इधर बचे तो उधर फंसे छगन भुजबल, ED केस के आरोप खारिज, लेकिन पुराना केस फिर खुला
Chhagan Bhujbal से जुड़े दो अलग-अलग मामलों में अदालत से फैसले आए. इनमें से एक मामले की सुनवाई Bombay High Court में हुई, जबकि एक अन्य मामला Mumbai की स्पेशल कोर्ट में सुना गया.

नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (NCP, अजित पवार गुट) के सीनियर नेता और महाराष्ट्र के मंत्री छगन भुजबल के लिए भारत की न्यायिक व्यवस्था खुशी और गम दोनों मोमेंट्स लेकर आई. भुजबल को कोर्ट से एक केस में राहत मिली, तो दूसरे केस में झटका लगा. बॉम्बे हाई कोर्ट ने एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट (ED) के महाराष्ट्र सदन घोटाला मामले में उनके खिलाफ आरोप खारिज कर दिए. दूसरी तरफ, मुंबई के एक स्पेशल कोर्ट ने भुजबल के खिलाफ बेनामी संपत्ति अधिनियम के एक मामले को फिर से खोल दिया है.
महाराष्ट्र सदन घोटाले की बात करें तो ये मामला उन दो मामलों में से एक था, जिनमें ED ने NCP (अजित पवार गुट) के छगन भुजबल और उनके परिवार का भी नाम था. यह घोटाला 2005 का है. इंडिया टुडे से जुड़ीं विद्या की रिपोर्ट के मुताबिक, तब की कांग्रेस-NCP सरकार ने दिल्ली में महाराष्ट्र सदन की नई बिल्डिंग बनाने का ठेका कृष्णा और प्रसन्ना चमनकर के मालिकाना हक वाली केएस चमनकर एंटरप्राइजेज को दिया था. ये दोनों इस केस के मुख्य आरोपी हैं.
ये ठेका कथित तौर पर नीलामी बुलाए बिना दिया गया था. उस समय छगन भुजबल लोक निर्माण विभाग (PWD) के मंत्री थे. चमनकर भाइयों और भुजबल को 2021 में इस मामले से बरी कर दिया गया था. हालांकि, चमनकर भाइयों ने ED की तरफ से दाखिल चार्जशीट को रद्द करने के लिए हाई कोर्ट का रुख किया था, जिसे कोर्ट ने मंजूर कर लिया. ये चार्जशीट PMLA के तहत 2016 में दर्ज मामले में दाखिल की गई थी.
बॉम्बे हाई कोर्ट के जस्टिस एस गडकरी और राजेश एस पाटिल की बेंच ने कहा,
"अगर व्यक्ति को अंतिम तौर पर अनुसूचित अपराध से मुक्त/बरी कर दिया जाता है या उसके खिलाफ आपराधिक मामला सक्षम कोर्ट रद्द कर देता है, तो उसके खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग का कोई जुर्म नहीं हो सकता."
कोर्ट ने कहा कि जुलाई 2021 के डिस्चार्ज ऑर्डर को चार साल से ज्यादा हो गए और चुनौती नहीं दी गई. कोर्ट ने इसी बात को अंतिम मान लिया.
दूसरे मामले में मुंबई के स्पेशल कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के पुनर्विचार फैसले के बाद बेनामी संपत्ति अधिनियम का एक केस फिर खोल दिया. ये मामला छगन भुजबल, उनके परिवार के सदस्यों और आर्मस्ट्रांग इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड के निदेशकों के खिलाफ है. बॉम्बे हाईकोर्ट ने 2023 में इस मामले को खारिज कर दिया था. हालांकि, हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट की इजाजत से केस दोबारा खोलने की छूट दी थी.
पिछले साल सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मद्देनजर 'बेनामी प्रोहिबिशन यूनिट-I, मुंबई के डिप्टी कमिश्नर इनकम टैक्स ने एक एप्लिकेशन दी थी. इसमें कहा गया कि हाई कोर्ट ने केवल 'टेक्निकल रिलीफ' दी थी. लेकिन आर्मस्ट्रांग इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड, छगन भुजबल, उनके बेटे पंकज और भतीजे समीर के वकील सुदर्शन खवासे ने दलील दी कि हाई कोर्ट ने मेरिट के मद्देनजर ये केस खारिज किया था.
हालांकि, स्पेशल कोर्ट ने उनकी दलील को नहीं माना. मंगलवार, 16 सितंबर को सुनवाई के दौरान जज सत्यनारायण आर नवंदर ने कहा,
"यह नहीं कहा जा सकता कि कार्यवाही रद्द करने का आदेश गुण-दोष के आधार पर पारित किया गया था."
अदालत ने कहा कि कार्यवाही केवल एक तकनीकी मुद्दे पर खारिज की गई थी. कोर्ट ने आगे कहा कि सर्वोच्च न्यायालय पुनर्विचार याचिका की इजाजत देता है, इसलिए, "इस कोर्ट के पास मूल कार्यवाही को बहाल करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है."
इसके मुताबिक, छगन भुजबल और अन्य आरोपियों के खिलाफ मामला उसी स्टेज से शुरू होगा, जहां रुका था. इस मामले की अगली सुनवाई 6 अक्टूबर को होगी.
वीडियो: सीजेआई ने क्यों कहा"जाओ और भगवान से ही कुछ करने के लिए कहो", क्या है पूरा केस?