मुसलमानों पर दिए अपने बयान पर कायम हैं जस्टिस यादव, हाई कोर्ट को जवाब में बताया
Allahabad High Court के मुख्य न्यायाधीश ने Justice Shekhar Yadav से जवाब मांगा था. जस्टिस यादव से उनके गौरक्षा के संबंध में दिए एक आदेश के बारे में भी पूछा गया था.

इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस शेखर यादव (Justice Shekhar Yadav), विश्व हिंदू परिषद के कार्यक्रम में दिए अपने बयान पर कायम हैं. उन पर आरोप लगे हैं कि इस कार्यक्रम में उन्होंने मुसलमानों को निशाना बनाकर टिप्पणी की थी. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने उनको तलब किया था और कहा था कि जस्टिस यादव को ऐसे बयानों से बचना चाहिए. 17 दिसंबर को वो CJI संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाले कॉलेजियम के समक्ष पेश हुए थे. इसके बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली ने भी उनसे जवाब मांगा था.
जनवरी की शुरुआत में CJI ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश भंसाली को एक पत्र लिखा था, और इस मामले पर नई रिपोर्ट मांगी थी. इंडियन एक्सप्रेस से जुड़े श्यामलाल यादव की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस यादव ने मुख्य न्यायाधीश अरूण भंसाली को पत्र लिखकर कहा है कि वो अपने बयान पर कायम हैं. और उनके बयान से न्यायिक व्यवस्था के किसी भी सिद्धांत का उल्लंघन नहीं हुआ है.
रिपोर्ट है कि मुख्य न्यायाधीश ने अपने पत्र में एक लॉ स्टूडेंट की ओर से दर्ज कराई गई शिकायत का जिक्र किया है. साथ ही एक ऐसे IPS ऑफिसर की शिकायत का भी जिक्र है जिनको सरकार ने रिटायर कर दिया था. दोनों शिकायतें जस्टिस यादव के उस भाषण के खिलाफ हैं.
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अखबार ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि जस्टिस यादव ने अपने जवाब में दावा किया है कि कुछ लोगों ने अपने निजी हितों के लिए उनके भाषण को तोड़-मरोड़ कर पेश किया है. उन्होंने आगे कहा कि उनके जैसे ज्यूडिशिरी के सदस्य, सार्वजनिक रूप से अपना बचाव नहीं कर पाते. इसलिए ज्यूडिशिरी में उनके सीनियर्स की ओर से उन्हें संरक्षण मिलना चाहिए.
ऐसा माना जा रहा है कि जस्टिस यादव ने अपनी टिप्पणी के लिए माफी नहीं मांगी है. उन्होंने कहा है कि उनका भाषण संविधान के मूल्यों के अनुरूप था और सामाजिक मुद्दों पर उनके विचारों की अभिव्यक्ति था, न कि किसी समुदाय के प्रति नफरत पैदा करने के लिए.
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Justice Shekhar Yadav ने क्या कहा था?8 दिसंबर को इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के पुस्तकालय में विश्व हिंदू परिषद के विधिक प्रकोष्ठ ने एक कार्यक्रम का आयोजन किया था. इस कार्यक्रम में जस्टिस यादव ने समान नागरिक संहिता (UCC) को हिंदू बनाम मुस्लिम बहस के रूप में पेश किया. उन्होंने कहा कि हिंदू पक्ष ने अपनी कमियों को ठीक कर लिया है जबकि मुस्लिम पक्ष ने नहीं. उन्होंने कहा,
आपको ये गलतफहमी है कि अगर कोई कानून (UCC) लाया जाता है, तो ये आपके शरीयत, आपके इस्लाम और आपके कुरान के खिलाफ होगा. लेकिन मैं एक और बात कहना चाहता हूं. चाहे वो आपका पर्सनल लॉ हो, हमारा हिंदू कानून हो, आपका कुरान हो या फिर हमारी गीता हो… जैसा कि मैंने कहा कि हमने अपनी प्रथाओं में मौजूद कमियों पर गौर किया है. कमियां थीं, दुरुस्त कर लिया हैं. छुआछूत, सती, जौहर, कन्या भ्रूण हत्या... हमने इन सभी मामलों पर गौर किया है. फिर आप इस कानून को खत्म क्यों नहीं कर रहे हैं... कि जब आपकी पहली पत्नी मौजूद है, तो आप तीन पत्नियां रख सकते हैं, उसकी सहमति के बिना... इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता.
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मुख्य न्यायाधीश ने अपने पत्र में जस्टिस यादव के गौरक्षा से संबंधित एक आदेश और कुछ कार्यकर्ताओं द्वारा उठाए गए सवालों का भी जिक्र किया था. इसके जवाब में जस्टिस यादव ने कहा है कि गौरक्षा, समाज की संस्कृति को दिखाती है और कानून के तहत इसके महत्व को उचित मान्यता दी गई है. उन्होंने कहा कि गौरक्षा के पक्ष में वैध और उचित भावना का समर्थन करना न्याय, निष्पक्षता, अखंडता और निष्पक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन नहीं माना जा सकता.
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