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कैश कांड में फंसे जस्टिस वर्मा सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे, सुनवाई में क्लास लग गई

जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ए. जी. मसीह की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही थी. जस्टिस दत्ता ने यह भी पूछा कि जब वीडियो सार्वजनिक हुआ तब कोर्ट क्यों नहीं आए?

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Supreme Court On Justice Yashwant Varma Plea Against In House Inquiry
जस्टिस यशवंत वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में लगाई है अर्जी. (फाइल फोटो)
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रिदम कुमार
28 जुलाई 2025 (Published: 11:46 PM IST) कॉमेंट्स
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कैश कांड में फंसे जस्टिस यशवंत वर्मा ने मामले की इन-हाउस जांच (In-House Inquiry) की रिपोर्ट के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की है. सोमवार, 28 जुलाई को इस मामले पर सुनवाई हुई. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस वर्मा से सवाल किया कि जिस जांच प्रक्रिया में वह खुद शामिल हुए, उसी को चुनौती कैसे दे सकते हैं? इतना ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने अपील में केंद्र सरकार को पक्षकार बनाए जाने पर भी एतराज जताया. कोर्ट ने कहा कि भारत सरकार को याचिका में पार्टी क्यों बनाया गया है? जबकि अपीलकर्ता की शिकायत सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ थी. 

मामले में यशवंत वर्मा की ओर से वकील कपिल सिब्बल दलीलें पेश कर रहे थे. उन्होंने कोर्ट से कहा कि वह याचिका में पार्टी का नाम बदल देंगे. सिब्बल ने जांच रिपोर्ट को राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के पास भेजे जाने पर आपत्ति जताते हुए कहा कि किसी भी जज के खिलाफ महाभियोग की सिफारिश करने का अधिकार चीफ जस्टिस के पास नहीं है. सीजेआई को राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री को इम्पीचमेंट के लिए चिट्ठी नहीं लिखनी चाहिए थी.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एजी मसीह की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही थी. 

क्या है मामला?

बीती 14 मार्च को जस्टिस यशवंत वर्मा के घर पर भारी मात्रा में कैश मिला था. इसे लेकर तत्कालीन सीजेआई जस्टिस संजीव खन्ना ने तीन जजों की जांच समिति बनाई थी. जांच के दौरान समिति ने 55 गवाहों के बयान लिए, जिसमें खुद जस्टिस वर्मा और उनकी बेटी भी शामिल थीं. दमकल टीम द्वारा ली गई फोटो और वीडियो की भी जांच की गई. जांच कमिटी ने माना कि नकदी जस्टिस वर्मा के घर के उस हिस्से से मिली, जहां पर उनका और उनके परिवार का सीधा या परोक्ष नियंत्रण था. समिति ने जस्टिस वर्मा के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की और उन्हें इस्तीफा देने का सुझाव दिया. नहीं माने तो जांच समिति की रिपोर्ट CJI ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेज दी.

जस्टिस वर्मा सुप्रीम कोर्ट में इसी इन-हाउस जांच रिपोर्ट का विरोध कर रहे हैं.

क्या बोला सुप्रीम कोर्ट?

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, सोमवार, 28 जुलाई को मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रक्रिया में भाग लेने के बाद जस्टिस यशवंत वर्मा अपने खिलाफ हुई आंतरिक जांच को कैसे चुनौती दे सकते हैं? कोर्ट ने उनसे यह सवाल भी पूछा, 

अगर आपका मानना है कि समिति को इस मामले की जांच का कोई अधिकार नहीं है तो आपने जांच समिति की रिपोर्ट आने का इंतजार क्यों किया? आप पहले कोर्ट क्यों नहीं आए? जांच कमिटी बनने के समय ही चुनौती क्यों नहीं दी? आपने समिति के सामने पेश होकर अनुकूल नतीजों की उम्मीद तो नहीं की थी?

इतना ही नहीं, जैसे ही मामले की सुनवाई शुरू हुई, कोर्ट ने सवाल दागा कि इस केस में केंद्र सरकार को पक्षकार क्यों बनाया गया है जबकि शिकायत सुप्रीम कोर्ट से है. जस्टिस दीपांकर दत्ता ने कहा, 

ये याचिका इतनी लापरवाही से दायर नहीं की जानी चाहिए थी. इसमें तीन पक्षकार हैं. याचिकाकर्ता की मुख्य शिकायत सुप्रीम कोर्ट से है न कि केंद्र सरकार से. मुख्य पक्षकार तो सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल हैं. 

इस पर वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने सहमति जताई और कहा कि वे याचिका में पार्टी के नाम बदल देंगे.

कपिल सिब्बल ने कोर्ट में दलील दी कि जज को हटाने की प्रक्रिया सिर्फ संविधान के आर्टिकल 124 के तहत ही हो सकती है, न कि मीडिया बहस या इन-हाउस रिपोर्ट के आधार पर. उन्होंने आरोप लगाया कि इन-हाउस जांच कमेटी ने सही प्रक्रिया का पालन नहीं किया. रिपोर्ट को सार्वजनिक कर देशभर में पहले ही जस्टिस वर्मा को दोषी घोषित कर दिया गया.

सिब्बल ने जांच रिपोर्ट को राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजे जाने पर भी आपत्ति जताई. उन्होंने पूछा,

CJI ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को जज को हटाने की सिफारिश क्यों की? CJI के पास यह अधिकार नहीं है. जज को हटाने की प्रक्रिया सिर्फ सांसदों के जरिए संसद में प्रस्ताव लाकर ही शुरू हो सकती है.

इस पर जस्टिस दत्ता ने कहा कि इन-हाउस जांच प्रक्रिया एक प्राथमिक स्तर की जांच है, जिसमें सिर्फ यह देखा जाता है कि कोई कार्रवाई शुरू करने के लिए पर्याप्त आधार हैं या नहीं. ये रिपोर्ट कोई सबूत नहीं होती. जब ये रिपोर्ट सबूत ही नहीं मानी जाती तो फिर आपको इससे क्या नुकसान हुआ?

इस पर सिब्बल ने कहा कि संसद में जो इंपीचमेंट नोटिस दिया गया है, वह इसी रिपोर्ट के आधार पर है. कोर्ट ने मामले की सुनवाई बुधवार तक के लिए टाल दी है. साथ ही इन-हाउस जांच कमेटी की रिपोर्ट रिकॉर्ड पर लाने को कहा है.

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