Interview: 10 रन देकर 8 विकेट लेने वाले धाकड़ बॉलर शाहबाज़ नदीम से हमने पूछे ये 20 सवाल
बेटे को कोई ड्रॉप न कर सके इसलिए पापा ने कैसे अपना क्रिकेट क्लब रजिस्टर करवा लिया था.
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शाहबाज़ तीन क्षणों में: अपने पर्सनल स्पेस में जब वो क्रिकेटर नहीं होते; धोनी के साथ एक मैच में बैटिंग करते हुए, सीखते हुए; और विकेट लेने के बाद की वो छलांग जिसके लिए वो जीते हैं.
इन बॉलर का नाम है शाहबाज़ नदीम. उनके ये बॉलिंग फिगर्स लिस्ट-ए क्रिकेट में अब वर्ल्ड रिकॉर्ड बन चुके हैं. इससे पहले ये रिकॉर्ड दिल्ली के राहुल संघवी के नाम था. संघवी ने 1997 में 15 रन देकर 8 विकेट लिए थे. करीब 14 साल के डॉमेस्टिक क्रिकेट करियर वाले 29 साल के शाहबाज़ ने अभी तक 500 के करीब विकेट ली हैं. 15 साल की उम्र में वो इंडिया अंडर-19 वर्ल्ड कप भी खेल चुके हैं. 2006 के उस कप में वो रोहित शर्मा, रवींद्र जडेजा, चेतेश्वर पुजारा और पीयूष चावला के साथ श्रीलंका वर्ल्ड कप खेल कर आए थे. इस वक्त नेशनल सलेक्टरों की नजर उन पर है और अनुमान है कि टीम इंडिया में वे जल्द ही डेब्यू करते दिखेंगे.
शाहबाज़ से हमने बात की.
1. इस रिकॉर्ड के क्या मायने हैं आपके लिए?
ये मेरे करियर का काफी स्पेशल डे है. अच्छा लगता है जब टीम आपकी परफॉर्मेंस से जीतती है. एकदम ऐसी ही फीलिंग पिछले साल रणजी में हुई थी जब बड़ौदा में हरियाणा के खिलाफ खेलते हुए मैंने दोनों इनिंग्स में 11 विकेट लिए थे और टीम जीती थी. टीम की जीत हमेशा जरूरी है.
2. एशिया कप में नेट्स में गेंदबाजी का कैसा एक्सपीरियंस रहा?
बहुत अच्छा. जब आप सीनियर टीम को बॉलिंग करते हैं और उनके साथ नेट्स में टाइम बिताते हैं तो काफी कुछ सीखने को मिलता है. वहां से सीखा हुआ मैं अपने डॉमेस्टिक गेम में भी यूज करता हूं. माही भाई (महेंद्र सिंह धोनी) से मेरी काफी बात होती है. वहां भी बात हुई और सीखने को मिला कि फील्ड प्लेसमेंट कैसी होनी चाहिए. फ्लैट विकेट पर कैसी हो और टर्निंग ट्रैक पर कैसी हो, लैंफ्ट हैंड बैट्समैन और राइट हैंड बैट्समेन के लिए क्या रणनीति हो, ये सब बातें मैंने उनसे कीं. एशिया की टीमें हैं तो हर टीम में कोई न कोई लेफ्ट आर्म स्पिनर रहता ही है इसलिए मुझे नेट प्रैक्टिस के लिए बुलाया था ताकि टीम की ज्यादा से ज्यादा तैयारी हो सके.

घरेलू क्रिकेट में एमएस धोनी के साथ प्रैक्टिस सेशंस के दौरान शाहबाज़ नदीम.
3. अापके बचपन की पहली क्रिकेट मैमोरी क्या रही है?
मैं बेसिकली बिहार का हूं. बिहार के मुजफ्फरपुर का हूं. मेरे फादर पुलिस में थे. उनकी पोस्टिंग हुई थी धनबाद. मुजफ्फरपुर में उस वक्त क्रिकेट का इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं था. धनबाद आए तो यहां फादर को जहां स्टाफ क्वार्टर मिला वहीं पास में टाटा की टीसीएस एकेडमी थी. वहां से इंटरेस्ट आने लगा. 1998 में पहली बार मुझे याद है मैं फोर्थ स्टैंडर्ड में था. मेरे बड़े भाई अशद इक़बाल भी क्रिकेट खेलते थे. वो बिहार की अंडर-15 टीम के कप्तान थे. मेरे फादर को बहुत इंटरेस्ट था स्पोर्ट्स में और उन्होंने ही टीसीएस में कोच इम्तियाज हुसैन को मुझे ट्रेनिंग देने की रिक्वेस्ट की थी. फिर घर पर ही सीमेंटेड पिच बनवा दी.
4. स्पिन बॉलिंग कैसे शुरू की?
मैं बहुत छोटा था और दुबला पतला भी होता था. मगर मुझे फास्ट बॉलर बनना था. कोच ने देखा तो कहा कि नहीं तुम पहले स्पिन बॉलिंग से शुरू करो. बाद में देखेंगे कि क्या करना है. उन्होंने फिर हाथ पकड़-पकड़ कर सिखाया कि एक्शन कैसे बनाना है और कैसा एक्शन होना चाहिए. सब सिखाया उन्होंने. मैं पूरा-पूरा दिन बॉलिंग करता था.
5. आपने जानबूझ कर बाएं हाथ से बॉलिंग करनी शुरू की या आप लेफ्टी ही हैं?
नहीं, मैं लेफ्टी ही हूं. मैं लेफ्ट से ही हर काम करता हूं जैसे लिखना या खाना. मगर बैटिंग में राइट हैंडर हूं.
6. एजग्रुप क्रिकेट खेलने की शुरुआत कैसे और कहां से हुई?
मैंने सबसे पहले बिहार के लिए अंडर-14 खेलना शुरू किया. 1999 में मैंने शुरू ही किया था क्रिकेट सीखना. 2000 में मैं स्टेट खेला और अपने स्टेट का हाइएस्ट विकेट टेकर था. फिर अंडर-15 स्टेट, अंडर-17 स्टेट खेला और फिर इसी साल अंडर-19 स्टेट भी खेला. 2001 में जब अंडर-19 खेल रहा था तो मैं उस वक्त छठी क्लास में था. यानी 12 साल का था. मैंने क्रिकेट बहुत जल्दी खेलना शुरू कर दिया था. मैं दिन भर बॉलिंग करता था. हमारे कोच ने काफी मेहनत की थी. उसके बाद 2003 में मैं इंडिया अंडर-15 खेला. तब तक मैं अंडर-19 स्टेट के लिए वन-डेयर खेल चुका था.
मैं 2006 में इंडिया अंडर-19 वर्ल्ड कप में भी खेलने गया था. विराट से एक वर्ल्ड कप पहले. रविकांत शुक्ला कप्तान थे और श्रीलंका में ये हुआ था. मुझे उसमें एक ही मैच खेलने का मौका मिला था और उसमें मैंने 8 ओवरों में 3 विकेट लीं थी. मगर उससे पहले ही 2004 में मैं रणजी ट्रॉफी खेल चुका था.
7. पहली बार किस क्रिकेटर से मिलने का मौका मिला था?
फर्स्ट टाइम मैं मिला था सबा करीम से. वो वहीं टाटा का जो ग्राउंड था वहां गेस्ट हाउस में रुके थे. मेरे फादर के एरिया में वो गेस्ट हाउस आता था, वो मुझे लेकर गए थे उनसे मिलाने. तब वो इंडियन टीम में खेलते थे. तब मैं बहुत छोटा था तो याद नहीं कि सबा करीम से क्या बात हुई थी, मगर मैं पहली बार किसी बड़े क्रिकेटर से मिल रहा था.

विकेटकीपर-बल्लेबाज रहे सबा करीम की गुज़रे दिनों की एक विंटेज फोटो.
8. किस स्पिनर को अपना आदर्श मानते हैं?
मैं डेनियल वेट्टोरी को काफी फॉलो करता था. उनकी फ्लाइट वेरिएशन और हवा में पेस वेरिएशन काफी अच्छी है. आईपीएल में मुझे पहली बार उनसे मिलने का मौका मिला था. तब मैंने फ्लाइट वैरिएशन, एक्शन और बॉडी वेट ट्रांसफर के बारे में पूछा था. उन्होंने बहुत सारे टिप्स मुझे स्पिन बॉलिंग के बारे में दिए थे.

डेनियल वेट्टोरी जो न जाने कितने इंडियंस के भी फेवरिट क्रिकेटर्स में से हैं. (फोटोः रेडिट/सीपीएल/स्पोर्टिंग हीरोज़)
9. इंडिया-ए में राहुल द्रविड़ की कोचिंग को लेकर क्या याद आता है?
राहुल द्रविड़ क्रिकेट को बहुत आसान कर देते हैं. ईज़ी बातें करते हैं, बिल्कुल भी कॉम्पलीकेट नहीं करते हैं. बतौर प्लेयर समझने में आसानी होती है कि कोच और गेम की क्या एक्सपेक्टेशन हैं आपसे. उनका स्टाइल बहुत सख्त नहीं है, बल्कि अनुशासन भरा है. वो एक जेंटलमैन हैं.
10. ज़िंदगी में वो कौन सा पल था जब लगा कि अब आपको क्रिकेट ही खेलना है?
अंडर-15 क्रिकेट खेलते हुए ये महसूस हुआ था कि अब क्रिकेट के अलावा कुछ नहीं करूंगा. हुआ ये था कि मैं 2003 में क्रिकेट छोड़ चुका था क्योंकि दोनों भाई खेल रहे थे. मेरा बड़ा भाई अच्छा कर रहा था. तो फादर को था कि एक ही बेटा खेले क्योंकि खेलना थोड़ा रिस्की भी था. उस वक्त आईपीएल भी नहीं था और डॉमेस्टिक क्रिकेट में भी पैसा नहीं मिलता था. दूसरा, पिता जी को लगता था कि अगर आप कंट्री नहीं खेले तो कुछ नहीं है और फिर घर में पढ़ाई का माहौल भी था. मगर अगला सीजन आया तो मेरा नाम कैंप के लिए आ गया. मैंने फादर को कहा कि अभी मेरे एग्जाम भी हो गए हैं और मैं खेलकर आ जाता हूं. बस एन्जॉयमेंट के लिए चला जाता हूं. वहां गया तो परफॉर्मेंस अच्छा हुआ. ट्रायल के लिए कॉल आया और फिर सलेक्शन हो गया. उसके बाद क्रिकेट कंटिन्यू रहा.

शाहबाज़ जब क्रिकेट के मैदान पर नहीं होते तो ख़ुद को क्लिक करते हैं.
11. करियर में अभी तक सबसे बड़ा स्ट्रगल क्या रहा है?
स्ट्रगल तो हर क्रिकेटर के करियर में आता है. मेरे करियर में भी आया था 2008 से 2010 के बीच में जब मैं झारखंड छोड़कर बंगाल के लिए खेलने की कोशिश कर रहा था. यहां से एनओसी लेकर वहां गया, तो वहां भी सलेक्शन नहीं हुआ. डेढ़-दो साल वहां लीग और क्लब क्रिकेट खेला. मगर कुछ बन नहीं पाया. फिर मैं वापस आया तो यहां भी प्रेशर सिचुएशन थी और जगह बनानी मुश्किल थी. मगर वापस आकर अच्छा किया और सलेक्शन होने लगा.
12. वो क्या चीज है जो आपको रोज़ सुबह उठने के लिए मोटिवेट करती है? इतने बरसों से.
वो चीज यही है- To play for your country, the passion to play for your country. मेरी फैमिली वाले काफी सपोर्टिव रहे हैं. सब लोग चाहते हैं कि मैं कंट्री खेलूं. वो एक मोटिवेशन रहता है कि खुद के लिए भी खेलना है और फैमिली के लिए भी खेलना है. खासकर मेरे फादर ने हर वो चीज देने की कोशिश की जिससे मेरी क्रिकेट इंप्रूव हो. जब 1999 में मैं सीख रहा था तो हमारे यहां क्लब क्रिकेट में तीन डिविजन होते हैं- सुपर डिविजन, ए डिविजन और बी डिविजन. फादर ने एक डिविजन में डाला मगर जब मैच खेलने गए तो दोनों भाइयों को टीम में नहीं खिलाया गया. मेरे फादर को पता चला तो उन्होंने अपना ही क्लब बना लिया. रजिस्टर करवा लिया ताकि एक खुद का क्लब रहेगा तो मेरे बेटों को कोई ड्रॉप नहीं कर पाएगा.

महान स्पिनर ईरापल्ली प्रसन्ना के साथ एक अवॉर्ड फंक्शन में शाहबाज़ नदीम.
13. फूड हैबिट्स क्या हैं आपकी और फिटनेस के लिए खास परहेज़ रखते हैं?
मुझे घर का खाना बहुत पसंद है. घर का कुछ भी खिला दो सब खाता हूं. मेरी मां कबाब बहुत अच्छा बनाती हैं. मेरी वाइफ तहरी अच्छा बनाती हैं. तहरी एक डिश होती है जो चावल से बनती है. वो पसंद हैं. बाकी मेरा शरीर शुरू से ऐसा ही है. कुछ भी खा लूं कुछ होता नहीं है. फिटनेस गॉड गिफ्टेड है.
14. अब आप सलेक्टर्स की नजर में हैं, कभी भी टीम में लाया जा सकता है. अब फैमिली क्या सोचती है?
फादर अभी भी संतुष्ट नहीं हैं. उनका मानना है कि इंडिया के लिए खेलते तो कई लोग हैं, मगर खेलने के साथ वहां बने रहने ज्यादा जरूरी है.
15. लंबे डॉमेस्टिक करियर के बाद आपकी बॉलिंग में क्या-क्या नया जुड़ा है?
मैच्योरिटी आ गई है क्योंकि मैंने क्रिकेट बहुत कम ऐज में शुरू कर दिया था. अभी 29 साल का हूं और 13-14 फर्स्ट क्लास क्रिकेट खेल चुका हूं. मैं डिस्कशन बहुत करता हूं, अपने भाई से भी. वो मेरे करियर में काफी इंटरेस्टेड है क्योंकि जब उसने क्रिकेट छोड़ा था तो वो हमारी अंडर-19 स्टेट टीम का कैप्टन था. जब मैं अंडर-15 इंडिया खेल गया तो उसको लगा कि चलो अब एक तो खेलेगा क्योंकि उस वक्त आईपीएल भी नहीं था.

उनका बॉलिंग एक्शन.
16. आईपीएल से आपको कितना फायदा मिला?
उससे बहुत फायदा मिलता है. आईपीएल एक बड़ा प्लैटफॉर्म है जहां इतने बडे़ बडे़ प्लेयर्स के साथ ड्रेसिंग रूम शेयर करते हैं. काफी कुछ सीखने को मिलता है और हमारे जैसे यंगस्टर के लिए काफी फ्रूटफुल होता है. पहली बार मैं खेला हूं 2011 में. तीसरे आईपीएल सीजन में मैं मुंबई टीम में था मगर खेलने का मौका नहीं मिला. फिर अगले सीजन से डेल्ही डेयरडेविल्स के लिए खेला. ऑक्शन में तो एक बार गया हूं, वैसे हर बार रिटेन होता हूं. आखिरी बार मुझे 3.2 करोड़ में खरीदा गया था.
17. आज इंडियन डॉमेस्टिक क्रिकेट में कितना पैसा मिलता है?
लिस्ट-ए क्रिकेट, जैसे विजय हजारे ट्रॉफी के एक मैच के लिए 35 हजार फीस मिलती है. रणजी के लिए 1.40 लाख रुपए मिलते हैं. 10 साल पहले रणजी ट्रॉफी मैच के लिए 16 हजार के करीब और लिस्ट-ए के लिए 6 हजार रुपए मिलते थे.
18. करियर के इस पड़ाव में किस चीज पर नजर है?
मैं कोई भी फॉरमेट खेलने के लिए रेडी हूं. मैं ऐसा बॉलर नहीं बनना चाहता जो सिर्फ टेस्ट खेले या सिर्फ टी20 खेले. I want to become a complete bowler who can bowl in each and every format of the game. मुझे पर्सनली तीनों फॉरमेट पसंद हैं. मुझे फॉर-डे क्रिकेट का भी आनंद आता है, टी20 के प्रेशर में भी बॉलिंग करना पसंद है और वनडे क्रिकट में भी अपनी वेरिएशन दिखाना पसंद है. क्रिकेट होनी चाहिए चाहे किसी भी फॉरमेट में हो. पिछले 14 साल से रोजाना ये सपना लिए उठता हूं कि एक दिन इंडिया के लिए खेलूंगा.

IPL में केविन पीटरसन के साथ की तस्वीर और दूसरा मौका पाकिस्तानी स्पिनर सकलेन मुश्ताक़ से बातें करने के दौरान का.
19. कंपीटेटिव क्रिकेट में इतना प्रेशर है, खुद कैसे डील करते हैं?
मैं सोचता ही नहीं हूं इस बारे में. मेरा माइंडसेट अलग है. मैं एक मैच को एक बार में लेता हूं. मैं यही सोचता हूं मुझे मैच खेलना है, अपनी टीम को जिताने के लिए अपना कॉन्ट्रिव्यूशन देने पर ध्यान देता हूं.
20. धोनी के झारखंड से होने से वहां की क्रिकेट कितनी बदली है?
काफी इंप्रूव हुआ है. पिछले कुछ सीजन से देखिए, चाहे रणजी ट्रॉफी हो या कोई भी फॉरमेट हो काफी सुधार हुआ है. पहले ये नहीं था, अब लड़कों को लगने लगा है कि अगर अच्छा खेलेंगें तो हमें भी कंट्री के लिए खेलने का चांस मिल सकता है. धोनी के आने से ये पॉजिटिविटी आई है. वो यहां आते हैं तो लड़कों से काफी बात करते हैं.