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55 हजार रुपये के क्लेम के लिए 6 साल का संघर्ष, हेल्थ इंश्योरेंस से जुड़ी एक और दर्द भरी कहानी

नेशनल इंश्योरेंस कंपनी ने राहुल के पिता के नाम हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी से जुड़े क्लेम को खारिज कर दिया. वो अपने भाई पुलकित को लेकर अस्पताल पहुंचे थे. लेकिन जब 55 हजार रुपये के क्लेम की बारी आई, तो वो उन्हें नहीं मिला.

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Delhi family six year fight over Rs 55,000 insurance claim
राहुल ने साल 2022 में कंज्यूमर कोर्ट में शिकायत दर्ज कराई थी. (सांकेतिक फोटो- X)
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प्रशांत सिंह
17 सितंबर 2025 (Published: 04:48 PM IST)
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इंश्योरेंस क्लेम के दौरान कंपनियों की मनमानी से जुड़े लोगों के कड़वे अनुभव हाल-फिलहाल में सोशल मीडिया पर सामने आए. कुछ में लोगों को आखिरकार मदद मिल गई, जिस वजह से वो सुकून के रास्ते निकल गए. लेकिन अभी भी कई केस ऐसे हैं जहां लोग सालोंसाल अपना इंश्योरेंस प्रीमियम देते हैं, लेकिन जरूरत पड़ने पर उन्हें धक्का लगता है. दिल्ली के रहने वाले राहुल बंसल भी इन्हीं में से एक हैं. वो पिछले 6 साल से अपने 55 हजार रुपये के क्लेम के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं.

नेशनल इंश्योरेंस कंपनी ने राहुल के पिता के नाम हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी से जुड़े क्लेम को खारिज कर दिया. वो अपने भाई पुलकित को लेकर अस्पताल पहुंचे थे. लेकिन जब 55 हजार रुपये के क्लेम की बारी आई, तो वो उन्हें नहीं मिला. इंडिया टुडे से बात करते हुए राहुल ने बताया,

“ये सिस्टम ही दूषित है. अस्पताल आपसे जितना हो सके उतना पैसा ऐंठने के लिए हैं, बीमा कंपनियां प्रीमियम लेने के लिए हैं. जरूरत पड़ने पर कंपनियां पेमेंट नहीं करती हैं. रेगुलेटरी सिस्टम कस्टमर्स के प्रति बहुत पक्षपाती है.”

राहुल खुद अपने पिता के हेल्थ प्लान के दायरे में नहीं थे. लेकिन वो इस लड़ाई को लड़ रहे हैं. उन्होंने कहा,

"मेरे माता-पिता निराश थे और इस मामले को जाने देना चाहते थे. मैं ऐसा नहीं कर सका."

2019 में क्लेम किया

जानकारी के मुताबिक बंसल परिवार पिछले एक दशक से भी ज्यादा समय से कई लाख रुपये का हेल्थ इंश्योरेंस प्रीमियम भर रहा था. लेकिन उन्होंने कभी कोई क्लेम नहीं लिया. लेकिन जब डॉक्टरों ने पुलकित को टाइफाइड की आशंका के चलते अस्पताल में भर्ती कराने की सलाह दी, तो जुलाई 2019 में परिवार ने बीमा कंपनी से मदद मांगी. इसी वक्त उनका क्लेम खारिज कर दिया गया.

राहुल का दावा है कि नेशनल इंश्योरेंस कंपनी ने अपने थर्ड-पार्टी एडमिनिस्ट्रेटर MDIndia के जरिए पुलकित को पांच दिन अस्पताल में रहने की अनुमति नहीं दी. कंपनी ने कहा कि उनके इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत नहीं है और इसका लाभ OPD आधार पर उठाया जा सकता है. उनके मुताबिक कंपनी ने कहा,

"पॉलिसी के नियमों के अनुसार क्लेम स्वीकार्य नहीं है. हम पॉलिसी की शर्तों के तहत इसे स्वीकार नहीं कर सकते, और इस असमर्थता के लिए हमें खेद है."

इसे लेकर राहुल ने इंडिया टुडे को बताया,

"मैंने अस्पताल में भर्ती होने के दो घंटे के अंदर ही TPA को ईमेल से सूचना दे दी थी. लेकिन उन्होंने ईमेल का जवाब तक नहीं दिया और ना ही मेरे भाई के पांच दिन बाद डिस्चार्ज होने तक क्लेम आईडी जारी की."

उन्होंने आगे कहा,

"बार-बार फॉलो-अप और शिकायत के बाद ही मुझे क्लेम आईडी जारी की गई और वो भी गलत थी. उन्होंने मरीज के रूप में मेरे भाई के बजाय मेरे पिता का नाम लिख लिया था. मुझे रीइंबर्समेंट क्लेम के डॉक्यूमेंट्स जमा करने से पहले एक नई क्लेम आईडी जारी करवानी पड़ी."

इतना ही नहीं, राहुल के परिवार ने कई और डॉक्यूमेंट्स भी जमा किए. इनमें वो डॉक्यूमेंट्स भी शामिल थे जिनमें अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत के बारे में डॉक्टरों के लेटर भी शामिल थे. फिर भी उनका क्लेम रिजेक्ट कर दिया गया. 

दो हफ्ते बीतने के बाद पुलकित की बीमारी के लक्षण बढ़ने लगे, तो राहुल ने डॉक्टरों की सलाह पर पुलकित को अस्पताल में भर्ती कराया. राहुल कहते हैं,

"हम 15 दिनों से ज्यादा समय तक इधर-उधर भटकते रहे. मेरा 14 साल का भाई ओरल मेडिकेशन पर रहा, लेकिन कोई आराम नहीं मिला और उसके लक्षण और भी बिगड़ते गए. ऐसी स्थिति में आप अपने भाई को यूं ही नहीं देख सकते. दो डॉक्टरों की लिखित सलाह पर हमने आखिरकार उसे भर्ती कराया. पूरे पांच दिनों तक उसे IV ड्रिप के जरिए दवाइयां दी गईं, जिसके बाद ही उसकी हालत में सुधार हुआ."

लोकपाल कार्यालय से भी निराशा मिली

इसे बाद बंसल परिवार ने राहत की उम्मीद में अपनी शिकायत बीमा लोकपाल कार्यालय में की. लेकिन यहां भी उन्हें निराशा ही हाथ लगी. राहुल बताते हैं कि लोकपाल ने सिर्फ दो मिनट तक ही उनका पक्ष सुना और फिर TPA के प्रतिनिधि की ओर मुड़ गए. जिन्होंने ऐसी मेडिकल भाषा में बात की जिसे वो समझ नहीं पाए. और इसी तरह सुनवाई खत्म हो गई.

कंज्यूमर कोर्ट में भी सुनवाई नहीं

थक-हारकर राहुल के माता-पिता ने इस मामले को जस का तस छोड़ने की बात कही. लेकिन राहुल ने इनकार कर दिया. उन्होंने साल 2022 में कंज्यूमर कोर्ट में शिकायत दर्ज कराई. लेकिन साढ़े तीन साल और 14 सुनवाई के बाद भी मामला अभी भी लंबित है. राहुल कहते हैं,

"ऐसा लगता है जैसे पूरा सिस्टम आपको थका देने के लिए बना है. हर कदम पर आपके धैर्य और दृढ़ता की परीक्षा ली जाती है."

इस मामले को लेकर इंडिया टुडे ने जब नेशनल इंश्योरेंस से संपर्क किया, तो उन्होंने शिकायत मिलने की बात स्वीकार की और कहा,

"हमारे डेटाबेस के अनुसार क्लेम की स्थिति 'Closed without settlement' दिखाई दे रही है."

कंपनी ने आगे बताया कि एक सपोर्ट रिक्वेस्ट तैयार कर ली गई है, और उसे टीम को सौंप दिया गया है. वहीं, क्लेम पर कार्रवाई करने वाली TPA, MDIndia ने केवल इतना कहा कि उसने शिकायत दर्ज कर ली है. कंपनी ने कहा,

"आपको हुई असुविधा के लिए हमें खेद है और हम आपकी चिंता को पूरी तरह समझते हैं."

कंंपनी ने ये भी कहा कि 2-3 दिनों के अंदर मामले में अपडेट दिया जाएगा.

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