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कर्नाटक में फॉरेस्ट लैंड घोटाला, IFS अधिकारियों ने 14 हजार करोड़ की जमीन निजी कंपनियों को दिलवा दी

बेंगलुरु की 14 हजार करोड़ रुपये की जंगल की जमीन का घोटाला सामने आया है. भारतीय वन सेवा (IFS) के अधिकारियों ने 'वन क्षेत्र नहीं' घोषित करने की अनुमति दी थी. अब कर्नाटक सरकार ने इन अधिकारियों पर कार्रवाई की सिफारिश की है.

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कर्नाटक वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने दो सेवारत IFS अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है. (सांकेतिक तस्वीर-इंडिया टुडे )
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सचेंद्र प्रताप सिंह
1 जून 2025 (Updated: 1 जून 2025, 11:19 PM IST) कॉमेंट्स
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कर्नाटक वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने भारतीय वन सेवा (IFS) के दो सेवारत अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है. इन अधिकारियों पर आरोप है कि उन्होंने लगभग 14 हजार करोड़ रुपये से अधिक की मूल्य वाली फॉरेस्ट की जमीन को निजी कंपनियों को दिलाने में मदद की है. यह जमीन अभी तक पब्लिक सेक्टर की कंपनी हिंदुस्तान मशीन टूल्स (HMT) के पास थीं.

कर्नाटक सरकार में वन एवं पर्यावरण मंत्री ईश्वर खांडरे ने इसकी जानकारी दी है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक उन्होंने बताया कि इन अधिकारियों के खिलाफ सरकार से कार्रवाई की सिफारिश की गई है. इसमें सेवारत IFS अधिकारी स्मिता बिजूर और आर गोयल हैं. वहीं एक रिटायर्ड IFS अधिकारी विजय कुमार और पूर्व वन सचिव एवं रिटायर्ड IAS अधिकारी संदीप दवे शामिल हैं. आरोप है कि इन्होंने निजी रियल स्टेट कंपनियों को जमीन लेने के लिए सुप्रीम कोर्ट में आवेदन दायर करने में मदद की थी.

रिपोर्ट के मुताबिक यह विवाद बेंगलुरु के पीन्या जलाहल्ली में स्थित एक 599 एकड़ के फॉरेस्ट से जुड़ा है. इसे साल 1896 में फॉरेस्ट लैंड घोषित किया गया था. इसके बाद 1960 में इसे बेंगलुरु जिला अधिकारी द्वारा HMT को इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट के लिए दान में दिया गया था. पिछले कुछ सालों में कथित तौर पर राज्य और केंद्र सरकार के अधिकारियों की मिलीभगत से इस जमीन को रियल एस्टेट प्रेजेक्ट के लिए उपयोग किए जाने के आरोप हैं.

इस साल की शुरुआत में वन एवं पर्यावरण मंत्री खांडरे ने कहा था कि यह फॉरेस्ट HMT के अधिकार में है. और इसे निजी कंपनियों को बेचना अवैध है. उन्होंने कहा था कि इन फॉरेस्ट अधिकारियों ने फॉरेस्ट को वापस लेने के लिए कोई प्रयास नहीं किया.

इस साल जनवरी में राज्य सरकार ने फॉरेस्ट की खाली जमीन को सरकारी कब्जे में लेने की अपील की थी. बताया गया था कि HMT को दान की गई 599 एकड़ जमीन में से 281 एकड़ जमीन पर कोई निर्माण कार्य नहीं है. वह पूरी तरह से खाली है.  इसलिए राज्य सरकार को यह जमीन कब्जे में ले लेनी चाहिए.

इसके बाद वन मंत्री खांडरे ने इस हफ्ते बयान दिया कि HMT को दी गई जमीन पर कब्जा कर लिया गया है. इसमें रियल एस्टेट कंपनियों ने सैकड़ों फ्लैट बना लिए हैं. यहां पर पिक्चर की शूटिंग होने लगी है. इन जमीनों का इस्तेमाल व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए किया जा रहा है. उन्होंने आगे कहा कि HMT के कब्जे में जो जमीन है, वह सात करोड़ कन्नड़ लोगों की संपत्ति है. कुछ अधिकारियों ने इसे  नॉन नोटिफाइड करने के लिए बिना कैबिनेट मंजूरी और फॉरेस्ट मिनिस्टर को जानकारी दिए सुप्रीम कोर्ट में आवेदन दिया. 

सरकार का आरोप है कि इन अधिकारियों ने 2020 में सुप्रीम कोर्ट में इंटरिम एप्लिकेशन (IA) दायर किया. जिसमें यह कहा गया कि जंगल ने "वन स्वरूप खो दिया है". इस आधार पर इन रियल स्टेट कंपनियों को HMT से जमीन लेने का रास्ता आसान हो गया. वहीं पिछले साल नवंबर महीने में राज्य सरकार ने इन फॉरेस्ट अधिकारियों को नोटिस जारी किया था.

IFS अधिकारी गोकुल ने CBI को पत्र लिखा है. इस दौरान उन्होंने बताया कि 2009 से 2011 में हुए खनन घोटालों में CBI को उनके द्वारा सबूत पेश किए जाने के कारण उन्हें निशाना बनाया जा रहा है. इस पर भी राज्य सरकार ने उन पर नाराजगी जताई है. वन मंत्री के मुताबिक IFS अधिकारी गोकुल को निलंबित करने और अन्य अधिकारियों के खिलाफ विभागीय जांच शुरू करने के लिए मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को सिफारिश भेजी गई है.

 

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