'सुप्रीम कोर्ट से कमतर नहीं होता हाईकोर्ट...', CJI गवई को ऐसा क्यों कहना पड़ा?
CJI BR Gavai Independence Day Speech: CJI गवई ने कहा कि जब पूर्व CJI संजीव खन्ना पद पर थे, तब सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने उम्मीदवारों के साथ बातचीत करने की प्रथा शुरू की थी. और असल में मददगार साबित हुई. आजादी दिवस के मौके पर CJI गवई और क्या बोले?

भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई (CJI BR Gavai) ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट से सुपीरियर नहीं है. संवैधानिक व्यवस्था के तहत दोनों बराबर की संवैधानिक अदालतें हैं. इसलिए सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम किसी हाई कोर्ट कॉलेजियम को जज के पद के लिए किसी खास नाम की सिफारिश करने का निर्देश नहीं दे सकता.
CJI गवई 79वें स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) की तरफ से आयोजित एक समारोह में बोल रहे थे. जहां SCBA के अध्यक्ष विकास सिंह ने सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम से आग्रह किया कि वो सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले वकीलों को भी हाई कोर्ट, जज पद के लिए विचार करें, भले ही उन्होंने वहां प्रैक्टिस न की हो.
इसी के जवाब में CJI गवई ने ये बातें कहीं. उन्होंने आगे जोड़ा,
जहां तक संवैधानिक व्यवस्था का सवाल है, दोनों एक-दूसरे से न तो कमतर हैं और न ही बेहतर. इसलिए जजों की नियुक्ति पर पहला फैसला हाईकोर्ट कॉलेजियम को करना होता है. हम सिर्फ हाईकोर्ट कॉलेजियम को नामों की सिफारिश करते हैं और उनसे नामों पर विचार करने का अनुरोध करते हैं. उनकी संतुष्टि के बाद ही कि उम्मीदवार पद के योग्य हैं, नाम सुप्रीम कोर्ट में आते हैं.
इकॉनोमिक टाइम्स में छपी खबर के मुकाबिक, CJI गवई ने कहा कि जब पूर्व CJI संजीव खन्ना पद पर थे, तब सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने उम्मीदवारों के साथ बातचीत करने की प्रथा शुरू की थी. और असल में मददगार साबित हुई. उन्होंने कहा कि जब आप उम्मीदवारों से कुछ मिनट तक भी बात करते हैं, तब ये पता लग सकता है कि वो समाज में योगदान देने के लिए कितने उपयुक्त हैं.
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CJI गवई ने ये भी बताया कि 24 नवंबर से पहले सुप्रीम कोर्ट में एक नया पूर्ण ध्वज स्तंभ (full-fledged flag post) तैयार हो जाएगा, जब जस्टिस सूर्यकांत CJI का पदभार ग्रहण करेंगे.
CJI गवई ने झारखंड के 1855 के संथाल (हूल) विद्रोह से लेकर पश्चिमी महाराष्ट्र के ज्योतिराव फुले और सावित्रीबाई फुले तक के स्वतंत्रता सेनानियों और उनके संघर्ष को याद किया. साथ ही, रवींद्रनाथ टैगोर, महात्मा गांधी, बीआर अंबेडकर और मौलाना अबुल कलाम आजाद के शब्दों को भी याद किया. CJI गवई बोले कि देश का इतिहास लोगों को सिखाता है कि स्वतंत्रता संग्राम सिर्फ एक राजनीतिक क्षण नहीं था. बल्कि एक नैतिक और कानूनी कोशिश भी थी, जिसमें अनगिनत वकीलों ने अहम भूमिका निभाई थी.
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