CM अब्दुल्ला शहीदों को श्रद्धांजलि देने पहुंचे, J&K पुलिस ने ही जबरन रोका, दीवार फांदकर गए
Omar Abdullah का एक वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है, जिसमें Jammu Kashmir पुलिस उन्हें मजार-ए-शुहादा पर जाने से रोक रही थी. लेकिन उमर अब्दुल्ला नहीं मानें और उन्होंने वहां जाकर उन्होंने फातिहा पढ़ी. CM Mamata Banerjee ने उनका समर्थन किया है.

13 और 14 जुलाई के बीच जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और केंद्र सरकार के बीच जबरदस्त तनातनी चली. जम्मू कश्मीर प्रशासन ने उमर अब्दुल्ला को 'शहीद दिवस' के मौके पर नौहट्टा स्थित मजार-ए-शुहादा जाने से रोक दिया था. लेकिन अब्दुल्ला नहीं माने और 14 जुलाई को मजार-ए-शुहादा पहुंच गए. इसके लिए उन्हें एक रेलिंग को फांदकर जाना पड़ा. यहां पहुंचकर उन्होंने शहीदों को याद करते हुए फातिहा पढ़ी. उनके साथ उनके पिता और पूर्व सीएम फारूक अब्दुल्ला कुछ कैबिनेट मंत्री भी मौजूद थे.
उमर अब्दुल्ला को रोकने और रेलिंग फांदकर मजार-ए-शुहादा में जाने का वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है. पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी भी उनके सपोर्ट में उतर गई हैं. उन्होंने सवाल किया कि शहीदों की मजार पर जाने में क्या दिक्कत हो सकती है. उन्होंने केंद्र सरकार पर गंभीर आरोप लगाए.
उन्होंने एक्स पर लिखा,
"शहीदों की मजार पर जाने में क्या बुराई है? यह ना सिर्फ दुर्भाग्यपूर्ण है, बल्कि एक नागरिक के लोकतांत्रिक अधिकार को भी छीनता है. आज सुबह एक निर्वाचित मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के साथ जो हुआ वो अस्वीकार्य है. चौंकाने वाला, शर्मनाक है."
इससे पहले सीएम उमर अब्दुल्ला ने भी केंद्र सरकार और जम्मू कश्मीर प्रशासन पर बड़े आरोप लगाए. उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा,
"बड़े अफसोस की बात है कि वो लोग जो खुद इस बात का दावा करते है कि उनकी जिम्मेदारी सिर्फ सिक्योरिटी और लॉ एंड ऑर्डर है. उनके बताई हिदायत के मुताबिक हमें कल यहां आकर फातिहा पढ़ने की इजाजत नहीं दी गई. सबको सुबह सवेरे ही अपने घरों में बंद रखा गया है. यहां तक के जब आहिस्ता-आहिस्ता गेटें खुलने शुरू हुए और मैंने कंट्रोल रूम को बताया की मैं यहां आना चाहता हूं. फातिहा पढ़ने के लिए मिनटों के अंदर-अंदर मेरे गेट के बाहर बंकर लगा. रात के बारह-एक बजे तक उनको हटाया नहीं गया. आज मैंने इनको बताया ही नहीं. बिना बताए मैं गाड़ी में बैठा और इनकी बेशर्मी देखिए. आज भी इन्होंने हमें यहां तक रोकने की कोशिश की."
उन्होंने आगे कहा,
“अगर रुकावट थी तो कल के लिए थी. कहने के लिए ये कहते हैं कि ये आजाद मुल्क है. लेकिन बीच-बीच में ये लोग समझते हैं कि हम उनके गुलाम है. हम किसी के गुलाम नहीं हैं. हम अगर गुलाम है तो यहां के लोगों के गुलाम है. हम अगर खादिम है तो यहां के लोगों के खादिम हैं. ये लोग वर्दी पहनकर कानून को इस तरह तहस-नहस करें. ये बात मेरी समझ में नहीं आती. लेकिन हमने इनकी कोशिशों को नाकामयाब किया.”
उमर अब्दुल्ला ने आरोप लगाया कि जम्मू-कश्मीर के नेताओं को नजरबंद किया गया है. उन्होंने आगे भी यहां आकर फातिहा पढ़ने की बात कही. सीएम अब्दुल्ला ने कहा कि जब हमारी मर्जी होगी, तब हम यहां आकर शहीदों को याद करेंगे.
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने प्रशासन से कहा था कि शहीद दिवस पर नेता कोई कार्यक्रम ना करें. उन्होंने निर्देश दिया था कि 13 जुलाई 1931 को रियासत के तत्कालीन शासक हरि सिंह के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों में मारे गए लोगों की वर्षगांठ पर नेता कोई भी कार्यक्रम ना कर सकें. इसके एक दिन बाद सीएम अब्दुल्ला के साथ यह घटना हुई. सत्तारूढ़ नेशनल कॉन्फ्रेंस पार्टी (NCP) के कई नेताओं को शहीद दिवस मनाने से रोकने के लिए रविवार, 13 जुलाई को नजरबंद कर दिया गया था.
13 जुलाई को जम्मू-कश्मीर में 'शहीद दिवस' के रूप में मनाया जाता है. 1931 को श्रीनगर की केंद्रीय जेल के बाहर डोगरा सेना ने 22 लोगों को मार दिया था. इन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए 'शहीद दिवस' मनाया जाता है. उपराज्यपाल के नेतृत्व वाले प्रशासन ने 2020 में इस दिन को राजपत्रित छुट्टियों की सूची से हटा दिया था.
इससे पहले एक पोस्ट में, अब्दुल्ला ने 1931 की हत्याओं की तुलना जलियांवाला बाग हत्याकांड से की थी. उन्होंने पोस्ट किया था,
"यह कितनी शर्म की बात है कि ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ने वाले सच्चे नायकों को... आज खलनायक के रूप में पेश किया जा रहा है."
जवाब में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के राष्ट्रीय महासचिव और जम्मू-कश्मीर प्रभारी तरुण चुग ने 1931 की हत्याओं की तुलना जलियांवाला बाग हत्याकांड से करने के लिए अब्दुल्ला की कड़ी आलोचना की थी.
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