जब एक लोकसभा चुनाव में हार से एन डी तिवारी पीएम बनने से चूक गए
चंद्रशेखर के बाद अगले पीएम बन सकते थे.
वर्ष 1991, दसवीं लोकसभा के चुनाव. 20 मई को चुनाव का दूसरा चरण संपन्न होता है. फिर आती है 21 मई की वह काली रात. तमिलनाडू का श्रीपेरेम्बदूर. रात के दस बजे कांग्रेस अध्यक्ष राजीव गांधी अपनी पार्टी के उम्मीदवार मार्गथम चंद्रशेखर के पक्ष में चुनावी सभा को संबोधित करने पहुंचते हैं. तभी मंच के नजदीक एक धमाका होता है और सबकुछ खत्म. राजीव गांधी अब दुनिया में नही रहे. अगले दिन सुबह कार्यवाहक प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ऑल इंडिया रेडियो एवं दूरदर्शन पर राष्ट्र को संबोधित करते हुए चुनाव के बचे हुए दो चरणों को 3 सप्ताह के लिए टालने की घोषणा करते हैं. पहले दो चरणों के चुनावों (उत्तर भारत में) में कांग्रेस का प्रदर्शन निराशाजनक हीं रहा है. लेकिन बचे हुए दो चरणों (उड़ीसा, महाराष्ट्र एवं दक्षिण भारत) में कांग्रेस के पक्ष में जबरदस्त सहानुभूति लहर चलती है और चुनाव परिणामों के अनुसार 226 सीटों (525 सीटों पर चुनाव हुए हैं एवं जम्मू-कश्मीर, पंजाब में चुनाव नहीं होते एवं बिहार की चार सीटों पर चुनाव रद्द होता है) के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरती है.
ज्ञानी जैलसिंह के साथ एनडी तिवारी.
लेकिन इन परिणामों में कांग्रेस को एक बहुत बड़ा झटका लगता है. क्रिकेट की भाषा में कहें तो यह उसी तरह है जैसे आस्ट्रेलियाई टीम (2003) में वर्ल्ड कप के लिए साउथ अफ्रीका पहुंचती है और पहले मैच के पहले हीं शेन वार्न का विकेट (डोप टेस्ट में पाजिटिव पाए जाने पर आस्ट्रेलिया वापस भेजे गए थे) गिर जाता है.
दरअसल इस चुनाव में राजीव गांधी की हत्या के बाद प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार माने जा रहे उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री, पूर्व केंद्रीय वित्त एवं विदेश मंत्री और योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष नारायण दत्त तिवारी नैनीताल लोकसभा सीट पर भाजपा के बलराज पासी से लगभग 11 हजार मतों से चुनाव हार जाते हैं. इस हार ने तिवारी का प्रधानमंत्री बनने का सपना चकनाचूर कर दिया एवं पी वी नरसिंह राव को प्रधानमंत्री चंद्रशेखर का उत्तराधिकारी अर्थात प्रधानमंत्री बनकर 7, रेसकोर्स रोड जाने का अवसर प्राप्त हुआ.
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