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टैरिफ वॉर की चपेट में 'पीतल नगरी', मुरादाबाद के 2 लाख कारीगरों की नींद उड़ी

मुरादाबाद के हस्तशिल्प, खासकर पीतल, एल्युमीनियम और स्टील की वस्तुएं भारत से अमेरिका को होने वाले निर्यात का एक अहम हिस्सा हैं.

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Brass city in crisis US tariff threatens livelihoods of over 2 lakh artisans in Moradabad
अमेरिका से कोई नया ऑर्डर न आने के कारण यहां के कारीगरों और कारखानों में काम करने वाले लोगों में दुविधा देखी जा रही है. (फोटो- AI)
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प्रशांत सिंह
2 सितंबर 2025 (Updated: 2 सितंबर 2025, 08:58 PM IST)
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उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले को 'पीतल नगरी' के नाम से भी जाना जाता है. यहां काम करने वाले कई लोग इन दिनों एक बड़े संकट का सामना कर रहे हैं. अमेरिका ने भारत से आयात होने वाले सामान पर भारी टैरिफ लगाने का फैसला किया. इसमें मुरादाबाद से आने वाला पीतल का सामान भी शामिल हैं. अमेरिका की टैरिफ पॉलिसी ने मुरादाबाद के 2 लाख से ज्यादा कारीगरों और उनके परिवारों की नींद उड़ा दी है, क्योंकि उनकी रोजी-रोटी इस उद्योग पर निर्भर है.

मुरादाबाद और पीतल उद्योग का महत्व

मुरादाबाद को पीतल के हस्तशिल्प के लिए पूरी दुनिया में पहचाना जाता है. यहां के कारीगर पीढ़ियों से पीतल के बर्तन, सजावटी सामान, लैंप, मूर्तियां और अन्य खूबसूरत उत्पाद बनाते आए हैं. ये सामान न सिर्फ भारत में बल्कि विदेशों, खासकर अमेरिका, यूरोप और मध्य पूर्व में निर्यात किए जाते हैं. शहर की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा इस पीतल उद्योग पर टिका है.

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक इस उद्योग से मुरादाबाद में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से 2 लाख से ज्यादा लोग जुड़े हैं. छोटे-बड़े कारखानों, कार्यशालाओं और घरेलू यूनिट्स में काम करने वाले कारीगर इस कला को जीवित रखे हुए हैं. लेकिन अब अमेरिका के टैरिफ के फैसले ने इस उद्योग को खतरे में डाल दिया है.

अमेरिकी टैरिफ का क्या मतलब है?

अमेरिका ने भारत से आयात होने वाले कई सामान पर अतिरिक्त टैरिफ लगाने की बात कही है, जिसमें पीतल के उत्पाद भी शामिल हैं. अगर यह टैरिफ लागू होता है, तो मुरादाबाद के पीतल के सामान की कीमत अमेरिकी बाजार में बढ़ जाएगी. इससे वहां इसकी मांग कम हो सकती है, क्योंकि ग्राहक महंगे उत्पाद खरीदने से हिचकते हैं. इसका सीधा असर मुरादाबाद के कारीगरों और कारोबारियों पर पड़ेगा, जिनके लिए अमेरिका सबसे बड़ा बाजार है. अमेरिका से कोई नया ऑर्डर न आने की आशंका में यहां के कारीगर और कारखानों में काम करने वाले लोग दुविधा में हैं.

कारीगरों और कारोबारियों की चिंता

इंडिया टुडे से जुड़े कौस्तव दास की रिपोर्ट के मुताबिक एक निर्यातक ने नाम न बताने की शर्त पर कहा,

"मेरे कारीगर मुझ पर निर्भर हैं, मैं उन्हें कैसे बताऊं कि उनके पास काम नहीं है?"

एक अन्य निर्यातक ने कहा,

"अगले 15 दिन बहुत अहम होंगे. अगर हालात नहीं सुधरे, तो कारोबार को जारी रखना नामुमकिन हो जाएगा.”

मुरादाबाद के कारीगर और छोटे कारोबारी मौजूदा हालात से बहुत परेशान हैं. कई कारीगरों ने बताया कि उनके पास पहले से ही ऑर्डर कम हो रहे हैं, और अगर टैरिफ बढ़ा तो स्थिति और खराब हो सकती है.

एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल फॉर हैंडीक्रॉफ्ट्स (EPCH) स्थिति पर नजर रख रही है. EPCH के मुख्य संयोजक अवधेश अग्रवाल ने पुष्टि की कि टैरिफ लागू होने से पहले ही व्यवधान के शुरुआती संकेत दिखाई देने लगे थे. उन्होंने कहा,

"निर्यातकों ने शिपमेंट में देरी, कॉन्ट्रैक्ट्स पर फिर से बातचीत, पेमेंट में देरी और ऑर्डर रद्द होने की शिकायतें दर्ज करनी शुरू कर दी हैं. प्रारंभिक जानकारी से पता चलता है कि सीजनल और कस्टमाइज्ड ऑर्डर सबसे पहले प्रभावित हुए हैं."

आधे उत्पाद अमेरिका भेजे जाते हैं
मुरादाबाद के हस्तशिल्प, खासकर पीतल, एल्युमीनियम और स्टील की वस्तुएं भारत से अमेरिका को होने वाले निर्यात का एक अहम हिस्सा हैं. उत्तर प्रदेश ने 2024-25 में 7,122 करोड़ रुपये के हस्तशिल्प निर्यात किए थे. इनमें अकेले मुरादाबाद का योगदान लगभग 1,583 करोड़ रुपये था. इनमें से लगभग आधे उत्पाद अमेरिका भेजे जाते हैं और टैरिफ के कारण तत्काल जोखिम में हैं. अग्रवाल ने चेतावनी देते हुए बताया,

"अगर टैरिफ का यही माहौल बना रहा तो अमेरिका को होने वाले निर्यात में 25-30% की गिरावट आ सकती है. जिससे सालाना 40-45 करोड़ अमेरिकी डॉलर (3500 करोड़ रुपये) का राजस्व नुकसान हो सकता है. इसके कारण ग्रामीण और सेमी-अर्बन इलाकों में लगभग 2-2.5 लाख कारीगरों और कामगारों, खासकर महिलाओं की नौकरियां छिन सकती हैं."

मुरादाबाद के एक संगठन लघु उद्योग भारती के अध्यक्ष रचित अग्रवाल के अनुसार, ये संकट काफी गंभीर है. उन्होंने कहा,

"मुरादाबाद का 80 प्रतिशत निर्यात अमेरिका को जाता है. टैरिफ लागू होने के बाद से, व्यापार लगभग आधा रह गया है और अगले 2-3 हफ्तों में और भी कम होने की उम्मीद है. मुरादाबाद का निर्यात उद्योग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से लगभग 10 लाख श्रमिकों को रोजगार देता है. इस टैरिफ के चाबुक के साथ, भारी बेरोजगारी हो सकती है. कारखानों ने कर्मचारियों को निकालना शुरू कर दिया है."

रचित अग्रवाल ने आगे कहा,

"निर्यातक सरकार से राहत पैकेज की उम्मीद कर रहे हैं, जिसका लाभ ग्राहकों को दिया जा सके ताकि कारोबार को बनाए रखने में मदद मिल सके.”

उन्होंने आगे बताया कि अब तक राजस्व का नुकसान लगभग 2,500-3,000 करोड़ रुपये है. अगर यही स्थिति बनी रही तो ये और भी बढ़ सकता है.

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