ऑफिस में ऐसे मैनेज करें डायबिटीज़, ब्लड शुगर लेवल कंट्रोल में रहेगा
करीब 50% लोगों को पता ही नहीं होता कि उन्हें डायबिटीज़ है. ये धीरे-धीरे बढ़ने वाली बीमारी है. डायबिटीज़ होने पर शरीर में ग्लूकोज़ यानी शुगर की मात्रा बढ़ जाती है. इस बढ़ी शुगर का असर शरीर के लगभग हर अंग पर पड़ता है.

नवंबर में मनाया जाता है वर्ल्ड डायबिटीज़ डे. तो इस महीने डायबिटीज़ पर बात होना तो बनता है.
भारत को ‘डायबिटीज़ कैपिटल ऑफ़ द वर्ल्ड’ कहा जाता है. ICMR-INDIAB 2023 की एक स्टडी के मुताबिक, भारत में 10 करोड़ से ज़्यादा लोगों को डायबिटीज़ है और 14 करोड़ से ज़्यादा लोग प्री-डायबिटिक है. यानी डायबिटीज के रिस्क पर हैं
करोड़ों लोग डायबिटीज़ के साथ ऑफिस, दुकान, फैक्ट्री और फील्ड वगैरह पर काम करते हैं. काम के साथ डायबिटीज़ को कंट्रोल करना, उसे मैनेज करना आसान नहीं होता. कभी डेडलाइन की टेंशन. कभी मीटिंग की तैयारी. कभी कस्टमर्स की भीड़. तो कभी फील्ड की भाग-दौड़. ऐसे में एक डायबिटिक इंसान अपना ख़्याल कैसे रखें? कब खाएं, क्या खाएं? काम की भाग-दौड़ में शुगर लो हो जाए तो क्या करें?
इन बहुत ही आम, लेकिन रिलेटेबल प्रॉब्लम्स पर आज हम बात करेंगे. असरदार और प्रैक्टिकल टिप्स पता करेंगे. हमारे सवालों के जवाब दिए तीन डॉक्टर्स ने.
डॉक्टर रवींद्र शुक्ला, एडिशनल प्रोफेसर, एंडोक्राइनोलॉजी एंड मेटाबॉलिज़्म, एम्स, जोधपुर.
डॉक्टर संदीप जुल्का, डॉक्टर जुल्का'स रेडिएंस, द हॉर्मोन हेल्थ क्लीनिक, इंदौर.
डॉक्टर सुशील जिंदल, सीनियर एंडोक्राइनोलॉजिस्ट एंड डायबेटोलॉजिस्ट, जिंदल डायबिटीज़ एंड हॉर्मोन सेंटर, भोपाल.

डायबिटीज़ होने पर शरीर में ग्लूकोज़ यानी शुगर की मात्रा बढ़ जाती है. इस बढ़ी शुगर का असर शरीर के लगभग सभी अंगों पर पड़ता है. जैसे आंखों, किडनी, पैरों और नर्वस सिस्टम पर. ऐसा होने पर ये अंग धीरे-धीरे, साल-दर-साल ख़राब होने लगते हैं. इसके बाद कई बीमारियां पैदा होती हैं. जैसे किडनी ख़राब होना. हार्ट अटैक पड़ना. पैरों में दर्द या झनझनाहट होना. पेशाब से जुड़ी दिक्कतें होना. इसी वजह से डायबिटीज़ को बीमारियों का समूह कहा जाता है.
डायबिटीज़ के लक्षणकरीब 50% लोगों को पता ही नहीं होता कि उन्हें डायबिटीज़ है. ये धीरे-धीरे बढ़ने वाली बीमारी है. कई बार डायबिटीज़ के कोई लक्षण नज़र नहीं आते. रुटीन चेकअप के दौरान पता चलता है कि शुगर बढ़ी हुई है. डायबिटीज़ मुख्य रूप से तीन तरह की होती है- टाइप 1, टाइप 2 और जेस्टेशनल डायबिटीज़.
करीब 95% लोगों को टाइप 2 डायबिटीज़ होती है. ऐसे लोगों को बार-बार पेशाब आती है. ज़्यादा भूख लगती है. घाव जल्दी नहीं भरते.
टाइप 1 डायबिटीज़ ज़्यादातर बच्चों में देखी जाती है. इसमें बच्चे का वज़न बहुत कम हो जाता है. बार-बार पेशाब आती है. पढ़ाई में परफॉर्मेंस गिरने लगती है. बच्चा धीरे-धीरे सुस्त और पीछे होता जाता है.
जेस्टेशन डायबिटीज़ प्रेग्नेंसी के लगभग 20वें हफ्ते के बाद होती है. इसके भी ज़्यादातर लक्षण दिखाई नहीं देते, इसलिए रेगुलर स्क्रीनिंग बहुत ज़रूरी है. अगर घर में किसी को डायबिटीज़ है, तो समय-समय पर ब्लड शुगर टेस्ट कराते रहे.
डायबिटीज़ का काम पर क्या असर पड़ता है?डायबिटीज़ के जिन मरीज़ों को लंबे समय तक ऑफिस या दुकान में रहना होता है. उन्हें कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. शुगर कंट्रोल में न होने पर उन्हें अक्सर थकान महसूस होती है. बार-बार पेशाब के लिए जाना पड़ता है. इससे उनकी वर्क परफॉर्मेंस पर असर पड़ता है. वो अपना काम ठीक से पूरा नहीं कर पाते. धीरे-धीरे इसका असर उनके करियर पर भी पड़ता है.
अगर डायबिटीज़ के कॉम्प्लिकेशंस (जटिलताएं) आने शुरू हो गए हैं. जैसे आंखों, दिल, किडनी या नर्व्स में. तब ऐसे लोग कई बार कुछ खास तरह के काम नहीं कर पाते. खासकर जब उन्हें कोई मशीन चलानी हो या बहुत बारीक काम करना हो. अगर इंसुलिन का इंजेक्शन लेने वालों को समय पर खाना नहीं मिलता, तो उनकी शुगर लो हो सकती है. कई बार ऑफिस में मीटिंग लंबी चल जाती है. ऐसे में सुबह इंसुलिन लेकर आए व्यक्ति की शुगर गिरने का ख़तरा बढ़ जाता है.
डायबिटीज़ अपने आप में महंगी बीमारी है. अगर डायबिटीज़ की वजह से दिल या पैर की कोई समस्या हो जाए, तो खर्च और बढ़ जाता है. कई बार लोग इन दिक्कतों की वजह से छुट्टी पर रहते हैं. बढ़ते खर्च और लगातार इलाज से वो स्ट्रेस में आ जाते हैं. कई लोगों को लगता है कि उनकी पूरी सैलरी बीमारी पर ही खर्च हो रही है. इस तरह की कई चुनौतियों का सामना डायबिटीज़ के मरीज़ों को करना पड़ता है .

- जो लोग पूरे दिन ऑफिस या फील्ड में रहते हैं, वो बार-बार चाय-नाश्ता लेते हैं.
- ऐसा करने से शुगर बढ़ सकती है, इसलिए इसे अवॉइड करें.
- हर 15 मिनट में उठकर थोड़ा चलें-फिरें.
- जो लोग फील्ड ट्रिप पर रहते हैं, वो कई बार इंसुलिन नहीं लगा पाते या दवाइयां नहीं ले पाते.
- ऐसे लोग डॉक्टर से मिलकर अपनी दवाइयों और खाने का टाइम इस तरह तय करें कि बिज़ी टाइम में दवा न लेनी पड़े.
- लेकिन, टाइप-1 डायबिटीज़ वालों को इंसुलिन लेना ही पड़ता है.
- उन्हें डॉक्टर बताते हैं कि किस तरह इंसुलिन लें और खाना कब खाएं.
- पर ऐसे में बाहर का खाना अवॉइड करने की सलाह दी जाती है.
काम करते हुए ब्लड शुगर लो हो जाए तो क्या करें?ब्लड शुगर का बढ़ना जितना ख़तरनाक है, उससे ज़्यादा नुकसानदेह उसका कम होना है. ब्लड शुगर कम होने पर पसीना आने लगता है. दिल की धड़कनें बढ़ जाती हैं. मरीज़ बेहोश भी हो सकता है. इसलिए, डायबिटीज़ होने की बात कभी छुपानी नहीं चाहिए.
कई बच्चे स्कूल या कॉलेज में अपने दोस्तों को ये बात नहीं बताते. वर्कप्लेस पर आप अपने साथियों को बताकर रखें कि अगर आपके व्यवहार में बदलाव दिखे, तो तुरंत देखें कि कहीं शुगर कम तो नहीं हो रही. कई बार मरीज़ों को पर्स में रखने के लिए एक कार्ड दिया जाता है. उस पर लिखा होता है कि अगर मरीज़ बेहोश मिले तो क्या करना है.
डायबिटीज़ के मरीज़ हमेशा समय पर खाना और दवाई लें. अगर कभी ब्लड शुगर कम हो जाए तो ग्लूकोज़ की टैबलेट या कोई मीठी चीज़ अपने पास रखें, ताकि ज़रूरत पड़ने पर तुरंत खा सकें.
कई बार मरीज़ कुछ मीठा खाते हैं, लेकिन उसके बाद कुछ नहीं खाते. इससे शुगर पहले बढ़ती है और फिर जल्दी घटने लगती है. इसलिए, अगर आपने दो चम्मच चीनी खाई है तो उसके बाद ब्रेड या केला ज़रूर खाएं ताकि शुगर स्थिर रहे. अगर कोई ऑफिस में बेहोश हो जाए और अपने दांत भींच ले. तब तुरंत उसके मसूड़ों पर शहद या जैम रगड़ें और उसे डॉक्टर के पास ले जाएं.
ऑफिस में कौन से स्नैक्स अपने पास रखें?- जो भी स्नैक्स अपने पास रखें, उनका ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होना चाहिए.
- ग्लाइसेमिक इंडेक्स का मतलब है- किसी चीज़ को खाने के बाद शुगर कितनी तेज़ी से बढ़ती है.
- बेहतर है आपके स्नैक्स में चीनी न हो.
- स्नैक्स में प्रोटीन और फाइबर होना ज़रूरी है.
- ये धीरे-धीरे पचते हैं और जल्दी ग्लूकोज़ में नहीं बदलते.
- इससे शरीर को थोड़ी कैलोरी मिलती है, लेकिन शुगर नहीं बढ़ती.
- स्नैक्स में हैल्दी फैट लेना ज़रूरी है.
- कई लोग समोसा, कचौड़ी, नमकीन, केक या पेस्ट्री खाते रहते हैं.
- ये सब मैदे से बने होते हैं और इनका ग्लाइसेमिक इंडेक्स बहुत ज़्यादा होता है.
- कई बार लोग फ्रूट जूस पीते हैं, जिससे तुरंत शुगर बढ़ती है.
- इसकी जगह रोस्टेड चना, मखाना, बादाम, अखरोट, काजू जैसे नट्स लें, इनसे शुगर तुरंत नहीं बढ़ती.
- लंच में सलाद, रोटी, लो-फैट दही और दालें शामिल करें.
- ये चीज़ें शरीर को लो शुगर से बचाएंगी और शुगर लेवल तेज़ी से बढ़ने भी नहीं देंगी.
- फलों में सेब, अमरूद और संतरा जैसे फल अपने साथ रख सकते हैं.
- इन्हें बीच-बीच में खाने से एनर्जी बनी रहती है और शुगर भी कंट्रोल में रहती है.

- ये इस बात पर निर्भर करता है कि मरीज़ इंसुलिन लेता है या दवाइयां.
- जो मरीज़ इंसुलिन पर निर्भर हैं, उन्हें फिक्स्ड चीज़ें ही खानी चाहिए.
- वो फल खा सकते हैं, लेकिन चाय पीने से बचें.
- जो लोग दवाइयां ले रहे हैं, वो देखें कि उनका नाश्ता शाम 3-4 बजे होता है या रात 7-8 बजे.
- अगर नाश्ता रात 7-8 बजे करते हैं, तो उसे डिनर के साथ ही खाएं.
- अगर नाश्ता 3- 4 बजे करते करते हैं, तो चाय के साथ ड्राई फ्रूट्स, बादाम या मूंगफली के दाने ले सकते हैं.
वर्कप्लेस में स्ट्रेस कैसे मैनेज करें?वर्ल्ड डायबिटीज़ डे 2025 की थीम है- डायबिटीज़ एंड वेलबीइंग. वेलबीइंग में मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक, तीनों पहलू शामिल हैं. इसमें स्ट्रेस को मैनेज करना भी बहुत ज़रूरी हिस्सा है. स्ट्रेस कम करने के लिए प्राणायाम या एक्सरसाइज़ कर सकते हैं. एक्सरसाइज़ से शरीर में हैप्पी हॉर्मोन्स बढ़ते हैं. ऑफिस में अपने साथियों से अच्छी बातचीत रखें.
ऑफिस में किस तरह की फिजिकल एक्टिविटी कर सकते हैं?सिडेंट्री (सुस्त) लाइफस्टाइल का मतलब है- जब आप कोई एक्सरसाइज़ नहीं करते और दिन में 12 घंटे से ज़्यादा कुर्सी पर बैठे या लेटे रहते हैं. ऐसी लाइफस्टाइल न सिर्फ डायबिटीज़, बल्कि दिल और पूरी सेहत के लिए नुकसानदेह होती है. अगर आप लंबे समय तक ऑफिस में बैठे रहते हैं, तो छोटी-छोटी एक्सरसाइज़ करने से बहुत फायद मिलेगा.
जैसे कुर्सी पर बैठे-बैठे अपनी एड़ी को ऊपर उठाकर नीचे करें. थोड़ी-थोड़ी देर में एड़ी उचकाने से पैरों में खून का फ्लो सुधरेगा. फिर इसी तरह पंजे को ऊपर-नीचे करें. 30 से 40 मिनट तक बैठे रहने के बाद, खड़े होकर पहले ट्विस्टिंग एक्सरसाइज़ करें. इसमें अपने धड़ को धीरे-धीरे दोनों तरफ घुमाएं. इसके बाद 5-6 मिनट ऑफिस में टहलें, फिर काम पर लौटें. इससे शुगर लेवल बढ़ने की संभावना काफी कम हो जाती है.
अगर ऑफिस में एक्सरसाइज़ या खेलने की सुविधा है, तो काम खत्म करने के बाद वहां जाएं. कई ऑफिसेज़ में जिम या खेलने की जगहें होती हैं. 2-3 घंटे काम करने के बाद 15-20 मिनट के लिए वहां जाकर खेलें. इससे न सिर्फ शरीर एक्टिव रहेगा, बल्कि मानसिक तनाव भी घटेगा.

अगर टाइप-1 डायबिटीज़ है और इंसुलिन लेना भूल गए हैं, तो ये गंभीर स्थिति हो सकती है. ऐसे में चेक करना चाहिए कि शुगर बहुत ज़्यादा तो नहीं बढ़ गई. अगर शुगर बढ़ी हुई है, तो कुछ खाकर इंसुलिन ज़रूर लें. अगर कोई व्यक्ति टैबलेट ले रहा है और वो दवा छूट गई है, तो उस दिन अलग से कुछ करने की ज़रूरत नहीं है. लेकिन, अगले दिन खाली पेट की शुगर ज़रूर चेक करें. अगर बार-बार दवा मिस हो रही है. तब डॉक्टर से सलाह लेकर खाने और दवाओं की टाइमिंग बदलें, ताकि दिक्कत न बढ़े और दवा छूटने की संभावना कम होय
सहकर्मी कैसे मदद कर सकते हैं?हम अपना ज़्यादातर समय वर्कप्लेस पर ही बिताते हैं. अगर काम की जगह खुशनुमा और पॉज़िटिव माहौल वाली हो, तो आप घर पर भी स्ट्रेस लेकर नहीं जाएंगे. चार बातें सबसे अहम हैं- आचार, विचार, आहार और विहार.
पहला है आचार यानी आपसी संबंध. आप जितना अपने डायबिटीज़ से पीड़ित साथी को मेंटल सपोर्ट देंगे, उतना वो बेहतर महसूस करेगा. अगर कभी वो दवा लेना भूल जाए, शुगर लेवल लो या हाई होने के लक्षण दिखें, तो उसे बताएं. जब आप उसके लिए सहानुभूति दिखाएंगे, तो वो भी पॉज़िटिव रहेगा.
दूसरा है विचार यानी सकारात्मक सोच रखना. ऑफिस में ऐसे सेमिनार या वर्कशॉप्स हों जो पॉज़िटिविटी बढ़ाएं. डॉक्टर्स को बुलाकर बताएं कि डायबिटीज़ के अलावा भी ज़िंदगी के कई पहलू हैं
तीसरा है आहार. आजकल कई ऑफिसेज़ में खाना मिलता है. कई बार वो हेल्दी होता है. आप ये खाना खा सकते हैं.
चौथा है विहार यानी एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज़. अगर आपके ऑफिस के साथी संडे को क्रिकेट मैच, ट्रेकिंग या पिकनिक जैसी एक्टिविटी रखें, तो सभी को उसमें शामिल करें. ऐसा करने से टीम के बीच अपनापन बढ़ेगा. जिस ऑफिस में हंसी-खुशी का माहौल होगा, वहां लोगों के काम करने की क्षमता बढ़ेगी.
लाइफस्टाइल में क्या बदलाव करें?स्ट्रेस में रहने से शरीर में ऐसे हॉर्मोन बनने लगते हैं, जो इंसुलिन को सही तरह से काम नहीं करने देते. इसलिए, ऐसी चीज़ें खाएं, जो शरीर के लिए ज़्यादा समस्याएं न पैदा करे. कहा भी जाता है, ‘फास्ट फूड किल्स फास्ट’. फास्ट फूड में ट्रांस फैट, ज़्यादा नमक और शक्कर होती है, जो सेहत के लिए अच्छी नहीं है.
मोटापे से बचना बहुत ज़रूरी है. जैसे-जैसे शरीर का वज़न बढ़ता है, इंसुलिन की ज़रूरत भी बढ़ती जाती है. अगर शरीर पर्याप्त इंसुलिन नहीं बना पाता, तो ब्लड शुगर लेवल बढ़ने लगता है. इसलिए कोशिश करें कि वज़न कंट्रोल में रहे. इसके लिए संतुलित खानपान के साथ व्यायाम बहुत ज़रूरी है.
कई बार सब कुछ करने के बावजूद, कुछ लोगों को डायबिटीज़ हो जाती है. शुरुआत में लक्षण बहुत हल्के या बिल्कुल नहीं होते, इसलिए लोग इसे इग्नोर कर देते हैं. जब तक कोई कॉम्प्लिकेशन महसूस नहीं होता, तब तक पता ही नहीं चलता कि डायबिटीज़ हो गई है. इसलिए, एक उम्र के बाद रेगुलर हेल्थ चेकअप ज़रूर कराएं. इसमें शुगर, कोलेस्ट्रॉल और बीपी जैसी जांचें शामिल हों. जिनके परिवार में डायबिटीज़ है, उन्हें ये टेस्ट ज़्यादा कराना चाहिए. जिन्हें डायबिटीज़ होने की संभावना है, अगर वो हेल्दी लाइफस्टाइल रखें तो शायद उन्हें डायबिटीज़ न हो या देर से हो. वहीं जिनको डायबिटीज़ नहीं है, वो भी अच्छा लाइफस्टाइल अपनाकर इससे बच सकते हैं.
(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)
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