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सुप्रीम कोर्ट की रोक के बाद भी CAPF में क्यों 'इंपोर्ट' हो रहे IPS अफसर?

CAPF में IPS अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाने का फैसला दिया था, लेकिन कथित तौर पर सरकार ने आदेश के बाद भी कई अफसरों को प्रतिनियुक्ति की है.

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CAPF ips officers deputation
सुप्रीम कोर्ट ने CAPF में IPS अफसरों के डेपुटेशन खत्म करने का आदेश दिया था (India Today)
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राघवेंद्र शुक्ला
4 जुलाई 2025 (Updated: 4 जुलाई 2025, 12:11 AM IST) कॉमेंट्स
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सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद गृह मंत्रालय अब भी केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (CAPF) में IPS अफसरों की प्रतिनियुक्ति (Deputation) कर रहा है. 23 मई 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाया था. इसमें कोर्ट ने CAPF को ‘ऑर्गेनाइज्ड सर्विस’ बताते हुए IG और DIG तक के पदों पर IPS अधिकारियों के डेपुटेशन को दो साल के अंदर खत्म करने के लिए कहा था. लेकिन गृह मंत्रालय ने इस फैसले के आने बाद अब तक कमांडेंट से लेकर IG तक के कई पदों पर कम से कम 8 IPS अफसरों की नियुक्ति कर दी है.

'द हिंदू’ की रिपोर्ट के अनुसार, इसे कोर्ट के आदेश की अवहेलना माना जा रहा है. याचिकाकर्ताओं के वकील ने अब गृह मंत्रालय, DOPT और सभी CAPF के DG को चिट्ठी लिखकर कहा है कि ये नियुक्तियां कोर्ट की अवमानना (Contempt Of Court) हैं.

मामला क्या है?

देश में पांच केंद्रीय अर्धसैनिक बल हैं- BSF, CRPF, SSB, CISF और ITBP. ये सभी गृह मंत्रालय के अधीन काम करते हैं. इन बलों के ग्रुप-A (एग्जीक्यूटिव) अधिकारियों की सेवाएं 1986 से 'संगठित सर्विस' मानी जाती हैं, लेकिन इन्हें इसका लाभ नहीं मिल रहा. सीएपीएफ में काम करने वाले एक अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं,

केंद्र सरकार ने डीओपीटी के मोनोग्राफ में 1986 में पांचों सर्विसेज को ऑर्गेनाइज्ड सर्विस माना था. फिर सरकार अपनी बात से पलट गई और कहा कि न तो हम इन्हें ऑर्गेनाइज्ड सर्विस मानते हैं और न ही इस तरह से ट्रीट करते हैं.

साल 2006 में जब छठवां वेतन आयोग आया तो IAS, IPS और अन्य सेवाओं को NFFU (Non Functional Financial Upgradation) का लाभ दिया गया. CAPF के अधिकारियों ने भी यही मांग की लेकिन CAPF को संगठित सेवा का दर्जा नहीं दिया गया. इसके बाद CAPF अधिकारियों ने दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. 3 सितंबर 2015 को हाईकोर्ट ने CAPF के पक्ष में फैसला दिया और इसे 1986 से संगठित सेवा मानते हुए इसके सभी लाभ देने का आदेश दिया.

सरकार ने हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. 4 साल केस चलने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 5 फरवरी 2019 को हाईकोर्ट का फैसला बरकरार रखा. सीएपीएफ अधिकारी ने बताया,

अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने क्लैरिफाई कर दिया कि पांचों फोर्सेज ऑर्गेनाइज्ड सर्विस हैं. इस पर सरकार ने कहा कि ठीक है. हम इन्हें संगठित सेवा मान लेते हैं लेकिन सिर्फ वित्तीय लाभों के लिए ही ये ऑर्गेनाज्ड सर्विस में होंगे. लेकिन कोर्ट ने सरकार की ये बात नहीं मानी और स्पष्ट किया कि ऑर्गेनाइज्ड सर्विस के जो 6 एट्रिब्यूट्स होते हैं, वो सब पूरे किए जाएं. एक चीज देकर पांच चीजों को रोका नहीं जा सकता.

इसके बाद केंद्रीय कैबिनेट ने 3 जुलाई 2019 को CAPF को संगठित सेवा मान भी लिया, लेकिन उसके लाभ कर्मचारियों को नहीं मिले. इसके बाद CAPF अधिकारियों ने 2020 में फिर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. 23 मई 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने अधिकारियों के पक्ष में फैसला सुनाया और सीएपीएफ के कर्मचारियों को ऑर्गेनाइज्ड सर्विस के सभी लाभ देने का निर्देश सरकार को दिया.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा,

सभी CAPF बलों में कैडर समीक्षा अगले 6 महीने में पूरी की जाए. गृह मंत्रालय को 12 जुलाई 2019 के आदेश को पूरी तरह लागू करना होगा और सर्विस रूल की समीक्षा करनी होगी. इसे 6 महीने के भीतर पूरा करना होगा.

इस पूरे मामले में सबसे बड़ा पेच प्रमोशन को लेकर था, जो सीधे तौर पर उच्च पदों पर आईपीएस अफसरों के डेपुटेशन से जुड़ा है.

सशस्त्र पुलिस बल के अधिकारी के मुताबिक, सीएपीएफ की जो पांच फोर्सेज हैं, उनमें जो यूपीएससी के माध्यम से डायरेक्ट एंट्री अधिकारी नियुक्त होते हैं, वो उस फोर्स के कभी चीफ नहीं बन पाते. इस पर एक आईपीएस ही प्रतिनियुक्त होता है. यानी फोर्स के आईजी और डीआईजी के पदों पर इन बलों के कैडर अफसरों को प्रमोट नहीं किया जाता. बाहर से आईपीएस अधिकारी को लाकर बैठा दिया दिया जाता है.

इसके पीछे की वजह क्या है?

उन्होंने बताया, ‘1960 के दशक में जब CAPF बनी थी, उस समय हमारे (CAPF के) खुद के अधिकारी भर्ती होने शुरू नहीं हुए थे. लेकिन किसी को तो चीफ बनाना था. उस समय एक ही पुलिस सेवा थी, भारतीय पुलिस सेवा. तो उनके लोगों को यहां प्रतिनियुक्ति पर भेज दिया जाता था. अब 30-40 साल हो गए हैं और सीएपीएफ में अफसरों का यूपीएससी के माध्यम से सीधा रिक्रूटमेंट हो रहा है. हैरत की बात है कि आप किसी को असिस्टेंट कमांडेंट के रूप में फौज को संभालने के लायक समझते हैं लेकिन फोर्स को लीड करने के लायक नहीं समझते.’

अधिकारी ने कहा,

हमारे ऊपर एक आईपीएस थोप दिया जाता है. जिसके पास बॉर्डर गार्डिंग में, इंटरनल सिक्योरिटी में या ट्रूप्स के साथ काम करने का कोई एक्सपीरिंयस नहीं होता. लेकिन चूंकि वो आईपीएस है इसलिए उसको डीजी बना दिया जाता है.

इसका असर ये होता है कि CAPF के अपने अधिकारियों को प्रमोशन में बहुत देरी होती है. जो अधिकारी असिस्टेंट कमांडेंट बनकर सर्विस में आते हैं, उन्हें कमांडेंट बनने में 25 साल लग जाते हैं, जबकि उन्हें यह पद 13 साल में मिल जाना चाहिए था. द हिंदू के मुताबिक, 25 जून 2025 को गृह मंत्रालय ने त्रिपुरा कैडर के एक 2016 बैच के IPS अफसर को कमांडेंट (SP रैंक) के पद पर SSB में भेज दिया, जबकि ऐसा बहुत ही कम होता है.

अधिकारी ने बताया कि IPS, इंडियन आर्मी या नेवी या जो भी CAPF के अन्य समकक्ष फोर्सेज हैं, उनमें टाइम बेस्ड प्रमोशन है. मतलब अगर आप असिस्टेंड कमांडेंट हैं तो 4 साल में प्रमोट होकर डिप्टी कमांडेंट बन जाएंगे, लेकिन हमारी सर्विस में असिस्टेंट से डिप्टी कमांडेंट बनने में आपको 10 से 15 साल लग जाएंगे. ये वैकेंसी बेस्ड व्यवस्था है. अगर ऊपर वैकेंसी होगी तो ही आप प्रमोट होंगे.

अधिकारी ने बताया कि इससे हमें दो नुकसान होते हैं. एक तो प्रमोशन न होने की वजह से आर्थिक नुकसान होते हैं, दूसरा हमारे साथ जॉइन होने वाले लोग अन्य फोर्सेज में कहीं ज्यादा ऊपर पहुंच जाते हैं लेकिन हम वहीं के वहीं रह जाते हैं. 

अधिकारी बताते हैं,

हमारी सर्विस कंडीशन आर्मी के ही बराबर है. हम उतने ही रिस्क के साथ काम कर रहे हैं. उन्हीं जगहों पर तैनात हैं. सब सिमिलर होते हुए भी हमारे साथ सौतेला व्यवहार किया जाता है.

इन्हीं सब मामलों को लेकर सीएपीएफ ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी डाली थी. 

सीएपीएफ में काम करने वाले एक अन्य अधिकारी के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने इस पर फैसला देते हुए सरकार को निर्देश दिया कि वह सीएपीएफ में आईजी लेवल तक डेप्युटेशन को धीरे-धीरे (progressively reduced) कम करे. इसका मतलब है कि आईजी और डीआईजी के पदों पर आईपीएस अफसरों की नियुक्ति पर रोक लगाए. जो पहले से प्रतिनियुक्तियां हो रखी हैं, उन्हें 2 साल के अंदर धीरे-धीरे हटाना शुरू करे क्योंकि एक साथ हटाने पर वैक्यूम क्रियेट होने का रिस्क है. लेकिन कोर्ट के इस फैसले के तीन दिन बाद ही सरकार ने 8 आईपीएस अफसरों की नियुक्ति कर दी.

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