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'इंसान हैं, गलतियां हो जाती हैं', सुप्रीम कोर्ट के जज ने किस फैसले को लेकर गलती स्वीकार की?

Supreme Court के जज Justice Abhay S. Oka ने स्वीकार किया कि 2016 में जब वे बॉम्बे हाई कोर्ट में जज थे तो घरेलू हिंसा अधिनियम से जुड़े एक मामले में फैसला सुनाते समय उनसे गलती हो गई थी. क्या था मामला?

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supreme court justice abhay s oka admit his mistake in a judgment judges also human
जस्टिस अभय एस. ओका ने स्वीकार किया कि एक मामले में फैसला सुनाते वक्त उनसे गलती हो गई थी (फोटो: SCI)
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अर्पित कटियार
20 मई 2025 (Updated: 20 मई 2025, 02:28 PM IST) कॉमेंट्स
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सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस अभय एस. ओका (Justice Abhay S. Oka) ने कहा कि जज भी इंसान हैं और फैसला लेते वक्त उनसे गलतियां हो सकती हैं. इस दौरान उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि एक मामले में फैसला सुनाते वक्त उनसे गलती हो गई थी. उन्होंने कहा कि जजों के लिए यह निरंतर सीखने की प्रक्रिया है.

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक,  सोमवार, 19 मई को जस्टिस ओका ने स्वीकार किया कि 2016 में जब वे बॉम्बे हाई कोर्ट में जज थे तो घरेलू हिंसा अधिनियम से जुड़े एक मामले में फैसला सुनाते समय उनसे गलती हो गई थी. उन्होंने बताया कि हाई कोर्ट के पास ये अधिकार है कि वह CRPC की धारा 482 के तहत घरेलू हिंसा से जुड़े आवेदन की कार्यवाही को रद्द कर सकता है, जो घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12(1) के तहत दायर की गई हो. ये अधिनियम कहता है कि घरेलू हिंसा से पीड़ित महिला मुआवजे के भुगतान जैसी राहत के लिए मजिस्ट्रेट के पास जा सकती है.

इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने भी स्पष्ट किया है कि हाई कोर्ट को यह ध्यान में रखना चाहिए कि घरेलू हिंसा अधिनियम एक कल्याणकारी कानून है, जो विशेष रूप से घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए बनाया गया है. ऐसे में धारा 482 के तहत अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते वक्त, हाई कोर्ट को बहुत संयमित और सतर्क रहना चाहिए. 

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जस्टिस ओका ने बताया कि वे 27 अक्टूबर 2016 को बॉम्बे हाई कोर्ट के एक मामले में शामिल थे और वे बेंच की तरफ से फैसले को लिख रहे थे. उन्होंने बताया कि तब एक मामले में घरेलू हिंसा कानून के सेक्शन 12 (1) के तहत दायर आवेदन पर CRPC की धारा 482 के तहत मुकदमा खारिज करने की प्रक्रिया को मान्यता नहीं दी गई थी. यह कहकर कि इसके लिए उपाय उपलब्ध नहीं है. उन्होंने कहा, 

इस दृष्टिकोण को उसी हाई कोर्ट की पीठ ने गलत पाया. जजों के रूप में, हम अपनी गलतियों को सुधारने के लिए कर्तव्यबद्ध हैं. यहां तक ​​कि जज के लिए भी सीखने की प्रक्रिया हमेशा जारी रहती है.

जस्टिस ओका ने नौ साल पहले अपनाए गए अपने रुख को सुधारते हुए कहा कि हाई कोर्ट के कुछ निर्णय हैं, जिनमें यह माना गया है कि घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12(1) के तहत कार्यवाही को रद्द करने के लिए CRPC की धारा 482 के तहत अधिकार उपलब्ध नहीं है. ऐसा करना गलत है. हालांकि, अगर मामला स्पष्ट रूप से अवैध और कानून की प्रक्रिया के दुरुपयोग का हो, तो कोर्ट हस्तक्षेप कर सकता है.

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