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हिमाचल प्रदेश में एक युवती की दो भाइयों से शादी पर हंगामा क्यों नहीं हुआ? वजह दिलचस्प है

Himachal Polyandry Marriage: भारत में आमतौर पर बहुपति प्रथा गैरकानूनी है. हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 5 के अनुसार, किसी व्यक्ति की शादी तभी वैध है जब उसका/उसकी वर्तमान में कोई वैवाहिक साथी ना हो.

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हिमाचल के सिरमौर जिले में दो भाइयों ने एक युवती से शादी की. (India Today)
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मौ. जिशान
21 जुलाई 2025 (Published: 08:27 PM IST)
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हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में एक अनोखी शादी हुई. एक महिला ने दो सगे भाइयों को जीवनसाथी बनाया. कुन्हट गांव की सुनीता चौहान ने शिल्लाई गांव के ‘हाटी’ समुदाय से ताल्लुक रखने वाले प्रदीप नेगी और कपिल नेगी से विवाह किया. ट्रांसगिरी इलाके में तीन दिनों (12 से 14 जुलाई 2025) तक चले आयोजन में यह शादी हुई. इस के साथ सिरमौर में एक बार फिर पुरानी 'बहुपति' परंपरा (Polyandry) जिंदा हुई.

इस शादी को खुले तौर पर मनाया गया. ग्रामीण और रिश्तेदार पारंपरिक तरीके से हुई इस शादी के गवाह बने. यह शादी दोनों परिवारों की सहमति से हुई थी. हाटी समुदाय में इस परंपरा को ‘जोड़ीदार’ या ‘द्रौपदी' प्रथा कहा जाता है. इसका इतिहास सदियों पुराना बताया जाता है और इसे महाभारत की कहानी से भी जोड़ा जाता है, जिसमें द्रौपदी की पांडव भाइयों से शादी हुई थी. लेकिन कानून के हिसाब से तो हिंदू धर्म में एक समय में दो पति नहीं हो सकते. फिर इस शादी को सभी की इजाजत कैसे मिल गई और कोई हंगामा या विरोध क्यों नहीं हुआ?

भारत में आमतौर पर बहुपति प्रथा गैरकानूनी है. हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 5 के अनुसार, किसी व्यक्ति की शादी तभी वैध है जब उसका/उसकी वर्तमान में कोई वैवाहिक साथी ना हो. यानी द्विविवाह (Bigamy) और बहुपति (Polyandry) गैरकानूनी हैं. यह कानून हिंदू के अलावा बौद्ध, जैन और सिख धर्म मानने वाले व्यक्ति पर भी लागू होता है.

लेकिन हिंदू मैरिज एक्ट देश की अनुसूचित जनजातियों पर लागू नहीं होता है. भारत के संविधान के आर्टिकल 342 के तहत अनुसूचित जनजातियों को उनकी परंपराओं, रीति-रिवाजों, सामाजिक और सांस्कृतिक प्रथाओं के मुताबिक, पहचान और संरक्षण दिया जाता है. यह उन्हें परंपरागत कानूनों और सांस्कृतिक स्वतंत्रता के अधिकार देता है, जिससे वे अपनी पहचान बनाए रख सकें.

हिमाचल प्रदेश की 'हाटी' जनजाति को केंद्र सरकार से अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिला हुआ है. जनजातीय कार्य मंत्रालय की वेबसाइट पर अनुसूचित जनजातियों की एक लिस्ट है. इसमें हिमाचल प्रदेश राज्य के क्रमांक 11 पर 'सिरमौर जिले के ट्रांसगिरी झेत्र का हाटी' दर्ज है.

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संविधान (अनुसूचित जनजातियां) आदेश, 1950

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, सिरमौर में जो विवाह हुआ, वो ‘हाटी’ अनुसूचित जनजाति की परंपरा के अनुसार हुआ. इस लिहाज से ‘हाटी’ की 'बहुपति प्रथा' हिंदू मैरिज एक्ट के दायरे से बाहर हो सकती है. इसलिए इस शादी को मान्य करार दिए जाने की संभावना बढ़ जाती है.

इस शादी की वैधता पर सुप्रीम कोर्ट में वकील अर्विंद मणियम ने लल्लनटॉप से बातचीत में बताया,

"हिंदू मैरिज एक्ट के तहत, यह शादी अमान्य नहीं है क्योंकि यह एक्ट ‘हाटी’ समुदाय जैसी अनुसूचित जनजातियों पर लागू नहीं होता. भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 82 (बहुविवाह के समान) के तहत, यह आम तौर पर दंडनीय होता, लेकिन चूंकि विवाह कानून ‘हाटी’ जनजाति पर लागू नहीं होते, इसलिए कानून ऐसे मामलों में सक्रिय रूप से मुकदमा नहीं चलाता, खासकर जब भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 (BSA) की धारा 11 के तहत प्रथागत अधिकारों का इस्तेमाल किया जाता है."

उन्होंने आगे बताया,

"इस शादी का कोई विरोध नहीं हुआ, क्योंकि यह शादी कानूनी रूप से छूट प्राप्त सांस्कृतिक परिवेश में हुई है. हिमाचल प्रदेश की ‘हाटी’ जनजाति को संविधान के तहत एक विशेष दर्जा प्राप्त है, जहां बहुपतित्व जैसी प्रथाएं सामाजिक रूप से स्वीकार्य हैं और मुख्यधारा के विवाह कानूनों से कानूनी रूप से अलग हैं. हालांकि हिंदू मैरिज एक्ट या BNS के तहत, बहुपतित्व अमान्य या दंडनीय होगा, लेकिन ये कानून अनुसूचित जनजातियों पर तब तक लागू नहीं होते जब तक कि स्पष्ट रूप से लागू ना हों. इसलिए, उनके समुदाय में विवाह अमान्य नहीं माना जाता है, और राज्य अक्सर सांस्कृतिक स्वायत्तता का सम्मान करते हुए हस्तक्षेप करने से बचता है."

मोटे तौर पर यह शादी सामाजिक तौर पर स्वीकार की गई और किसी जनजातीय पंपरा के खिलाफ नहीं हुई. इस शादी से परिवार या समुदाय को भी कोई आपत्ति नहीं है, ना ही कोई शिकायत की गई है. अनुसूचित जनजातियों की परंपराओं के संरक्षण की जिम्मेदारी को देखते हुए सरकार भी प्रथागत अधिकारों का सम्मान करती है. इन सभी तर्कों के आधार पर इस विवाह पर कोई हंगामा नहीं हुआ है.

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