भोपाल गैस त्रासदी वाले जहरीले कचरे को जलाने की तैयारी, रात में भर-भरकर निकले ट्रक
Bhopal Gas Tragedy Toxic Waste: पिछले दिनों बड़ी संख्या में लोगों ने Pithampur में इस कचरा निपटान के विरोध में मार्च निकाला था. CM Mohan Yadav ने कहा है कि कचरे को निकालने से पहले कई प्रयोग किए गए हैं और संबंधित विभागों से परामर्श के बाद ये फैसला लिया गया है.

करीब 40 साल पहले मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में गैस त्रासदी (Bhopal Gas Disaster) हुई थी. इसमें 5 हजार से अधिक लोगों की मौत हुई थी. इस त्रासदी को मानव इतिहास की सबसे बड़ी आपदाओं में से एक माना जाता है. एक लंबा अरसा बीतने के बाद उस बंद पड़े यूनियन कार्बाइड कारखाने से लगभग 377 टन खतरनाक कचरे को हटाया गया है.
न्यूज एजेंसी PTI की रिपोर्ट के मुताबिक, कचरे को हटाने की प्रक्रिया 1 जनवरी की रात को शुरू कर दी गई थी. जहरीले कचरे को 12 सीलबंद कंटेनर ट्रकों में भरकर भोपाल से 250 किलोमीटर दूर धार जिले के पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र में ले जाया गया. भोपाल गैस त्रासदी राहत एवं पुनर्वास विभाग के निदेशक स्वतंत्र कुमार सिंह ने बताया,
“कचरा लेकर 12 कंटेनर ट्रक रात करीब नौ बजे बिना रुके रवाना हुए. वाहनों के लिए ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया था.”
उन्होंने बताया कि 29 दिसंबर, 2024 से 100 लोग लगातार काम कर रहे थे. वो कचरे को पैक कर ट्रकों में भर रहे थे. उन्होंने कहा,
"उनकी स्वास्थ्य जांच की गई और हर 30 मिनट में उन्हें ब्रेक दिया गया."
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कचरे का क्या किया जाएगा?2 से 3 दिसंबर, 1984 की दरम्यानी रात को यूनियन कार्बाइड कीटनाशक फैक्ट्री से मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) नाम की जहरीली गैस लीक हुई थी. इसमें कम से कम 5,479 लोगों की मौत हो गई थी और हजारों लोग लंबे समय के लिए गंभीर रूप से बीमार हो गए.
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को लेकर हादसे की जगह को खाली करने का आदेश दिया था. मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने 3 दिसंबर, 2024 को इसको लेकर अधिकारियों को फटकार लगाई. उन्होंने कहा कि गैस त्रासदी के 40 साल बाद भी अधिकारियों ने जरूरी कार्रवाई नहीं की. उन्होंने कचरे को हटाने के लिए चार सप्ताह की समय-सीमा निर्धारित की थी.

कोर्ट ने राज्य सरकार को चेतावनी दी थी कि अगर आदेश का पालन नहीं किया गया, तो सरकार के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही की जाएगी. स्वतंत्र कुमार सिंह ने PTI को बताया,
"यदि सब कुछ ठीक पाया गया तो कचरे को तीन महीने के भीतर जला दिया जाएगा. नहीं तो, इसमें नौ महीने तक का समय लग सकता है."
सिंह ने बताया कि शुरुआत में कुछ कचरे को पीथमपुर स्थित कचरा निपटान इकाई में जलाया जाएगा और अवशेष (राख) की जांच की जाएगी ताकि पता लगाया जा सके कि कहीं कोई हानिकारक तत्व तो नहीं बचा है. उन्होंने कहा कि कचरे को जलाने पर जो धुआं निकलेगा वो फिलटर की चार परतों से होकर गुजरेगा, ताकि हवा प्रदूषित ना हो.
उन्होंने आगे बताया कि जब इस बात की पुष्टी हो जाएगी कि राख में कोई जहरीला तत्व नहीं है, तब उसे दो परतों वाली झिल्ली से ढक दिया जाएगा. और उसे इस तरह दफनाया जाएगा कि वो मिट्टी या पानी के संपर्क में ना आए. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों की देखरेख में एक्सपर्ट्स की एक टीम इस प्रक्रिया को अंजाम देगी.
कुछ स्थानीय कार्यकर्ताओं ने दावा किया है कि 2015 में पीथमपुर में परीक्षण के तौर पर 10 टन यूनियन कार्बाइड अपशिष्ट को जला दिया गया था. इसके बाद आसपास के गांवों की मिट्टी, भूमिगत जल और जल स्रोत प्रदूषित हो गए. लेकिन सिंह ने इस दावे को खारिज करते हुए कहा कि पीथमपुर में कचरे के निपटान का निर्णय 2015 के परीक्षण की रिपोर्ट के बाद ही लिया गया था और सभी शिकायतों की जांच की गई थी. उन्होंने कहा कि इसमें चिंता का कोई कारण नहीं है.
पिछले दिनों बड़ी संख्या में लोगों ने पीथमपुर में इस कचरा निपटान के विरोध में मार्च निकाला था. पीथमपुर की आबादी करीब 1.75 लाख है.
CM Mohan Yadav ने क्या कहा?मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने कहा है कि सभी संबंधित विभागों से परामर्श के बाद कचरे को हटाने का फैसला लिया गया है. उन्होंने बताया,
“40 साल पहले जब ये घटना हुई, संयोग से एक बैठक के लिए मैं भी भोपाल में ही था. मैं जब भी उस रात को याद करता हूं तो सिहर उठता हूं. कचरे में 60 प्रतिशत स्थानीय मिट्टी है.”
उन्होंने कहा कि कचरे को निपटाने से पहले कई प्रयोग किए गए. उसके बाद ही ये फैसला लिया गया.
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