The Lallantop
Advertisement
  • Home
  • India
  • Supreme Court Says Neighborhood Fights Happens in Common Life

मरने से पहले कहा पड़ोसी मजाक उड़ाती थी, इसलिए दी जान..., SC ने आरोपी महिला को बरी कर दिया

Karnataka High Court के फैसले को पलटते हुए Supreme Court ने आरोपी को बरी कर दिया. मृतक सारिका ने मौत से पहले, अस्पताल में बयान दिया था. उसने आरोप लगाया कि उसके पड़ोस में रहने वाली गीता के साथ उसका विवाद चल रहा था. कथित रूप से गीता उसके साथ दुर्व्यवहार करती थी और सारिका के अविवाहित होने का मजाक उड़ाती थी.

Advertisement
Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को बरी कर दिया. (फाइल फोटो: एजेंसी/इंडिया टुडे)
pic
रवि सुमन
10 सितंबर 2025 (Updated: 10 सितंबर 2025, 12:06 PM IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा है कि पड़ोसियों में झगड़े होना आम बात है. उनके बीच बहस या हाथापाई हो, तो भी ये भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 306 के तहत आत्महत्या के लिए उकसाने की श्रेणी में नहीं आता. और ये कहते हुए शीर्ष अदालत ने कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले को पलट दिया.

मामला 2008 का है. 25 साल की सारिका ने अपनी जान दे दी. उसकी मौत से पहले, अस्पताल में उसका बयान दर्ज किया गया. उसने आरोप लगाया कि उसके पड़ोस में रहने वाली गीता के साथ उसका विवाद चल रहा था. कथित रूप से गीता उसके साथ दुर्व्यवहार करती थी और सारिका के अविवाहित होने का मजाक उड़ाती थी. बयान में कहा गया कि 12 अगस्त 2008 की शाम को गीता और अन्य लोगों ने उसके परिवार के साथ दुर्व्यवहार और मारपीट की, जिसके बाद उसने आत्महत्या कर ली. 2 सितंबर 2008 को इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई.

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, निचली अदालत ने चार सह-आरोपियों को बरी कर दिया, लेकिन गीता को दोषी ठहराया और कहा कि उसका आचरण उकसावे के समान था. हाई कोर्ट ने भी माना कि सारिका एक संवेदनशील इंसान थी. उसने उत्पीड़न के बाद ये कदम उठाया. गीता को तीन साल की सजा सुनाई गई. इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा.

9 सितंबर को जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस केबी विश्वानाथन की बेंच ने गीता को आरोपों से बरी कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में सबूतों से उकसावे के इरादे की पुष्टि नहीं होती. बेंच ने आगे कहा कि पड़ोस में झगड़े दुर्भाग्यपूर्ण हैं, लेकिन सामुदायिक जीवन में ये आम बात है. इसे आत्महत्या के लिए उकसाने के रूप में नहीं देखा जा सकता. कोर्ट ने आगे कहा,

पड़ोसी से प्रेम करना आदर्श स्थिति है, लेकिन पड़ोस के झगड़े सामाजिक जीवन में नए नहीं हैं. ये उतने ही पुराने हैं जितना कि सामुदायिक जीवन. सवाल ये है कि क्या तथ्यों के आधार पर आत्महत्या के लिए उकसाने का कोई मामला दर्ज हुआ है?

ये भी पढ़ें: 43 बार सुनवाई टालने पर सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट को फटकारा, आरोपी को तुरंत दी बेल

कोर्ट ने अनेक उदाहरणों का हवाला देते हुए दोहराया कि अचानक या गुस्से से भरे शब्द या यहां तक ​​कि उत्पीड़न भी तब तक पर्याप्त नहीं है, जब तक ये न पता चले कि अभियुक्त का इरादा उकसाने का था. सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा,

उकसाने का अर्थ है, किसी काम को करने के लिए उत्तेजित करना... क्रोध या भावना में आकर बिना किसी परिणाम की चिंता किए बोले गए शब्द को उकसाना नहीं कहा जा सकता.

न्यायालय ने माना कि इस केस में ये साबित नहीं होता कि गीता का इरादा सारिका को आत्महत्या के लिए मजबूर करने का था.

(अगर आप या आपके किसी परिचित को खुद को नुकसान पहुंचाने वाले विचार आ रहे हैं तो आप इस लिंक में दिए गए हेल्पलाइन नंबरों पर फोन कर सकते हैं. यहां आपको उचित सहायता मिलेगी. मानसिक रूप से अस्वस्थ महसूस होने पर डॉक्टर के पास जाना उतना ही जरूरी है जितना शारीरिक बीमारी का इलाज कराना. खुद को नुकसान पहुंचाना किसी भी समस्या का समाधान नहीं है.)

वीडियो: दी लल्लनटॉप शो: सुप्रीम कोर्ट में SC/ST एक्ट पर बहस, दलित अधिकार कार्यकर्ताओं की चिंताएं क्या हैं?

Advertisement