The Lallantop
Advertisement

पट्टाभि सीतारमैया, जिन्होंने सिर्फ सुभाष चंद्र बोस से ही टक्कर नहीं ली और भी बहुत कुछ किया

गांधी जी के करीबी थे, लेकिन इनकी एक मांग ऐसी थी, जिसका बापू ने भी विरोध किया था

Advertisement
Img The Lallantop
पट्टाभि सीतारमैया की पहचान 'त्रिपुरी अधिवेशन में महात्मा गांधी के कैंडीडेट' से इतर भी है.
pic
अभय शर्मा
17 दिसंबर 2020 (Updated: 17 दिसंबर 2020, 04:52 PM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

किंवदंतियां और बड़ी पर्सनैलिटीज की टकराहट अक्सर इतिहासकारों और आम लोगों को वह मसाला उपलब्ध करा देती है, जिससे किसी व्यक्ति या किसी दौर के वास्तविक योगदान के मूल्यांकन की तरफ ध्यान देने की जरूरत महसूस नहीं की जाती. कुछ बरसों पहले हमने एक टीवी डिबेट में क्रिकेटर चेतन शर्मा को यह कहते सुना था,


"यदि मैं बाजार जाता हूं तो आसपास के लोग फुसफुसाते हैं कि देखो, ये वही चेतन शर्मा है जिसने शारजाह के फाइनल में आखिरी बाॅल पर सिक्सर पिटवा दिया और इंडिया हार गया. कोई यह याद नही करता कि मैंने वर्ल्ड कप के इतिहास की पहली हैट्रिक ली, इंग्लैंड में टैस्ट मैच में 10 विकेट लिए. सबको सिर्फ मैं, जावेद मियांदाद और शारजाह का फाइनल ही याद रहता है."
लेकिन चेतन शर्मा अकेली ऐसी शख्सियत नही हैं, जिन्हें लोग सिर्फ एक घटना के इर्द-गिर्द समेट देते हैं. समाज के हर क्षेत्र में ऐसे ढेरों लोगों के उदाहरण मिलते हैं, जिनके व्यक्तित्व और उनके योगदान को किसी एक वाक़ये तक सीमित कर देखने की परंपरा-सी बन जाती है, जबकि ऐसे लोगों का उनके अपने क्षेत्र में योगदान कल्पना से परे होता है.

आज हम ऐसी ही एक शख्सियत की चर्चा करने जा रहे हैं, जिन्हें सिर्फ कांग्रेस के त्रिपुरीअधिवेशन और गांधी-सुभाष मतभेद के चश्मे से देखने की कोशिश की जाती रही है. इन शख्सियत का नाम है भोजराजू पट्टाभि सीतारमैया. लोग इन्हें पट्टाभि सीतारमैया के नाम से जानते हैं, और 17 दिसंबर 2020 को इनकी 61वीं पुण्यतिथि है.

अपने जीवनकाल में सीतारमैया ने कई क्षेत्रों में काम किया. एक डाॅक्टर, एक पत्रकार, एक स्वतंत्रता सेनानी- कई पहचान रहीं इनकी. लेकिन इनकी चर्चा अक्सर त्रिपुरी अधिवेशन तक ही सिमट कर रह जाती है. लेकिन आज हम त्रिपुरी अधिवेशन से इतर सीतारमैया से जुड़े चार वाकयों की चर्चा करेंगे. लेकिन पहले ये जान लीजिए कि त्रिपुरी अधिवेशन में हुआ क्या था. 1939 के त्रिपुरी अधिवेशन में कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में पट्टाभि सीतारमैया महात्मा गांधी समर्थित कांग्रेस कैंडीडेट थे, लेकिन सुभाष चंद्र बोस से बुरी तरह हार गए थे.


त्रिपुरी अधिवेशन में महात्मा गांधी के सपोर्ट के बावजूद पट्टाभि सीतारमैया सुभाष चंद्र बोस के हाथों हार गए थे.
त्रिपुरी अधिवेशन में महात्मा गांधी के सपोर्ट के बावजूद पट्टाभि सीतारमैया सुभाष चंद्र बोस के हाथों हार गए थे.

1.जब भाषाई आधार पर राज्य बनाने की वकालत की

यह 1912-13 का दौर था. उस दौर में मद्रास राज्य में तमिल और तेलगुभाषी लोगों की बहुलता थी. तेलगु लोगों के बीच नए तेलगु राज्य के लिए राजनीतिक चेतना का संचार होना शुरू हो गया था. इसी दौर में कांग्रेस के स्थानीय तेलगुभाषी नेता पट्टाभि सीतारमैया ने The Hindu और अन्य अखबारों में तेलुगूभाषी लोगों के लिए एक अलग आन्ध्र प्रदेश के गठन की आवश्यकता पर जोर देना शुरू कर दिया. उस दौर में सीतारमैया ने भाषायी आधार पर राज्यों के गठन की वकालत करते हुए कई लेख लिखे.

इतना ही नहीं, 1916 के लखनऊ कांग्रेस अधिवेशन में भी बहुत कुछ हुआ था. इस अधिवेशन में कांग्रेस के दोनों गुटों (नरम दल और गरम दल जिनमें 1906 के सूरत कांग्रेस अधिवेशन में फूट पड़ गई थी) में एकता कायम हुई. इसी अधिवेशन में महात्मा गांधी को चंपारण में निलहा अत्याचार दिखाने के लिए आमंत्रित करने एक किसान राजकुमार शुक्ल भी पहुंचे थे. इसके अलावा भी लखनऊ अधिवेशन में बहुत कुछ हुआ. मद्रास के नेता पट्टाभि सीतारमैया ने मद्रास राज्य के आन्ध्र सर्किल के लिए एक अलग क्षेत्रीय कांग्रेस कमेटी बनाने की मांग की. इसका खुद महात्मा गांधी और कई अन्य डेलीगेट्स ने विरोध किया. लेकिन बाल गंगाधर तिलक ने सीतारमैया का समर्थन कर दिया. हालांकि अगले कुछ महीनों में विरोध की आवाज मद्धिम पड़ गई, और 1918 में आन्ध्र सर्कल के लिए एक क्षेत्रीय कांग्रेस कमेटी बना दी गई. खुद सीतारमैया 1937-40 के दौर में इसके अध्यक्ष रहे.

लेकिन क्या पट्टाभि सीतारमैया बाद में भी भाषाई आधार पर राज्य बनाने के पक्षधर बने रहे? चलिए आपको आगे बताएंगे.

2. आन्ध्र बैंक की स्थापना -

आपको देश के ज्यादातर इलाकों, विशेषकर शहरों और जिला मुख्यालयों में आन्ध्र बैंक की ब्रांच दिख जाएगी. पहले ये निजी क्षेत्र का बैंक हुआ करता था लेकिन अप्रैल 1980 में इंदिरा गांधी ने दूसरी बार कुछ बैंकों का नेशनलाइजेशन करते वक्त आन्ध्र बैंक का भी राष्ट्रीयकरण कर दिया था. जानते हैं ये बैंक किसने शुरू किया था?

28 नवंबर 1923 को पट्टाभि सीतारमैया ने आन्ध्र बैंक की शुरूआत की थी, ताकि आम लोगों तक बैंकिग सेवाओं का लाभ पहुंचाया जा सके. और आज यह बैंक अपने कारोबार का विस्तार करते-करते देश के कोने-कोने तक पहुंच गया है.

वैसे आपको बताते चलें कि सिर्फ पट्टाभि सीतारमैया ही अकेले स्वतंत्रता सेनानी नही थे, जिन्होंने बैंक स्थापित किया था. उनके अलावा भी स्वतंत्रता आंदोलन के कई नेताओं ने देश और आम आदमी की वित्तीय जरूरतों को समझते हुए बैंकों की शुरूआत की थी. बांबे में फिरोजशाह मेहता ने पारसी समुदाय के प्रतिष्ठित लोगों के साथ मिलकर सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया की शुरूआत की थी, जो आज देश के सबसे बड़े बैंकों में से एक है.

अब वापस पट्टाभि सीतारमैया के किस्से पर लौटते हैं. उन्होंने आन्ध्र बैंक के अलावा क्षेत्रीय स्तर पर कई अन्य वित्तीय और इंश्योरेंस कंपनियों को भी शुरू किया था.
आन्ध्र बैंक की स्थापना पट्टाभि सीतारमैया ने की थी.
आन्ध्र बैंक की स्थापना पट्टाभि सीतारमैया ने की थी.

3. 1948 में कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव -

1939 के त्रिपुरी अधिवेशन और कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव की चर्चा तो सभी करते हैं, क्योंकि वहां पट्टाभि सीतारमैया के बहाने महात्मा गांधी बनाम सुभाष चंद्र बोस के बीच कांग्रेस की दशा और दिशा को लेकर पैदा हुए मतभेद को 'निजी मनभेद' बताकर प्रचारित करने के लिए लोगों को पर्याप्त मसाला मिल जाता है. लेकिन आजादी मिलने के साल भर बाद जयपुर के कांग्रेस अधिवेशन और उसमें अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया को इतिहास लेखन और किंवदंतियों की चर्चा में 1939 जैसी चर्चा नही मिल पाती. जबकि इस चुनाव में बेहद क्लोज फाइट थी, और कड़े मुकाबले में पट्टाभि सीतारमैया को जीत मिली थी.

अक्टूबर 1948 में जयपुर में कांग्रेस का अधिवेशन हो रहा था. तकरीबन ढ़ाई हजार डेलीगेट्स इसमें भाग लेने जयपुर पहुंचे थे क्योंकि इस अधिवेशन में अध्यक्ष का चुनाव होना था. अध्यक्ष के लिए किसी एक नाम पर सहमति नही बन पा रही थी. अंततः चुनाव की नौबत आई. 1939 के त्रिपुरी अधिवेशन के बाद यह पहला मौका था, जब चुनाव की नौबत आई थी. और दिलचस्प बात यह थी कि दोनों मौकों पर पट्टाभि सीतारमैया एक किरदार थे. हां, नाम में जरूर कुछ परिवर्तन हुआ था. आजादी के पहले कांग्रेस सुप्रीमो को राष्ट्रपति कहा जाता था, जबकि आजाद भारत में कांग्रेस अध्यक्ष कहा जाने लगा, क्योंकि राष्ट्रपति शब्द को उस वक्त संविधान सभा देश के संवैधानिक प्रमुख के लिए सुरक्षित करने पर सहमत होती दिख रही थी.

बहरहाल 1948 में कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में इस दफा सीतारमैया के मुकाबले सुभाष बाबू नही, बल्कि उप-प्रधानमंत्री वल्लभ भाई पटेल समर्थित कैंडीडेट और संयुक्त प्रांत (आज का उत्तर प्रदेश) के नेता पुरुषोत्तम दास टंडन थे. सीतारमैया को प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का समर्थन प्राप्त था. वोटिंग हुई और चुनाव हुआ.

पट्टाभि सीतारमैया को मिले 1199 वोट जबकि टंडन को मिले 1085 वोट.

महज 114 वोटों के अंतर से पट्टाभि सीतारमैया कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव जीतने में सफल रहे. इसके बाद वे 2 साल तक इस पद पर रहे.


पट्टाभि सीतारमैया ने नेहरू के सपोर्ट से पटेल के उम्मीदवार पी डी टंडन को हराया.
पट्टाभि सीतारमैया ने नेहरू के सपोर्ट से पटेल के उम्मीदवार पी डी टंडन को हराया.

4. भाषाई आधार पर राज्यों का विरोध -

15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ. नया संविधान बनाने की कवायद शुरू हुई. वैसे तो संविधान बनाने की कवायद 1946 में ही शुरू हो चुकी थी, जो तकरीबन 3 साल चली. इस दरम्यान 1948 में देश के अलग-अलग हिस्सों से भाषाई आधार पर राज्यों के गठन की मांग उठने लगी. कहीं गुजराती, कहीं मराठी, कहीं तेलगु, कहीं पंजाबी - हर भाषा के लोग अलग-अलग राज्यों की मांग करने लगे. इन मांगों को देखते हुए थक हारकर तीन सदस्यीय कमेटी बनाई गई. इसका नाम रखा गया - JVP कमेटी. इस कमेटी में प्रधानमंत्री, उप-प्रधानमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष को रखा गया. JVP इस समिति में शामिल तीनों नेताओं के नामों, क्रमशः जवाहरलाल नेहरू, वल्लभभाई पटेल और पट्टाभि सीतारमैया का पहला अक्षर है.

इस कमेटी ने अपनी सिफारिश में साफ़-साफ़ कहा कि 'भाषाई आधार पर राज्यों के गठन की मांग अनुचित है और इसे स्वीकार नही किया जाएगा. राज्यों का गठन प्रशासनिक सुविधा को ध्यान में रखकर ही किया जाएगा.

लेकिन इस कमेटी की सिफारिश से ज्यादा आश्चर्य इस बात पर था कि आजादी के पहले भाषाई आधार पर राज्यों के गठन (state on linguistic base) की वकालत करनेवाले पट्टाभि सीतारमैया आजादी के बाद भाषाई आधार पर राज्यों के गठन के पुरजोर विरोधी के रूप में सामने आए थे.
 
JVP कमेटी में पट्टाभि सीतारमैया के साथ नेहरू और पटेल भी थे.
JVP कमेटी में पट्टाभि सीतारमैया के साथ नेहरू और पटेल भी थे.

* हालांकि बाद में आन्ध्र प्रदेश की मांग को लेकर पोट्टू श्रीरामुलू के अनशन, अनशन के दौरान मृत्यु एवं उसके बाद भड़की हिंसा को देखते हुए सरकार को राज्यों के गठन के मसले पर पुनर्विचार के लिए 1953 में फजल अली आयोग बनाना पड़ा. इस आयोग ने भी भाषाई आधार पर राज्यों की मांग को स्वीकार कर लिया, जिसके बाद आन्ध्र प्रदेश समेत कई नए राज्य अस्तित्व में आ गए.

उधर पट्टाभि सीतारमैया का बतौर कांग्रेस अध्यक्ष कार्यकाल 1950 में समाप्त हो गया. लेकिन इसके बाद भी वे सिस्टम का हिस्सा बने रहे. 1952 में उन्हें राज्यसभा के पहले बैच का सदस्य बनाया गया. लेकिन कुछ ही महीने बाद उन्हें राज्यपाल बनाकर मध्य प्रदेश भेज दिया गया, जहां वे 1957 तक कार्यरत रहे. राज्यपाल पद छोड़ने के 2 साल बाद 17 दिसंबर 1959 को 79 बरस की अवस्था में उनका निधन हो गया.


Subscribe

to our Newsletter

NOTE: By entering your email ID, you authorise thelallantop.com to send newsletters to your email.

Advertisement