यूपी में इंश्योरेंस के पैसे के लिए नौजवानों की हत्याएं, 100 करोड़ के फर्जीवाड़े का भंडाफोड़
Sambhal Fraud Insurance: इस मामले में 17 अलग-अलग FIR दर्ज की गई हैं और 51 लोगों की गिरफ्तारी हुई है. संभल SP ने बताया है कि पुलिस विभाग की ओर से इस मामले की जांच के लिए ED को पत्र लिखा गया है.

उत्तर प्रदेश के संभल में इंश्योरेंस के नाम पर करोड़ों की जालसाजी करने वाले गिरोह (Sambhal Insurance Fraud) का पता चला है. गिरोह के लोगों पर बीमा को फर्जी तरीके से क्लेम करने के लिए हत्या करने का भी आरोप लगा है. संभल SP केके विश्नोई ने लल्लनटॉप को बताया है कि ये मामला लगभग 100 करोड़ रुपये के घोटाले से जुड़ा है. उन्होंने कहा कि ये गिरोह देश के करीब 12 राज्यों में एक्टिव था.
हमने संभल की एडिशनल SP अनुकृति शर्मा से भी बात की. उन्होंने कम से कम 4 मामलों में हत्या की पुष्टि की है. 2022 में एक, 2023 में एक और 2024 में ऐसे 2 मामलों का पता चला है, जिनमें बीमा क्लेम के लिए हत्याएं की गईं. इंडिया टुडे के मुताबिक मामले में 17 अलग-अलग FIR दर्ज की गई हैं और 51 लोगों की गिरफ्तारी हुई है. संभल SP ने बताया है कि पुलिस विभाग की ओर से इस मामले की जांच के लिए ED को पत्र लिखा गया है.
यूपी में बीमा गबन के लिए हत्याएंपुलिस ने बताया है कि ये गिरोह बीमार और विकलांग लोगों के अलावा फिजिकली फिट नौजवानों को भी निशाना बनाता था. जहां बीमार लोगों के मामले में आसानी से बीमा का पैसा मिल जाता, वहीं नौजवानों की हत्या करके उन्हें हादसे की तरह दिखाकर रकम हड़पी जाती.
एक ऐसे मामले का पता चला जिसमें एक शख्स अपने सगे भाई की हत्या की साजिश में शामिल था. पुलिस के मुताबिक, उसने खुद ही अपने भाई को ई-रिक्शा से धक्का देकर गिरा दिया. व्यक्ति को सिर के जिस हिस्से में चोट लगी, उसके भाई ने उसी हिस्से को उठाकर सड़क पर पटक दिया. फिर इसे रोड एक्सीडेंट बताया और इंश्योरेंस के पैसे ले लिए.
लाखों लोगों की तस्वीरें और बीमा से जुड़े चैट्स
संभल की एडिशनल SP अनुकृति शर्मा ने लल्लनटॉप से बात की और मामले की विस्तार से जानकारी दी. पुलिस को जिस तरह से इस मामले की सूचना मिली और जिस तरह से वो इसकी जड़ों तक पहुंचे, वो भी दिलचस्प है. दरअसल, हुआ यूं कि संभल पुलिस जनवरी महीने की एक रात में सड़कों पर गाड़ियों की जांच कर रही थी. इसी दौरान उन्होंने एक कार रोकी. कार में उन्हें दो लोग मिले, ओंकरेश मिश्रा और अमित. गाड़ी में साढ़े 11 लाख कैश और 19 डेबिट कार्ड थे.
इसके अलावा कुछ मोबाइल, कागजात और गुजरात बैंक की पासबुक भी थीं. पुलिस ने जब मोबाइल का डेटा खंगाला, तो वो असमंजस में पड़ गई. क्योंकि मोबाइल में एक लाख से ज्यादा लोगों की तस्वीरें थीं. पुलिस के मुताबिक तस्वीर में कैंसर मरीज और टीबी मरीज दिख रहे थे. एडिशनल SP अनुकृति शर्मा ने बताया कि उनके हाथों में तख्तियां होतीं जिसमें लिखा होता कि उनके परिजनों की मौत हो गई है. कुछ तस्वीरों में पॉलिसी नंबर भी दिखा. इसी के आधार पर पुलिस ने छानबीन की.
मोबाइल में मौजूद डेटा को और गहराई से जांचा गया. कुछ चैट्स मिले. इन चैट्स में बीमा क्लेम करने जैसी बातें की गई थीं.
पुलिस को संदेह तो हुआ लेकिन समझ नहीं आया कि ये किन लोगों की तस्वीरें हैं. इतने डेबिट कार्ड का ये लोग करते क्या हैं? संभल के लोगों के पास गुजरात बैंक की पासबुक क्यों हैं? पुलिस इन्हीं सवालों का पता लगाने में जुट गई.
पूछताछ हुई. कागजों की छानबीन की गई. इसके बाद एक बात पता चली कि मोबाइल में जिन लोगों की तस्वीरें थीं, उनमें से अधिकतर आर्थिक रूप से कमजोर थे.
इन्हीं सुरागों पर पुलिस ने आगे की जांच करने का फैसला किया. कार से मिले दस्तावेजों, तस्वीरों और चैट्स के आधार पर पुलिस ने उन परिवारों का पता लगाया, जहां किसी की मौत पर बीमा के पैसे मिले थे. पुलिस एक-एक करके इन घरों तक पहुंचने लगी और मामलों का खुलासा होता गया.
बीमा के कुछ महीने बाद ही मौत हो गई
पुलिस ने सबसे पहले प्रियंका नाम की महिला के घर से इस मामले की छानबीन शुरू की थी. प्रियंका के पति दिनेश शर्मा की कैंसर से मौत हो गई थी. एडिशनल SP ने बताया कि पुलिस उनके घर इंश्योरेंस एजेंट बनकर गई. पता चला दिनेश के नाम पर पर 25 लाख का बीमा कराया गया था. इसके कुछ महीने बाद ही 30 मार्च, 2024 को दिनेश की मौत हो गई. उनके परिवार ने पुलिस को बताया कि उन्हें किसी बीमा के बारे में नहीं पता. इसके बाद जब उनसे उनकी तस्वीर के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा आशा वर्कर ने उनकी ये तस्वीर खींची थी.
इंश्योरेंस में प्रियंका को नॉमिनी बनाया गया था. यानी बीमा की रकम उनको मिलनी चाहिए थी. लेकिन बीमा कराने वालों ने चेक बुक पर उनसे हस्ताक्षर करवा लिए थे. पैन कार्ड, बैंक पासबुक और बाकी कागज भी बीमा कराने वाले अपने साथ ले गए. प्रियंका के जिस नंबर पर बैंक से लेन-देन के मैसेज आते थे, वो भी बदल दिया गया. प्रियंका को इंश्योरेंस का कोई भी पैसा नहीं मिला.
बीमा कराने वाले ट्रैक्टर और बाइक ले गए
पुलिस अब चंद्रसेन के परिवार के पास पहुंची. पता चला कि दो साल पहले उनके 35 साल के बेटे की अचानक मौत हो गई थी. इस युवक का नाम भी दिनेश है. परिवार ने बताया कि दिनेश की मौत रहस्मय ढंग से हुई. कुछ स्पष्ट पता ही नहीं चला. मौत के ठीक पहले उन्होंने बैंक से लोन लेकर ट्रैक्टर और मोटरसाइकल खरीदे थे.
परिवार ने बताया कि दिनेश की अचानक मौत हो जाने के कारण बैंक ने लोन माफ कर दिया. लेकिन बीमा कराने वालों ने यहां अपनी जालसाजी शुरू कर दी. उन्होंने कहा कि लोन तो माफ हो गया है लेकिन ट्रैक्टर और बाइक अब वो ले जाएंगे.
पुलिस ने जब इसी एंगल पर आगे की जांच की तो कुछ और खुलासे भी हुए. पता चला कि एक गिरोह है जो गरीब लोगों के नाम पर गाड़ियों का लोन पास करवाता है. इसके बाद वो खुद ही गाड़ियों की चोरी करवाते हैं और सारा पैसा खुद हड़प जाते हैं. जांच के बाद पुलिस ने अमरोहा के आसपास के इलाकों से ऐसे कई ट्रैक्टर जब्त किए हैं.
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मौत के बाद कराया इंश्योरेंसपुलिस को अपनी जांच में त्रिलोक नाम के एक व्यक्ति के बारे में भी पता चला. त्रिलोक की मौत के कुछ महीने बाद उसके नाम पर इंश्योरेंस कराया गया था. पुलिस के मुताबिक, बीमा कराने के बाद आरोपियों ने कागज पर दिखाया कि त्रिलोक की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई है. और फिर इंश्योरेंस के पैसे ले लिए गए.
जांच और आगे बढ़ी तो हत्याओं का पता चला. बदायूं जिले के एक विकलांग व्यक्ति की जानकारी मिली. 1 अगस्त, 2024 को चंदौसी के कैथल पतरवा मार्ग पर इस विकलांग व्यक्ति की लाश मिली थी. उसके साथी हरिओम ने इस मामले में FIR दर्ज कराई थी. उसने बताया कि किसी अज्ञात वाहन ने उसके दोस्त को टक्कर मार दी थी. पुलिस की जांच में अज्ञात वाहन की शिनाख्त नहीं हुई और केस में फाइनल रिपोर्ट लगा दी गई.
संभल पुलिस जब जांच कर रही थी तब इंश्योरेंस कंपनी ने पुलिस को इस केस के बारे में बताया. कंपनी ने कहा कि उन्हें शक है कि उस विकलांग व्यक्ति के नाम पर भी बीमा का फर्जीवाड़ा हुआ है. क्योंकि सितंबर 2023 से जुलाई 2024 तक उसके नाम पर 51 लाख की पांच पॉलिसी कराई गई थीं.
27 मई को पुलिस ने मामले से जुड़ी हैरतअंगेज जानकारी दी. उसने बताया कि FIR दर्ज करवाने वाले हरिओम ने ही अपने साथी विनोद के साथ मिलकर उस विकलांग व्यक्ति की हत्या कर दी थी. इसके बाद इंश्योरेंस का पैसा हड़प लिया था. पुलिस ने बताया कि आरोपियों ने अपने साथी को गाड़ी में बैठाया और बदायूं से संभल लेकर आए. उसे शराब पिलाई और नशे में उसे गाड़ी से नीचे धकेल दिया. फिर बाद में उसके सिर पर हथौड़े से वार किया गया. और इसे एक्सीडेंट दिखाने के लिए शव पर गाड़ी चढ़ा दी. शव पर हथौड़ा मारने के लिए प्रताप नाम के एक पेशेवर अपराधी को 50,000 रुपये दिए गए थे.
गिरोह काम कैसे करता है?इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, इस गिरोह में आशा वर्कर और गांव के प्रधान तक जुड़े हुए थे. ये लोग गिरोह के पास ऐसे लोगों की जानकारी पहुंचाते थे किसी गंभीर बीमारी के शिकार हैं या मरने वाले हैं. इसके बाद बैंककर्मी फर्जीवाड़े से इनके नॉमिनी का खाता खुलवाते. और क्लेम का पैसा भी आरोपियों को आसानी दे देते. फिर डेथ सर्टिफिकेट बनवाया जाता. एडिशनल एसपी अनुकृति शर्मा ने बताया कि इस मामले में कई सरकारी अधिकारी और इंश्योरेंस कंपनी के अधिकारी भी पुलिस के रडार पर हैं.
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