The Lallantop
Advertisement
  • Home
  • India
  • Allahabad High Court refuses to quash fir against police uniform not license to assault citizens

यूपी में डॉक्टर की पिटाई के आरोपी पुलिसकर्मियों को HC ने लताड़ा, 'वर्दी पीटने का लाइसेंस नहीं'

पीड़ित डॉक्टर ने अपनी शिकायत में यह भी आरोप लगाया कि पुलिसवालों ने उनका मोबाइल फोन तोड़ दिया और एक सोने की चेन और 16,200 रुपये कैश भी 'लूट' लिए. आगे आरोप लगाया कि पुलिसवालों ने उन्हें डेढ़ घंटे तक बंधक बनाए रखा.

Advertisement
police, judge, court
इहलाबाद हाई कोर्ट ने आरोपी पुलिसकर्मियों को राहत नहीं दी. (AI Image)
pic
मौ. जिशान
29 अप्रैल 2025 (Updated: 29 अप्रैल 2025, 10:36 PM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक डॉक्टर की पिटाई के मामले में आरोपी पुलिसकर्मियों के खिलाफ सख्त टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा कि पुलिस की वर्दी का मतलब ‘लोगों का पीटने का लाइसेंस नहीं’ है. यह कहते हुए जस्टिस राज बीर सिंह की बेंच ने आरोपी पुलिसवालों की याचिका खारिज कर दी. दरअसल, उत्तर प्रदेश पुलिस के चार पुलिसवालों ने हाई कोर्ट में अपने खिलाफ दर्ज FIR को रद्द करने की याचिका दी थी, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया.

लॉबीट की रिपोर्ट के मुताबिक, डॉ. राघवेंद्र अग्निहोत्री ने आरोप लगाया है कि इन पुलिसकर्मियों ने 28 जून, 2022 को उनके और स्टाफ के साथ मारपीट की थी. डॉक्टर ने बताया कि उस दिन वे और उनके स्टाफ के लोग कानपुर से वापस आ रहे थे. रास्ते में उनकी कार एक दूसरी कार से टकरा गई. हालांकि, कोई बड़ी अनहोनी नहीं हुई और थोड़ी-बहुत कहासुनी के बाद मामला रफा-दफा हो गया.

लेकिन उसी रात 10 बजे खुदागंज के पास कॉन्स्टेबल कुलदीप यादव, कॉन्स्टेबल सुधीर, कॉन्स्टेबल दुष्यंत, सब-इंस्पेक्टर अनिमेश कुमार ने 6 अन्य पुलिसकर्मियों के साथ कथित तौर पर डॉक्टर की कार को रोक लिया. आरोप है कि पुलिसकर्मियों ने डॉक्टर और उनके साथियों के साथ गाली-गलौज और मारपीट की.

पीड़ित डॉक्टर ने अपनी शिकायत में यह भी आरोप लगाया कि पुलिसवालों ने उनका मोबाइल फोन तोड़ दिया और एक सोने की चेन और 16,200 रुपये कैश भी 'लूट' लिए. आगे आरोप लगाया कि पुलिसवालों ने उन्हें डेढ़ घंटे तक बंधक बनाए रखा. इस मामले में फर्रुखाबाद कोतवाली में आरोपी पुलिसकर्मियों के खिलाफ केस दर्ज किया गया. इसके अलावा मेडिकल जांच में पीड़ितों के शरीर पर चोटें भी पाई गईं.

पुलिसकर्मियों के वकील ने तर्क दिया कि उनके मुवक्किल ड्यूटी पर तैनात थे, इसलिए क्रिमिनल प्रोसीजर कोड (CrPC) की धारा 197 के तहत ड्यूटी कर रहे सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ FIR दर्ज करने से पहले सरकार की मंजूरी जरूरी है, जो इस मामले में नहीं ली गई थी. इस तर्क के आधार पर हाई कोर्ट में FIR को रद्द करने की अपील की गई. पुलिसवालों का कहना था कि वो घटना के दौरान गश्त कर रहे थे, जो उनकी ड्यूटी का हिस्सा है. 

लेकिन कोर्ट ने सुनवाई के दौरान पाया कि घटना के समय आरोपियों ने जो किया, वो किसी पुलिसकर्मी की ड्यूटी के अनुरूप नहीं था. जनरल डायरी (GD) में भी आरोपी साबित नहीं कर पाए कि घटना की जगह पर उनकी गश्ती थी. इसलिए कोर्ट ने आरोपी पुलिसवालों को CrPC की धारा 197 के तहत राहत नहीं दी, और क्रिमिनल FIR को बरकरार रखा.

वीडियो: पहलगाम हमले के नाम पर हत्या की, अब एनकाउंटर में पकड़े गए

Advertisement