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आवारा कुत्तों को लेकर एक्सपर्ट ने दी राय, बताया समस्या को सुलझाने का तरीका

आवारा कुत्तों के मुद्दे ने गांधी परिवार को भी एकजुट कर दिया है. क्या मेनका, क्या प्रियंका और क्या राहुल. सबने एक स्वर में आवारा कुत्तों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से असहमति जताई. बीजेपी की पूर्व सांसद और विख्यात पशुप्रेमी मेनका गांधी ने दावा किया कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला लागू करने में ही दिक्कतें आएंगी. एक्सपर्ट्स ने भी इस मुद्दे पर अपनी राय दी है.

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rahul priyanka gandhi menka gandhi on stray dogs experts on sterlisation
आवारा कुत्तों पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर देश भर में राय बंटी हुई है (PHOTO-India Today)
13 अगस्त 2025 (Updated: 13 अगस्त 2025, 10:59 AM IST)
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देश में आवारा कुत्तों पर बहस हो रही है. क्यों? क्योंकि सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने दिल्ली-एनसीआर के सभी आवारा कुत्तों को सड़कों से उठाकर डॉग शेल्टर्स (Dog Shelters) में रखने का आदेश दिया है. 6 साल की एक बच्ची की रेबीज (Rabies)) से मौत के मामले के बाद कोर्ट ने ये आदेश दिया है. संबंधित अधिकारियों को यह काम 8 हफ्ते के भीतर पूरा करना होगा. लेकिन देश की सबसे बड़ी अदालत के फैसले का विरोध शुरु हो गया है. डॉग लवर्स (Dog Lovers) की एक भीड़ विरोध प्रदर्शन के लिए इंडिया गेट पहुंची. उनका कहना है कि कुत्तों को रखने के लिए इतने शेल्टर होम हैं ही नहीं और जो हैं उनकी स्थिति भी ख़राब है. ये एक तरह से कुत्तों को पकड़कर कैद में रखने जैसा होगा. 

लेकिन पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लेकर प्रोटेस्ट को खत्म कर दिया. पशु अधिकार संगठन पेटा इंडिया ने एक्स पर लिखा,

कुत्तों को इस तरह हटाना न तो वैज्ञानिक तरीका है और न ही इससे समस्या का परमानेंट सॉल्यूशन मिलेगा… अगर दिल्ली सरकार ने पहले ही प्रभावी नसबंदी कार्यक्रम लागू किया होता तो आज तस्वीर कुछ और होती.

आवारा कुत्तों के मुद्दे ने गांधी परिवार को भी एकजुट कर दिया है. क्या मेनका, क्या प्रियंका और क्या राहुल. सबने एक स्वर में आवारा कुत्तों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से असहमति जताई. बीजेपी की पूर्व सांसद और विख्यात पशुप्रेमी मेनका गांधी ने दावा किया कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला लागू करने में ही दिक्कतें आएंगी. उन्होंने कहा कि इतने कुत्तों को अबतक लोग खिलाते आ रहे हैं. अब सरकार कह रही है कि वो इन्हें खिलाएगी. इसके लिए पैसे कहां से आएंगे?

लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर असहमति जताई. उन्होंने एक्स पर लिखा,

यह फैसला दशकों से चली आ रही मानवीय और साइंटिफिक पॉलिसी से पीछे ले जाने वाला कदम है. ये बेजुबान पशु कोई 'समस्या' नहीं हैं, जिन्हें हटाया जाए. शेल्टर्स, नसबंदी, टीकाकरण और सामुदायिक देखभाल अपनाया जाना चाहिए. इससे बिना क्रूरता के भी कुत्तों को सुरक्षित रखा जा सकता है.

वायनाड से कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी ने कोर्ट के आदेश पर आवारा कुत्तों को लेकर आशंका जताई. बोलीं, कुछ ही हफ्तों में सभी आवारा कुत्तों को शेल्टर होम में ले जाने की कवायद से उनके साथ बेहद अमानवीय व्यवहार होगा. उनके लिए पर्याप्त शेल्टर भी मौजूद नहीं हैं. इस समस्या का कोई बेहतर और मानवीय तरीका निकाला जाना चाहिए.

लेकिन कुछ दलीलें फैसले के पक्ष में भी आईं. दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने फैसले को स्वागत किया. कहा, आवारा कुत्तों की समस्या को लेकर ये फैसला एक महत्वपूर्ण कदम है. उन्होंने कहा

इसमें माननीय कोर्ट ने जो आदेश दिया है वह भी हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है. हमारा एक ही ध्येय है दिल्ली की जनता को राहत देना. आज यह प्रॉब्लम जिस विकराल रूप धारण करके दिल्ली के सामने खड़ी है. इसमें सरकार की ईमानदारी के साथ में समाधान देना यह बहुत महत्वपूर्ण है जिसकी हमने पूरी योजना बनाते हुए इस समस्या पर काम करेंगे.

ये तो पक्ष और विपक्ष में उठे स्वर हो गए. अब बात कुछ आंकड़ों की करते हैं. इंडियन एक्सप्रेस अखबार ने कुत्तों के काटने और रेबीज की स्थिति पर एक आंकड़ा सामने रखा है. उसके मुताबिक, 

  • भारत में सबसे ज्यादा आवारा कुत्ते हैं, जिनकी संख्या करोड़ों में हो सकती है. 
  • सरकार ने लोकसभा में बताया कि 2019 और 2022 में देश में 1.53 करोड़ आवारा कुत्ते हैं. 
  • 2022 में 21 लाख 90 हजार कुत्तों के काटने के मामले सामने आए. ये आकंड़ा 2023 में बढ़कर 30.5 लाख और 2024 में 37 लाख से अधिक हो गया. 
  • 2025 के जनवरी में ही 4.3 लाख मामले दर्ज हुए हैं. 2022 में रेबीज से 21 लोगों की मौत हुई. ये आंकड़ा दोगुने से भी अधिक एक साल के भीतर बढ़ गया. 
  • 2023 में 50 लोगों की मौत हुई. जबकि 2024 में 54 लोगों की मौत रेबीज जैसी जानलेवा वायरल बीमारी से हुई. 
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी WHO की मानें तो दुनिया में रेबीज से होने वाली 36% मौतें भारत में होती हैं. 
  • भारत में रेबीज के 96% मामले कुत्तों के काटने से होते हैं, और 30-60% मामले 15 साल से कम उम्र के बच्चों में होते हैं.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के समर्थक भी इन आंकड़ों को दलील के तौर पर प्रचारित कर रहे हैं. लेकिन डॉग शेल्टर होम्स की उपलब्धता और रखरखाव दोनों ही मोर्चों पर हालत ख़राब है. इंडिया टुडे के रिपोर्टर कुणाल कुमार ने इसकी ग्राउंड पर जाकर पड़ताल की है. मसलन, अभी दिल्ली में आवारा कुत्तों की नसबंदी के लिए 20 स्टरलाजेशन सेंटर यानी नसबंदी केंद्र हैं और कोई डॉग शेल्टर नहीं है. मौजूद स्टेरलाइजेशन सेंटर्स की क्षमता 2,500 कुत्तों की नसबंदी करने की है. जबकि दिल्ली में आवारा कुत्तों की संख्या लगभग 6 लाख बताई जाती है. इस संख्या को कम करने के लिए हर साल 4.5 लाख कुत्तों की नसबंदी करनी होगी.

रिपोर्ट बताती है कि अगर सरकार और अधिकारी मौजूदा सुविधाओं के साथ अदालती आदेश का पालन करें, तो हर साल केवल सवा लाख कुत्तों की ही नसबंदी हो पाएगी. MCD के पशु चिकित्सा विभाग के पूर्व निदेशक डॉ. वीके सिंह के हवाले से इस रिपोर्ट में लिखा है कि कुत्तों के लिए दो तरह के शेल्टर होम बनाने होंगे. एक नसबंदी किए गए कुत्तों के लिए और दूसरा बिना नसबंदी वाले कुत्तों के लिए.

ये तो थी विरोध, पक्ष और ग्राउंड रियलिटी. दोनों पक्षों के अपने-अपने तर्क हैं. एक तरफ मानवीय संवेदनाओं की दुहाई है, प्रकृति और पशुओं से प्रेम की दलील है और दूसरी तरफ़ रेबीज़ के बढ़ते मामले, बच्चों और बुज़ुर्गों की सुरक्षा. लेकिन क्या कोई बीच का रास्ता है जिससे सभ्य समाज में मनुष्यों के सबसे पुराने और सबसे वफादार इस जीव को लेकर पैदा हुई दुविधा का हल निकल सके. इस मामले में आईआईटी गुवाहाटी में रिसर्च फेलो हरीश तिवारी कहते हैं

जो डिसीजन है वह सही है. लेकिन जिस तरीके से उसको इंप्लीमेंट करने के लिए कहा वह ठीक नहीं है.जो इस देश में यहां के अपने साइंटिस्ट लोग जो इस पे काम कर रहे हैं डॉग अबंडेंस पे डॉग वेलफेयर पे उनकी कमेटी होनी चाहिए.वेटनरियंस का जो कहना है उनको मानना चाहिए. मेरा निवेदन है उन लोगों से जो कि एनिमल वेलफेयर पे काम कर रहे हैं.वह लोग बहुत ही अच्छा काम कर रहे हैं.लेकिन इसको एक्सट्रीम्स ना बनाएं.मतलब ध्रुवीकरण ना करें. यह बहुत नेचुरल है कि किसी आदमी को डॉग से डर लग सकता है.इसमें उसकी बुराई ही नहीं है.वह उसको अवॉइड करना चाहता है.तो हमें इंसान को भी समझना चाहिए.एट द सेम टाइम वो इंसान भी गलत है जो कि रोड के डॉग को मारना चाहता है या भगाना चाहता है. तो हमको एक बीच का रास्ता लेना है और वह साइंस पे ही होगा.

हरीश तिवारी आगे कहते हैं

डॉग जो हैं वह अनरेगुलेटेड रोड पे रहते हैं.वो अटैक इसलिए करते हैं क्योंकि उनके जो बाकी जो जीवन है जब उनको कोई खाना खिलाता है केवल वो उस आदमी से कंपैशन पाते हैं.बाकी तो लोग उनको दुत्कारते ही हैं तो वो रोड पे रह के अपने बचाव के लिए वह अटैकिंग होते हैं.लेकिन अगर हम उनको एक सही व्यवस्था दें.एक शेल्टर होम दें जिसमें कि प्रॉपर साइंटिफिक रूप से एक डॉग को कितना क्लोज्ड एरिया चाहिए.ओपन एरिया चाहिए.उस तरीके से अगर हम उनको दें जहां उनकी एक्सरसाइज हो सके.तो डॉग्स भी रोड पे रहना नहीं चाहते.वह भी परिवार में रहना चाहते हैं. तो बीच के रास्ते की तलाश है.

आपने एक्सपर्ट को सुना जो मिडिल ग्राउंड यानी बीच का रास्ता तलाशने की बात कर रहे हैं. जाहिर है कि कुत्तों को अगर शेल्टर होम में डालना है तो इंफ्रास्ट्रचर दुरुस्त करना होगा, साथ ही ये भी इनश्योर हो कि कुत्तों के साथ कोई क्रूरता न की जाए. 

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