The Lallantop
Advertisement
  • Home
  • India
  • After Gauhati HC questioned 3,000 bigha allotment to cement company state responds

'3,000 बीघा जमीन तो मूंगफली के दाने के बराबर', असम सरकार ने हाई कोर्ट में कहा

कोर्ट की टिप्पणियों के बाद असम सरकार ने तीन-सदस्यीय जांच कमेटी का गठन किया था. जिसने कहा है कि ये आवंटन ऐसी फैक्ट्री लगाने की जरूरतों के मुताबिक ही है.

Advertisement
After Gauhati HC questioned 3,000 bigha allotment to cement company state responds
राज्य सरकार ने अपने जवाब में दावा किया कि ये आवंटन औद्योगिक विकास और रोजगार सृजन के उद्देश्य से किया गया है. (सांकेतिक फोटो- India Today)
pic
प्रशांत सिंह
4 सितंबर 2025 (Updated: 4 सितंबर 2025, 10:34 PM IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

असम के डिमा हसाओ जिले में एक सीमेंट कंपनी को 3000 बीघा जमीन दिए जाने पर गुवाहाटी हाईकोर्ट द्वारा सवाल उठाए गए थे. इसके जवाब में राज्य सरकार ने कहा है कि वो निवेश (Assam land allotment case) को प्रोत्साहित करना चाहती है और इसे भगाना नहीं चाहती. असम के एडवोकेट जनरल देवजीत सैकिया ने कोर्ट के सामने ये जानकारी दी. सैकिया ने कहा सरकार राज्य में आर्थिक विकास को रोकना नहीं चाहती है.

11,000 करोड़ रुपये का समझौता भी हुआ था

डिमा हसाओ अपनी समृद्ध आदिवासी संस्कृति और संवेदनशील पर्यावरण के लिए जाना जाता है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक जेके लक्ष्मी सीमेंट की पेरेंट कंपनी महाबल सीमेंट प्राइवेट लिमिटेड को ये जमीन आवंटित की गई थी. ग्रीनफील्ड सीमेंट प्रोजेक्ट के लिए 11,000 करोड़ रुपये का समझौता भी हुआ था. गुवाहाटी हाईकोर्ट ने इस आवंटन पर चिंता जाहिर करते हुए पूछा कि इतनी बड़ी मात्रा में जमीन देने का फैसला कैसे लिया गया. क्या इसमें स्थानीय आदिवासी समुदायों के हितों का ध्यान रखा गया? कोर्ट ने ये भी सवाल उठाए कि क्या इस प्रक्रिया में पर्यावरणीय नियमों और आदिवासी अधिकारों का पालन किया गया है?

कोर्ट की टिप्पणियों के बाद असम सरकार ने तीन-सदस्यीय जांच कमेटी का गठन किया था. जिसने कहा है कि ये आवंटन ऐसी फैक्ट्री लगाने की जरूरतों के मुताबिक ही है. राज्य सरकार ने अपने जवाब में दावा किया कि ये आवंटन औद्योगिक विकास और रोजगार सृजन के उद्देश्य से किया गया है. एडवोकेट जनरल देवजीत सैकिया ने कोर्ट को बताया,

“इसका निवेशकों पर असर पड़ेगा. हम चाहते हैं कि निवेशक असम आएं और निवेश करें. जिससे कि चरमपंथी तत्वों से ग्रस्त इलाकों की आर्थिक स्थिति में सुधार लाया जा सके. हम आर्थिक विकास को रोकना नहीं चाहते. सिर्फ NC हिल्स (डिमा हसाओ) का ही नहीं, बल्कि पूरे असम का. सीलिंग एक्ट यहां लागू नहीं होता. NC हिल्स अथॉरिटी (उत्तरी कछार हिल्स स्वायत्त परिषद, जिले की छठी अनुसूची के अंतर्गत स्वायत्त परिषद) के पास जमीन देने का पूरा अधिकार है. अगर वो 11,000 करोड़ के निवेश पर विचार कर रही है, तो 3,000 बीघा जमीन तो मूंगफली के दाने के बराबर है. अगर 11,000 करोड़ का निवेशक किसी मनमौजी वजह से चला जाता है, तो ये असम राज्य के लिए एक दुखद दिन होगा.”

कंपनी ने कमेटी को क्या बताया?

सैकिया ने आगे बताया कि राज्य सरकार ने 21 अगस्त को लोक निर्माण विभाग, भूविज्ञान एवं खनन निदेशालय और असम औद्योगिक विकास निगम के अधिकारियों की एक तीन सदस्यीय कमेटी बनाई थी. रिपोर्ट में कहा गया कि कंपनी ने कमेटी को बताया कि 3,000 बीघा में से 1,020 बीघा जमीन ग्रीन बेल्ट के लिए है. बुनियादी ढांचे के अलावा, सोलर प्लांट प्रोजेक्ट, ट्रक पार्किंग, रेल साइडिंग, सड़क और 5,000 से अधिक कर्मचारियों के लिए एक टाउनशिप बनाने के लिए भी जमीन की जरूरत होगी.

कोर्ट ने क्या कहा?

हालांकि, जस्टिस संजय कुमार मेधी ने कहा कि कोर्ट ने ऐसी कोई भी रिपोर्ट नहीं मांगी थी. कोर्ट ने कहा कि ये रिपोर्ट मामले पर उठाई गई दो मुख्य चिंताओं का समाधान नहीं करती हैं. एक, उमरंगसो में जनजातीय अधिकारों की. जो संविधान के तहत छठे अनुसूचित जिले डिमा हसाओ का हिस्सा है. और दूसरा, पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव की. दलीलें सुनने के बाद, जस्टिस मेधी ने पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव पर चिंता जताई. उन्होंने कहा कि रिपोर्ट में इसका जिक्र नहीं है. जवाब में सैकिया ने तर्क दिया कि ये राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में नहीं है. इस पहलू की जांच केंद्र सरकार द्वारा बाद में की जाएगी.

जस्टिस मेधी द्वारा जारी आदेश में कहा गया,

"दोनों याचिकाओं में याचिकाकर्ताओं को राज्य सरकार द्वारा आज दायर हलफनामे का जवाब देने का अवसर दिया जाना चाहिए. इसके लिए उन्हें दो हफ्ते का समय दिया जाता है.”

आदेश में ये भी कहा गया कि NCHAC की ओर से AG हलफनामा दायर करेंगे.

बता दें कि 12 अगस्त को इस मामले से जुड़ी दो याचिकाओं पर कोर्ट ने सुनवाई की थी. ये स्थानीय लोगों द्वारा दायर की गई थीं. याचिका में आरोप लगाया गया था कि उन्हें उनकी जमीन से बेदखल किया जा रहा है. जस्टिस मेधी ने सवाल उठाया था कि भारतीय संविधान की छठी अनुसूची के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र में एक निजी कंपनी को "जमीन का इतना बड़ा हिस्सा" क्यों आवंटित किया गया. दूसरी याचिका इस साल की शुरुआत में कंपनी द्वारा दायर की गई थी. जिसमें कंपनी के निर्माण कार्य में स्थानीय लोगों द्वारा उठाए जा रहे व्यवधानों से सुरक्षा की मांग की गई थी.

वीडियो: असम: अतिक्रमण हटाने गई पुलिस से लोगों की झड़प, फायरिंग में गई एक की जान

Advertisement