंत जवाब भी दे देंगे: बस सीधा जाइये. बाएं से राईट.
इसी रोड के हाउस नंबर 25 में चारू मजूमदार अपने कॉमरेड दोस्तों के साथ बैठते थे. नक्सलबाड़ी गांव को जमींदारों के चंगुल से आज़ाद कराने की बातें होती थी. यहीं पर चारू मजूमदार और कानू सान्याल ने 'हिस्टोरिक 8 डाक्यूमेंट्स' तैयार किए थे जिसने इंडिया में कम्युनिस्ट 'आर्म्ड रेवोलुशन' की नींव रखी थी. यहीं से चारू और उनके साथी सरकार के दुश्मन हो गए.

चारू मजूमदार जो कभी जमींदार थे

चारू मजूमदार 1918 में एक जमींदार परिवार में जन्मे थे. बचपन से ही उनके अन्दर 'जमींदारी हैवानियत' के प्रति एक चिढ़ थी. राम मोहन रॉय, ईश्वरचंद विद्यासागर, स्वामी विवेकानंद, टैगोर सबको नकार दिया था चारू ने. कहते थे ये सब ब्रिटिश हैं.
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चारू मजूमदार

कॉलेज छोड़कर कुछ दिन तक चारू कांग्रेस के इर्द-गिर्द घूमते रहे. बीड़ी बनानेवालों को संगठित करने का प्रयास किया. फिर 1937-38 में CPI जॉइन कर ली. 1943 के बंगाल अकाल और 1946 के तेभागा आन्दोलन में चारू ने कार्यकर्ता के रूप में खूब काम किया था. तेभागा ने चारू की जिंदगी की दिशा बदल दी.
तेभागा मतलब तिहाई. उस समय बंगाल में फसल पूरी होने पर जमींदार आधी ले लेते थे और किसानों को आधी फसल ही मिलती थी. पर किसान दो-तिहाई चाहते थे. क्योंकि हाड़-मांस वही गलाते थे. आन्दोलन सफल रहा. पर चारू का काम बढ़ गया. अब उनको हर जगह जमींदारों से किसानों को मुक्ति चाहिए थी.

चारू हुए नक्सलिज्म के पिता और कानू हुए पहले नक्सल

1948 में सरकार के खिलाफ काम करने के लिए चारू मजूमदार को जेल हुई थी. CPI को बंगाल में बैन कर दिया गया था. वहीं पर उनकी मुलाकात कानू सान्याल से हुई. 1949 में कानू ने वेस्ट बंगाल के मुख्यमंत्री बिधान चन्द्र रॉय को CPI को बैन करने के लिए काले झंडे दिखाए थे. 1952 में कानू ने भी CPI जॉइन कर लिया.
कानू सान्याल , 2009- Bappaditya
कानू सान्याल , 2009- Bappaditya

दोनों लोग काम करते रहे. फिर पार्टी CPI टूट गई. चारू और कानू ने CPI(Marxist) जॉइन कर ली. इसके बाद इस पार्टी में चीन की तर्ज पर 'आर्म्ड रेवोलुशन' की बात चलने लगी. चारू मजूमदार की अगुवाई में. पार्टी ने इस बात को पूरी तरह नकारा नहीं पर स्वीकार भी नहीं किया.
1965 में चारू अपने 'हिस्टोरिक 8 डाक्यूमेंट्स' के साथ आये. इसमें चीन के माओ जेदांग को आइडियल मानते हुए भारत सरकार के खिलाफ जंग छेड़ने की बात की गई. कहा गया कि अब राजनीति से काम नहीं चलेगा. फुल्टू एक्शन चाहिए.
1967 में चारू मजूमदार को पार्टी से निकाल दिया गया. क्योंकि पार्टी की वेस्ट बंगाल में सरकार आ गई थी. और चारू अब सरकार से लड़ाई करनेवाले थे. खुलेआम कह दिया था कि अब हथियार छीने जायेंगे और जमींदारों का सिर कलम किया जायेगा. कानू सान्याल ने एक बार कहा था कि वो वक़्त 'आर्म्ड रेवोलुशन' के लिए एकदम सही था. क्योंकि कार्यकर्ता बिल्कुल ही जोश में थे. कानू अब चारू के साथ हो गए. चारू हुए नक्सलिज्म के पिता और कानू हुए पहले नक्सल.

फिर नक्सलबाड़ी में हुआ पहला खून

अप्रैल 1967 में एक घटना हुई. भिगुल किसान के पास जमीन नहीं थी. वो ईश्वर तिर्की की जमीन जोतता था. बहुत ही कम फायदे पे. एक दिन उसने अपने फायदा बढ़ाने की बात की. ईश्वर ने उसको जमीन से बेदखल कर दिया. भिगुल ने 'कृषक सभा' में शिकायत की. कानू सान्याल इस संगठन के नेता थे. उन्होंने तिर्की को घेरा. पर तिर्की जो एयरफोर्स में इंजिनियर रह चुका था अब बंगाल कांग्रेस का सदस्य था. बाद में वो कांग्रेस की सरकार में बंगाल में मंत्री भी बना. उसने अपनी ताकत का इस्तेमाल किया. दिल्ली से CRPF की बटालियन भेजी गई. तिर्की बच गया.
पर जमींदार नगेन रॉय चौधरी बदकिस्मत निकले. उनके लिए पुलिस नहीं आ पाई. कानू सान्याल के आर्डर पर नगेन का सर कलम कर दिया गया. सर कलम करनेवाले थे 6 फीट 5 इंच के जंगल संथाल. बाद में जंगल नक्सलवादियों के 'सिर कलम' स्पेशलिस्ट बने. इस घटना से हदस कर जमींदार सरकार के पास गये. उस समय बंगाल के होम मिनिस्टर थे ज्योति बासु.
उस वक़्त के ज्योति बसु
उस वक़्त के ज्योति बसु

उन्होंने किसानों को टेररिस्ट का टैग दे के पुलिस को भेज दिया. उस समय महिला नक्सल शांति की लीडरशिप में किसानों का एक ग्रुप जमींदारों से जमीन छीनने जा रहा था. पुलिस से भिड़ंत हुई. इंस्पेक्टर सोनम वांगदी की हत्या हो गई. शांति अभी जिन्दा हैं. मैगज़ीन द वीक के हवाले से बताती हैं कि उन्होंने सोनम को एक प्रेग्नेंट औरत को लात मारते देखा था. इसीलिए उसको मारने का आर्डर दिया. बाद में वो प्रेग्नेंट औरत मर गई थी. अगले दिन पुलिस ने जवाब में 9 औरतों को मार दिया.
इस घटना ने नक्सल आन्दोलन की दशा-दिशा बदल दी. कानू सान्याल ने डिक्लेयर किया कि अब नक्सलबाड़ी को आज़ाद करने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं. इसके बाद नक्सलबाड़ी में हिंसा चरम पर पहुंच गई. एक-एक कर कई जमींदारों को मार दिया गया. उनकी जमीनें छीन ली गयीं.
आगे शांति कहती हैं कि हमारा उद्देश्य पूरे इंडिया के किसानों को जमींदारी से मुक्त कराना था. पर हो नहीं पाया. आज भी वही हालात हैं.

चाईनीज आइडियोलॉजी और War of Annihilation

1968 में नक्सल नेता अपने कॉमरेड्स के साथ चीन गए. माओ से मिले. वहां बड़ा स्वागत हुआ. दो-ढाई महीने रहे वहां. कहा जाता है कि वहां इन लोगों को मिलिट्री ट्रेनिंग भी दी गई. खुदन मलिक भी गए थे उस टीम में. द वीक को बताते हैं: 'माओ ने कहा कि मलिक तुम चाईनीज जैसे दिखते हो. और तुम्हें चीन की सेना में होना चाहिए. फिर आगे कहा कि CPI की पार्टी से इंडिया में क्रांति नहीं आएगी. नक्सलाइट ही ये क्रांति ला सकते हैं. पर माओ ने ये भी कहा कि 'आर्म्ड रेवोलुशन' से पहले जनता का सपोर्ट जुटाना होगा.
चीन में माओ की 120 फुट मूर्ति
चीन में माओ की 120 फुट की मूर्ति

चारू मजूमदार माओ की इस बात से सहमत नहीं थे. वो सब कुछ जल्दी से करना चाहते थे. दिलचस्प ये है कि एक मीटिंग में कानू सान्याल चारू की 'आर्म्ड रेवोलुशन' वाली बात पर राजी नहीं थे. पर चीन से लौटने के बाद वो एकदम मूड में थे.
अप्रैल 1969 में लम्बी मीटिंग हुई. नई पार्टी CPI(ML) बनाई गई. ML यानी मार्क्सिस्ट-लेनिनिस्ट. चारू ने इस इवेंट को 'War of Annihilation' कहा. यही उनकी थ्योरी भी थी. जमींदारों का कम्पलीट सफाया.
इस बात से भड़क कर पुलिस जबरदस्त तरीके से पार्टी के पीछे पड़ गई. चारू इस पार्टी के साथ अंडरग्राउंड हो गए. पर कानू को सरकार ने गिरफ्तार कर लिया.

नक्सलिज्म से इश्क का दौर गुजरा, कानू ने कहा बाय

जेल में कानू का दिल बदल गया. उनको अपनी पार्टी की कमियां नज़र आने लगीं. मुख्यमंत्री ज्योति बासु ने उनको जेल से छुड़वा दिया. 1977 में कानू ने अपनी पार्टी को अलविदा कह दिया. पार्टी ने भी बुलाने की कोशिश नहीं की. पर पार्टी की आइडियोलॉजी को इससे बहुत धक्का लगा.
कानू इसके बाद भी पार्टी बनाकर काम करते रहे. पर पहले की तरह नहीं. 2006 में बूढ़े कानू ट्रेन में डकैतों से भिड़ गए. चाकू लग गया पर कानू लड़ते रहे. ये थी उनकी जिन्दादिली!

इंडिया के 'मोस्ट वांटेड मैन' की लाल-बाजार लॉक-अप में मौत

बांग्लादेश की लड़ाई के बाद सरकार नक्सल आन्दोलन के पीछे पड़ गई. 1972 में चारू मजूमदार इंडिया के 'मोस्ट वांटेड मैन' थे. कहा जाता है कि जब पुलिस कलकत्ता में चारू को खोजती थी तो लोग उनके बारे में बताते नहीं थे. ऐसा क्या था कि गांव के किसानों के लिए लड़नेवाले लड़ाके को शहरी लोग बचाते फिर रहे थे?
लालबाज़ार पुलिस स्टेशन
लालबाज़ार पुलिस स्टेशन

फिर चारू के एक नजदीकी पुलिस के हत्थे चढ़ गए. उनको इतना टार्चर किया गया कि वो बर्दाश्त नहीं कर पाए और चारू के बारे में बता दिया. 16 जुलाई 1972 को चारू को गिरफ्तार कर लिया गया. लाल-बाजार लॉक-अप में दस दिन की पुलिस कस्टडी में चारू से किसी को मिलने नहीं दिया गया. वकील को भी नहीं. किसी भी कोर्ट में पेशी नहीं हुई. कहते हैं कि पुलिस ने चारू को भयानक टार्चर किया. लाल-बाजार लॉक-अप उस वक़्त 'नक्सल टार्चर' के लिए कुख्यात हो गया था. बिना किसी केस-मुकदमे के 28 जुलाई को उसी लॉक-अप में चारू को मौत मिल गई. कहते हैं कि चारू की डेड बॉडी को भी पुलिस ने घरवालों को नहीं दिया और खुद ही जला दिया.
आज नक्सलबाड़ी शांत जगह है. नगेन रॉय चौधरी के नाती सदानंद के मलिक से अच्छे रिश्ते हैं. मलिक वही जो चीन गए थे. मालिक ने नगेन की हत्या में जंगल संथाल का साथ भी दिया था. पर वो बात अब ख़त्म हो गई है. ईश्वर तिर्की के बेटे सुनील तिर्की कहते हैं कि नक्सल आन्दोलन की वजह थी. इसके पीछे लोगों का उद्देश्य बड़ा था. पर हत्याओं को मैं सपोर्ट नहीं करता था. वो एक वजह बन गई इस आन्दोलन के गिरने की. शांति कहती हैं कि हमारे नेता चारू का उद्देश्य बहुत बड़ा था. पर बाद में सही लोग नहीं आये और आन्दोलन बिखर गया. आज जो हो रहा है वो हम नहीं चाहते थे. जंगल संथाल बाद में शराबी हो गए और 1981 में गरीबी में मरे. कानू सान्याल ने 2010 में फांसी लगा ली.
नक्सलवाद के तीनों नेता चारू मजूमदार, कानू सान्याल और जंगल संथाल जिन्दा नहीं हैं. फिर भी नक्सलबाड़ी में एक आर्मी यूनिट है और एक एयरफ़ोर्स बेस भी है. CRPF हमेशा मौजूद रहती है.


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